भगतसिंह की विरासत को विकृत कर हड़पने की घटिया कोशिश में लगी ‘आप’

– भारत

पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार बनाने के बाद से भगतसिंह के अनुयायी होने का तमगा हासिल करने में लगी हुई है। इसके ज़रिए ‘आप’ ख़ुद को ‘सच्चा राष्ट्रवादी’ साबित करना चाहती है। चुनाव जीतने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त मान ने भगतसिंह के गाँव खटकड़ कलाँ में जाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और भगतसिंह के सपनों को पूरा करने के बड़े-बड़े दावे किये, जिनका असलियत से कोई लेना देना नहीं है। भगवन्त मान जो ख़ुद तो पीली पगड़ी में ही पाये जाते हैं, उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह में आये लोगों से भी पीली पगड़ी पहनकर आने को कहा ताकि सबको लगे कि इससे भगतसिंह का सपना पूरा हो जायेगा! सच तो यह है कि भगतसिंह एक नास्तिक थे और उन्होंने कभी पीली पगड़ी पहनी ही नहीं। लेकिन आम आदमी पार्टी भगतसिंह की क्रान्तिकारी विरासत को विकृत कर सिख भावनाओं को भुनाने का प्रयास कर रही है। इसके अलावा उन्होंने 23 मार्च को राजकीय अवकाश घोषित किया है। दिल्ली सरकार भी इसी तर्ज़ पर भगतसिंह का इस्तेमाल कर रही है। 23 मार्च से पहले केजरीवाल ने घोषणा की कि दिल्ली के एक सैनिक स्कूल का नाम भगतसिंह के नाम पर रखा जायेगा। इसके अलावा दिल्ली सरकार के कार्यालयों में भगतसिंह की तस्वीर भी लगायी जायेगी।
सबसे पहले तो ये बता दें कि भगतसिंह का इस्तेमाल कर आम आदमी पार्टी जो ‘सच्चा राष्ट्रवाद’ परोस रही है और भाजपा जिस राष्ट्रवाद की बात करती है, दोनों में कोई अन्तर नहीं है। असल में राष्ट्रवाद एक पूँजीवादी विचारधारा है और मेहनतकश वर्ग के शोषण चक्र को ही जारी रखने वाला विचारधारात्मक औज़ार है, जिसके माध्यम से पूँजीपति वर्ग अपना प्रभुत्व बरक़रार रखता है। मज़दूर वर्ग अन्तरराष्ट्रीयतावादी होता है। वह अपने देश से ज़रूर प्यार करता है और उसकी ग़ुलामी के ख़िलाफ़ लड़ता है, लेकिन वह किसी देश से नफ़रत नहीं करता क्योंकि सभी देशों को बनाने और चलाने वाले मज़दूर ही होते हैं। राष्ट्रवाद की सोच वास्तव में राष्ट्र के तौर पर पूँजीपति वर्ग के हितों को पेश करती है। पूँजीपतियों के राष्ट्र में मज़दूरों और ग़रीबों की यही जगह होती है कि वे उनके लिए 12-12 घण्टे कल-कारख़ानों और खेतों-खलिहानों में खटें और अगर वे इस शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं, तो उन्हें ‘राष्ट्र-विरोधी’ और ‘राष्ट्रद्रोही’ घोषित कर दिया जाता है। अगर हम मज़दूर अपनी ज़िन्दगी पर एक नज़र डालें तो पलभर में इस सच्चाई को समझ जाते हैं। भाजपा और आम आदमी पार्टी में राष्ट्रवादी बनने की होड़ मची रहती है, लेकिन ज़रा देखिए कि ये किनसे चन्दा पाती हैं और बदले में किनकी सेवा करती हैं। ये हमें-आपको लूटने वाले पूँजीपति और धन्नासेठ ही तो हैं! ये धन्नासेठ और खाये-अघाये उच्च मध्यवर्ग के लोग ही भाजपा और आम आदमी पार्टी का ‘राष्ट्र’ हैं और इनके राष्ट्रवाद और नक़ली गौरव के चक्कर में हम मज़दूरों-मेहनतकशों को नहीं पड़ना चाहिए। भगतसिंह का यही मानना था कि देश को बनाने और चलाने का काम देश के मज़दूर और ग़रीब किसान करते हैं और जब तक सारा राजकाज उनके हाथ में नहीं आता, जब तक सारे कल-कारख़ाने, खेत-खलिहान और खान-खदान उनकी सामूहिक सम्पत्ति नहीं बन जाते तब तक हमारे पास ख़ुश होने और गर्व करने का कोई कारण नहीं है।
आम आदमी पार्टी भगतसिंह के विचारों को दबाकर उनकी विरासत को कलंकित कर रही है। भगवन्त मान भगतसिंह की पीली पगड़ी का ख़ूब प्रचार कर रहे हैं। पर इसका असलियत से इसका कोई लेना-देना नहीं है। भगतसिंह की पीली पगड़ी में कोई तस्वीर नहीं है। उन्हें पीली पगड़ी पहनाने का काम लम्बे समय से भाजपा और तमाम सिख धार्मिक कट्टरपन्थी कर रहे हैं ताकि क्रान्तिकारी नास्तिक भगतसिंह के विचारों को ओझल कर, उन्हें सिख नायक, वीर योद्धा तक सीमित कर दिया जाये, जो कि सत्ता पक्ष के लिए फ़ायदेमन्द है। देखा जाये तो 1970 के दशक तक हर जगह भगतसिंह की हैट वाली तस्वीर ही प्रचलित थी। उसके बाद ही उन्हें पीली पगड़ी पहनाने का सिलसिला शुरू हुआ, जिसे आज ‘आप’ पंजाब में प्रचलित कर रही है। आम आदमी पार्टी भगतसिंह के नाम का इस्तेमाल कर रही है इसके पीछे का मुख्य मक़सद चुनावी मंसूबों को पूरा करना ही है। क्योंकि केजरीवाल भी जानता है कि भगतसिंह भारत में जन-जन के आदर्श हैं। इसी का फ़ायदा उठाकर भगतसिंह के विचारों को ग़ायब कर, उनके नाम का इस्तेमाल कर ज़हरीले राष्ट्रवाद का प्रचार कर रही है और चुनाव की राष्ट्रवादी रोटियाँ सेंक रही हैं।
वहीं सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि आज जिस तरीक़े से भगतसिंह को पेश किया जा रहा है, वो हमेशा से इसके ख़िलाफ़ थे। इसलिए उन्होंने कहा था कि क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है और आज की सरकारें क्रान्ति से डरती हैं और भगतसिंह के विचारों से भी। आम आदमी पार्टी की बात की जाये तो इनका ‘सच्चा राष्ट्रवाद’ तो इनके सत्ता में आते ही दिख गया था। अपने शासन की शुरुआत ही मार्च 2015 में इसने मज़दूरों पर लाठीचार्ज करके की, जो बस इसे मज़दूरों से किये गये उसके वायदे याद दिला रहे थे। दिल्ली के अन्दर जो मज़दूरों की मेहनत की लूट मालिकों द्वारा की जा रही है, वो ‘आप’ के संश्रय में ही हो रहा है। याद कीजिए सीएए-एनआरसी के समय जब पूरी दिल्ली में आन्दोलन चल रहे थे, तब केजरीवाल ने कहा था कि एक घण्टे के लिए पुलिस दे दो, पूरा शाहीन बाग़ ख़ाली करा देंगे। जब दिल्ली दंगों में भी शहर जल रहा था तो ये महाशय और इनकी पार्टी मौन धारण करके बैठे थे। असल में यही इनकी देशभक्ति और राष्ट्रवाद है, जिसमें आम आदमी पार्टी भी भाजपा की बी टीम बनकर व्यापारियों-धन्नासेठों की सेवा में संलग्न हैं। यह अभी हाल में भी साबित हो गया जब आँगनवाड़ीकर्मियों की हड़ताल को आम आदमी पार्टी और भाजपा ने मिलकर हेस्मा लगाकर ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया। इस सब के बावजूद अगर किसी को लगता है कि ‘आप’ भगतसिंह का प्रचार कर रही है तो उसपर सिर्फ़ हँसी ही आ सकती है।
भगतसिंह ने कहा था कि अगर पूँजीपतियों-धन्नासेठों और ज़मीन्दारों की किसी भी पार्टी द्वारा अंग्रेज़ों से किसी समझौते के ज़रिए आज़ादी मिलती है तो बेशक गोरे अंग्रेज़ चले जायेंगे, पर उनकी जगह भूरे अंग्रेज़ राज करेंगे और असल आज़ादी तब तक नहीं आयेगी जब तक इन्सान द्वारा इन्सान का शोषण ख़त्म नहीं हो जाता। आज के समय में जाति-धर्म के नाम पर बँटवारे किये जा रहे हैं, सरकार जनता के बुनियादी हक़ों को छीन रही है। अगर आज भगतसिंह जीवित होते तो इन सब अन्याय के ख़िलाफ़ बोलते और आज़ादी की अधूरी लड़ाई को पूरा करने में लग जाते। आज की सरकारें भी उन्हें देशद्रोही कहतीं क्योंकि उनके विचार आज भी शोषण करने वालों के ख़िलाफ़ हैं और इसलिए वे उनके विचारों से खौफ़ खाते हैं।
यही तो कारण है कि आज उनके विचारों को दबाकर उन्हें सिर्फ़ वीर योद्धा, सिख नायक के तौर पर स्थापित किया जा रहा है या फिर उनकी कुछ मूर्तियाँ-तस्वीरें लगायी जा रही हैं। सरकारें भी जानती हैं कि अगर आवाम भगतसिंह के विचारों को जान लेगी तो उनका स्वर्ग का सिंहासन ख़तरे में पड़ जायेगा, इसलिए उनके लिए भगतसिंह के विचारों को लगातार कुत्सा-प्रचार, झूठ-फ़रेब के माध्यम से छिपाया जा रहा है। ऐसे में भगतसिंह की विरासत को वही लोग आगे ले जा सकते हैं, जिन्हें लगता है अन्याय के ख़िलाफ़ विद्रोह न्यायसंगत है। जो तैयार हैं क्रान्ति का सन्देश देश की झुग्गी-बस्तियों, कल-कारख़ानों से लेकर खेतों-खलिहानों तक लेकर जाने के लिए। वही आज भगतसिंह के असली वारिस हो सकते हैं, न कि ये नौटंकीबाज़ ‘आप’ जो उनकी विरासत को विकृत कर रही है।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2022


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments