बिपरजॉय चक्रवात आने वाले गम्भीर भविष्य की चेतावनी दे रहा है!

लता 

पिछले 15 जून को बिपरजॉय नाम का तूफान गुजरात के समुद्र तट से टकराया। 125 से 135 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ़्तार से चलने वाला यह चक्रवात जब पाकिस्तान से लगे गुजरात के कच्छ से टकराया तो ज़मीन पर इसकी गति 65 किलोमीटर प्रति घण्टे हो गयी। तेज़ आँधियों, तट पर प्रबल समुद्री लहरों, भारी वर्षा और बाढ़ के बीच बिपरजॉय चक्रवात ने अपना रुख समुद्र से ज़मीन की ओर किया और यह गुजरात के जखाऊ बन्दरगाह से टकराया। 2,525 किलोमीटर का रास्ता तय करने वाला यह चक्रवात 1977 के बाद हिन्द महासागर का सबसे लम्बा चक्रवात रहा। लम्बा रास्ता होने की वजह से मौसम विभाग के लिए बिपरजॉय चक्रवात के सम्बन्ध में कोई भी भविष्यवाणी कर पाना कठिन हो रहा था। इस चक्रवात की उम्र 13 दिन तीन घण्टे की थी जिसमें अनुमान लगाया जा रहा था की यह तटीय क्षेत्रों में भयानक तबाही मचाने जा रहा है। इसलिए मौसम विभाग ने इसे ‘बेहद गम्भीर’ श्रेणी में रखा था। लेकिन तट से टकराने के पहले इसकी कम होती हुई आक्रामकता को देखते हुए इसे  ‘बेहद गम्भीर’ से ‘गम्भीर’ की श्रेणी में कर दिया गया, हालाँकि गोदी मीडिया के नौटंकीबाज़ों को देख कर ऐसा लग रहा था अब प्रलय ही आने वाला है। स्टूडियो में रेन कोट और छाता लगा कर वीभत्स तस्वीर प्रस्तुत करने वाले इन एंकरों को तट पर रहने वाले मज़दूर और आम मेहनतकश की कितनी चिन्ता है इसका अन्दाज़ा उनकी मोदी की अन्धभक्ति से लगाया जा सकता है। इस ख़बर को भी इन्होंने मसाला बना दिया और मोदी और शाह के गुणगान में जुट गये। पिछले चक्रवातों के बाद जान-माल के नुक़सान और सरकार द्वारा राहत और मुआवज़ों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि इसबार भी नुक़सान का बोझ मेहनतकश के कन्धों पर ही पड़ेगा। चक्रवात की तबाही से सबसे अधिक प्रभावित तटीय क्षेत्रों में रहने वाले मछुआरे, मज़दूर और गरीब आबादी होगी जैसा की हमेशा ही होता है। तमाम खोखले वायदों और मुआवज़ों के बीच जान-माल की तबाही की भरपाई मज़दूर-मेहनतकशों को अपने खून-पसीने की कमाई से ही करनी होगी। 

ख़ैर, हम बिपरजॉय चक्रवात पर वापस आते हैं। अगर हम इतिहास में जायें तो पायेंगें कि भारत के इर्द-गिर्द बनने वाले चक्रवात मुख्यतः बंगाल की खाड़ी में बनते हैं। अरब सागर का तापमान तुलनात्मक रूप से कम होने की वजह से यहाँ चक्रवात कम बनते हैं। लेकिन पिछले लम्बे समय से मौसम विशेषज्ञों और मौसम वैज्ञानिकों के  अध्ययन बता रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग (भूमण्डलीय ऊष्मीकरण) की वजह से अरब सागर का तापमान औसत से अधिक बढ़ रहा है। इसकी वजह से अब अरब सागर में पहले के मुक़ाबले ज़्यादा शक्तिशाली और तीव्र चक्रवात बन रहे हैं। बिपरजॉय इसका ही उदाहरण है। मौसम विशेषज्ञों और मौसम वैज्ञानिकों के बीच यह बहस का मुद्दा है कि ग्लोबल वार्मिंग चक्रवातों को प्रभावित करते हैं या नहीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के चक्रवातों की शक्ति, तीव्रता और विनाश को देखते हुए किसी भी रूप में  ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता। स्वयं  बिपरजॉय चक्रवात इसका प्रमाण है। 

नेशनल ओशियानिक एण्ड एटमोसफेरिक ऐडमिनिस्ट्रेशन के वैज्ञानिकों ने हालिया शोध में पाया है कि इस पूरी सदी में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन की वजह से वैश्विक तापमान और वैश्विक समुद्री सतह का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से अलग-अलग उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की विनाशकारी शक्ति बढ़ने की सम्भावना है। वर्ल्ड मेटेऑरलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (विश्व मौसम विज्ञान संगठन) ने एक मूल्यांकन किया है जिसमें इस बात का अनुमान लगाने का प्रयास किया गया है कि वैश्विक तापमान में 2 डिग्री बढ़त का उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों पर क्या असर पड़ा है। 

ग्रीनहाउस गैस के स्तर में वृद्धि की वजह से वायुमण्डल में कैद ऊष्मा महासागर सोख लेते हैं जिसकी वजह से महासागर का तापमान बढ़ने लगता है और साथ ही समुद्र स्तर भी बढ़ जाता है। मॉडल आधारित इस शोध के परिणाम बताते हैं कि जिस तरह विश्व का तापमान बढ़ रहा है उसकी वजह से अब उष्णकटिबन्धीय चक्रवात ज़्यादा शक्तिशाली और विनाशकारी होंगें। ये चक्रवात तटीय इलाकों में भयानक बाढ़, विनाशकारी तूफ़ान और मूसलाधार वर्षा लेकर आयेंगे। अभी इस बात के अधिक परिणाम नहीं हैं कि उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की संख्या बढ़ेगी लेकिन ज़्यादा अध्ययन बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की संख्या घट सकती है लेकिन इनकी तीव्रता और विनाशकारिता निश्चित ही बढ़ेगी। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों को पैदा करने वाली भौतिक परिस्थितियों को प्रभावित कर रहे हैं जिसकी वजह से चक्रवातों की संख्या में कमी आ सकती है लेकिन यही परिस्थितियाँ चक्रवात बन जाने की स्थिति में उसे विनाशकारी बनाने में मददगार साबित होंगी क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से महासागरों का बढ़ा तापमान और नमी का उच्च स्तर चक्रवातों को विशालकाय बनाने के लिए प्रचुर ईंधन प्रदान करेंगे। 

इस पूरी प्रक्रिया को बेहतर समझने के लिए हमे थोड़ा उष्णकटिबन्धीय चक्रवात की परिघटना को समझना होगा तब ही हम समझ पाएँगे की ग्लोबल वार्मिंग किस प्रकार इन्हें प्रभावित कर रहे हैं।  

उष्णकटिबन्धीय चक्रवात का निर्माण 

उष्णकटिबन्धीय चक्रवात उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र के महासागरों में पैदा होते हैं और उष्णकटिबन्धीय तटों, क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। अलग-अलग क्षेत्र में इनके अलग-अलग नाम हैं जैसे साइक्लोन, हर्रिकेन और टाइफून। भूमध्य रेखा के इर्द-गिर्द उत्तरी गोलार्ध (नॉर्दर्न हेमिस्फियर) में कर्क रेखा और दक्षिणी गोलार्ध (सदर्न हेमिस्फियर) में मकर रेखा के बीच उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र है। उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों का निर्माण इस इलाके में होता है। हिन्द महासागर में इन्हें ‘साइक्लोन’ कहा जाता है, दक्षिण चीन सागर में इन्हें ‘टाइफून’ नाम दिया जाता है, पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में यह ‘विली विली’ है और कैरेबिआई सागर में यह ‘हरिकेन’ कहलाता है। लेकिन नाम जो भी हो ये सभी उष्णकटिबन्धीय चक्रवात हैं। उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र पृथ्वी का सबसे गर्म हिस्सा होता है क्योंकि यहाँ सूरज की किरणें बिल्कुल सीधे आती हैं और खड़ी होती हैं। सीधे और खड़े सौर्य विकिरण से उष्णकटिबन्धीय समुद्र गर्म रहते हैं। समुद्र की सतह की गर्म और नमी से भरी हवा ऊपर की ओर उठती है। जब सतह से गर्म हवा उठ कर ऊपर की ओर जाने लगती है तो सतह पर कम हवा का दबाव बनता है। खाली हुई जगह को भरने के लिए आस-पास की उच्च दबाव वाली ठण्डी हवा कम दबाव की ओर दौड़ती है। फिर यह उच्च दबाव वाली ठण्डी हवा भी नमी से भर गर्म हो कर  ऊपर की ओर उठती है और पीछे सतह पर कम दबाव छोड़ जाती है।  इस जगह को आस-पास की हवा भारती है और यह प्रक्रिया जारी रहती है। हम उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों को विशाल इन्जन कह सकते है। अभी तक हमने नमी से भरी हुई गर्म हवा के ऊपर उठने की प्रक्रिया देखी। नमी वाली गर्म हवा ऊपर उठती है। जैसे-जैसे वयुमण्डल में ऊँचाई बढ़ती है तापमान घटता है। ठण्डे तापमान के सम्पर्क में आ कर नमी वाली गर्म हवा संघनित हो बादल बन जाती है। लेकिन मात्र बादल बनने से यह तूफ़ान में नहीं बदलती।  कम दवाब वाले केन्द्र और फिर आस-पास की ठण्डी हवा का कम दबाव वाले केन्द्र की ओर भागना एक इन्जन के रूप में तब्दील तब होता है जब यह गोलाकार गति में घूमता है। इसके लिए इस पूरी प्रक्रिया का कम दबाव वाले केन्द्र पर गोल-गोल चक्कर काटते हुए घूमना ज़रूरी है। तभी यह गोल-गोल चक्कर में घूमती हवा यानी चक्रवात बनेगा। इस प्रक्रिया को पूरा करने का काम कोरिऑलिस प्रभाव करता है। मतलब हवा का उच्च दबाव से कम दबाव की ओर बहना और पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना मिल कर वह प्रभाव उत्पन्न करते हैं जिसकी वजह से समुद्र की गर्म सतह पर बन रहे कम दबाव वाले केन्द्र के चारों तरफ़ हवा तेज़ गति में घूमने लगती है।  समुद्र की सतह पर कम दबाव वाले क्षेत्र को तूफ़ान की आँख यानी आई ऑफ दी साईक्लोन भी कहते हैं। 

जैसा की हम जानते हैं हवा हमेशा उच्च दवाब वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर बहती है। पृथ्वी के दोनों ध्रुवों यानी उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ़ जमी होती है। यहाँ हवा का उच्च दबाव होता है। जैसा हमने पहले ही बताया कि उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र पृथ्वी का सबसे गर्म हिस्सा होता है। यहाँ हवा का दबाव कम होता है। इस तरह ध्रुवों से उच्च दबाव वाली हवा उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र की ओर दौड़ती है। लेकिन चूँकि पृथ्वी एक उपगोल है और उसका ग्रहपथ अण्डाकार है और साथ में यह अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की तरफ़ घूमती है। पृथ्वी के उपगोल होने की वजह से ध्रुवों की तुलना में कर्क रेखा यानी पृथ्वी के मध्य में घूमने की गति सबसे अधिक होती है। इसतरह ध्रुवों से आने वाली हवा गोल सतह होने की वजह से मध्य तक आते-आते पृथ्वी की गति की उल्टी दिशा में घूम जाती है। यह गति का सामान्य नियम है। उत्तरी ध्रुव से आने वाली हवा दाहिनी ओर मुड़ जाती है और दक्षिणी ध्रुव से आने वाली हवा बाईं ओर मुड़ जाती है।  

अब एक बार फिर हम तूफ़ान के केंद्र या आँख यानी आई ऑफ दी साईक्लोन  पर वापस आते हैं। समुद्र की सतही तापमान का 26.5 डिग्री पहुँचने पर समुद्र की सतह से नमी भरी गर्म हवा ऊपर उठने लगती है और खाली जगह को कम दबाव वाली हवा भरने लगती है। यहाँ पर चाहे वह गर्म हो कर ऊपर उठ रही हवा हो या कम दबाव वाली ठण्डी हवा हो सब पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में कोरिऑलिस प्रभाव से दाहिनी ओर मुड़ जाती है और दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर मुड़ जाती है। यह ठण्डी हवा कम दबाव वाले केन्द्र या आँख की ओर आकर्षित होती है साथ ही बार-बार दाहिनी ओर भी मुड़ती रहती है जिससे इसमें स्पिन यानी चक्कर आता है। अब तूफ़ान की आँख में जितना दबाव कम होगा बाहर की ठण्डी हवा यानी कम दबाव से आने वाली हवा उतनी ही तेज़ गति से आँख की ओर दौड़ेगी। इस तरह तूफ़ान की गति तेज़ होती है और कोरिऑलिस प्रभाव इसे स्पिन प्रदान करता है यानी गोल-गोल घुमाता है। मतलब समुद्र की सतह का गर्म तापमान नमी वाली हवा को ऊपर ढकेलेगा और इस जगह को ठण्डी हवा भरेगी। ऊपर घने बादल बनते जायेंगे और कोरएओलिस प्रभाव इस पूरी मशीन को स्पिन देगा यानी गोल-गोल चक्कर में घुमायेगा। इस पूरी परिघटना का मूल प्रेरक है समुद्र की सतह का गर्म तापमान और इससे उठने वाली गर्म हवा।  

साईक्लोन या उष्णकटिबन्धीय चक्रवात बनने की प्रक्रिया को समझने के बाद हम इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में तापमान एक अहम भूमिका निभाता है चाहे ध्रुवों से आने वाली उच्च दवाब वाली ठण्डी हवा हो या समुद्र की सतह के तापमान से गरम हवा का ऊपर उठना हो। इसलिए इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों पर प्रभाव पढ़ रहा है।  हाल में नये मशीनों और सुपर कम्प्यूटर की मदद से हो रहे अध्ययन साफ़ बात रहे हैं की ग्लोबल वार्मिंग उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की क्रमिकता, शक्ति और विनाशकारिता पर प्रभाव डाल रहे हैं।  

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों पर प्रभाव 

ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऑस्ट्रेलिया के चक्रवातों का अध्ययन किया है। इस अध्ययन के आधार पर ऑस्ट्रेलिया के चक्रवातों और सामान्य तौर पर उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों के सम्बन्ध में कुछ परिणाम प्रस्तुत किये हैं। इस टीम ने डॉ. सविन चन्द के नेतृत्व में काम किया है। डॉ. चन्द का कहना है कि पूरे उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में चक्रवातों की संख्या कम हुई है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों के बनने की परिस्थितियाँ प्रभावित हुई हैं इसलिए इनकी संख्या में पूरे विश्व में कमी देखी जा सकती है। लेकिन इसके साथ ही चक्रवात बन जाने की स्थिति में इसे खिला-पिला कर मोटा करने की भौतिक परिस्थितियाँ यानी उच्च तापमान और नमी पहले से ज़यादा प्रबल हैं। इसलिए उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की संख्या कम होगी लेकिन इनकी तीव्रता, ऊर्जा और विनाशकारिता कहीं अधिक होगी। डॉ. चन्द ने अध्ययन में बताया की 1900 से 2022 तक में ऑस्ट्रेलिया में उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की संख्या 11 प्रतिशत कम हुई है और 1950 के दशक से संख्या में गिरावट देखी गयी है। इस तरह डॉ. चन्द का कहना है कि चक्रवातों की संख्या कम होगी लेकिन विनाश का पैमाना इसके उलट होगा। यानी चक्रवात पहले से कहीं अधिक जान-माल का नुक़सान और विनाश करेंगे। चक्रवातों की तीव्रता मापने वाली सफ़ायर-सिम्पसन स्केल (पैमाने) पर उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की तीव्रता 3 या 3 से ऊपर की श्रेणी की रहेगी। सफ़ायर-सिम्पसन स्केल पर  3 या 3 से ऊपर के चक्रवात ‘बेहद गम्भीर’ श्रेणी में रखे जाते हैं।  

दक्षिण कोरिया में उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों पर पुसान विश्वविद्यालय में 13 महीने लम्बा चला शोध अध्ययन अब तक का सबसे गहन शोध अध्ययन है। हाई-रेज़ोल्युशन अलेफ सुपर कम्प्यूटर पर किया गया सिम्युलेशन ने बेहद क़रीब से चक्रवातों का अध्ययन किया है। 

अलेफ सुपर कम्प्यूटर पर सिम्युलेशन करने वाले डॉ. सुन-सियोन ली का कहना है कि हमने सिम्युलेशन के आधार पर भविष्य में उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता में परिवर्तन की जो भविष्यवाणी की है उसे वर्तमान में घटित हो रहे चक्रवात सिद्ध कर रहे हैं। इसलिए उनका कहना है कि इस अध्ययन के आधार पर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों में आ रहे परवर्तन की अवधारणा का वे समर्थन करते हैं। इस अध्ययन के अनुसार वयुमण्डल में कार्बन डाइआक्साइड के बढ़ने से उष्णकटिबन्धीय वयुमण्डल की गति धीमी पड़ेगी यानी इसकी गति में गिरावट आयेगी और इससे उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों का पैदा होना कठिन होगा। हालाँकि कम ही सही, जो चक्रवात पैदा होंगें उन्हें तीव्र और शक्तिशाली बनाने के लिए नमी और ऊर्जा का स्तर कहीं अधिक होगा। नतीजतन ये चक्रवात सफ़ायर-सिम्पसन स्केल पर तीन या तीन से ऊपर की श्रेणी में होंगे। आने वाले समय में भारत और प्रशान्त महासागर में तीन या तीन से ऊपर की श्रेणी के चक्रवातों की संख्या में वृद्धि की भविष्यवाणी इस अध्ययन ने की है। आने वाले समय में ‘बेहद गम्भीर’ श्रेणी के चक्रवात भारत के तटों से टकरायेंगे। 

इस अध्ययन ने यह भी बताया है कि समुद्र की सतह के तापमान का 1.8 डिग्री सेल्सियस से 3.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की वजह से चक्रवातों के कारण होने वाली वर्षा 9.5 प्रतिशत तक बढ़ेगी। इसकी वजह से तटीय इलाक़ों में भयंकर बाढ़ आयेगी क्योंकि चक्रवातों से होने वाली भारी वर्षा समुद्र में विशाल मात्रा में पानी उड़ेलती है।   

अलेफ सुपर कम्प्यूटर आधारित अध्ययन डॉ. चन्द के नेतृत्व वाले अध्ययन, नेशनल ओसेआनिक एण्ड ऐट्मस्फेरिक ऐड्मिनिस्ट्रैशन के उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों पर किये अध्ययन और क्लाइमेट चेंज असेस्मेंट के अध्ययन को सत्यापित करते हैं। या कह सकते हैं कि अब तक जो सम्भावना थी उसे प्रमाण मिल गया है। आने वाला समय में तटीय क्षेत्रों में भयंकर विनाश की सम्भावना है।  

बिपरजॉय चक्रवात को भी अगर हम इस पूरे परिदृश्य में रख कर देखें तो हमें समझ आयेगा कि यह चक्रवात भी अपने आप में भविष्य के ख़तरे की ओर ही इंगित कर रहा है। समुद्र स्तर का बढ़ता तापमान चक्रवातों की संख्या और शक्ति को प्रभावित कर रहा है; बिपरजॉय चक्रवात इसका प्रातिनिधिक उदाहरण है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के चक्रवात इस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। भारतीय मौसम विभाग के आँकड़ों के आधार पर अध्ययन कर भारतीय वैज्ञानिक शिक्षण और शोध संस्थान ने बताया है कि पिछले 130 साल के हर दशक में औसतन 50.5 चक्रवात बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बने हैं। इस क्षेत्र में तीव्र और विनाशकारी चक्रवात मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी में बनते हैं और संख्या भी इन्हीं चक्रवातों की अधिक होती  है। हालाँकि हाल के वर्षों में बंगाल की खाड़ी के चक्रवातों में 8 प्रतिशत की कमी आयी है। लेकिन साथ ही इनकी तीव्रता और शक्ति भी बढ़ी है। 

अगर बात करें अरब सागर के चक्रवातों की तो हाल के वर्षों में इन चक्रवातों की संख्या और तीव्रता बढ़ी है। भारतीय उष्णकटिबन्धीय मौसम विज्ञान संस्थान के अनुसार अरब सागर के चक्रवातों की संख्या पिछले 4 दशकों में 52 प्रतिशत बढ़ी है। इसके अलावा इनकी तीव्रता और समयावधि भी पिछले 4 दशकों में बढ़ी है। पहले की तुलना में अब ये 260 प्रतिशत अधिक जीवित रहते हैं। इसकी वजह है अरब सागर के सतह के तापमान में वृद्धि। यह पिछले कुछ दशकों में 1.2 डिग्री से बढ़ कर 1.4 डिग्री सेल्सियस हो गया है।  

इन सारे अध्ययन में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ रही है की ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों को प्रभावित कर रहे हैं उन्हें ज़्यादा विनाशकारी बना रहे हैं। 

पूँजीवादी व्यवस्था और ग्लोबल वार्मिंग 

हमने देखा कि तमाम वैज्ञानिक शोध और अध्ययन चक्रवातों में आये परिवर्तन के लिए  ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार मानते हैं। लेकिन इन सारे अध्ययनों कि सबसे बड़ी कमज़ोरी यह होती है कि अपने अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की वजह ये मानव गतिविधियों को बताते हैं। इन अध्ययनों में लिखा जाता है कि मानव गतिविधियों की वजह से वायुमण्डल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। इस तरह अक़्सर यह निष्कर्ष निकल जाता है कि हर व्यक्ति पर्यावरण के विनाश के लिए ज़िम्मेदार है और इसलिए इसे सुधारने के लिए हर व्यक्ति अपने अपने स्तर पर प्रयास करे। जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों की जगह साइकिल का उपयोग, प्लास्टिक की थैली या प्लास्टिक के सामान इस्तेमाल नहीं करना, प्रकृति में वापस लौटने और इस तरह के ही अन्य उपाय। लेकिन सच्चाई तो यह है कि पर्यावरण के विनाश के पीछे पूँजीवादी व्यवस्था है और मुनाफ़े के लिए इसकी अन्धी हवस ज़िम्मेदार है। मुनाफ़े की हवस में पूँजीवाद बेइन्तहाँ जंगलों को काटता जा रहा है। ग्लोबल फॉरेस्ट वाच के अनुसार पृथ्वी पर एक तिहाई प्राकृतिक वन क्षेत्र का नुक़सान हो चुका है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक है जंगलों का तीव्र गति से कटना। संयुक्त राष्ट्र वन संसाधन मूल्यांकन (यूएन फॉरेस्ट रिसोर्सेज अससेस्मेंट) के अनुसार विश्व स्तर पर प्रति वर्ष 47 लाख हेक्टेयर प्राकृतिक वनों का विनाश हो रहा है। जंगलों के कटने की गति निश्चित ही विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में अधिक है। स्वयं भारत में पिछले 30 सालों में 668,400 हेक्टेयर वन क्षेत्र का विनाश हुआ है। ग्लोबल फॉरेस्ट वाच की रिपोर्ट के अनुसार 2010 में 313 लाख हेक्टेयर प्राकृतिक वन का ह्रास हुआ जो कुल वन क्षेत्र का 11% है। वहीं 2021 में 127 हज़ार हेक्टेयर प्राकृतिक वन क्षेत्र का विनाश हुआ जो 64.6 मेट्रिक टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन के बराबर है। वैसे तो जंगलों के बेतहाशा कटना कहीं भी नुक़सानदेह है लेकिन सबसे विनाशकारी है अमेज़न के वर्षावनों का कटना। अगस्त 2019 से जुलाई 2020 तक कुल 11,088 स्क्वाइर किलोमीटर अमेज़न वर्षावन का विनाश ब्राज़ील की बॉल्सोनारो सरकार ने किया। बॉल्सोनारो सरकार ने खुले हाथों से पूँजीपतियों को खनन और कृषि के लिए अमेज़न के जंगलों का विनाश करने के अनुमति दी। बॉल्सोनारो के कार्यकाल में कहा जाता है की प्रति मिनट एक फुटबॉल पिच के जितना अमेज़न वन साफ किया जा रहा था। इससे जंगलों के कटने की दर का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। अमेज़न अत्यन्त आवश्यक कार्बन का भण्डार है जो ग्लोबल वार्मिंग की गति को धीमा करता है। अमेज़न के जंगल ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करने में महती भूमिका निभाते हैं। आज बढ़ते ग्रीन हाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी वजहों में से एक अमेज़न वर्षा वनों का विनाश है। निश्चित ही इतनी व्यापक स्तर पर जंगल काटने का काम आम लोग नहीं करते। ये जंगल पूँजीवाद के मुनाफ़े की हवस के शिकार बन रहे हैं।  

पूँजीवादी उत्पादन प्रक्रिया अनियोजित और अराजक होने की वजह से पूरी उत्पादन प्रक्रिया प्रकृति और पर्यावरण के लिए गम्भीर संकट पैदा कर रही है। जीवाश्म ईंधन के जलने, जंगलों के कटने और कारखानों, मशीनों और कई बिजली संयंत्रों से निकलने वाले ग्रीनहाउस गैस वायुमण्डल की सतह पर एकत्र हो जाते हैं और सूर्य के ताप को अधिक मात्रा में वायुमण्डल में कैद करने लगते हैं जिससे ग्रीन हाउस इफेक्ट पैदा होने लगता है। इससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ता है यानी ग्लोबल वार्मिंग होती है। 

1970 की तुलना में हिमनदों के मौसम से लिए संदर्भों से पता चलता है कि 2003 तक हिमनदों के 27.5 मीटर जमे बर्फ़ पिघल कर पानी बन गये हैं जिसका अर्थ है सभी हिमनदों के शीर्ष से 27.5 मीटर बर्फ़ को काट कर हटा देना। 1880 से अब तक औसत वैश्विक जलस्तर 8-9 इंच (21-24 सेन्टमीटर) बढ़ गया है। ग्रीनलैण्ड बर्फ़ की परत (आइस शीट) से बर्फ़ का पिघलना 7 गुण अधिक बढ़ गया है। 1992-2001 के बीच प्रति वर्ष  34,00 करोड़ टन आइस शीट का नुक़सान हुआ वही 2012 से 2016 के बीच 24700 करोड़ टन प्रति वर्ष नुक़सान हुआ। मतलब अब प्रति वर्ष नुक़सान में 7 गुणा की वृद्धि हो गई है। हिमनदों और बर्फ़ की परत (आइस शीट) का पिघलना और समुद्र के तापमान के बढ़ने की वजह से समुद्र के जल के आयाम का फैलना समुद्र के जलस्तर के बढ़ने का मुख्य कारण है। 1993 की तुलना में 2021 में औसत वैश्विक जलस्तर 97 मिलीमीटर अधिक हो गया जो अभी तक के जलस्तर में सबसे अधिक वार्षिक औसत वृद्धि है। जलस्तर के बढ़ने से प्राणघातक और विनाशकारी चक्रवात जैसे हर्रिकेन कैटरीना, सुपरस्टॉर्म सैन्डी, हर्रिकेन माइकल, साईक्लोने अम्फान की संख्या बढ़ेगी और यह पहले से कहीं अधिक अन्दर तक भूभाग को प्रभावित करेंगे और भयंकर विनाश का कारण बनेंगे।

अगर हम ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की बात कर रहे हैं और इसके लिए पूँजीवादी उत्पादन पद्धति और व्यवस्था को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं तो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी चिन्ता और उसे कम करने के हमारे प्रयास बागवानी से अधिक कुछ भी नहीं।     

 

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2023


 

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