भगतसिंह जनअधिकार यात्रा : फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ बुनियादी सवालों पर मेहनतकश जन समुदाय को जगाने और संगठित करने की मुहिम

देश का राजनीतिक-सामादिक घटनाक्रम हर दिन इस बात की तस्दीक कर रहा है कि फ़ासीवाद के विरुद्ध ज़मीनी स्तर से एक व्यापक जनान्दोलन खड़ा करके ही उसे पीछे धकेला जा सकता है और फिर निर्णायक शिकस्त दी जा सकती है।

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा ऐसे ही जनान्दोलन की तैयारी की मुहिम है। इस यात्रा का लक्ष्य है आम जनता के मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाना और इसके लिए जनता को जागृत, गोलबन्द और संगठित करना। महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार ने जनता के जीवन को नर्क बना रखा है। पूरे देश में मेहनतकश और निम्न मध्यवर्गीय आबादी जीवन की मूलभूत ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पा रही है। बढ़ती बदहाली की आँच मध्य वर्ग के थोड़े खाते-पीते तबकों को भी महसूस हो रही है। लेकिन इन असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए साम्प्रदायिक नफ़रत के ज़हर और तमाम झूठे मुद्दों और जुमलों को उछाला जा रहा है और थैलीशाहों के मीडिया व संघी प्रचारतंत्र की पूरी ताक़त इसके लिए झोंक दी गयी है।

ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि हम सीधे आम लोगों के बीच जाकर इस झूठे प्रचार का भण्डाफोड़ करें और वास्तविक सवालों पर लोगों को एकजुट करें।

पिछले 10 दिसंबर को कर्नाटक में बेंगलुरु से शुरू हुई भगतसिंह जन अधिकार यात्रा आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, चण्डीगढ़ व पंजाब के 80 से अधिक ज़िलों से गुज़रते हुए 8500 किलोमीटर लम्बी दूरी तय करके 26 फरवरी को दिल्ली पहुँचेगी जहाँ 3 मार्च को इसका समापन होगा। इस दौरान सैकड़ों छोटी-बड़ी सभाएँ की जायेंगी, कन्नड़, तेलुगु, मराठी, पंजाबी, उर्दू और हिन्दी में लाखों की संख्या में पर्चे बाँटे जायेंगे, छह पुस्तिकाएँ वितरित की जायेंगी, पोस्टरिंग और वॉल राइटिंग की जायेगी और इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए स्थानीय लोगों व कार्यकर्ताओं के साथ दर्जनों बैठकें की जायेंगी।

भगतसिंह जन अधिकार यात्रा का यह दूसरा चरण है। पहले चरण में मार्च और अप्रैल में 8 राज्यों में अलग-अलग यात्राएँ निकाली गयी थीं।

बिगुल मज़दूर दस्ता भी इस यात्रा का हिस्सा है। हम अपने सभी पाठकों से इस यात्रा से जुड़ने और इसके लिए हर तरह का सहयोग करने की अपील कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में सभी ब्यौरे नीचे देख सकते हैं।

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा के हमसफ़र बनो!
दूसरा चरण : 10 दिसम्बर, 2023, बेंगलुरु  से  3 मार्च, 2024, नयी दिल्ली – 13 राज्य, 85 ज़िले, 8500 किलोमीटर

भगतसिंह की बात सुनो, नयी क्रान्ति की राह चुनो!
शिक्षा और रोज़गार, हमारा जन्मसिद्ध अधिकार!!

हिन्दूमुस्लिमसिखईसाई, सबको मार रही महँगाई!
जातिधर्म के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो!!

साथियो!

हम ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ के दूसरे चरण में आपके बीच आये हैं। इस यात्रा का लक्ष्य है आम जनता के मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाना और इसके लिए जनता को जागृत, गोलबन्द और संगठित करना। देश में आम मेहनतकश लोगों के जीवन की स्थितियाँ किसी से छिपी नहीं हैं। यह यात्रा 10 दिसम्बर 2023 को कर्नाटक में बेंगलुरु से शुरू होकर देश के 13 राज्यों, 80 से ज़्यादा ज़िलों से होते हुए 8500 किलोमीटर लम्बी दूरी तय करके 3 मार्च 2024 को दिल्ली पहुँचेगी। आप सभी इसका हिस्सा बनें।

महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार ने जनता के जीवन को नर्क के समान बना रखा है। लोग अपने बच्चों को पोषणयुक्त भोजन, स्तरीय चिकित्सा, गुणवत्ता वाली शिक्षा तक मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। हम इन असली मुद्दों पर न सोच पायें, इसके लिए देश के हुक्मरान हमें धर्म और जाति के नाम पर लड़ाने के वास्ते मन्दिर-मस्जिद, आरक्षण के नये-नये जुमलों और अन्धराष्ट्रवादी उन्माद में उलझाते रहते हैं।

सभी लुटेरे हुक्मरानों के समान हमारे देश के हुक्मरान भी हमें इस बात पर यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि हमारी ग़रीबी, बदहाली, बेरोज़गारी, बेघरी, सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा के लिए हम ही ज़िम्मेदार हैं! हम ही नाकारे हैं क्योंकि हर दिन 18 घण्टे काम करने को तैयार नहीं हैं?! क्योंकि हम इतने बच्चे पैदा करते हैं! हमारे देश के हुक्मरान हमें बताते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में आयी मन्दी के कारण भारत में बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ रही है! हमें यक़ीन दिलाया जाता है कि बेरोज़गारी, महँगाई आदि में सरकार की कोई ग़लती नहीं है, मानो ये चीज़ें भूकम्प या सुनामी के समान कोई प्राकृतिक आपदा हों, जिन पर किसी का नियन्त्रण नहीं! लेकिन शासक वर्ग द्वारा पढ़ाई जा रही इस पट्टी में क्या कोई सच्चाई है? बिल्कुल नहीं! ये पट्टी तो हमें इसलिए पढ़ाई जा रही है कि बढ़ती बेरोज़गारी, महँगाई और सामाजिक व आर्थिक असुरक्षा को हम क़िस्मत का लेखा या नियति मान बैठें। सारे लुटेरे हुक्मरान हमेशा यही चाहते हैं।

सच्चाई यह है कि ख़ास तौर पर पिछले 10 वर्षों में भारत की मेहनतकश जनता के जीवन-स्तर और उनकी कार्यस्थितियों में अभूतपूर्व गिरावट आयी है और इसका कारण मौजूदा सरकार की जनविरोधी नीतियाँ हैं। पहले भी तमाम सरकारें देश के मालिकों, ठेकेदारों, भूस्वामियों, दलालों और बिचौलियों के हितों की ही सेवा करती थीं। लेकिन 2014 से मौजूद मोदी सरकार ने धनपशुओं की खुल्लेआम सेवा करने और आम जनता को लूटने के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं। इस सच्चाई को समझना आज बेहद ज़रूरी है।

महँगाई क्यों सारे रिकार्ड तोड़ रही है?

महँगाई क्यों बढ़ रही है? महँगाई बढ़ने का जो ढाँचागत कारण है, जिसके कारण समय-समय पर अलग-अलग वस्तुओं व सेवाओं की क़ीमतें बढ़ती है, वह तो एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें समूचा उत्पादन, विनिमय व वितरण जनता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए योजनाबद्ध तरीक़े से नहीं होता, बल्कि मुट्ठी भर धन्नासेठों की तिजोरियाँ भरने के लिए और अराजक तरीक़े से होता है। ऐसी अराजक व्यवस्था में अलग-अलग समय पर अलग-अलग मालों की क़ीमतें बढ़ती-घटती हैं। लेकिन आज हमारे देश में महँगाई द्वारा सारे रिकार्ड तोड़े जाने के पीछे एक तात्कालिक ठोस कारण है: मोदी सरकार द्वारा एक ओर अमीरज़ादों के हितों की सेवा के लिए उन्हें करों से आज़ादी देना, तमाम रियायतें व छूटें देना और दूसरी ओर आम जनता पर करों के बोझ को बढ़ाते जाना। पिछले 10 सालों में मोदी सरकार ने बड़े-बड़े मालिकों, कम्पनियों, आदि पर टैक्सों को घटाया है, उन्हें ज़मीन, बिजली, पानी, ऋण तक में भारी छूटें दी हैं और आम जनता पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ भयंकर तरह से बढ़ाया है।

2017 से पहले करों से होने वाले कुल सरकारी कर राजस्व का 32 प्रतिशत धन्नासेठों से लिये जाने वाले कारपोरेट टैक्स से आता था। 2023 आते-आते यह 24 प्रतिशत से भी कम हो गया है, जबकि इन धन्नासेठों के मुनाफ़े में इसी बीच भारी इज़ाफ़ा हुआ है। वहीं दूसरी ओर जीएसटी व अन्य शुल्कों द्वारा आम जनता पर करों का बोझ बढ़ा दिया गया है। यह कुल कर राजस्व के आधे से भी ज़्यादा है! पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमतों का लगभग 60 प्रतिशत केवल टैक्स हैं। 2021-22 में केन्द्र सरकार ने 3.73 लाख करोड़ रुपये और समस्त राज्य सरकारों ने मिलकर 2.02 लाख करोड़ रुपये पेट्रोल व डीज़ल पर करों में वसूले। जब पेट्रोल व डीज़ल की क़ीमतों में इतनी भारी बढ़ोत्तरी होती है, तो उसका असर हर माल की क़ीमत पर पड़ता है। उसी प्रकार रसोई गैस की क़ीमतों को भी केन्द्र सरकार ने पिछले 10 वर्षों में दोगुने से भी ज़्यादा बढ़ा दिया, जिसका असर आम आदमी की अर्थव्यवस्था पर सीधे और भयंकर तौर पर पड़ा है।

मोदी सरकार जनता पर टैक्सों का बोझ इसलिए बढ़ा रही है क्योंकि उसे बड़े-बड़े धन्नासेठों को टैक्स में दी गयी भारी छूट की भरपाई करनी है। सरकारी आमदनी पूँजीपतियों को दी जाने वाली छूट से घटती गयी है। नेताओं-मन्त्रियों, सांसदों, विधायकों व बड़े-बड़े नौकरशाहों को मिलने वाली सुविधाओं में कोई कमी न आये, इसके लिए आम जनता पर टैक्सों का बोझ लगातार बढ़ाया गया है। यह हमारे देश में पिछले 10 साल में अभूतपूर्व रूप से बढ़ी महँगाई का असली ठोस कारण है। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है। इसके लिए मौजूदा सरकार की नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं, जिनका मकसद है: पूँजीपतियों को पूजो और आबाद करो, जनता को लूटाे और बरबाद करो।

बेरोज़गारी इस कदर क्यों बढ़ रही है?

हमें हमेशा बताया जाता है कि बेरोज़गारी का कारण बढ़ती जनसंख्या है। यह बकवास है। कोई व्यक्ति सिर्फ पेट लेकर नहीं पैदा होता है, वह हाथ-पाँव लेकर पैदा होता है। उसका श्रम प्रकृति के साथ मिलकर समृद्धि पैदा कर सकता है। सीधी सी बात है: ज़्यादा लोग, यानी ज़्यादा ज़रूरतें, ज़्यादा ज़रूरतें मतलब अधिक उत्पादन की ज़रूरत, अधिक उत्पादन की ज़रूरत यानी अधिक रोज़गार। हमारे देश में पिछले 10 वर्षों में खाद्य उत्पादन में 18.30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। इसी बीच जनसंख्या में 10.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। तो फिर देश में भुखमरी और कुपोषण क्यों बढ़ा है? अगर जनसंख्या ही इन दिक्कतों का कारण होती तो निश्चय ही भुखमरी व कुपोषण कम होने चाहिए थे। साफ़ है: आबादी का मसला केवल बहाना है, वास्तव में आम जनता निशाना है। निश्चय ही, एक शिक्षित समाज में लोग ज़्यादा बच्चे नहीं पैदा करते और यह निर्णय लेना स्त्रियों का जनवादी अधिकार होता है। लेकिन समाज में मौजूद अशिक्षा व संस्कृति के अभाव के लिए भी मौजूदा व्यवस्था ही ज़िम्मेदार है। लेकिन इतना तय है कि भुखमरी, बेरोज़गारी व ग़रीबी के लिए अपने आप में आबादी उत्तरदायी नहीं है। इसे तथ्यों व आँकड़ों से दिखलाया जा सकता है।

बेरोज़गारी बढ़ने का पहला बुनियादी ढाँचागत कारण है मुनाफ़ाखोर व्यवस्था। जहाँ उत्पादन का मकसद आम जनता की बेहतरी, उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति, कामगारों के लिए मानवीय काम करने की स्थितियाँ सुनिश्चित करना न हो, वहाँ बेरोज़गारी तो बढ़ेगी ही!

पिछले 10 वर्षों में बेरोज़गारी द्वारा सारे रिकार्ड तोड़े जाने का कारण है मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था का भयंकर कुप्रबन्धन ताकि अम्बानी व अडानी जैसों की मुनाफ़ाखोरी में कोई कमी न आने पाये। इन्हीं 10 वर्षों में निजीकरण की जो आँधी चली है, उसके कारण ज़बर्दस्त छँटनी हुई है। केवल सरकारी आँकड़ों की बात करें, तो 2016 में 41.2 करोड़ लोगों के पास नौकरी थी, जबकि 2021 में 40.4 करोड़ लोगों के पास ही नौकरी थी। वह भी तब जब नौकरी होने की सरकारी परिभाषा यह है कि अगर पिछले हफ़्ते आपने किसी दिन काम किया है, तो आपको नौकरीशुदा माना जायेगा! ऊपर से मोदी सरकार ने तो नौकरी के आँकड़े जुटाना ही बन्द कर दिया है, ताकि सच्चाई लोगों के सामने न आ सके। असलियत यह है कि अक्टूबर 2023 में ही बेरोज़गारी दर ने फिर से नया रिकार्ड बनाया और 10.1 प्रतिशत से ऊपर चली गयी (स्रोत: सेण्टर फॉर मॉनीटरिंग इण्डियन इकॉनमी)। 2021 तक ही नौजवानों में रोज़गार दर 10.4 प्रतिशत थी, यानी लगभग हर 100 नौजवानों में से 90 बेरोज़गार हैं। मोदी सरकार के 10 साल के राज में ही हर मिनट 3, हर घण्टे 182, और हर दिन 4400 नौकरियाँ घटी हैं। पहले नोटबन्दी और फिर कोविड के दौरान कुप्रबन्धित ढंग से थोपे गये लॉकडाउन ने ख़ास तौर पर जनता की रोज़ी-रोटी को तबाह कर डाला। और उसके बाद भी मोदी सरकार ने बेरोज़गारी से निपटने के लिए कोई कदम उठाने की जगह रेलवे, हवाई अड्डों, बैंकों, बीमा संस्थानों व अन्य सरकारी उपक्रमों के निजीकरण की आंधी को जारी रखा है, श्रम कानूनों को लागू करने वाली श्रम विभाग की मशीनरी को पंगु कर दिया है और श्रम कानूनों तक को समाप्त करने की तैयारी में है।

बेरोज़गारी के लिए हमारे देश में पहले से जारी और मोदी सरकार द्वारा विशेष तौर पर फैलायी गयी ठेका प्रथा भी जिम्मेदार है। एक ठेका, दिहाड़ी या कैजुअल मज़दूर आम तौर पर 10 से 12 घण्टे काम करता ही है, और कहीं-कहीं 14 से 16 घण्टे भी काम करता है। भारत के कुल कामगारों में से 94 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में हैं और अस्थायी ठेका या कैजुअल मज़दूरों के समान ही काम करते हैं। यदि 60 करोड़ से ज़्यादा काम कर रहे लोगों का 94 प्रतिशत 12-12 घण्टे काम कर रहा है, तो केवल उनके लिए श्रम कानूनों को लागू करने का मतलब होगा, करीब 20 से 25 करोड़ नये रोज़गार। लेकिन मोदी सरकार और नारायणमूर्ति जैसे उसके पूँजीपति यार जनता को बता रहे हैं कि रोज़ 12 घण्टे काम करो क्योंकि वे भी करते हैं। हम कहेंगे: आपका कारख़ाना है, आप करो 12 घण्टे काम! जब कारख़ाने खेत, खदान हमारे होंगे तो ज़रूरत होने पर हम भी अपनी मर्जी से कभी 12 घण्टे काम कर लेंगे! अभी हमें 8 घण्टे का कार्यदिवस दो, जो मज़दूर के तौर पर हमारा हक़ है।

बेरोज़गारी के लिए भी मोदी सरकार की निजीकरण, उदारीकरण, ठेकाकरण, कैजुअलीकरण की नीतियाँ और पूँजीपतियों के फ़ायदे के वास्ते किया गया अर्थव्यवस्था का कुप्रबन्धन ज़िम्मेदार है। यह भी कोई भूकम्प, बाढ़, जंगल की आग या सुनामी नहीं है।

भ्रष्टाचार सारी हदों को पार क्यों करता जा रहा है?

जब सरकारें धन्नासेठों को लूट की छूट देती हैं, तो उनके नेता-मन्त्री खुद भी क्यों पीछे रहें? वे भी बहती गंगा में हाथ धोते हैं। और मोदी सरकार के कार्यकाल में तो ‘राम नाम पर लूट मची है, लूट सके तो लूट’ का नारा चल पड़ा है। ‘चाल-चेहरा-चरित्र’ की बात करने वाली भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार का ऐसा नंगा नाच किया कि पुराने पेशेवर भ्रष्टाचारी भी बगलें झाँकने लगें। 10,000 करोड़ रुपये का व्यापम घोटाला, हज़ारों करोड़ का राफेल घोटाला, अडानी घोटाला, नोटबन्दी घोटाला, डीमैट घोटाला, डीडीसीए घोटाला, एनपीए घोटाला…फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि एक किताब भरी जा सकती है। इन घोटालों में जो अरबों-खरबों रुपयों के वारे-न्यारे हुए, वे भी जनता के ही थे। एक तरफ़ तमाम धन्नासेठ और पूँजीपतियों ने अपनी तिजोरियाँ भरीं, तो वहीं सरकार के मन्त्रियों, नेताओं, विधायकों व सांसदों ने तथा बड़े-बड़े अफ़सरान, बिचौलियों व दलालों ने भी कमीशन से जेबें गरम कीं। लेकिन इन सभी घोटालों पर मचे शोर को मोदी सरकार ने न्यायपालिका, मीडिया से लेकर नौकरशाही तक को अपनी जेब में रखकर दबा दिया। गोदी मीडिया ने इसमें ख़ास भूमिका निभायी। गोदी मीडिया के विषय में तो जनता को एक नियम बना लेना चाहिए कि जो भी गोदी मीडिया बोले, उसके उलट को सच मानिये! सिर्फ एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोटाले के ज़रिये जनता की खून-पसीने की कमाई के 2.67 लाख करोड़ रुपये लेकर सरकार के यार तमाम घपलेबाज़ धन्नासेठ भाग चुके हैं। क्या सरकार से मिलीभगत के बिना यह मुमकिन है? असम्भव।

साम्प्रदायिकता, जातिवाद व अन्धराष्ट्रवाद की अफ़ीम क्यों दी जा रही है?

हम ऊपर बताये अपने असली मसलों पर न सोच पायें इसके लिए हमें संघ परिवार, भाजपा व उनकी गोद में बैठा गोदी मीडिया तीन फ़र्ज़ी मसलों में उलझाता है: साम्प्रदायिकता, जातिवाद और अन्धराष्ट्रवाद। कभी मन्दिर, मस्जिद, ‘लव जिहाद’ तो कभी ‘लैण्ड जिहाद’, गोरक्षा की झूठी नौटंकी फैलाकर हमारी धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल अपनी सियासी रोटियाँ सेंकने में किया जाता है, कभी आरक्षण की राजनीति की सिगड़ी गर्माकर मूर्ख बनाया जाता है, तो कभी चीन या पाकिस्तान का फ़र्ज़ी डर दिखाकर अन्धराष्ट्रवाद की लहर फैलाने की कोशिश की जाती है। तीनों के ज़रिये लोगों को बेवकूफ़ बनाया जाता है। अगर चीन से भारत काे ख़तरा है, तो मोदी सरकार के पिछले 5 वर्षों में चीन से भारत में होने वाला आयात 30 प्रतिशत क्यों बढ़ा है? चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 1 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर कैसे चला गया है? उसी प्रकार यदि गोरक्षा को लेकर भाजपा इतनी बेचैन है, तो केरल, उत्तर-पूर्व, गोवा में भाजपा नेता गोमांस की आपूर्ति को बढ़ाने के वायदे क्यों कर रहे हैं? भाजपा के संगीत सोम एक बूचड़खाने के निदेशक मण्डल में क्यों थे, जो कि गोमांस का निर्यात करता है? मोदी सरकार के मातहत भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा गोमांस निर्यातक देश कैसे बन गया? अगर ‘लव जिहाद’ के बारे में भाजपा गम्भीर है तो भाजपा नेताओं शाहनवाज़ हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी, उससे पहले सिकन्दर बख़्त के घरों पर संघी गुण्डों ने हमला क्यों नहीं किया जिन्होंने हिन्दू स्त्रियों से विवाह किया है? भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की बेटी के घर क्यों हमला नहीं किया जिसने एक मुसलमान व्यक्ति से शादी की है? कभी इन सवालों पर आपने सोचा है?

समझने वाली बात…

साफ़ है: ये मसले सिर्फ इसलिए मौजूदा सरकार व संघ परिवार द्वारा उछाले जाते हैं कि हमारे अन्दर अतार्किक साम्प्रदायिक सोच और भावना पैदाकर उसका अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया जाये और हमारा ध्यान बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, ग़रीबी, अशिक्षा, भुखमरी से भटकाया जाये। हममें से कई भोले लोग इस फ़र्जीवाड़े में फँस भी जाते हैं। लेकिन आगे आपसे कोई इन नकली मुद्दों का नाम भी ले, तो उसका सेवा-सत्कार कर उसे दरवाज़ा दिखाएँ। अगर हम बेहतर भविष्य चाहते हैं तो हमें कसम खा लेनी चाहिए कि हम केवल अपने जीवन के ठोस असली मुद्दों पर बात करेंगे। हमें तय कर लेना चाहिए कि हम अपने रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा, आवास के अधिकार, महँगाई और भ्रष्टाचार से मुक्ति के अधिकार, साम्प्रदायिकता व जातिवाद से मुक्ति के अधिकार पर ही बात करेंगे। हमें संकल्पबद्ध हो जाना चाहिए कि इन सभी मसलों पर हम आम मेहनतकश लोग अपने जुझारू आन्दोलन खड़े करेंगे जिनकी कुछ प्रमुख माँगें निम्न होंगी :

हमारी प्रमुख माँगें

  • शिक्षा-रोज़गार-स्वास्थ्य- आवास मौलिक अधिकार घोषित हों। निजीकरण पर रोक लगे। भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून पारित करो, रोज़गार न दे पाने की सूरत में 10,000 रुपये प्रतिमाह बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये। केन्द्र व राज्य सरकारों के सभी ख़ाली पद शीघ्र भरो। ‘अग्निवीर’ योजना को तत्काल रद्द कर सेना में पक्की भरती की व्यवस्था बहाल की जाये।
  • सभी श्रम क़ानूनों को सख़्ती से लागू करो, प्रस्तावित चार ‘लेबर कोड्स’ रद्द करो। ग्रामीण मज़दूरों को भी श्रम क़ानूनों के अन्तर्गत लाया जाये। ‘पुरानी पेंशन स्कीम’ बहाल करो। ठेकेदारी प्रथा ख़त्म कर नियमित प्रकृति के कामों पर पक्के रोज़गार का प्रबन्ध करो।
  • महँगाई पर रोक लगाने के लिए सभी अप्रत्यक्ष करों को समाप्त किया जाये और बढ़ती सम्पत्ति के आधार पर प्रगतिशील प्रत्यक्ष करों की व्यवस्था को मज़बूती के साथ लागू किया जाये।
  • मनरेगा योजना को सख़्ती से लागू किया जाये, इसके तहत पूरे साल का काम देने का प्रावधान किया जाये और इसके काम पर कम-से-कम न्यूनतम वेतन जितनी राशि प्रदान की जाये।
  • ग़रीब और मँझोले किसानों के लिए बीज, खाद, बिजली, आदि पर सब्सिडी की समुचित व्यवस्था हेतु अमीर वर्गों पर विशेष कर लगाये जायें, सिंचाई की सरकारी व्यवस्था और संस्थागत ऋण का भी समुचित प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
  • “सर्वधर्म समभाव” की नकली धर्मनिरपेक्षता की जगह सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य को सुनिश्चित करने के लिए क़ानून लाया जाये। किसी भी नेता या पार्टी द्वारा धर्म, समुदाय या आस्था का सार्वजनिक जीवन में किसी भी रूप में उल्लेख व इस्तेमाल करना दण्डनीय अपराध घोषित किया जाये।
  • छुआछूत ही नहीं बल्कि हर प्रकार से जातिगत भेदभाव को संवैधानिक संशोधन करके दण्डनीय अपराध घोषित किया जाये।
  • चुनावी दलों व सरकार द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगे और इनके पब्लिक ऑडिट व जाँच की व्यवस्था की जाये।
  • स्त्रियों के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक भेदभाव के हर रूप को समाप्त करो, इसके लिए सख़्त क़ानून लाये जायें।
  • धार्मिक व जातिगत वैमनस्य भड़काने वाले तथा साम्प्रदायिक हिंसा व मॉब लिंचिंग में सक्रिय हर प्रकार के संगठनों और दलों पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाकर इन्हें आतंकवादी घोषित किया जाये और इनके नेताओं व गुर्गों पर तत्काल कठोर कार्रवाई की जाये।

 

दोस्तो! उपरोक्त सभी माँगें हमारे जीवन से जुड़ी बुनियादी माँगें हैं। ये व्यावहारिक माँगें हैं। इन्हें पूरा किया जा सकता है। दुनिया के कुछ देशों में इनमें से कई अधिकार जनता को हासिल भी हैं, क्योंकि जनता ने उनके लिए वहाँ संघर्ष किया। यह समाज के क्रान्तिकारी रूपान्तरण की लम्बी लड़ाई का एक आरम्भिक कदम है। इन माँगों के लिए कोई भी चुनावबाज़ पार्टी नहीं लड़ने वाली। वजह यह कि कांग्रेस, आप, सपा, बसपा, शिवसेना, रांकपा, राजद, जदयू, जद(सेकु), माकपा, भाकपा, भाकपा (माले) लिब., बीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, अकाली दल, आदि सभी चुनावबाज़ पार्टियाँ धन्नासेठों, पूँजीपतियों के ही चन्दों पर चलती हैं और अलग-अलग तरह से उन्हीं के लिए नीतियाँ बनाती हैं। इस समय देश के हुक्मरानों को फ़ासीवादी भाजपा की ज़्यादा ज़रूरत है, जो खुलकर तानाशाह तरीक़े से हम पर जनविरोधी नीतियों को थोप सके और हमें धर्म के नाम पर आपस में लड़ा सके।

इसलिए आज देश की मेहनतकश जनता को इन माँगों पर अपने जुझारू जनान्दोलन खड़े करने होंगे, मौजूदा जनविरोधी सरकार को सबक सिखाना होगा और अपने जुझारू आन्दोलन के बूते यह सुनिश्चित करना होगा कि 2024 में आने वाली कोई भी सरकार हमारी इन माँगों को नज़रन्दाज़ न कर सके। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि जो सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखे, उसे उखाड़ फेंकना उसका अधिकार ही नहीं उसका कर्तव्य है। आज शहीदे-आज़म के इस सन्देश पर अमल करने का वक़्त है। आइये, हमारी इस मुहिम में, हमारे इस आन्दोलन में शामिल हों और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष का हिस्सा बनें।

 

भारत की क्रान्तिकारी
मज़दूर पार्टी (RWPI)

 – नौजवान भारत सभा      

दिशा छात्र संगठन      

बिगुल मज़दूर दस्ता

 

सम्पर्क

दिल्ली: 9289498250, 9693469694; उत्तर प्रदेश: 8858288593, 9891951393; हरियाणा: 8685030984;
महाराष्ट्र: 7798364729, 9619039793; बिहार: 8860792320; उत्तराखण्ड: 9971158783; पंजाब: 9888080820; आन्ध्र प्रदेश: 7995828171, 8500208259; तेलंगाना: 9971196111;
चण्डीगढ़: 8196803093

 

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मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2023


 

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