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आपस की बात – वेल्डिंग कम्पनी के मजदूरों के हालात

मैं जहाँ काम करता हूं उसमें केबल की रबर बनाने में पाउडर (मिट्टी) का इस्तेमाल होता है। मिट्टी इतनी सूखी और हल्की होती है कि हमेशा उड़ती रहती हहै। आँखों से उतना दिखाई तो नहीं देता लेकिन शाम को जब अपने शरीर की हालत देखते हैं तो पूरा शरीर और सिर मिट्टी से भरा होता है। नाक, मुंह के जरिये फेफड़ों तक जाता है। इस कारण मजदूरों को हमेशा टी.बी., कैंसर, पथरी जैसी गम्भीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। जो पाउडर केबल के रबर के ऊपर लगाया जाता है उससे तो हाथ पर काला-काल हो जाता है। जलन एवं खुजली होती रहती है। इन सबसे सुरक्षा के लिए सरकार ने जो नियम बना रखे हैं वे पूरे दिखावटी हैं।

मोदी और पेट गैस की गोलियों में क्या संबंध है!

नवम्बर में औद्योगिक उत्पादन 8.4% बढ़ने के आंकड़े जारी करने के बाद मोदी सरकार और उसके भोंपू अर्थशास्त्री विशेषज्ञ अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी का राग अलाप रहे हैं! पर लिंक में दिए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े के पैराग्राफ 8 को पढ़ें तो कुल उत्पादन वृद्धि में से 2.5% वृद्धि तो सिर्फ पेट गैस की गोलियों और पाचन शक्ति बढ़ाने वाले टॉनिकों से हुई बताई गई है, जबकि कुल औद्योगिक उत्पादन में इनका कुल हिस्सा (weightage) चौथाई प्रतिशत से भी कम होता है – 0.22%! ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है – ये पेट गैस की गोलियों का चक्कर पिछले साल भी था! अब ये इतनी पेट गैस की गोलियां कौन खा रहा है?

भोरगढ़ (दिल्ली) के मज़दूरों का नारकीय जीवन और उससे सीखे कुछ सबक

भोरगढ़ में अधिकतर प्लास्टिक लाइन की कम्पनियां है। इसके अलावा बर्तन, गत्ता, रबर, केबल आदि की फैक्ट्री है। सभी कम्पनियों में औसतन मात्र 8-10 लड़के काम करते हैं अधिकतर कम्पनियों में माल ठेके पर बनता है। छोटी कम्पनियों में मज़दूर हमेशा मालिक की नजरों के सामने होता है मज़दूर एक काम खतम भी नहीं कर पाता है कि मालिक दूसरा काम बता देता है कि अब ये कर लेना।