मज़दूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक लेनिन

व्लादीमिर इल्यीच लेनिन मज़दूर वर्ग के महान नेता, शिक्षक और दुनिया की पहली सफल मज़दूर क्रान्ति के नेता थे। लेनिन के नेतृत्व में सोवियत संघ में पहले समाजवादी राज्य की स्थापना हुई थी, जिसने दुनिया को दिखा दिया कि शोषण-उत्पीड़न के बन्धनों से मुक्त होकर मेहनतकश जनता कैसे-कैसे चमत्कार कर सकती है।

लेनिन का जन्म 22 अप्रैल 1870 को रूस के सिम्बीर्स्क नामक एक छोटे-से शहर में हुआ था। उनके पिता शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। उन दिनों रूस में ज़ारशाही का निरंकुश शासन था और मज़दूर तथा किसान आबादी भयंकर शोषण और उत्पीड़न का शिकार थी। दूसरी ओर, पूँजीपति, जागीरदार और ज़ारशाही के अफ़सर ऐयाशीभरी ज़िन्दगी बिताते थे। लेनिन के बड़े भाई अलेक्सान्द्र एक क्रान्तिकारी संगठन के सदस्य थे जिसने रूसी बादशाह (जिसे ज़ार कहते थे) को मारने की कोशिश की थी। लेनिन 13 वर्ष के थे तभी अलेक्सान्द्र को ज़ार की हत्या के प्रयास के जुर्म में फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। उनकी बड़ी बहन आन्ना को भी गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया था। इन घटनाओं ने उनके दिलो-दिमाग़ पर गहरा असर डाला और निरंकुश ज़ारशाही के प्रति उनके मन में गहरी नफ़रत भर दी। लेकिन साथ ही उन्हें यह भी लगने लगा कि अलेक्सान्द्र का रास्ता रूसी जनता की मुक्ति का रास्ता नहीं हो सकता।

क़ानून की पढ़ाई करने के दौरान उन्होंने विद्यार्थियों के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेना शुरू किया और कार्ल मार्क्स तथा फ्रे़डरिक एंगेल्स की रचनाओं से उनका परिचय हुआ। रूसी क्रान्तिकारी विचारक प्लेखानोव द्वारा बनाये गये ‘श्रमिक मुक्ति दल’ में वह सक्रिय हुए। फिर वे रूस के सबसे बड़े औद्योगिक शहर सेण्ट पीटर्सबर्ग आकर मज़दूरों को संगठित करने के काम में जुट गये। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर मज़दूरों के कई अध्ययन मण्डल शुरू किये और फिर ‘श्रमिक मुक्ति के लिए संघर्ष की सेण्ट पीटर्सबर्ग लीग’ नामक संगठन में सबको एकजुट किया। लेनिन ने उस समय क्रान्तिकारी आन्दोलन में फैले ग़लत विचारों के ख़िलाफ़ संघर्ष चलाया और स्थापित कर दिया कि एक क्रान्तिकारी पार्टी की अगुवाई में मज़दूर क्रान्ति के द्वारा ही रूसी जनता की मुश्किलों का अन्त हो सकता है। उन्होंने कहा कि मज़दूरों को केवल अपनी तनख़्वाह बढ़वाने और कुछ सुविधाएँ हासिल करने की लड़ाई में नहीं उलझे रहना चाहिए बल्कि उन्हें सत्ता अपने हाथ में लेने के लिए संघर्ष करना चाहिए।

लेनिन ने बताया कि क्रान्ति करने के लिए मज़दूर वर्ग की एक क्रान्तिकारी पार्टी का होना ज़रूरी है। इस पार्टी की रीढ़ ऐसे कार्यकर्ता होने चाहिए जो पूरी तरह से केवल क्रान्ति के लक्ष्य को ही समर्पित हों। उन्होंने ऐसे कार्यकर्ताओं को पेशेवर क्रान्तिकारी कहा। इस पार्टी का निर्माण एक क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार के माध्यम से शुरू होगा और यह जनता के बीच अपनी जड़ें गहरी जमा लेगी। उन्होंने कहा कि क्रान्तिकारी पार्टी पूरी तरह खुली होकर काम नहीं कर सकती, उसका केन्द्रीय ढाँचा गुप्त रहना चाहिए ताकि पूँजीवादी सरकार उसे ख़त्म नहीं कर सके। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘क्या करें’ में उन्होंने सर्वहारा वर्ग की नये ढंग की क्रान्तिकारी पार्टी के सांगठनिक उसूलों को प्रस्तुत किया, जिसके अलग-अलग पहलुओं को विकसित करने का काम वे आख़िरी समय तक करते रहे।

लेनिन ने अपने विश्लेषण से यह दिखाया कि साम्राज्यवाद पूँजीवाद की अन्तिम अवस्था है और सर्वहारा क्रान्तियाँ साम्राज्यवाद के युग का अन्त कर देंगी। उन्होंने यह भी बताया कि बड़े-बड़े पूँजीवादी देशों ने ग़रीब और पिछड़े देशों को लूटकर उसके एक हिस्से से अपने देश के मज़दूरों को कुछ सुविधाएँ दे दी हैं। इस वजह से इंग्लैण्ड, फ़्रांस, जर्मनी जैसे देशों में मज़दूरों का एक हिस्सा ‘अभिजात मज़दूर’ बन गया है और अब इसके लिए क्रान्ति का कोई मतलब नहीं रह गया है। ऐसे ही मज़दूरों के बीच नक़ली लाल झण्डे वाली संशोधनवादी पार्टियों का आधार है। लेनिन ने कहा कि पिछड़े देश साम्राज्यवाद की ज़ंजीर की कमज़ोर कड़ियाँ हैं और अब पहले इन्हीं देशों में क्रान्तियाँ होंगी।

क्रान्ति के अपने सिद्धान्त को लेनिन ने अक्टूबर क्रान्ति के ज़रिए साकार कर दिखाया। क्रान्ति के बाद रातोरात भूमि-सम्बन्धी आज्ञापत्र जारी करके ज़मीन पर ज़मींदारों का मालिकाना बिना मुआवज़े के ख़त्म कर दिया गया और ज़मीन इस्तेमाल के लिए किसानों को दे दी गयी, किसानों को लगान से मुक्त कर दिया गया और तमाम खनिज संसाधन, जंगल और जलाशय जनता की सम्पत्ति हो गये। सभी कारख़ाने राज्य की सम्पत्ति बन गये और तमाम विदेशी क़र्ज़े ज़ब्त कर लिये गये।

लेनिन के नेतृत्व में मज़दूरों का राज क़ायम होते ही सारी दुनिया के लुटेरे पूँजीपति बौखला उठे। मज़दूरों के राज को ख़ून की नदियों में डुबो देने के लिए जनरल देनिकिन, कोल्चाक, व्रांगेल और पेतल्यूरा जैसे ज़ारशाही के पुराने जनरलों को फ़ौज-फाटे से लैस करके भेजा गया। इधर-उधर बिखर गये श्वेत गार्डों के दस्ते और क्रान्ति-विरोधियों के विभिन्न गुटों ने जगह-जगह लड़ाई और मार-काट मचा रखी थी। इसी बीच अठारह देशों की सेनाओं ने एक साथ रूस पर हमला बोल दिया। सारे लुटेरों को यक़ीन था कि समाजवादी सत्ता बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। मज़दूरों को भला राज-काज चलाना कहाँ आता है। लेकिन लेनिन को मज़दूरों पर अटूट भरोसा था। उनके आह्वान पर, और कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई में सारे देश के मेहनतकश अपने राज्य की हिफ़ाज़त करने के लिए उठ खड़े हुए। 1917 से 1921 तक रूस में भीषण गृहयुद्ध चलता रहा। लेकिन आखि़रकार शोषकों को कुचल दिया गया और लेनिन की देखरेख में समाजवादी निर्माण का काम ज़ोर-शोर से शुरू हो गया। 1918 में क्रान्ति के दुश्मनों की साज़िश के तहत एक हत्यारी द्वारा चलायी गयी गोलियों से लेनिन बुरी तरह घायल हो गये थे। कुछ सप्ताह बाद वह फिर काम पर लौट आये, लेकिन कभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सके। 21 जनवरी 1924 को सिर्फ़ 53 वर्ष की उम्र में लेनिन का निधन हो गया। लेनिन की मृत्यु के बाद जोसेफ़ स्तालिन ने उनके काम को आगे बढ़ाया। उन्होंने ही मार्क्सवादी विचारधारा को मार्क्सवाद-लेनिनवाद का नाम दिया।

सर्वहारा वर्ग के महान शिक्षकों — मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ त्से-तुङ के विचार पूँजीवाद और साम्राज्यवाद को ख़त्म कर समाजवाद क़ायम करने के संघर्ष में मेहनतकश जनता को राह दिखाते रहेंगे।


 

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