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बेअसर होती एण्टीबायोटिक दवाएँ : मुनाफ़े के जाल में फँसे फ़ार्मा उद्योग का विनाशकारी भस्मासुर

बेअसर होती एण्टीबायोटिक दवाएँ मुनाफ़े के जाल में फँसे फ़ार्मा उद्योग का विनाशकारी भस्मासुर डॉ॰ पावेल पराशर एण्टीबायोटिक यानी प्रतिजैविक का जन्म चिकित्सा विज्ञान की एक महान परिघटना थी। 1928…

क्रान्तिकारी सोवियत संघ में स्वास्थ्य सेवाएँ

सोवियत संघ में स्वास्थ्य सुविधा पूरी जनता को नि:शुल्क उपलब्ध थी। वहाँ गोरखपुर की तरह ऑक्सीजन सिलेण्डर के अभाव में बच्चे नहीं मरते थे और ना ही भूख से कोई मौत होती थी। सोवियत रूस में गृह युद्ध (1917-1922) के दौरान स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत पिछड़ गयी थीं। 1921 में जब गृहयुद्ध में सोवियत सत्ता जीत गयी, तब रूस में सब जगह गृहयुद्ध के कारण बुरा हाल था। देशभर में टाइफ़ाइड और चेचक जैसी बीमारियों से कई लोग मर रहे थे। साबुन, दवा, भोजन, मकान, स्कूल, पानी आदि तमाम बुनियादी सुविधाओं का चारों तरफ़़़ अकाल था। मृत्यु दर कई गुना बढ़ गयी थी और प्रजनन दर घट गयी थी। चारों तरफ़़़ अव्यवस्था का आलम था। पूरा देश स्वास्थ्य कर्मियों, अस्पतालों, बिस्तरों, दवाइयों, विश्रामगृहों के अभाव की समस्या से जूझ रहा था। ऐसे में सोवियत सत्ता ने एक केन्द्रीयकृत चिकित्सा प्रणाली को अपनाने का फ़ैसला किया जिसका लक्ष्य था छोटी दूरी में इलाज करना और लम्बी दूरी में बीमारी से बचाव के साधनों-तरीक़ों पर ज़ोर देना ताकि लोगों के जीवन स्तर को सुधारा जा सके।

इलाहाबाद में स्वास्थ्यकर्मियों का आन्दोलन

निर्धारित मानकों के हिसाब से 5000 की आबादी पर कम से कम एक महिला तथा एक पुरुष स्वास्थ्य कर्मी की नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन एक स्वास्थ्य कर्मी को 15000 की आबादी पर अकेले काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमर तोड़कर वास्तव में यह व्यवस्था देश की बदहाल स्थिति में जी रही देश की बड़ी आबादी को बेमौत मार रही है।