अम्बेडकरनगर के ग्रामीण इलाक़ों में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था

मित्रसेन

कहने को तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन का अधिकार देता है। लेकिन संविधान की ज़्यादातर बातों की तरह ये भी बस दिखावटी बातें ही हैं। असलियत तो कुछ और ही है। आज की मुनाफ़ा-केन्द्रित व्यवस्था में अगर आम लोग किसी बीमारी के चंगुल में फँस जायें तो बदहाल चिकित्सा व्यवस्था उन्हें मौत के मुँह में पहुँचाकर ही दम लेने वाली है। वैसे तो यह सच्चाई पूरे देश की है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और भी भयंकर हैं।

सरकार की ओर से जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सर्जन डॉक्टरों की लगभग 83% ,बालरोग चिकित्सकों की 81.6%, फ़िजीशियन की 79.1% ,स्त्री रोग एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की 72.2% कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति का हाल बताने के लिए ये आँकड़े काफ़ी हैं – 3900 मरीजों पर एक बेड है, 26000 ग्रामीण आबादी पर एक चिकित्सक की तैनाती है, जबकि डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) का कहना है कि 1000 लोगों पर एक डॉक्टर अवश्य होना चाहिए और काग़ज़ी तौर पर भारत सरकार इससे सहमत है।

क्या देश में डॉक्टरों की कमी है? नहीं। क्या अस्पताल के भवन, बेड आदि बनाने वाले कामगारों की कमी है? नहीं। वे तो रोज़गार की तलाश में सड़कों पर चप्पलें फटका रहे हैं। क्या मेडिकल स्टाफ़ के लिए नर्सों और वॉर्ड बॉयों की कमी है? नहीं, वे भी बेरोज़गारी की मार खा रहे हैं। वजह यह है कि मौजूदा व्यवस्था में कोई भी सरकार और ख़ास तौर पर फ़ासीवादी भाजपा सरकार को आम मेहनतकश जनता के स्वास्थ्य या जीवन से कोई लेना-देना नहीं है। 

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे के तौर पर देखा जाता है, जो प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (PHCs) के लिए रेफ़रल केन्द्र के तौर पर काम करते हैं। इनमें एक ऑपरेशन थियेटर, एक्स-रे, लेबर रूम और लैब की सुविधाओं के साथ 30 इनडोर बेड की सुविधा होती है। न्यूनतम मानदण्डों के अनुसार एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर 4 चिकित्सक – विशेषज्ञ/सर्जन चिकित्सक, प्रसूति रोग विशेषज्ञ ,स्त्री रोग विशेषज्ञ और बाल रोग विशेषज्ञ होने चाहिए। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021-22 की रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में कुल 6064 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। इसमें 5480 ग्रामीण क्षेत्रों में और 584 शहरी क्षेत्रों में हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की संख्या 2005 में 3550 थी जो बढ़कर 2022 में 4485 हो गई है। यह आबादी में बढ़ोत्तरी की अपेक्षा कतई अपर्याप्त वृद्धि है। अभी भी लगभग 80% विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2023 में 20 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक के बजट का प्रावधान किया गया है। सरकार का दावा है कि इसमें आधारभूत संरचनाओं के विकास और ग्रामीण स्वास्थ्य पर ज़ोर रहेगा। 20,162.39 करोड़ के इस बजट में से चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के लिए 17,325 करोड़ एवं चिकित्सा शिक्षा के लिए 2,837.39 करोड़ की धनराशि का प्रावधान किया गया है। ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए 12,631 करोड़ एवं आधारभूत संरचनाओं के लिए 1,547 करोड़ देने की बात कही गयी है। लेकिन सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की ढपोरशंखी घोषणाओं के बावजूद ज़मीनी हक़ीक़त स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खोल देने वाली है। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की वजह से देश की एक बड़ी आबादी को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अधिकतर सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के पद खाली हैं। जाँच उपकरणों की बेहतर व्यवस्था नहीं है। जहाँ पर उपकरण हैं, वहाँ भीड़ बहुत अधिक होती है। सरकारी अस्पतालों की हालत ख़स्ता होने के कारण लोगों को मजबूरन निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर ज़िले में स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर देश की आम तस्वीर से अलग नहीं है। यहाँ ज़िला अस्पताल के अलावा एक मेडिकल कॉलेज, 11 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 33 स्वास्थ्य उपकेन्द्र सहित 233 वेलनेस सेण्टर मौजूद हैं। ज़िले के आलापुर तहसील क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की वजह से लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों की बदहाली और प्राइवेट अस्पतालों की लूट लोगों की ज़िन्दगियाँ लील रही है।

इस इलाक़े की अधिकांश आबादी स्थानीय और बाहर जाकर काम करने वाले मज़दूरों की है। महँगाई की वजह से दवा-इलाज कराना तो दूर लोगों को दो-जून की रोटी भी मिल पाना मुश्किल है। बहुत से लोग ऐसे हैं जो औद्योगिक शहरों में कुछ महीने काम करके गम्भीर बीमारियों का शिकार बन गये हैं और अब वो इलाज के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। वास्तव में लूट और मुनाफ़े पर टिकी यह व्यवस्था मेहनतकश आबादी की ज़िन्दगियों को मुनाफ़े की हवस में ऐसे ही लीलती रहती है। पहले तो यह व्यवस्था मेहनतकशों की हड्डी तक निचोड़कर अपने मुनाफ़े की तिजोरी में क़ैद कर लेती है। उसके बाद उन्हें सड़कों पर दर-दर भटकने, मरने के लिए छोड़ देती है। सरकारी अस्पतालों की बदहाली की वजह से आम लोग या तो मेडिकल स्टोर, झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज कराने को विवश होते हैं या फिर झाड़-फूँक का सहारा लेते हैं। नतीजा यह होता है कि छोटी-छोटी बीमारियाँ भी बड़ी बीमारी बन जाती हैं और लोगों की ज़िन्दगी पर भारी पड़ती हैं।

प्राइवेट अस्पतालों का पूरा कारोबार ही सरकारी अस्पतालों की बर्बादी-बदहाली पर फलता-फूलता है जहाँ पर पैसे के बिना दवा-इलाज के बारे में सोचना भी गुनाह है। आये दिन अस्पतालों में पैसा न दे पाने की वजह से लाश को रोक लेने, इलाज रोक देने, गहना-गिरवी रखने आदि की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। इनकी लूट का एक हिस्सा चन्दे के रूप में नेताओं, मन्त्रियों की जेबों में भी जाता है, और उनकी शह पर लूट का यह कारोबार बेरोकटोक चलता रहता है। इलाके में टीबी, कैंसर, शुगर, किडनी, मानसिक रोग ,साँप काटने, पेट दर्द और बुख़ार तक से आये दिन बच्चों, महिलाओं, नौजवानों, नागरिकों की मौतें होती रहती हैं।

अम्बेडकरनगर की आलापुर तहसील में 472 गाँवों की लगभग 5 लाख आबादी पर 2 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रामनगर और जहाँगीरगंज में बनाये गये हैं। 6 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कमालपुर पिकार, कम्हरियाघाट, नरियांव, लखनीपट्टी, मकरही तथा माडरमऊ में हैं। इसके अलावा इस तहसील क्षेत्र में कई आयुर्वेदिक तथा होम्योपैथिक अस्पताल भी हैं, लेकिन ज़्यादातर जगहों पर पूरा केन्द्र ही एक या दो स्टाफ़ के भरोसे चल रहा है। जिन जगहों पर एक्सरे, जाँच आदि के उपकरण हैं भी, वहाँ स्टाफ़ ही मौजूद नहीं रहता है। कहीं ये हालत है कि स्टाफ़ मौजूद है तो अन्य सुविधाएँ केवल काग़ज पर ही हैं। यहाँ से वहाँ मरीज़ को रेफ़र करने में ही बहुत से लोगों की मौत हो जाती है। कहीं पर लैब टेक्नीशियन का काम फ़ार्मासिस्ट करता है तो कहीं सीटी स्कैन नहीं होता क्योंकि कोई ऑपरेट करने वाला नहीं है। कभी स्ट्रेचर नहीं मिलता है तो कहीं डॉक्टर ही नदारद रहते हैं। कभी बिजली न आने से मशीन बन्द रहती है तो कहीं इमरजेंसी वार्ड पर ताला जड़ा रहता है। ये स्थिति केवल आलापुर तहसील की नहीं बल्कि लगभग पूरे ज़िले की है। बाढ़ प्रभावित इलाकों अराजी देवारा, माझा कम्हरिया, सिद्धनाथ गाँव के पास ही ब्रह्मचारी बाबा आयुर्वेदिक अस्पताल है लेकिन यहाँ भी लोगों को बेहतर सुविधा नहीं मिलती हैं क्योंकि यहाँ पर न केवल पर्याप्त संसाधनों का अभाव है बल्कि चिकित्सकों के बहुत से पद खाली पड़े हैं। वैसे भी आयुर्वेदिक अस्पताल में हर प्रकार की स्वास्थ्य समस्या के लिए इलाज की व्यवस्था हो ही नहीं सकती है।

कई अस्पतालों में वार्डबॉय के भरोसे लोगों का इलाज चल रहा है। इलाके में जो निजी अस्पताल हैं, वहाँ फ़ीस और दवा-इलाज इतना महँगा है कि लोग पैसे के अभाव में अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं और घुट-घुट कर मर जाते हैं। लोगों को दवा-इलाज के लिए अपनी ज़मीन, जानवर, गहने या ज़रूरी सामान बेचना पड़ता है। कई लोगों का गाँवों से चन्दा जुटाकर इलाज होता है। आसपास के बहुत सारे परिवार क़र्ज़ में डूबे हुए हैं। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 10 गाँवों में सर्वे किया और पाया कि हर गाँव में औसतन सात से दस लोग गम्भीर बीमारी का शिकार हैं और पैसे के अभाव में उनका इलाज़ नहीं हो पा रहा है। रामपुर गाँव के निवासी महेन्द्र कैंसर से पीड़ित हैं। पैसा न होने के कारण वह इलाज़ नहीं करा पा रहे हैं और दर्द के इंजेक्शन के सहारे अपनी ज़िन्दगी को ढो रहे हैं। इसी तरह राजेसुल्तानपुर के पास रुकुमलपुर गाँव में लहुरी नाम के एक व्यक्ति ने अपने बेटे के इलाज के लिए 50,000 रुपये सूदख़ोर से लिए थे। पैसे न चुका पाने के कारण वह पिछले पाँच वर्षों से लगभग बन्धक की स्थिति में उसी सूदख़ोर के यहाँ काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी ज़िन्दगी जेल से भी बदतर हो चुकी है।

पूरे क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों के लिए अलग से कोई भी अस्पताल नहीं है। बहुत सारी महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान हो जाती है। 70% महिलाएँ खून की कमी की वजह से एनीमिया की शिकार हैं। कई लोगों की मृत्यु ज़हरीले जीव-जन्तुओं के काटने से हो जाती है। वर्ष 2019 से अब तक इसी तहसील में हज़ारों लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग ज़िन्दगी के लिए जूझ रहे हैं। कई लोगों का आयुष्मान भारत योजना का कार्ड भी बना हुआ है, लेकिन उनका इलाज़ भी नहीं हो पा रहा है। जहाँगीरगंज के पास स्थित नरियाँव गाँव के 25 वर्षीय युवक लक्ष्मण एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल हो गये थे। परिवार में मौजूद थोड़े-बहुत जेवरात, ज़मीन, जानवर सब कुछ बेचकर लगभग ढाई लाख रुपये ख़र्च करने पड़े क्योंकि लक्ष्मण के आयुष्मान कार्ड पर अस्पताल ने इलाज नहीं किया। गाँव के लोगों ने इलाज के लिए चन्दा भी इकट्ठा किया। फ़िर भी अन्ततः लक्ष्मण को नहीं बचाया जा सका। ऐसी ही कहानियाँ इलाक़े के हर गाँव में हैं।

पूरे इलाक़े में पर्यावरण प्रदूषण की वजह से लोगों में बीमारियों की संख्या काफ़ी बढ़ी है। पूरे क्षेत्र में कैंसर, टीबी, डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर, किडनी, श्वास रोग, लकवा, मानसिक बीमारी, बुख़ार आदि के रोगियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का यह आलम है कि जिले के जहाँगीरगंज ब्लॉक के तिहाईतपुर गाँव में वर्षों पहले अस्पताल निर्माण का काम शुरू हुआ था। इलाके में लोगों को पास ही दवा-इलाज की सुविधा मिल जाने की उम्मीद थी। लेकिन उनकी सभी उम्मीदों पर पानी फिर चुका है क्योंकि अस्पताल का पूरा ढाँचा तो तैयार हो चुका है लेकिन उसको उसी रूप में छोड़ दिया गया है। ना ही उसकी सही से देख-रेख हो रही है और ना ही अस्पताल पर डॉक्टरों की नियुक्ति की जा सकी है। जनता की ख़ून-पसीने की कमाई से बना यह पूरा ढाँचा तबाह हो रहा है। इसके परिसर के अन्दर बड़े पैमाने पर घास-फूस है, गन्दगी का अम्बार लगा हुआ है। बहुमूल्य सामान बर्बाद हो रहा है।

लेकिन देश के नेताओं-नौकरशाहों को इस तबाही-बर्बादी से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। चिकित्सा की यह बदहाली उनके लिए चुनावी मुद्दा भी नहीं है क्योंकि बड़े-बड़े निजी अस्पतालों के मालिकान ख़ुद ही या तो ऐसी पार्टियों के नेता हैं, या इऩ पार्टियों को चन्दा देते हैं। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के वॉलण्टियर इन माँगों पर स्थानीय लोगों को संगठित कर इस बदहाली के ख़िलाफ़ एक बड़े जनान्दोलन की तैयारी में जुटे हुए हैं।

  1. इलाके में एक मिनी पीजीआई अस्पताल खोला जाये।
  2. चिकित्सकों के रिक्त पदों को तत्काल भरा जाये।
  3. संसाधनों (एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड, इसीजी, सिटी स्कैन, खून की जाँच आदि) की व्यवस्था दुरुस्त की जाये तथा जाँच मशीनों का नियमित संचालन सुनिश्चित किया जाये।
  4. जानवरों एवं जहरीले जीव-जन्तुओं के काटने पर हर अस्पताल में टीके उपलब्ध कराये जायें।
  5. अस्पतालों में साफ़-सफाई की बेहतर व्यवस्था की जाये।
  6. अस्पताल में आवास की और शौचालय की व्यवस्था और बेहतर की जाये।
  7. महिलाओं एवं बच्चों के लिए अलग से अस्पताल खोले जायें।
  8. सभी व्यक्तियों हेतु निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करायी जाये।
  9. सभी निजी अस्पतालों का राष्ट्रीकरण किया जाये।
  10. प्रत्येक 1 लाख की आबादी पर एक बड़ा अस्पताल खोला जाये और पर्याप्त संख्या में चिकित्सकों की नियुक्ति की जाये।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2023


 

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