क्या है बजरंग दल और मज़दूरों को इससे क्यों सावधान रहना चाहिए?

भारत

नूंह में हुई घटना के बाद बजरंग दल-विश्व हिन्दू परिषद का नाम एक बार फिर से सुर्खियों में है। नूंह में भड़के साम्प्रदायिक तनाव में इन संगठनों की भूमिका केन्द्रीय थी। कई रिपोर्ट और चश्मदीद इस बात की पुष्टि कर चुके हैं। बिट्टू बजरंगी जिसे अब वीएचपी ने अपना सदस्य मानने से इन्कार कर दिया, वह भी ख़ुद को बजरंग दल का ही सदस्य बताता था। वहीं मोनू मानेसर भी ख़ुद को बजरंग दल का ही सदस्य बताता है। तो आइए जानते हैं, बजरंग दल के बारे में कि आख़िर यह संगठन क्या है और जहाँ भी साम्प्रदायिक तनाव या दंगा होता है, वहाँ क्यों बजरंग दल ही सबसे आगे मिलता है!

बजरंग दल की स्थापना और उसका ढाँचा

बजरंग दल का गठन 8 अक्टूबर 1984 को हुआ। बजरंग दल के संस्थापक अध्यक्ष विनय कटियार ने एक इण्टरव्यू में कहा था कि इसकी स्थापना का मुख़्य उद्देश्य मठ-मन्दिरों पर से क़ब्ज़ा हटवाना था। बजरंग दल एक साम्प्रदायिक फ़ासीवादी संगठन है, जो विश्व हिन्दू परिषद (विहिप या वीएचपी) की युवा शाखा है। विश्व हिन्दू परिषद का आन्तरिक संगठन होने की वजह से बजरंग दल के पास कामकाज और संगठन संरचना का अपना कोई लिखित संविधान नहीं है। बजरंग दल में मौखिक तौर पर नियुक्तियाँ होती है। यह आरएसएस के संगठनों के परिवार का सदस्य है। संगठन की विचारधारा साम्प्रदायिक फ़ासीवाद पर आधारित है। 1984 को उत्तर प्रदेश में स्थापना के बाद से इसे पूरे भारत में फैलाया गया, हालाँकि इसका सबसे महत्वपूर्ण आधार देश का उत्तरी और मध्य भाग है। ऊपरी तौर पर, दल का एक मुख्य लक्ष्य अयोध्या में भगवान राम जन्म भूमि मन्दिर, मथुरा में भगवान कृष्ण जन्म भूमि मन्दिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण करना है। साथ ही, इनका लक्ष्य कम्युनिस्टों पर हमले करना, मुस्लिम आबादी में बढ़ोत्तरी की “रोकथाम” करना, ईसाई पन्थ परिवर्तन व गोवध को रोकना और इसके ज़रिये भारत की “हिन्दू” पहचान की रक्षा करना है। यह बात अलग है कि जब भाजपाई नेता खुद गोमांस की सप्लाई करने की बात करते हैं और खुद बूचड़खाने खोले बैठे होते हैं, तो बजरंग दल सुरंग दल में तब्दील हो जाता है और किसी सुरंग में घुस जाता है!

बजरंग दल साल में 6 बार अखण्ड भारत दिवस (14 अगस्त), हनुमान जयन्ती (चैत पूर्णिमा), राम नवमी (चैत नवमी), हुतात्मा दिवस ( 30 अक्टूबर से 02 नवम्बर), शौर्य दिवस ( 6 दिसम्बर) और साहसिक दिवस (सावल शुक्ल पक्ष) पर जुलूस निकालता है। इन जुलूसों को दंगे भड़काने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसा पिछले साल दिल्ली के जहाँगीरपुरी में हुआ और इस साल देश के अलग अलग इलाक़ों में।

अब कुछ उदाहरणों के माध्यम से जानते हैं कि कहाँकहाँ दंगों में बजरंग दल संलिप्त रहा है।

– 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद नरसिंह राव सरकार द्वारा बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, लेकिन एक साल बाद प्रतिबन्ध हटा दिया गया।

– ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) ने 1998 के दक्षिण-पूर्वी गुजरात में ईसाइयों पर हमलों के दौरान बजरंग दल के शामिल होने की सूचना दी थी, जहाँ संघ परिवार के संगठनों द्वारा दर्जनों चर्च और प्रार्थना हॉल जला दिये गये थे। हाल ही में दिल्ली में भी यह घटना हुई जहाँ बजरंग दल के सदस्यों ने चर्च में घुसकर लोगों को पीटा।

– एचआरडब्ल्यू के अनुसार, बजरंग दल 2002 में गुजरात में मुसलमानों के ख़िलाफ़़ दंगों में शामिल हुआ था। बजरंग दल के बाबू बजरंगी को नरोदा पाटिया और नरोदा गाम मामले में प्रमुख आरोपी बनाया गया था। बजरंग दल के कई कार्यकर्ताओं पर हिंसा भड़काने का केस दर्ज किया गया था।

– बजरंग दल का मानना है कि मुस्लिमों का आर्थिक बहिष्कार होना चाहिए। “लव जिहाद”-“लैंड जिहाद” के बारे झूठी अफ़वाहें फैलाकर बजरंग दल वाले मुसलमानों को निशाना बनाने का प्रयास करते हैं, लेकिन असल मक़सद होता है व्यापक मेहनतकश जनता को कमज़ोर करना और बड़ी पूँजी के पक्ष में गुण्डावाहिनी का काम करना। उत्तराखण्ड से लेकर कई जगहों पर इस आधार पर साम्प्रदायिक तनाव इनके द्वारा खड़ा किया गया है।

– हर वर्ष बजरंग दल के कार्यकर्ता वेलेण्टाइन डे पर प्रेमी जोड़ों को पकड़कर, उन्हें अपनी इच्छा के ख़िलाफ़ सिन्दूर या राखी लगाने के लिए मज़बूर करते हैं। कार्यकर्ताओं ने अक्सर उपहार की दुकानों और रेस्तराँ पर भी हमला किया है।

– बजरंग दल “आत्मरक्षा” के नाम पर हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए शिविरों का आयोजन करता है। इन शिविरों का असली मक़सद अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ गहरी नफ़रत पैदा करना, उनके निर्मम क़त्लेआम के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना और इसके लिए हथियारबन्द प्रशिक्षण देना है। इन शिविरों में तलवार, बन्दूक़, छुरा, लाठी आदि चलाने आदि की ट्रेनिंग दी जाती है। उत्तर प्रदेश में अब तक अयोध्या, नोयडा, सिद्धार्थनगर आदि जगहों पर ऐसे शिविर लगाये जा चुके हैं।

ये चन्द उदाहरण हैं जो कि बजरंग दल की कार्यपद्धति को दर्शाते हैं। अब यह जानना भी ज़रूरी है कि बजरंग दल जैसे साम्प्रदायिक फ़ासीवादी संगठनों को बनाने और फैलाने के पीछे फ़ासीवादी संघ परिवार का पूरा एजेण्डा क्या है!

फ़ासीवाद मज़दूर वर्ग का सबसे बड़ा शत्रु है और वह सत्ता के अन्दर और बाहर से मज़दूर आन्दोलन पर हमेशा हमले करता रहा है। मुनाफ़े की गिरती दर के संकट से निपटने के लिए दुनिया के तमाम देशों में पूँजीपति वर्ग मज़दूर वर्ग की औसत मज़दूरी को घटाना चाहता है व उसके सारे श्रम अधिकार निरस्त करना चाहता है और इसके लिए वे सबसे प्रतिक्रियावादी, दक्षिणपन्थी, मज़दूर-विरोधी और फ़ासीवादी सरकारों को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में पूँजीपति वर्ग ने भाजपा को चुना, जिसके पीछे संघ जैसा कैडर-आधारित संगठन है। मोदी सरकार के आने के बाद से पूरे देश में महँगाई, बेरोज़गारी अपने चरम पर है। आम जनता के लिए शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी चीज़ें भी पहुँच से दूर होती जा रही हैं। देश की बड़ी आबादी दस-बारह घण्टे काम कर बमुश्किल जीवन निर्वाह कर पा रही है। वहीं दूसरी तरफ़ अडानी-अम्बानी का “देश” तरक़्क़ी की ऊँचाइयों पर है और उन्हें तरक़्क़ी पर पहुँचाने का काम मोदी सरकार ने पिछले नौ सालों में बख़ूबी किया है। एक तरफ़ मोदी सरकार पूँजीपतियों के कर्ज़ माफ़ करती है, तो दूसरी तरफ़ आम जनता के लिए आटा, दाल, तेल, चीनी, टमाटर, आलू, पेट्रोल इत्यादि सब महँगा हो जाता है। जनता के भीतर हालात को लेकर गुस्सा बढ़ता रहता है। तो ऐसे में मोदी के पास संघ के रूप में ब्रह्मास्त्र है, जो जनता के बीच फैले असन्तोष का रुख मोड़ देता है। यानी असल मुद्दों से ध्यान भटका देता है। इसलिए देश स्तर पर दंगे भड़काये जाते हैं, हिन्दू-मुस्लिम व अन्य धर्मों व जातियों के बीच साम्प्रदायिक तनाव फैलाया जाता है, ताकि लोग एकजुट होकर अपने हक़-अधिकार न माँग सकें। ठीक इसी काम को बढ़ावा देने के लिए बजरंग दल का भी जन्म हुआ और मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इनकी गतिविधियों में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ और सत्ता द्वारा इन्हें संरक्षण प्राप्त हो गया।

बजरंग दल का मानना है कि “हिन्दू राष्ट्र” बनना चाहिए। इसका तो यह अर्थ निकलना चाहिए है कि इन्होंने सभी हिन्दुओं की रक्षा का बीड़ा उठाया है। तो आइए बजरंग दल-विश्व हिन्दू परिषद और संघ से कुछ सवाल पूछते हैं। आपको भी जहाँ इनके कार्यकर्ता दिखें और हिन्दू एकता का पाठ पढाएँ उनसे यह सवाल ज़रूर पूछिए:

क्या बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद ने दिल्ली से लेकर गुरुग्राम, मानेसर, धारुहेड़ा या फ़रीदाबाद या देश में कहीं भी मज़दूर आन्दोलन को समर्थन दिया है? जबकि इन औद्योगिक इलाक़ों में सभी संघर्षों में लगभग 90 फ़ीसदी आबादी हिन्दुओं की होती है। याद कीजिए होण्डा, हीरो, मारुति, रीको से लेकर किसी भी मज़दूर आन्दोलन में ये हिन्दुओं के फ़र्ज़ी ठेकेदार कभी नज़र आये हैं?

लाखों की संख्या में ठेका, अस्थायी, दिहाड़ी करने वाले मज़दूरों के पैसे ठेकेदार या मालिक हड़प जाता है, तब ये धर्म के ठेकेदार मदद के लिए सामने क्यों नहीं आते? ऐसे अधिकांश मज़दूरमेहनतकश भी तो हिन्दू ही होते हैं!

लॉकडाउन के समय जब करोड़ों मज़दूर सड़कों पर पैदल चल रहे थे, रोटीपानी के लिए दरदर की ठोकरें खा रहे थे तब यह दल और परिषद कहाँ थी? इनमें भी तो अधिकांश हिन्दू ही थे!

देश भर में करोड़ों मज़दूर लॉज (किराये के कमरों) और झुग्गियों में रहते हुए जानते हैं कि वे कैसे दबड़ेनुमा कमरों में डर और खौफ़ के साए में रहते हैं। कमरे के किराये, महँगाई और इन बदतर हालातों के लिए यदि मज़दूर आवाज़ उठाते हैं, तो सबसे पहले मज़दूरों को दबाने के लिए यह फ़र्ज़ी धर्म के ठेकेदार ही सामने आते हैं और कहीं भी झुग्गियों को तोड़ा जाता है तो ये उसका समर्थन करते हैं। ये कभी मज़दूरों की बेहतर जीवन स्थिति की बात क्यों नहीं करते?

करोड़ों मज़दूर आज अस्थायी ठेके पर काम कर रहे हैं। क्या उसके ख़िलाफ़़ क्या कभी बजरंग दल और तमाम हिन्दू संगठन सामने आये है? 90 फ़ीसदी हिन्दू मज़दूर असुरक्षा (छँटनी, तालाबन्दी) और भय के माहौल में जीते हैं! तब ये लोग कहाँ छिप जाते हैं? संघबजरंग दल या विश्व हिन्दू परिषद हिन्दुओं के भी सच्चे हितैषी नहीं हैं, बल्कि ये अपने पूँजीपति आकाओं के सेवक हैं।

असल में फैक्ट्री मालिकों, ठेकेदारों के पैसों से चलने वाले ये धर्मध्वजाधारी वास्तव में मालिकों की ही सेवा करने के लिए खड़े हैं। आज हर क्षेत्र का पुलिस प्रशासन भी ऐसे हिंसक संगठित गिरोहों को इसलिए फलनेफूलने का मौका देता है ताकि भविष्य में जुझारू मज़दूर आन्दोलन पर हमले करवा सकें या उसको कुचलने के लिए प्रतिक्रियावादी ताक़तों का इस्तेमाल कर सकें। पहले भी मज़दूर आन्दोलनों हड़तालों पर बजरंग दल, विहिप, शिवसेना जैसे साम्प्रदायिक संगठन अपने पूँजीपति आकाओं के इशारों पर हमले करते रहे हैं, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं की हत्याएँ करते रहे हैं।

इसलिए आज तमाम मेहनतकश साथियों, इन्साफपसन्द नागरिकों को ऐसे धर्म के फर्ज़ी ठेकेदारों से सावधान रहना चाहिए। मेहनतकश आबादी के संघर्षों को एकजुट करने के लिए अपने सच्चे साथियों को पहचानना चाहिए। याद रखिए महँगाई, बेरोज़गारी और बदहाली कभी धर्म-जात पूछकर नहीं आती। इसलिए हमें समझना होगा कि धर्म-जात के झगड़े में हम जैसी ग़रीब-मेहनतकश आबादी ही उजड़ेगी, दंगों के नाम पर बेरोज़गार युवाओं को ही चारा बनाया जायेगा। तमाम धर्म के ठेकेदार दूर ए.सी. कमरों में बैठकर फ़ेसबुक लाइव से भाषण देकर आग भड़कायेंगे और नुकसान मेहनतकश आबादी को उठाना पड़ेगा। दंगों की आग पर रोटियाँ सेंककर भाजपा व संघ को कुर्सी मिलेगी और इनके नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़कर मौज करेंगे।

इसलिए शहीदे आज़म भगतसिंह की यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए :

लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्गचेतना की जरूरत है। ग़रीब, मेहनतकशों किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं। इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ करना चाहिए। संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी ज़ंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।

 

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2023


 

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