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फॉक्सकॉन का महाराष्ट्र में पूँजी निवेश: स्वदेशी का राग जपने वाले पाखण्डी राष्ट्रवादियों का असली चेहरा

हाल ही के कुछ सालों में यहाँ मजदूरों के खुदकुशी करने की घटनाएँ भी बार-बार होती रही हैं। खुदकुशी करने वालों में ज्यादातर मजदूर 20 से 25 साल के नौजवान है जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फॉक्सकॉन की भारी आलोचना होती रही है। इस आलोचना को सकारात्मक तरीके से न लेकर उल्टा फॉक्सकॉन ने अपने मजदूरों को किसी भी बाहरी तत्व से कारखाने या कम्पनी सम्बंधित किसी भी समस्या को साझा करने पर प्रतिबन्ध लगा दिये हैं और इसके लिए मजदूरों को धमकाया भी जाता है। जब फेयर लेबर एसोसियेशन नामक संस्था ने फॉक्सकॉन के चीन स्थित 3 कारख़ानों की छानबीन की तब सामने आया कि इन कारख़ानों में मजदूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर बहुत सारी समस्याएँ हैं और मज़दूरों से किसी भी अतिरिक्त मुआवजे़ के बिना अधिक घंटों तक काम करवाया जाता है। कई मानवाधिकार संगठन जब गुप्त तरीके से फॉक्सकॉन की डोरमेटरीज़ (मजदूरों के रहने की जगह) तक पहुँचे तब उन्होंने पाया कि किस तरीके से फैक्ट्री प्रबंधन मजदूरों की दिनचर्या को नियंत्रित करता है। मजदूरों के काम के घंटे प्रबंधन की और से निश्चित किये जाते हैं, मजदूरों को विशिष्ट चीजों को छोड़ किसी भी चीज को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती। जब भी कोई मजदूर इन नियमों का उल्लंघन करते पाया जाता है तब उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है। जब भी कोई नया उत्पाद बाजार में उतारा जाता है तब मजदूरों से 12-13 घंटे लगातार काम निकाला जाता है। उस समय कई मजदूर फैक्ट्री में ही सोने के लिए मजबूर होते हैं। क्योंकि बहुतेरे मजदूर सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि से आनेवाले नौजवान होते है, कम्पनी इनकी मजबूरी का फायदा उठाती है। यहाँ काम कर रहे ज़्यादातर मज़दूर बाहरी इलाकों से आने वाले नौजवान होते हैं पर इन्हें अपने घर जाने के लिए साल में एक ही बार छुट्टी मिलती है।