सनबीम (गुड़गाँव) कम्पनी में ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी, छँटनी, वेतन कटौती, ग़ैर-क़ानूनी ठेका प्रथा, श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ संघर्ष की सम्भावनाएँ

शाम मूर्ति

सनबीम लाईटवेटिंग सोल्यूशन्स प्रा० लि० (गुड़गाँव) फ़ैक्टरी के ठेका मज़दूरों की 16 नवम्बर (बुधवार) 2022 को कम्पनी प्रबन्धन द्वारा बढ़ती बर्ख़ास्तगी, छँटनी, वेतन कटौती, ज़बरन ओवर टाइम जैसी अन्यायपूर्ण गतिविधियों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा आख़िर फूट ही गया। मज़दूरों ने क़रीब 500-600 ठेका मज़दूरों की सफल रैली और अपनी एकजुटता से इस अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। संघर्ष की शुरुआत 27 सितम्बर 2022 को पाँच साथियों के अचानक बर्ख़ास्त (टर्मिनेट) कर देने से हो गयी थी। उनका क़सूर महज़ इतना था कि उन्होंने अपने ही मज़दूर भाइयों (राहुल तिवारी, पप्पू सिंह, राजकिशोर साहू, विनीत मिश्रा, नवल किशोर) का मुद्दा उठाया और प्रबन्धन व 11 ठेकेदारों समेत श्रम विभाग, प्रशासन और सरकार को लिखित रूप से ज्ञापन देने के लिए हस्ताक्षर करवा रहे थे। इसका ज़िक्र हम ‘मज़दूर बिगुल’ के नवम्बर अंक में प्रकाशित अपनी पिछली रिपोर्ट में कर चुके हैं। सितम्बर महीने की 11 तारीख़ (2022) के नोटिस के तहत ग्रोस एडुकेयर प्राईवेट लिमिटेड नामक ठेका कम्पनी के अन्तर्गत काम करने वाले 46 ठेका मज़दूरों की पहली नवम्बर को यह कहकर छँटनी कर दी गयी कि उनके उक्त ठेकेदार का ठेका ख़त्म हो गया है। ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों को 10-20 सालों से काम करने के बावजूद काग़ज़ों में हेल्पर ही दिखाया जा रहा है, जबकि वे वास्तव में ऑपरेटर के तौर पर काम करते हैं, जिनकी नियुक्ति, संचालन और सुपरविज़न प्रबन्धन द्वारा किया जाता है, जो 240 दिन स्थायी प्रकृति पर काम करने के बाद स्थायी रोज़गार के लिए क़ानूनी हक़दार होते हैं। इस तरह से कम्पनी में ठेका प्रथा (विनियमन व उन्मूलन) एक्ट (राज्य 1970), (केन्द्रीय नियम 1971) का उल्लंघन हो रहा है जो कम्पनी प्रबन्धन द्वारा लगातार किया जा रहा है। यानी अनुचित श्रम व्यवहार (इलीगल लेबर प्रेक्टिस) चल रही है। यह श्रम विभाग, प्रशासन और सरकार की नाक के नीचे चल रहा है। इसकी गोदी मीडिया कभी चर्चा नहीं करेगा। वह बस दंगाई के समान आज साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने का ही काम कर रहा है।
इस बीच ठेका मज़दूरों के समर्थन में कम्पनी के स्थायी मज़दूरों के खुलकर सामने न आने और ज़मीनी संघर्ष की कोई ठोस कार्रवाई न करने के चलते यानी स्वयं ठेका मज़दूरों द्वारा ज़मीनी संघर्ष की शुरुआत देर से होने के कारण एक-तिहाई छँटनी किये गये ग्रोस एडूक्यर के ठेका मज़दूर अपना चुकता हिसाब ले चुके हैं। साथ ही इस बीच गुड़गाँव प्लाण्ट में काम करने वाले ठेका मज़दूरों के अलावा स्थायी मज़दूरों को भी प्लाण्ट से निकालने का नोटिस देने की बातें भी सामने आयी हैं। यह भी ज्ञात रहे कि सनबीम कम्पनी प्रबन्धन पिछले साल 31 मार्च 2021 को 113 स्थायी मज़दूरों को ज़बरन सेवानिवृत्ति (रिटायरमेण्ट) के नाम पर निकाल चुका है, जिसमें से अधिकाँश मज़दूर अपना हिसाब लेकर जा चुके हैं।

कम्पनी प्रबन्धन का मंसूबा क्या है?

सनबीम कम्पनी प्रबन्धन ठेका मज़दूर हो या स्थायी मज़दूर, सारे पुराने मज़दूरों को निकालकर सस्ते, कच्चे और असुरक्षित मज़दूरों की भर्ती की योजना पर काम कर रहा है। यह इस वक़्त देश और दुनिया का पूँजीपति वर्ग हर सेक्टर में मुनाफ़े की दर में कमी की वजह से कर रहा है। कोरोना काल से पहले सनबीम कम्पनी में ठेका मज़दूरों की संख्या 3000 से ऊपर थी और स्थायी मज़दूरों की 1100 के आसपास थी। लेकिन आज ठेका मज़दूर 1050 और स्थायी मज़दूरों की संख्या 650 के आसपास सिमट गयी है। इस तरह 10-20 साल पुराने प्रशिक्षित मज़दूरों को रिटारमेण्ट से पहले ज़बरन लगातार निकाला जा रहा है। कभी कार्ड नम्बर बदलकर यानी ठेकेदार का नाम बदलकर, कभी ठेका ख़त्म होने, कभी प्लाण्ट ट्रांस्फ़र करने, कभी प्लाण्ट को बन्द करने की बात कर, कभी घाटा दिखाकर, तमाम झूठे बहानों के ज़रिए मज़दूरों को बाहर किया जा रहा है। मज़दूरों को नींबू की तरह निचोड़कर मनमाने तरीक़े से ‘जब चाहे रखो और जब चाहे निकालो दो’ यानी ‘हायर एण्ड फ़ायर’ की नीति को बेरोकटोक लागू किया जा रहा है ताकि मज़दूर ग़ुलामों की तरह सिर झुकाकर काम करते रहें, और बोलने वालों का तुरन्त गेट बन्द किया जा सके।
सनबीम कम्पनी ऑटोसेक्टर की बड़ी वेण्डर कम्पनियों में से एक है जिसके चार प्लाण्ट हैं, जिसका कारोबार खरबों में है, जो ऑटोसेक्टर और ग़ैर-आटोसेक्टर की कई मदर व वेण्डर कम्पनियों के कल पुर्ज़े बनाती है : 1) सनबीम लाइटवेटिंग सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, 38/6 के. एम. स्टोन, दिल्ली – जयपुर हाइवे, नरसिंहपुर, गुड़गाँव हरियाणा – 122001 ; 2) सनबीम लाइटवेटिंग सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, प्लाण्ट नम्बर एसपी1-डी, रिको इण्डस्ट्रीयल एरिया टपूकड़ा, भिवाड़ी, ज़िला अलवर, राजस्थान – 301707; 3) सनबीम लाइटवेटिंग सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, 730/12आर, इण्डस्ट्रीयल एरिया बी, लुधियाना 140003, पंजाब तथा 4) सनबीम लाइटवेटिंग सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, एसवाईएल नम्बर 45/50 & ; 51-पी1, स्टेट हाईवे हलोल टू सावली, पी. ओ. घण्टियाल, गाँव – कम्बल, सावली, वडोदरा, गुजरात 391510। चारों प्लाण्टों में मज़दूरों की स्थिति बुरी है। कहीं पर भी ठेका मज़दूरों की कोई यूनियन नहीं है।

अब तक का घटनाक्रम

सनबीम के ठेका मज़दूर सनबीम प्रबन्धन को 13 नवम्बर 2022 को अपना माँगपत्रक भी औपचारिक रूप से सौंप चुके हैं। इससे पहले 27 सितम्बर को पहली बार शिकायत दर्ज करवायी गयी थी। लेकिन सहायक श्रमायुक्त (ए.एल.सी. – असिस्टेण्ट लेबर कमिश्नर) के यहाँ शिकायत पर कोई सुनवाई व कार्रवाई नहीं हुई। इस पर 16 नवम्बर को ठेका मज़दूरों ने कम्पनी गेट से गुड़गाँव के लेकर लघु सचिवालय स्थित उपायुक्त दफ़्तर पर एक बार रोष-प्रदर्शन रैली की और उन्हें ज्ञापन सौंपा। क़ानूनी संघर्ष के दायरे में सीमित रहने के बजाय ज़मीनी संघर्ष की शुरुआत की तरफ़ क़दम बढ़ाया गया है, चाहे देर से ही सही। यानी डी.सी. (डिप्टी कमिश्नर) गुड़गाँव को अपना माँगपत्रक सौंपते हुए इसकी प्रतियों को (डीएलसी – डिप्टी लेबर कमिश्नर – सहायक श्रमायुक्त) को भी दिया गया है। इसमें निकाले गये मज़दूरों को वापस लेने, ग़ैर-क़ानूनी ठेका चलन, वेतन कटौती पर रोक लगाने माँग की और कम्पनी प्रबन्धन द्वारा श्रम क़ानूनों का उल्लंघन व अनुचित श्रम व्यवहार से अवगत करवाते हुए चेतावनी भी दे दी गयी है कि अगर समय रहते हुए समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो मज़दूरों के आक्रोश के लिए शासन-प्रशासन स्वयं ज़िम्मेदार होगा। सनबीम प्रबन्धन को दिये गये डिमाण्ड नोटिस की प्रमुख माँगे इस प्रकार हैं : 1. जिन ठेका श्रमिकों को फ़ैक्टरी में कार्य करते हुए 240 दिन की अवधि हो चुकी है उन सभी ठेका श्रमिकों को सीधे स्थायी किया जाये। इसलिए ठेका प्रथा उन्मूलन व विनियमन एक्ट 1970 और 1971 (संशोधन) के तहत के प्रावधान को लागू करवाया जाये; 2. स्थाई काम पर स्थाई रोज़गार के क़ानूनी प्रावधान को लागू करवाया जाये; 3. समान काम पर समान वेतन के क़ानूनी प्रावधान को लागू किया जाये; 4. फ़ैक्टरी में कार्य करने वाले प्रत्येक श्रमिक को पहचान पत्र दिया जाये तथा उस पहचान पत्र में श्रमिक की शॉप का नाम, उसकी मशीन का नाम तथा मशीन पर किस पार्ट का उत्पादन होता है, इसका विवरण दर्ज कर दिया जाये; 5. किसी भी श्रमिक का स्थानान्तरण (एक फ़ैक्टरी से दूसरी फ़ैक्टरी, एक विभाग से दूसरे विभाग में) करने से पहले फ़ैक्टरी प्रबन्धन द्वारा श्रमिक की सहमति लेना अनिवार्य है; 6. फ़ैक्टरी प्रबन्धन बोनस अधिनियम 1965, डबल ओवर टाइम के क़ानूनी प्रावधान (फ़ैक्टरी एक्ट 1948) आठ घण्टे के कार्य का प्रावधान आदि श्रम क़ानूनों का पालन किया जाये; 7. साप्ताहिक अवकाश रविवार को बरक़रार रखा जाये। अगर किसी कारणवश साप्ताहिक अवकाश में प्रबन्धन फेरबदल करता है तो श्रमिकों की सहमति लेना अनिवार्य हो; 8. मशीनों पर कार्य के दौरान मशीनों को बाईपास ( सुरक्षा की दृष्टि से) ना किया जाये। असुरक्षा की स्थिति में श्रमिकों से मशीनों पर उत्पादन कार्य ना करवाया जाये; 9. फ़ैक्टरी के अन्दर एक सुरक्षा कमेटी का गठन किया जाये जिसमें श्रमिकों के बराबर के प्रतिनिधियों को सेफ़्टी कमेटी में लिया जाये; 10. फ़ैक्टरी प्रबन्धन द्वारा छः माह (पिछले) के दौरान जिन ठेका श्रमिकों को गुमराह करके ज़बर्दस्ती हिसाब-किताब देकर फ़ैक्टरी से निकाला है उन सभी श्रमिकों को फ़ैक्टरी में लगातार सेवारत मानते हुए वेतन सहित वापिस लिया जाये; 11. सभी ठेका श्रमिकों को उनकी नियुक्ति (जॉइनिंग) से लेकर आज तक किये गये ओवरटाइम के डबल भुगतान के क़ानूनी प्रावधान को मानते हुए पिछला सारा ओवरटाइम का भुगतान किया जाये। क्योंकि कम्पनी में ठेका श्रमिकों को सिंगल ओवरटाइम दिया जा रहा है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सचमुच में हम अपने संघर्ष को आगे ले जा पायेंगे? फ़िलहाल ठेका मज़दूरों ने संघर्ष करने की शुरुआत कर दी है। पहली सफल रैली के बाद मज़दूरों में मज़बूती भी आयी है और सनबीम के पुराने निकाले गये मज़दूर भी सम्पर्क करने लगे हैं।

संघर्ष का आगे का रास्ता इसकी चुनौतियाँ व समस्याएँ

एक, सनबीम गुड़गाँव के ठेका मज़दूरों का नेतृत्व समान माँगों के तहत सनबीम कम्पनी के चारों प्लाण्टों में एकता को विस्तार देने की कार्रवाई पर मीटिंगों में बात तो कर रहा है, लेकिन इसे लागू करने में बहुत ही ढुलमुल रवैये का शिकार है। दूसरा, ठेका मज़दूरों का नेतृत्व अपने बूते संघर्ष करने के बजाय कभी अपने ही प्लाण्ट की मौक़ापरस्त स्थायी मज़दूरों की रजिस्टर्ड यूनियन, जो कि इण्टक से सम्बद्ध है (जो खुले रूप में पूँजीपतियों के चन्दे से चलने वाली और उनके के लिए काम करने वाली कांग्रेस पार्टी से जुड़ी है) के मार्फ़त श्रम विभाग के समक्ष अपना मामला दर्ज करने की सोचती है, लेकिन उसमें सफलता न मिलने पर एटक (जो भाकपा जैसी संशोधनवादी पार्टी से सम्बद्ध है) के ज़रिए श्रम विभाग के समक्ष अपनी शिकायत व कोर्ट केस लगाने की कार्रवाई की तरफ़ जाता है, तो कभी मासा नामक अराजकतावादी-संघाधिपत्यवादी मंच के घटक आईएमके की असफल योजना की ओर जाता है, जिसके अव्यावहारिक फ़ैसलों के नतीजों के कारण मज़दूर ख़ुद ही उसे नकार चुके हैं।
संक्षेप में, ठेका मज़दूरों का नेतृत्व अपनी वैचारिक कमज़ोरी और पिछले संघर्षों के नतीजों से परिचित होने के बावजदू इण्टक और एटक की भूमिका के बारे में कोई सबक़ नहीं निकाल पा रहा है। 2019-22 में होण्डा (मानेसर) के ठेका मज़दूरों की छँटनी वहीं हुई थी। वहाँ की स्थायी यूनियन भी एटक फ़ेडरेशन से सम्बद्ध थी। एटक की उसी प्लाण्ट में यूनियन होने के बावजूद भी ठेका मज़दूरों के पक्ष में कोई असरदार कार्रवाई नहीं कर पायी थी। जुझारू संघर्ष के बावजूद मज़दूरों को मजबूरन हिसाब ही लेना पड़ा था। एटक समेट विभिन्न फ़ेडरेशनों के मंच टी.यू.सी. (जिसमें सी.आई.टी.यू, एच.एम.एस.ए.आई.यू.टी.यू.सी., इण्टक) और उनके अन्तर्गत सम्बद्ध स्थायी मज़दूरों की यूनियनें ठेका मज़दूरों के जुझारू संघर्ष को अर्ज़ियों, सांकेतिक प्रदर्शनों से आगे नहीं ले जा सकी थी। उन्होंने कभी भी मानेसर औद्योगिक क्षेत्र को स्टेजों व मंचों से ‘कभी टूल डाउन करने’ तो ‘कभी चक्का जाम करने’ की घोषणाओं के बावजूद कुछ नहीं किया।
सवाल यह है कि सनबीम मज़दूरों के संघर्ष को शिकायतों, माँगपत्रकों, श्रम विभाग के समक्ष वार्ताओं, प्रतीकात्मक आम सभाओं की कार्रवाइयों, एक बार प्रदर्शन करने के आगे ले जाया जाता है या नहीं? अभी तो यही कहा जा सकता है कि एक बार फिर से होण्डा (मानेसर), औमेक्स (धारूहेड़ा), हीरो (गुड़गाँव) के ठेका मज़दूरों की तरह कोर्ट-कचहरी की चक्कर काटने में सीमित रहने के कारण आगे बढ़ने की सम्भावनाएँ लगभग लगातर कम होती जा रही हैं। यही स्थिति ऑटो सेक्टर समेत इस पूरी औद्योगिक पट्टी की है। हिटाची (मानेसर), बेलसोनिका (मानेसर) के ठेका और स्थायी मज़दूरों की भी यही कहानी है। हाल ही में एक बार फिर से ठेका मज़दूरों की छँटनी और वेतन कटौती की गयी है। बेलसोनिका की स्थायी मज़दूर यूनियन को तोड़ने व छँटनी करने के लिए कम्पनी प्रबन्धन यूनियन पर हमले का कोई मौक़ा नहीं चूक रहा है। नपिनो (मानेसर) और मुंजाल शोवा (गुड़गाँव) के स्थायी मज़दूर भी छँटनी का शिकार हो चुके हैं और 2 दर्जन के क़रीब कम्पनियों के उनके माँगपत्रक/समझौता व मामले भी पेण्डिंग चल रहे हैं। सेक्टरगत यूनियन व एकता के अभाव में कारख़ाना-आधारित यूनियनें अकेले अपने दम पर प्रबन्धन को टक्कर दे पाने में अक्षम साबित होती जा रही हैं।

आगे का रास्ता

जब भी कोई छँटनी की घटना सामने आती है तो ठेका मज़दूर या तो कम्पनी की स्थायी मज़दूरों की यूनियन या फिर ऐसी किसी बड़ी छतरी की सहारा ढूँढ़ती हैं, जो पहले ही ठेका मज़दूरों को छोड़ चुकी हैं। स्थायी मज़दूरों की यूनियन अपने अर्थवाद के चलते यानी अपने वेतन-बोनस-भत्ते की माँगों पर ही सीमित रहने के चलते ठेका मज़दूरों का इस्तेमाल करती आयी है। पहले तो वे थोड़ा-बहुत ठेका मज़दूरों को इसलिए प्रबन्धन से दिलाने के लिए कोशिश करती थीं ताकि मज़दूरों की कोई उम्मीद बनी रहे और वे उनका साथ देते रहें। इस बार जब ठेका मज़दूरों के ऊपर आन पड़ी है यानी छँटनी हो रही है तो वह कुछ भी नहीं कर पा रही है। वैसे तो पिछले साल निकाले गये 113 स्थायी मज़दूरों के लिए भी यूनियन और इण्टक कुछ नहीं कर पायी थी, तो ठेका मज़दूर के लिए क्या ही कर पायेगी? बेशक सनबीम के ठेका मज़दूर अपने संघर्ष को चारों प्लाण्टों तक ले जाने के योजना पर सोच रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने में वे जितनी तत्परता दिखायेंगे उतना बेहतर होगा। लेकिन ठेका मज़दूरों को सनबीम कम्पनी की सभी मदर और वेण्डर कम्पनियों समेत पूरे ऑटोसेक्टर में समान मुद्दों पर एकजुट संघर्ष का दायरा बढ़ाना होगा। दूसरा, अपने संघर्ष को अपने दम पर स्वतंत्र रूप से बढ़ाना होगा न कि पहले से ठेका मज़दूरों और जुझारू संघर्षों को तिलांजलि दे चुकी यूनियनों, फ़ेडरेशनों या टीयूसी जैसे मंचों की बैसाखियों की और देखने की ज़रूरत है, क्योंकि ये अब ज़मीनी संघर्ष तो दूर क़ानूनी संघर्षों से भी कुछ दिलाने में अक्षम साबित होती जा रही हैं। दर्जनों कम्पनियों के समझौता पत्र पेण्डिंग हैं। केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की समझौतापरस्ती, मौक़ापरस्ती व क़ानूनवाद के कारण मज़दूरों के मामले श्रम कोर्टों में लटकते-भटकते रहते हैं। निराश मज़दूर हिसाब ले लेते हैं। इसलिए जल्द ही ऑटो सेक्टर के सभी स्थायी और अस्थायी मज़दूरों को अपनी सेक्टरगत एकता के ज़रिए स्वतंत्र और क्रान्तिकारी सेक्टरगत यूनियन का निर्माण करना होगा जिसके दम पर कारख़ाना यूनियनों को भी बनाया और बचाया जा सकता है और अपने रोज़गार, हक़ और सम्मान के लिए कम्पनी प्रबन्धनों, उसकी सेवा में लगी सरकारों, श्रम विभाग और पुलिस-प्रशासन के गठजोड़ को चुनौती दी जा सकती है।

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2022


 

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