हरियाणा सरकार की चिराग योजना : शिक्षा के निजीकरण की क़वायद के तहत प्राइवेट शिक्षा माफ़ियाओं को एक और तोहफ़ा

रमन

हाल ही में हरियाणा सरकार द्वारा चिराग योजना का ऐलान किया गया है जिसमें आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों (जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 1.80 लाख से कम है), जो कक्षा दूसरी से बारहवीं तक के छात्र हैं, का सरकारी विद्यालयों से निजी मान्यता प्राप्त विद्यालयों में दाख़िला दिलवाने के लिए इस योजना के तहत वर्ष 2022-23 के लिए कुल 24987 सीटें तय की गयी हैं। इन निजी स्कूलों में सीटों के अनुसार सरकार द्वारा इन बच्चों के दाख़िले के बाद इन्हें सरकारी अनुदान देने का दावा किया गया है, वहीं 134ए के तहत ग़रीब बच्चों के प्राइवेट स्कूलों में दाख़िले के नियम को समाप्त कर दिया गया है। यानी चिराग योजना के तहत सरकारी स्कूलों के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में शिफ़्ट कर दिया जायेगा। अगर सरकार की ये योजना सफल रहती है तो आने वाले 5-6 वर्षों में प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या तेज़ी से घट जायेगी और भविष्य में बच्चों और अभिभावकों को भी इसकी बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। क्योंकि ग़रीब माता-पिताओं को भी बच्चों को नयी वर्दी, बैग, परिवहन का ख़र्चा, जूते आदि दिलाने के लिए यानी प्रावईट स्कूल के हिसाब से अपडेट रखने के चक्कर में अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा ख़र्च करना ही पड़ेगा। दूसरी तरफ़ अगर सरकार ने बीच में या 3-4 साल बाद फ़ीस देनी बन्द कर दी या लेट करनी शुरू कर दी तो प्राइवेट स्कूल बच्चों को फ़ाइन के नाम पर लूटेंगे और बेइज़्ज़त करेंगे। अतः इस योजना से हरियाणा सरकार की मंशा साफ़ ज़ाहिर होती है कि पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी के रूप में काम करते हुए सरकार शिक्षा के बाज़ारीकरण को और द्रुत गति से आगे बढ़ाने के लिए मशक़्क़त कर रही है।
पूरे देश में आज लगभग 52 प्रतिशत विद्यार्थी प्राइवेट स्कूलों में दाख़िला ले चुके हैं। इसलिए  सरकार को सिर्फ़ 48 प्रतिशत बच्चों के लिए ख़र्च करना पड़ता है। सरकार इसको घटाकर और कम करना चाहती है इसीलिए कभी 134A के नाम पर तो कभी चिराग योजना के नाम पर सरकारी स्कूलों के बच्चों के दाख़िले प्राइवेट स्कूलों में करवाना चाहती है जिससे सरकार अपने आक़ाओं (पूँजीपतियों) के ख़र्च को कम से कम करके तथा दूसरी तरफ़ संस्कृति मॉडल स्कूलों के नाम पर सरकारी स्कूलों में फ़ीस के ज़रिए पैसा इकट्ठा कर मुनाफ़ा सुनिश्चित कर सके। 
 हरियाणा सरकार इस योजना को शिक्षा व्यवस्था में सुधार के तौर पर लोगों के सामने पेश कर रही है। अगर सही मायने में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती है तो सरकार ये क्यों नहीं बताती कि सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा क्यों नहीं है?
 एक तरफ़ लाखों की संख्या में हर वर्ष बी.एड. अध्यापक प्रशिक्षण कोर्स करवाये जाते हैं जिससे इन प्राइवेट स्कूलों के लिए समाज में बेरोज़गारों की बड़ी फ़ौज खड़ी की जाती है जिसके चलते ये बेरोज़गार युवा आबादी प्राइवेट स्कूलों में बेहद कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हो जाती है और शिक्षा माफ़ियाओं के मुनाफ़े की हवस को पूरा करने का औज़ार मात्र बनकर रह जाती है। 
सरकार यहाँ एक तीर से दो शिकार करने की फ़िराक में है। पहला, सरकारी स्कूलों के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में धकेलकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त होना तथा कुछ समय बाद फ़ण्ड की कमी का रोना रोकर यह अनुदान बन्द कर देना; दूसरा, सरकारी स्कूलों के अध्यापकों (जो अब भी छात्रों की संख्या के अनुपात में नगण्य हैं) की भर्तियाँ और भी कम करके उनके वेतन पर ख़र्च होने वाली राशि को भी पूँजीपतियों के सुपुर्द करना। जो नौजवान नौकरियों और भर्तियों की उम्मीद में दिन-रात मेहनत करते हुए अपनी ज़िन्दगी के बेशक़ीमती साल तैयारी करने में खपा रहे हैं, उनके साथ यह बेहद ही भद्दा मज़ाक़ है। रोज़गार की दर पिछले 48 सालों में अपने निम्नतम स्तर पर है जिसके ऊपर के और बढ़ने की दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं है बल्कि सरकार अपनी नीतियों से यह सुनिश्चित करने पर जी जान से लगी हुई है कि रोज़गार की रही सही सम्भावनाएँ भी ख़त्म हो जायें ताकि आम मेहनतकश जनता व नौजवान धनपशुओं की ग़ुलामी करने को मजबूर हो जायें।
1991 में शुरू हुआ निजीकरण आज अपने विकराल रूप में मुँह बाए सब कुछ निगल जाने पर आमादा है। आज की फ़ासिस्ट मोदी सरकार जनता पर आपदा बनकर क़हर बरपा रही है तथा जनता पर थोपी जा रही इन आपदाओं को पूँजीपतियों के लिए अवसर बनाकर परोस रही है। हमें पूँजीपति वर्ग और उसकी राज्यसत्ता के इन नापाक इरादों की पुख़्ता पहचान करके इसका मुक़म्मल जवाब देना होगा।

मज़दूर बिगुल, अगस्त 2022


 

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