फ़ॉक्सकॉन की फ़ैक्ट्री में मज़दूरों के आन्दोलन का दमन : संक्षिप्त रिपोर्ट

विवेक

वर्तमान चीन जहाँ नाम के लिए समाजवादी व्यवस्था स्थापित है, या फिर मज़दूर वर्ग के ग़द्दार देङ शियाओ पिङ के शब्दों में ‘बाज़ार समाजवाद’ स्थापित है, वह चीन आज दुनियाभर में श्रम के पूँजी द्वारा शोषण की सबसे बड़ी मण्डी बन चुका है। इस माह के मध्य में अन्तर्रराष्ट्रीय समाचारपत्रों व अन्य माध्यमों से कुछ तस्वीरें सामने आयीं, जिसमे हैज़मेट सूट पहने और हाथों में बैट लिये सुरक्षाकर्मी, प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों का दमन कर रहे हैं। ‘द गार्जियन’ में 23 नवम्बर को छपी ख़बर के अनुसार चीन के झेंगझू शहर में कुछ दिनों से फ़ॉक्सकॉन कम्पनी में काम करने वाले मज़दूर प्रदर्शनरत हैं। यह तो जगज़ाहिर है कि एप्पल कम्पनी के आईफ़ोन चीन में फ़ॉक्सकॉन द्वारा झेंगझू शहर में एक विशाल फ़ैक्ट्री में बनाये जाते है। इस कम्पनी में फ़िलहाल दो लाख से ज़्यादा कर्मचारी हैं। यहाँ क्लोज़्ड लूप सिस्टम लागू है, जिसके तहत मज़दूरों को फ़ॉक्सकॉन की फ़ैक्ट्री में ही रहना और काम करना होता है, वे बाहर नहीं जा सकते हैं। इस माह के मध्य में फ़ैक्ट्री में कोरोना संक्रमण के कुछ केस मिले थे, जिसके बाद फ़ैक्ट्री को सील कर दिया गया जिससे कि यह संक्रमण शहर में न फैले। लेकिन इसके बाद भी फ़ैक्ट्री में उत्पादन बन्द नहीं किया गया है।
यह ख़बर आ रही है कि संक्रमित मज़दूरों के साथ ही अन्य मज़दूरों को रहना पड़ रहा है। न तो खाने की उचित व्यवस्था है और न ही रहने की। कई मज़दूरों को उनका पिछला बकाया पैसा भी नहीं दिया गया है। यह जानते हुए भी कोरोना संक्रमण का खतरा अभी भी मौजूद है, फ़ॉक्सकॉन द्वारा ज़रूरी एहतियाती क़दम नहीं उठाये गये और उसके साथ ही बड़े पैमाने पर फ़ैक्ट्री में मज़दूरों की बहाली की गयी। अब जब फ़ैक्ट्री में कोरोना संक्रमण के कारण स्थिति बिगड़ रही है तो मज़दूरों को प्लाण्ट से बाहर भी नहीं जाने दिया जा रहा है। इसे पूँजी की क्रूरता न कहा जाये तो क्या कहा कहा जाये? जब पिछले दिनों फ़ॉक्सकॉन के मज़दूरों ने फ़ैक्ट्री प्रबन्धन की तानाशाही के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया, तो फ़ॉक्सकॉन ने इस प्रदर्शन का दमन करने के लिए हैज़मेट सूट पहने सुरक्षाकर्मियों के दस्ते भेजे।
जब इस घटना से जुड़ी तस्वीरें और ख़बरें वहाँ की एक सोशल मीडिया साइट पर सामने आयीं तो फ़ॉक्सकॉन के दबाव में आनन-फानन में इसे हटा लिया गया है। वहीं एप्पल कम्पनी ने भी इस पूरे घटनाक्रम अभी तक कोई सफ़ाई नहीं दी है।
एक बार इस पर भी सोचने की ज़रूरत है कि आख़िर चीन में पूँजी की शक्तियों को श्रम की ऐसी बर्बर लूट की खुली छूट कैसे मिली हुई है? दरअसल चीन एक पूँजीवादी राज्य ही है लेकिन एक संशोधनवादी पार्टी द्वारा शासित पूँजीवादी राज्य है जिसका चरित्र सामाजिक फ़ासीवादी है। यह इसे दूसरे पूँजीवादी देशों से कुछ मायनों में अलग करता है। सामान्य तौर पर, सभी बुर्जुआ राज्यों की पूँजीपति वर्ग से सापेक्षिक स्वायत्तता होती है। परन्तु, चीन जैसे राज्य में यह सापेक्षिक स्वायत्तता और भी ज़्यादा है। इससे वहाँ की सामाजिक फ़ासीवादी राज्यसत्ता श्रम पर नियंत्रण के साथ-साथ पूँजी को भी अधिक कुशलता से अनुशासित करती है। पूँजी के हितों के अनुसार, ज़रूरत पड़ने पर वह बड़ी सफ़ाई से ऐसी क्रूरताओं को अंजाम देने की मंज़ूरी देती है और कई बार ख़ुद भी ऐसे बर्बर दमन में सीधे तौर पर शामिल होती है और बड़े पैमाने पर अन्तरराष्ट्रीय व्यापार सन्धियों को बढ़ावा देकर, अपने श्रम बाज़ार को दुनिया भर के पूँजीपतियों के लिए लूटने के लिए खोल देती है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट पता चलता है, कि भले ही साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच आपसी अन्तरविरोध हो, पर वास्तव में ये अन्तरविरोध मित्रतापूर्ण ही होते हैं, जब बात श्रमिकों के शोषण की आती है, तो इनके आपसी विरोध नेपथ्य में चले जाते हैं।

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2022


 

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