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शहीद सुखदेव के जन्म स्थान नौघरा मोहल्ला में हुआ श्रद्धांजलि कार्यक्रम

15 मई को शहीद सुखदेव के जन्म स्थान नौघरा मोहल्ला, लुधियाना में बिगुल मज़दूर दस्ता, लोक मोर्चा पंजाब, इंक़लाबी केन्द्र पंजाब व इंक़लाबी लोक मोर्चा द्वारा संयुक्त तौर पर शहीद सुखदेव का जन्मदिन मनाया गया। घण्टाघर चौक के नज़दीक नगर निगम कार्यालय से लेकर नौघरा मोहल्ला तक पैदल मार्च किया गया। शहीद सुखदेव की यादगार पर लोगों ने श्रद्धांजलि फूल भेंट किये। इस अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता के राजविन्दर, लोक मोर्चा पंजाब के कस्तूरी लाल, इंक़लाबी केन्द्र पंजाब के नेता कंवलजीत खन्ना व इंक़लाबी लोक मोर्चा के विजय नारायण ने सम्बोधित किया।

मध्यम किसान और लागत मूल्य का सवाल : छोटे पैमाने के माल उत्पादन के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण

क्या सर्वहारा वर्ग के प्रतिनिधियों को छोटे पैमाने के माल उत्पादन की इस अपरिहार्य तबाही पर आँसू बहाने चाहिए या इस प्रक्रिया को रोकने की कोशिश करनी चाहिए या एस. प्रताप की तरह छोटे पैमाने के माल उत्पादन को बचाये रखने की इच्छाएँ पालनी चाहिए। सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षकों के मुताबिक़ ऐसी कोशिशें या इच्छाएँ सामाजिक विकास और सर्वहारा वर्ग के लिए बेहद ख़तरनाक होंगी।

कुतर्क, लीपापोती और अपने ही अन्तरविरोधों की नुमाइश की है एस. प्रताप ने

श्रीमान एस. प्रताप के पास न तो सर्वहारा वर्ग के शिक्षकों ने जो कुछ किसान प्रश्न पर लिखा है उसका ही कोई अध्ययन है और न ही भारतीय कृषि में आये परिवर्तनों का। और यह बात वह पूरी “दरियादिली” से मानते भी हैं। वह ‘अलग सवालों पर,’ ‘शायद,’ ‘ऐसा लगता है,’ ‘अध्ययन नहीं है,’ आदि उक्तियों से ही काम चला रहे हैं। वह बिना किसी अध्ययन के ही भारतीय क्रान्ति के अहम प्रश्न ‘किसान प्रश्न’ पर बहस में उतर पड़े हैं। इससे यही साबित होता है कि वह इस महत्त्वपूर्ण सवाल पर चल रही बहस में कितनी ग़ैर-ज़िम्मेदारी वाला व्यवहार कर रहे हैं। इससे यही पता चलता है कि वह भारतीय क्रान्ति के इस अहम प्रश्न को सुलझाने के मक़सद से बहस नहीं चला रहे हैं, बल्कि कुछ अन्य कारण ही उनके प्रेरण-स्रोत हैं।

किसानी के सवाल को पेटी बुर्जुआ चश्मे से नहीं सर्वहारा के नज़रिये से देखिये जनाब!

एस. प्रताप किसानों की जिन माँगों की हिमायत कर रहे हैं, वे किसानों की निम्न पूँजीवादी मानसिकता को ही बल प्रदान करती हैं और उन्हें बुर्जुआ वर्ग के पलड़े में धकेलने वाली हैं। वह लागत मूल्य घटाने की माँग को मँझोले किसानों की मुख्य माँग के बतौर पेश तो कर ही रहे हैं, और अभी उन्होंने लाभकारी मूल्य की माँग की हिमायत को भी नहीं छोड़ा है। भले ही उनका कहना है कि, लाभकारी मूल्य की माँग जनविरोधी, सर्वहारा विरोधी तथा धनी किसानों की माँग है। उनका कहना है कि उनके लेख में “जहाँ वाजिब मूल्य के लिए दबाव बनाने की रणनीति अपनाने की बात की गयी है, वह एक विशेष सन्दर्भ में है जब चीनी मिलों ने बिना किसी उपयुक्त कारण के पिछले साल के मुक़ाबले गन्ने का दाम एकाएक काफ़ी कम कर दिया था।” उनके कहने का तात्पर्य यह है कि उक्त “विशेष सन्दर्भ” में लाभकारी मूल्य की माँग उठाना जायज़ है। उनके इस धनी किसान प्रेम पर हमें एक बार फि़र से हैरत हो रही है।

क्या कर रहे हैं आजकल पंजाब के ‘कामरेड’?

कोई भी वर्ग अपने हितों के लिए लड़ने को आज़ाद है। वह ख़ुशी से अपनी लड़ाई लड़े। मगर दुख की बात तो यह है कि पंजाब की धरती पर यह सब कुछ कम्युनिस्टों के भेस में हो रहा है। इन कम्युनिस्टों की रहनुमाई में लड़े जा रहे इन किसान आन्दोलनों की माँगें मज़दूर विरोधी तथा ग्रामीण धनी किसानों के हित में हैं। मज़दूरों के रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुओं जैसे, गेहूँ, धान तथा दूध आदि की कीमतों में बढ़ोत्तरी तो सीधे-सीधे मज़दूरों की जेब पर डाका है। ऊपर से सितम यह है कि इस डाकेज़नी में कोई और नहीं बल्कि ख़ुद को मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधि कहने वाले रंग-बिरंगे कम्युनिस्ट ही जाने-अनजाने मददगार बन रहे हैं।