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ताइवान को लेकर अमेरिका व चीन के बीच तेज़ होती अन्तर-साम्राज्यवादी होड़

विश्व पूँजीवाद के अन्तरविरोध दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तीखे रूप में प्रकट हो रहे हैं। अन्तर-साम्राज्यवादी होड़ के नतीजे के रूप में यूक्रेन में शुरू हुआ युद्ध अभी तक जारी है। इसी बीच 3 अगस्त 2022 को अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने अपनी दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा के दौरान ताइवान की राजधानी ताइपेई का भी दौरा किया जिसके बाद से वैश्विक राजनीति में उथल-पुथल मच गयी। दरअसल चीन ताइवान को एतिहासिक तौर पर अपना हिस्सा मानता है और उसका देर-सबेर चीन के साथ विलय होना निश्चित मानता है।

सरकारी उपक्रमों को कौड़ियों के मोल पूँजीपतियों को बेचने की अन्‍धाधुन्‍ध मुहिम

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वर्ष 2021-22 के बजट में सार्वजनिक संसाधनों की अन्धाधुन्‍ध नीलामी की योजना पेश की है। महँगाई और बेरोज़गारी से त्रस्त आम जनता को राहत देने के लिए बजट में कुछ भी ठोस नहीं है। बदहाल अर्थव्यवस्था और ऊपर से कोरोना की मार झेल रही जनता को राहत देने वाली कुछ बची-खुची सरकारी योजनाओं के लिए बजट बढ़ाने के बजाय इनके लिए आवंटित राशि में पिछले वर्ष की तुलना में भारी कटौती की गयी है।

दुनियाभर में रोज़ बढ़ते करोड़ों शरणार्थी और प्रवासी – पूँजीवाद ही ज़िम्मेदार है इस विकराल मानवीय समस्या का

दक्षिणपन्थी संगठन मज़दूरों को राष्ट्रीयताओं, सांस्कृतिक भेदभाव, भाषाई अन्तर और धार्मिक भिन्नता के आधार पर बाँटने का काम करते हैं, एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा करते हैं और इस तरह पूँजीपति वर्ग की सेवा करते हैं। मज़दूरों की असली माँग ये होनी चाहिए कि चाहे वो प्रवासी हों या देशी, सभी मज़दूरों को रोज़गार और जीवन की सभी मूलभूत सुविधाएँ मिलें। असलियत तो ये ही है कि सभी मज़दूरों के अधिकार एक हैं और उनकी लड़ाई भी एक है और वह लड़ाई है इस शोषणकारी पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध।

एक तरफ़ बढ़ती बेरोज़गारी है और दूसरी तरफ़ लाखों शहरी नौजवानों को गुज़ारे के लिए दो-दो जगह काम करना पड़ रहा है

दिन के समय वो एक प्रायवेट अस्पताल में अटेंडेंट का काम करता है और शाम को ओला बाइक चलाता है। प्रायवेट अस्पताल में उसको संडे तक की छुट्टी नहीं मिल पाती और अक्सर इमरजेंसी कहके उसे संडे को भी काम करने बुलाया जाता है। उसे अस्पताल से दस हज़ार रुपये की तनख़्वाह मिलती है और रोज़ सवेरे 8 बजे से शाम 5 बजे तक लगातार काम रहता है । शाम को 5 बजे से रात के 10 बजे तक श्रीकांत ओला बाइक चलाता है जिससे उसे दिन के 300 रुपए तक मिल जाते हैं ।

आनन्द तेलतुम्बड़े पर फ़र्ज़ी आरोप, तेज़ी से सिकुड़ते बुर्जुआ जनवाद की एक और बानगी

आनन्द तेलतुम्बड़े एक अम्बेडकरवादी चिन्तक और लेखक हैं। उनके कई लेख और किताबें प्रसिद्ध हुई हैं, जिनमें वो ख़ासकर जातिवाद के ख़िलाफ़ मुखरता से अपना पक्ष लिखते रहे हैं। उन्होंने “जाति का प्रजातन्त्र”, “महार : द मेकिंग ऑफ़ द फ़र्स्ट दलित रिवोल्ट” जैसी आज की बेहद प्रासंगिक किताबें लिखी हैं। उनके विचारों से हमारी तमाम असहमतियाँ हो सकती हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि वर्तमान फ़ासिस्ट निज़ाम के ख़िलाफ़ वे शुरू से ही लिखते और बोलते रहे हैं। ऐसे में, स्वाभाविक ही वे सरकार की आँखों में चुभते रहे हैं, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सरकार उन्हें निशाना बना रही है।

कपड़ा मज़दूरों की हड़ताल से काँप उठा बांग्लादेश का पूँजीपति वर्ग

वॉलमार्ट, टेस्को, गैप, जेसी पेनी, एच एण्ड एम, इण्डिटेक्स, सी एण्ड ए और एम एण्ड एस जैसे विश्व में बड़े-बड़े ब्राण्डों के जो कपड़े बिकते हैं और जिनके दम पर पूरी फै़शन इण्डस्ट्री चल रही है, उस पूरी सप्लाई श्रृंखला के मुनाफ़े का स्रोत बांग्लादेश के मज़दूर द्वारा किये गये श्रम का ज़बरदस्त शोषण ही है। सरकारें और देशी पूँजीपति मुनाफ़ा निचोड़ने की इस श्रृंखला का ही हिस्सा हैं और इसलिए पुरज़ोर कोशिश करते हैं जिससे कम से कम वेतन बना रहे और उनका शासन चलता रहे। पुलिस, सरकार, ट्रेड यूनियनों के कुछ हिस्सों और पूँजीपतियों का एक होकर मज़दूरों को यथास्थिति में बनाये रखने की कोशिश करना साफ़ दर्शाता है कि ये सभी मज़दूर विरोधी ताक़तें हैं।

हत्यारे वेदान्ता ग्रुप के अपराधों का कच्चा चिट्ठा

पिछली 22 मई को तमिलनाडु पुलिस ने एक रक्तपिपासु पूँजीपति के इशारे पर आज़ाद भारत के बर्बरतम सरकारी हत्याकाण्डों में से एक को अंजाम दिया। उस दिन तमिलनाडु के तूतुकोडि (या तूतीकोरिन) जिले में वेदान्ता ग्रुप की स्टरलाइट कम्पनी के दैत्याकार कॉपर प्लाण्ट के विरोध में 100 दिनों से धरने पर बैठे हज़ारों लोग सरकारी चुप्पी से आज़िज़ आकर ज़िला कलेक्ट्रेट और कॉपर प्लाण्ट की ओर मार्च निकाल रहे थे। पुलिस ने पहले जुलूस पर लाठी चार्ज किया और उसके बाद गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। सादी वर्दी में बसों के ऊपर तैनात पुलिस के निशानेबाज़ों ने एसॉल्ट राइफ़लों से निशाना साधकर प्रदर्शनकारियों को गोली मारी। आन्दोलन की अगुवाई कर रहे चार प्रमुख नेताओं को निशाना साधकर गोली से उड़ा दिया गया। सरकार के मुताबिक 13 प्रदर्शनकारी गोली से मारे गये और दर्जनों घायल हुए।

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अदालत का फ़ैसला संसाधनों की बेहिसाब पूँजीवादी लूट पर पर्दा नहीं डाल सकता

मज़दूर वर्ग के दृष्टिकोण से देखा जाये तो जिसे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला कहा गया वो दरअसल इस मामले में हुई कुल लूट का एक बेहद छोटा-सा हिस्सा था। इस घोटाले पर मीडिया में ज़ोरशोर से लिखने वाले तमाम प्रगतिशील रुझान वाले पत्रकार और बुद्धिजीवी भी कभी यह सवाल नहीं उठाते कि आख़िर इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधन, जो जनता की सामूहिक सम्पदा है, को किसी भी क़ीमत पर पूँजीपतियों के हवाले क्यों किया जाना चाहिए!

झारखण्ड में भूख से बच्ची की मौत – पूँजीवादी ढाँचे द्वारा की गयी एक और निर्मम हत्या

अक़सर यह बताया जाता है कि भुखमरी का कारण खाद्यान्न की कमी है, पर यह एक मिथक है। सच तो यह है कि विश्व में इतना भोजन का उत्पादन होता है कि सभी का पेट भरना सम्भव है। एक ओर सुपरमार्केट की अलमारियों में रंग’बिरंगे ि‍डब्बों में खान-पान की सामग्री स्टॉक करके रखी हुई है, वहीं दूसरी ओर विश्व-भर में रोज़ 1.6 करोड़ बच्चे और 3.3 करोड़ वयस्क भूखे सोते हैं। पूँजीवादी मुनाफ़े की होड़ के कारण भोजन की क़ीमतें मज़दूरों और मेहनतकशों की पहुँच से अधिक होती हैं और हमेशा बढ़ती जाती हैं। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण दुनिया की काम करने वाली आबादी का एक छोटा हिस्सा भी अगर खेतों में काम करे तो दुनिया-भर की आबादी का पेट भरने में सक्षम है परन्तु आधुनिक खाद्य उत्पादन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मुनाफ़े के अधीन काम कर रहे हैं। इसका ही दूसरा पहलू यह है कि अरबों ग़रीब किसान पुराने तरीक़ों से काम करते हुए अपनी क्षमताओं को बर्बाद करते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और मज़दूर वर्ग पर उसका असर

स्वास्थ्य जैसी समाज की मूलभूत ज़रूरत के प्रति सरकार ने जो नीति बनाई है, वह एक छोटे से धनाढ्य वर्ग और मध्य वर्ग के हित में है। पूँजीपति वर्ग मज़दूर के शोषण से एकत्रित की हुई पूँजी के कारण या तो स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में धन्धा करेगा या फिर इन सेवाओं का उपभोक्ता होगा। मज़दूर वर्ग को इस तरह की नीतियाँ हमेशा भगवान व भाग्य के भरोसे ही रख छोड़ती हैं। इस नाइंसाफ़ी के ख़ि‍लाफ़ मज़दूर आवाज़ न उठा दें, इसलिए उसे बहलाने के और भी तरीक़े सरकार को आते हैं। आजकल सियासी जुमलों की बहुतायत है। जब स्वास्थ्य की चर्चा होती है तो स्वच्छ भारत अभियान, कुपोषण विरोधी अभियान, नशामुक्ति अभियान, रेल-रोड यात्री सुरक्षा अभियान, लिंग परीक्षण विरोधी अभियान, तनाव मुक्ति अभियान, वायु व जल प्रदुषण से मुक्ति और योग और व्यायाम का महत्व इत्यादि मुद्दों पर ही बातें होती हैं, परन्तु अगर तार्किक ढंग से देखा जाये तो मनुष्य के स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध तो पर्याप्त और पौष्टिक भोजन, न्यायसंगत वेतन, काम करने के सही तरीक़ों, सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता और सही शिक्षा से भी है।