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अम्बानी का जियो इंस्टीट्यूट – पैदा होने से पहले ही मोदी ने तोहफ़ा दे दिया!

असल मामला कुछ और ही है जिसको लोगों के सामने नहीं आने दिया जा रहा है। पूँजीवादी अर्थिक संकट के इस दौर में जब हर सेक्टर लगभग सन्तृप्त हो चुका है और मुनाफ़े की दर में लगातार हो रही गिरावट की वजह से पूँजीपति वर्ग परेशान है, तब पूँजी निवेश के लिए अलग-अलग सेक्टरों की तलाश की जा रही है। लेकिन पूँजी की प्रचुरता के कारण नये सेक्टर भी बहुत जल्दी सन्तृप्त हो जा रहे हैं। ऐसे में पूँजीपति वर्ग सरकार पर दबाव बनाती है कि शिक्षा, चिकित्सा जैसे बुनियादी चीज़ों को भी बाज़ार के हवाले कर दिया जाये। जिओ इंस्टीट्यूट खोलने के पीछे की असली बात यह है कि रिलायंस के द्वारा कारपोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के मद का जो पैसा समाज कल्याण के लिए ख़र्च किया जाना चाहिए, उसे भी पूँजी के रूप में निवेश करके मुनाफ़ा पीटना चाहता है।

शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान सरकार की नंगई

इस मसले का एक अन्य पहलू यह भी है कि एक मोटे आंकलन के अनुसार इन 300 स्कूलों से क़रीब 15000 अध्यापकों के पद समाप्त हो जायेंगे। इतना तो पहले चरण में ही हो रहा है, दूसरे-तीसरे चरण के आते-आते लाखों अध्यापकों के पद समाप्त होना तय है। यानी नयी अध्यापक भर्तियाँ भी बन्द होंगी। साथ ही साथ इन 300 स्कूलों को पीपीपी के अन्तर्गत ला देने से क़रीब 2.50 लाख छात्र स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जायेंगे। कहा जा सकता है कि शिक्षा को बिकाऊ माल बना देने की इस नीति से बड़े ठेकेदारों के तो ख़ूब वारे-न्यारे हैं, परन्तु ग़रीब तबक़े के छात्रों के लिए शिक्षा हासिल करना दूभर हो जायेगा।

शिक्षा और संस्कृति के भगवाकरण का फासिस्ट एजेण्डा – जनता को गुलामी में जकड़े रखने की साज़िश का हिस्सा है

शिक्षा और संस्कृति का भगवाकरण हमेशा ही फासिस्टों के एजेण्डा में सबसे ऊपर होता है। स्मृति ईरानी जैसी कम पढ़ी-लिखी, टीवी ऐक्ट्रेस को इसीलिए मानव संसाधन मंत्रालय में बैठाया गया ताकि संघ परिवार बेरोकटोक अपनी मनमानी चला सके।