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मोदी राज में बेरोज़गारी चरम पर पहुँची

युवाओं को कहीं बड़े स्तर पर बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 15 से 29 वर्षीय युवाओं में शहरी क्षेत्र में बेरोज़गारी दर 22.95 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 15.5 प्रतिशत थी। शहरी क्षेत्र के पुरुष युवाओं में यह दर 18.7 प्रतिशत और महिला युवाओं में 27.2 प्रतिशत थी। ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष युवा 17.4 प्रतिशत और महिला युवा 13.6 प्रतिशत की दर से बेरोज़गारी का सामना कर रहे थे।

संगठित होकर ही बदल सकती है घरेलू मज़दूरों की बुरी हालत

घरेलू मज़दूरों के सिर्फ़ श्रम की ही लूट नहीं होती बल्कि उन्हें बुरे व्यवहार का सामना भी करना पड़ता है। गाली-गलोच, मारपीट आदि आम बात है। जाति, क्षेत्र, धर्म आधारित भेदभाव का बड़े स्तर पर सामना करना पड़ता है। घरेलू स्त्री मज़दूरों को शारीरिक शोषण का सामना भी करना पड़ता है। चोरी-डकैती के मामले में सबसे पहले शक इन मज़दूरों पर ही किया जाता है और उन्हें मालिकों और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

अर्जेण्टीना में गम्भीर आर्थिक संकट – वर्ग संघर्ष तेज़ हुआ

पूँजीवादी व्यवस्था के विश्व स्तर पर छाये आर्थिक संकट के बादल अर्जेण्टीना में ज़ोरों से बरस रहे हैं। मुनाफ़े की दर बेहद गिर चुकी है। माँग में ज़ोरदार गिरावट आयी है व औद्योगिक उत्पादन भी गिर चुका है। आयात के मुकाबले निर्यात काफ़ी गिर चुका है। बेरोज़गारी की दर 9 प्रतिशत पार कर चुकी है। महँगाई दर 40 प्रतिशत को पार कर रही है। अर्जेण्टीना के केन्द्रीय बैंक को ब्याज़ दरें बढ़ाकर 40 प्रतिशत करनी पड़ी हैं, फिर भी महँगाई को लगाम नहीं लग रही, बल्कि इससे संकट और भी गहराता जा रहा है। सरकार का बजट घाटा आसमान छू रहा है यानी सरकार के ख़र्चे आमदनी से कहीं अधिक बढ़ चुके हैं। इसका कारण यह नहीं है कि सरकार जनता को हद से अधिक सहूलतें दे रही है (जिस तरह कि अर्जेण्टीना का पूँजीपति वर्ग व साम्राज्यवादी प्रचारित करते हैं) बल्कि इसका कारण पूँजीपतियों दी जा रही छूटें, सहूलतें हैं।

मोदी मण्डली के जन-कल्याण के हवाई दावे बनाम दौलत के असमान बँटवारे में तेज़ वृद्धि

सन् 2014 से 2016 तक ऊपर की 1 प्रतिशत आबादी के पास भारत में कुल दौलत में हिस्सा 49 प्रतिशत से 58.4 प्रतिशत हो गया है। इस तरह ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी की दौलत में भी वृद्धि हुई है। रिपोर्ट मुताबिक़ 80.7 प्रतिशत दौलत की मालिक यह ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी सन् 2010 में 68.8 प्रतिशत की मालिक थी। यह आबादी भी मोदी सरकार के समय में और भी तेज़ी से माला-माल हुई है।

16 दिसम्बर की बर्बर घटना के पाँच साल बाद बलात्कार पीड़िताओं को इंसाफ के झूठे वादे

जल्द इंसाफ मिलने की सम्भावनाएँ यहाँ बहुत कम हैं। सारी सरकारी व्यवस्था स्त्री विरोधी सोच से ग्रस्त है। जब कोई स्त्री हिम्मत करके पुलिस के पास शिकायत लेकर जाती है तो सबसे पहले उसे ही गुनाहगार ठहराने की कोशिश की जाती है। पुलिस की पूरी कोशिश रहती है कि मामला दर्ज न हो। कोशिश की जाती है कि घूस लेकर मामला रफा-दफा कर दिया जाये। अगर रपट दर्ज भी होती है तो देरी कार कारण मेडीकल करवाने पर बलात्कार साबित करना मुश्किल हो जाता है।

समाज सेवा के नाम पर बच्चियों की तस्करी – आर.एस.एस. का साम्प्रदायिक, स्त्री विरोधी चरित्र हुआ और नंगा

आर.एस.एस. अपने साम्प्रदायिक फासीवादी नापाक इरादों के लिए बड़े स्तर पर बच्चियों की तस्करी कर रहा है। अधिक से अधिक हिन्‍दुत्ववादी स्त्री प्रचारक व कार्यकर्ता तैयार करने के लिए असम से छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों को समाज सेवा के नाम पर आर.एस.एस. संचालित प्रशिक्षिण शिविरों में भेजा रहा है। इन रिपोर्टों से जो सच सामने आया है वह तो बस एक झलक ही है। दशकों से जिस बड़े स्तर पर आर.एस.एस. ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है उसका तो अंदाज़ा तक नहीं लगाया जा सकता।

बुरे दिनों की एक और आहट – बजरंग दल के शस्त्र प्रशिक्षण शिविर

आने वाला समय और भी भयानक होने वाला है। हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी धार्मिक अल्पसंख्यकों से भी बड़े दुश्मन कम्युनिस्टों, जनवादी कार्यकर्ताओं, तर्कशील व धर्मनिरपेक्ष लोगों आदि को मानते हैं। इसमें ज़रा भी शक नहीं है कि हिन्दुत्व कट्टरपंथी फासीवादी भारत में इन सभी पर हमले की तैयारी कर रहे हैं क्‍योंकि यही लोग इनके नापाक मंसूबों की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। लेकिन स्वाल यह है कि हम इसके मुकाबले की क्या तैयारी कर रहे हैं?

‘आधार’ – जनता के दमन का औज़ार

मौजूदा फासीवादी उभार के समय में जब राज्यसत्ता की हिमायत प्राप्त हिन्दुत्ववादी अँधराष्ट्रवाद व साम्प्रदायिकता का बोलबाला है, जब जनता के विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, अधिकारों के लिए संगठित होने व संघर्ष करने के संविधानिक-जनवादी अधिकारों पर राज्यसत्ता द्वारा जोरदार हमले हो रहे हैं ऐसे फासीवादी उभार के समय में देश के पूँजीवादी हुक़्मरानों के हाथ में आधार जैसा दमन का औजार आना एक बेहद चिंताजनक बात है। जनता को हुक़्मरानों के इस हमले से परिचित कराना, इसके खिलाफ़ जगाना, संगठित करना बहुत ज़रूरी है।

चेन्नई बाढ़ त्रासदी – प्राकृतिक क़हर नहीं, विकास के पूँजीवादी रास्ते का नतीजा

चेन्नई में पूँजीपतियों, सरकार व अफ़सरों के गठजोड़ ने क़ानूनी-ग़ैरक़ानूनी तौर-तरीक़ों के ज़रिये नाजायज़ तौर पर ऐसी जगहों पर क़ब्ज़े कर लिये जहाँ से पानी की निकासी हो सकती थी। दौलत कमाने के लिए और अय्याशी के अड्डे स्थापित करने के लिए अन्धाधुन्ध ग़ैरयोजनाबद्ध ढंग से धड़ाधड़ निर्माण कार्य हुआ है। इस दौरान बाढ़, भूकम्प जैसी परिस्थितियों के पैदा होने का ध्यान नहीं रखा गया। नाजायज़ क़ब्ज़ों के लिए ग़रीबों को दोष दिया जा रहा है। झुग्गी-झोंपड़ी में रहने को मज़बूर लोगों के पुख्ता रिहायश के लिए कोई भी क़दम सरकार ने नहीं उठाये। इनके पास रहने के लिए और कोई जगह नहीं है। नाजायज़ क़ब्ज़े करने वाते तो पूँजीपति और सरकारी पक्ष है।

पंजाब सरकार द्वारा ”इंस्पेक्टर राज” के ख़ात्मे का ऐलान — पूँजीपतियों के हित में मज़दूरों-मेहनतकशों के हकों पर डाका

मौजूदा समय में जब पूरी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था में आर्थिक संकट के बादल छाये हुए हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ा रही है, मुनाफे सिकुड़ रहे हैं, सकल घरेलू गतिरोधव गिरावट का शिकार है, तब भारत के पूँजीवादी हुक्मरान देसी -विदेशी पूँजी के लिए भारत में साजगार माहौल के निर्माण की कोशिश में लगे हुए हैं। आर्थिक सुधारों में बेहद तेज़ी भारतीय पूँजीवादी हुक्मरानों की इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है। ‘’इंस्पेक्टर राज’’ के ख़ात्मे की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का भी यही कारण है। आज मज़दूरों द्वारा भी पूँजीपति वर्ग के इस हमले के ख़िलाफ़ ज़ोरदार हल्ला बोलने की ज़रूरत है। ज़रूरत तो इस बात की है कि पहले से मौजूदा श्रम अधिकारों को तुरंत लागू किया जाये, श्रम अधिकारों को विशाल स्तर पर और बढ़ाया जाये। ज़रूरत इसकी है कि पूँजीपतियों पर बड़े टेक्स बढ़ाकर सरकार द्वारा जनता को बड़े स्तर पर सहूलतें मिलें। ज़रूरत इस बात की है कि पूँजीपतियों द्वारा मज़दूरों-मेहनतकशों की मेहनत की लूट पर लगाम कसने के लिए कानून सख़्त किए जाएँ। इन कानूनों के पालन के लिए अपेक्षित ढाँचा बनाया जाए। परन्तु पूँजीपतियों की सरकारों से जो उम्मीद की जा सकती है वह वही कर रही हैं – पूँजीपति वर्ग की सेवा। मज़दूर वर्ग यदि आज पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर कुछ थोड़ी-बहुत भी राहत हासिल करना चाहता है तो उसको मज़दूरों के विशाल एकजुट आन्दोलन का निर्माण करना होगा। पूँजीपति वर्ग द्वारा मज़दूर वर्ग पर बड़े एकजुट हमलों का मुकाबला मज़दूर वर्ग द्वारा जवाबी बड़े एकजुट हमले द्वारा ही किया जा सकता है।