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“संस्कारी देशभक्तों” के कुसंस्कारी शोहदे – सत्ता की शह पर बेख़ौफ़ गुण्डे!

”बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” वाली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने बेटे को बेटियों के बारे में कैसे संस्कार दिये हैं, इस घटना से सहज ही समझा जा सकता है व साथ ही पानी की तरह साफ़ केस में सत्ता पक्ष के लोग तरह-तरह की दलीलें देकर आरोपी को बचाने की हरसम्भव कोशिश कर रहे हैं और पूरे घटनाक्रम को देखते हुए सरकारी दबाव के चलते पुलिस की मिलीभगत भी अब किसी से छिपी नहीं है। हालाँकि बाद में देश-भर में चण्डीगढ़ पुलिस के इस ग़ैर-जि़म्मेदाराना व सत्तापरस्त रवैये के खि़लाफ़ उठी विरोध की आवाज़ों ने पुलिस को फिर से धाराएँ लगाकर दोनों को गिरफ़्तार करने पर मज़बूर कर दिया।

श्रम क़ानूनों में मोदी सरकार के “सुधारों” पर संसदीय वामपन्थियों की चुप्पी

ग़ौरतलब है कि जब मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में संशोधन करके फ़ैक्टरियों को मज़दूरों के लिए यातना शिविर और बन्दीगृह में तब्दील करने के प्रावधान किये जा रहे थे तो सभी संसदीय वामपन्थी पार्टियों की ट्रेड यूनियनों जैसे सीटू, एटक, एक्टू से लेकर अन्य चुनावी पार्टियों की ट्रेड यूनियनें जैसे इंटक, बीएमएस, एचएमएस एकदम मौन थीं! काफी लम्बे समय बाद इन ट्रेड यूनियनों ने अपनी चुप्पी तोड़कर जुबानी जमाख़र्च करते हुए शिकायत की कि संशोधनों के प्रावधानों के बारे में उनसे कोई सलाह नहीं ली गयी! यानी कि इन ट्रेड यूनियनों की मुख्य शिकायत यह नहीं थी कि पहले से ढीले श्रम क़ानूनों को और ढीला क्यों बनाया जा रहा है, बल्कि यह थी कि यह काम पहले उनसे राय-मशविरा करके क्यों नहीं किया गया! यह वक्तव्य अपने-आप में सरकार की नीतियों को मौन समर्थन है। यानी इन तमाम ग़द्दार ट्रेड यूनियनों की संशोधनों में पूर्ण सहमति है।