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राष्ट्र सेविका समिति के ज़रिये स्त्रियों को आज्ञाकारी आधुनिक दासियों में बदलने की आरएसएस की कोशिशें

असल में राष्ट्र सेविका समिति आज भी गोलवलकर की किताब ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ के उन विचारों पर कायम हैं – ”औरतें पूरी तरह माएँ हैं और उन्हें बच्चों के पीछे-पीछे रहना चाहिए।” यानी संघ औरत को इंसान मानने के लिए तैयार नहीं, जिसकी अपनी भी कुछ इच्छाएँ होती हैं। वे भी अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हैं, अपनी इच्छा से हँसना और खेलना चाहती हैं। वे भी सपनों के पँख लगाकर जीवन के आकाश में आज़ादी से उड़ना चाहती हैं। लेकिन संघ उनके पँख काटकर उनको पिंजरे में बन्द कर देना चाहता है।

विश्व स्तर पर सुरक्षा ख़र्च और हथियारों के व्यापार में हैरतअंगेज़ बढ़ोत्तरी

अमेरिका “शान्ति” का दूत बनकर कभी इराक़ के परमाणु हथियारों से विश्व के ख़तरे की बात करता है और कभी सीरिया से, कभी इज़राइल द्वारा फि़लिस्तीन पर हमले करवाता है, कभी अलक़ायदा, फि़दाइन आदि की हिमायत करता है कभी विरोध, विश्व स्तर पर आतंकवाद का हौवा खड़ा करके छोटे-छोटे युद्धों को अंजाम देता है, ड्रोन हमलों के साथ पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, यमन, लीबिया, इराक़, सुमालिया आदि मुल्क़ों में मासूमों का क़त्ल करता है और किसी को भी मार कर आतंकवादी कहकर बात ख़त्म कर देता है। दो मुल्क़ों में आपसी टकरावों या किसी देश के अन्दरूनी टकरावों का फ़ायदा अपने हथियार बेचने के लिए उठाता है जैसे — र्इरान और इराक़, इज़राइल और फि़लिस्तीन, भारत और पाकिस्तान, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया के झगड़े आदि। इसके बिना देशों के अन्दरूनी निजी झगड़ों जैसे – मिस्त्र, यूक्रेन, सीरीया आदि से भी फ़ायदा उठाता है। ये सारी करतूतें अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिए अंजाम देता है।

हथियारों और युद्ध सामग्री के उद्योग पर टिकी अमेरिकी अर्थव्यवस्था

आज विश्व की बड़ी हथियार बनाने वाली कम्पनियों में बहुसंख्या अमेरिकी कम्पनियों की हैं। विश्व की दस बड़ी हथियार बनाने वाली कम्पनियों में 7 अमेरिकी हैं जिनमें बोइंग (2013 में जिसकी कुल जायदाद 92 अरब अमेरिकी डॉलर थी), युनाइटेड टेकनोलोजीज (2013 में कुल जायदाद 61.46 अरब अमेरिकी डॉलर), लोकहीड मार्टिन (2013 में कुल जायदाद 36.19 अरब अमेरिकी डॉलर), जनरल डायनामिक्स (2013 में कुल जायदाद 35.45 अरब अमेरिकी डॉलर), नॉरथ्रॉप ग्रूमन (2013 में कुल जायदाद 26.39 अरब अमेरिकी डॉलर), रेथीऔन (2013 में कुल जायदाद 25.86 अरब अमेरिकी डॉलर) और एल. कम्यूनिकेशंस (2013 दौरान कुल जायदाद 15 अरब अमेरिकी डॉलर) आदि प्रमुख कम्पनियाँ हैं। अमेरिकी राजनीति में आज इन औद्योगिक घरानों की तूती बोलती है और विश्व स्तर पर वातावरण, अमन और लोकतन्त्र आदि जुमलों की चीख़-पुकार मचाने वाली अनेकों ग़ैर-सरकारी संस्थाओं को करोड़ों डॉलर फ़ण्ड भी मुहैया करवाते हैं जिससे साम्राज्ञी जब अपने हथियारों को खपायें तो ऐसी संस्थाएँ लोग के गुस्से को ठण्डा रखें।