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मोदी सरकार के निकम्मेपन और लापरवाही ने भारत में 47 लाख लोगों की जान ली

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के अनुसार कोविड महामारी के कारण दुनियाभर में क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत हुई। इनमें से एक तिहाई, यानी 47.4 लाख लोग अकेले भारत में मरे। भारत के आम लोग अभी वह दिल तोड़ देने वाला दृश्य भूले नहीं हैं, जिसमें नदियों में गुमनाम लाशें बह रही थीं, कुत्ते और सियार इन लाशों को खा रहे थे और श्मशान घाटों व विद्युत शवदाहगृहों के बाहर लोग मरने वाले अपने प्रियजनों की लाशें लिये लाइनों में खड़े थे।

यह व्यवस्था अनाज सड़ा सकती है लेकिन भुख से मरते लोगों तक नहीं पहुँचा सकती है!

प्रधानमन्त्री ने कहा कि सरकार के लिए सड़ रहे अनाज को ग़रीबों में वितरित कर पाना मुमकिन नहीं है। यानी कि अनाज सड़ जाये तो सड़ जाये, वह भूख से मरते लोगों के बीच नहीं पहुँचना चाहिए। लेकिन क्यों? सामान्य बुद्धि से यह सवाल पैदा होता है कि जिस समाज में लाखों लोग भुखमरी और कुपोषण के शिकार हों वहाँ आख़िर क्यों हर साल लाखों टन अनाज सड़ जाता है, उसे चूहे खा जाते हैं या फिर न्यायालय ही उसे जला देने का आदेश दे देता है? हाल में ही एक अन्तरराष्ट्रीय एजेंसी की रिपोर्ट आयी जिसमें यह बताया गया कि भुखमरी के मामले में भारत 88 देशों की तालिका में 67वें स्थान पर है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और अफ्रीका के कई बेहद ग़रीब देश भी भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या में भारत से पीछे हैं। पूरी दुनिया के 42 प्रतिशत कुपोषित बच्चे और 30 प्रतिशत बाधित विकास वाले बच्चे भारत में पाये जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद इस देश में लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ जाता है। आख़िर क्यों? ऐसा कौन-सा कारण है?