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मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार के बारे में लेनिन के विचार

हमारी राय में, हमारे कामों की शुरुआत, जिस संगठन को हम बनाना चाहते हैं उसके निर्माण की दिशा में हमारा पहला क़दम, एक अखिल रूसी राजनीतिक अख़बार की स्थापना होना चाहिए। हम कह सकते हैं कि यही वह मुख्य सूत्र है जिसे पकड़ कर हम संगठन का लगातार विकास कर सकेंगे और उसे गहरा और विस्तृत बना सकेंगे।

चिंगारी से भड़केंगी ज्वालाएँ (लेनिन के कुछ रोचक संस्मरण)

रूसी क्रान्ति के नेता लेनिन के कुछ रोचक संस्मरण, मज़दूर संघर्षों को एक सूत्र में पिरोने वाले इन्क़लाबी अख़बार ‘ईस्क्रा’ की तैयारी के सम्बन्ध में

मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार के बारे में लेनिन के विचार

अख़बार की भूमिका मात्र विचारों का प्रचार करने, राजनीतिक शिक्षा देने, तथा राजनीतिक सहयोगी भरती करने के काम तक ही नहीं सीमित होती। अख़बार केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता का ही नहीं बल्कि एक सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है। इस दृष्टि से उसकी तुलना किसी बनती हुई इमारत के चारों ओर खड़े किये गये बल्लियों के ढाँचे से की जा सकती है। इस ढाँचे से इमारत की रूपरेखा स्पष्ट हो जाती है और इमारत बनाने वालों को एक दूसरे के पास आने-जाने में सहायता मिलती है जिससे वे काम का बँटवारा कर सकते हैं और अपने संगठित श्रम के संयुक्त परिणामों पर विचार-विनिमय कर सकते हैं।

‘इस्क्रा’ के सम्पादकीय बोर्ड का घोषणापत्र – वी.आई. लेनिन (सम्पादकीय बोर्ड की ओर से)

हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि प्रत्येक रूसी कॉमरेड हमारे प्रकाशन को अपना ही माने, जिससे सारे ही समूह आन्दोलन से सम्बन्धित हर तरह की सूचनाएँ साझा कर सकें, जिसमें वे अपने अनुभव दूसरों से बाँट सकें, अपने विचार व्यक्त कर सकें, राजनीतिक साहित्य की अपनी आवश्यकताएँ बता सकें, और सामाजिक-जनवादी संस्करणों के बारे में अपनी राय व्यक्त कर सकें, संक्षेप में कहें तो, आन्दोलन के लिए उनका जो भी योगदान हो और आन्दोलन से उन्होंने जो कुछ भी ग्रहण किया हो, वे उस प्रकाशन के माध्यम से साझा कर सकें। सिर्फ़ इसी तरीक़़े से एक अखिल रूसी सामाजिक-जनवादी मुखपत्र की नींव डालना सम्भव हो सकेगा। सिर्फ़ ऐसा प्रकाशन ही आन्दोलन को राजनीतिक संघर्ष के असली रास्ते पर ले जा सकेगा। “अपनी सीमाओं का विस्तार करो और अपनी प्रचारात्मक, आन्दोलनात्मक, और संगठनात्मक गतिविधियों की अन्तर्वस्तु को और भी व्यापक बनाओ” – पी.बी. एक्सेलरोद के इन शब्दों को रूसी सामाजिक-जनवादियों की निकट भविष्य की कार्यवाहियों को परिभाषित करते नारे की भूमिका अदा करनी चाहिए, और यही नारा हम अपने प्रकाशन के कार्यक्रम के लिए भी अपना रहे हैं।

उड़न छापाखाना – रूस की मज़दूर क्रान्ति के दौरान गुप्त अख़बार की छपाई की रोमांचक और दिलचस्प दास्तान

यह एक अद्भुत छापाखाना था : इसके पास न तो रोटरी प्रेस, टाइप फेस थे और न ही कागज। इसके पास अपना दफ्तर तक नहीं था। लेकिन बगावत के दिनों में इसने क्रान्तिकारी अखबार इज्वेस्तिया निकालने का इंतजाम तो कर ही लिया। बोल्शेविकों ने इसे “फ्लाइंग प्रेस” नाम दिया था।
इसके कर्मचारियों में पंद्रह टाइप-सेटर और पचास मज़दूर गश्ती दल के सदस्य थे। छपाई दफ्तर उस समय मास्को का कोई भी छापाखाना हो सकता था। अकेले अथवा छोटे समूहों में मजदूर उस छापाखाने में पहुंच जाते जिसे उन्होंने अखबार की छपाई के लिए चुना होता। वे आनन-फानन में बरामदों को घेरते हुए सभी प्रवेश एवं निकास द्वारों पर कब्जा जमा लेते। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह रहती थी कि वे सड़क से पहचाने नहीं जाएं।

मज़दूर अख़बार की क्रान्तिकारी भूमिका

मैंने कहीं पढ़ा था कि रूस में जो मज़दूरों की क्रान्ति हुई उसके पीछे वहाँ के क्रान्तिकारियों द्वारा प्रकाशित अख़बारों की बहुत बड़ी भूमिका थी। न केवल वह अख़बार मज़दूरों को उनके जीवन की समस्याओं के बारे में जागरूक करते थे, बल्कि एेसे अख़बार मज़दूरों को आपस में जोड़ने का भी काम करते थे। फिर भी मैं पूरी तरह नहीं समझ पाया हूँ कि मज़दूर अखबार के द्वारा देश में क्रान्तिकारी पार्टी किस तरह से बनायी जा सकती है। इसके बारे में भी कभी ‘मज़दूर बिगुल’ में लिख सकें तो अच्छा रहेगा। इसके बारे में और पढ़ने की सामग्री भी बताइयेगा।

अख़बार और मज़दूर

सर्वोपरि, मज़दूर को बुर्जुआ अख़बार के साथ किसी भी प्रकार की एकजुटता को दृढ़ता से ख़ारिज करना चाहिए। और उसे हमेशा, हमेशा, हमेशा यह याद रखना चाहिए कि बुर्जुआ अख़बार (इसका रंग जो भी हो) उन विचारों एवं हितों से प्रेरित संघर्ष का एक उपकरण होता है जो आपके विचार और हित के विपरीत होते हैं। इसमें छपने वाली सभी बातें एक ही विचार से प्रभावित होती हैं: वह है प्रभुत्वशाली वर्ग की सेवा करना, और जो आवश्यकता पड़ने पर इस तथ्य में परिवर्तित हो जाती है: मज़दूर वर्ग का विरोध करना। और वास्तव में, बुर्जुआ अख़बार की पहली से आखि़री लाइन तक इस पूर्वाधिकार की गन्ध आती है और यह दिखायी देता है।

मार्क्सवादी पार्टी बनाने के लिए लेनिन की योजना और मार्क्सवादी पार्टी का सैद्धान्तिक आधार

कठिनाई इसी में नहीं थी कि जार सरकार के बर्बर दमन का सामना करते हुए पार्टी बनानी थी। जार सरकार जब-तब संगठनों के सबसे अच्छे कार्यकर्ता छीन लेती थी और उन्हें निर्वासन, जेल और कठिन मेहनत की सजाएँ देती थी। कठिनाई इस बात में भी थी कि स्थानीय कमेटियों और उनके सदस्यों की एक बड़ी तादाद अपनी स्थानीय, छोटी-मोटी अमली कार्रवाई छोड़कर और किसी चीज़ से सरोकार नहीं रखती थी। पार्टी के अन्दर संगठन और विचारधारा की एकता नहीं होने से कितना नुक़सान हो रहा है, इसका अनुभव नहीं करती थी। पार्टी के भीतर जो फूट और सैद्धान्तिक उलझन फैली हुई थी, वह उसकी आदी हो गयी थी। वह समझती थी कि बिना एक संयुक्त केन्द्रित पार्टी के भी मज़े में काम चला सकती है।

लेनिन – मज़दूरों का राजनीतिक अख़बार एक क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने के लिए ज़रूरी है

अखबार न केवल सामूहिक प्रचारक और सामूहिक आन्दोलनकर्ता का, बल्कि सामूहिक संगठनकर्ता का भी काम करता है। इस दृष्टि से उसकी तुलना किसी बनती हुई इमारत के चारों ओर बाँधे गये पाड़ से की जा सकती है; इससे इमारत की रूपरेखा प्रकट होती है और इमारत बनाने वालों को एक-दूसरे के पास आने-जाने में सहायता मिलती है, इससे वे काम का बँटवारा कर सकते हैं, अपने संगठित श्रम द्वारा प्राप्त आम परिणाम देख सकते हैं।

रूस में मज़दूरों के क्रान्तिकारी अख़बार ‘ईस्क्रा’ की शुरुआत की रोमांचक कहानी

‘ईस्क्रा’ उन्हें पार्टी का निर्माण करने के लिए, क्रान्ति के लिए ललकारता। शीघ्र ही रूस में ‘ईस्क्रा’ की प्रेरणा से एक शक्तिशाली मज़दूर आन्दोलन शुरू हो गया। इस विराट आन्दोलन के नेता, मार्गदर्शक और ‘ईस्क्रा’ के मुख्य सम्पादक व्लादीमिर इल्यीच थे।

व्लादीमिर इल्यीच को रूस से मज़दूरों और ‘ईस्क्रा’ के एजेण्टों से बड़ी संख्या में पत्र, लेख, आदि मिलते थे और लगभग सब कूट भाषा में लिखे होते थे। वह उन्हें ‘ईस्क्रा’ में छापते, मज़दूरों के पत्रों के जवाब देते, ‘ईस्क्रा’ के लिए लेख तैयार करते और साथ ही राजनीति और क्रान्तिकारी संघर्ष के बारे में किताबें लिखते।