‘एस्मा’ को तत्काल वापस लो!
आँगनवाड़ीकर्मियों की माँगों को पूरा करो!!

बिगुल संवाददाता

आन्ध्र प्रदेश की आँगनवाड़ी कर्मियों के संघर्ष पर एस्मा थोपने के ख़िलाफ़ दिल्ली के आन्ध्र प्रदेश भवन पर 15 जनवरी को संयुक्त विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस विरोध प्रदर्शन में दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) के अलावा अन्य यूनियनें और संगठन शामिल थे। 

आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का अपनी जायज़ माँगों के लिए संघर्ष आज देश के कई राज्यों में जारी है। आन्ध्र प्रदेश में भी आँगनवाड़ी कामगार बीते 27 दिनों से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर थीं। उनकी माँगों में से प्रमुख माँग न्यूनतम मज़दूरी की है। इसके अलावा ग्रेच्युटी, पेंशन व पक्के कर्मचारी के दर्जे की माँग को लेकर भी वे संघर्षरत हैं। मालूम हो कि आन्ध्र सरकार ने महिलाकर्मियों की जायज़ माँगों को पूरा करने की बजाय उनकी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए ‘एस्मा’ (एसेंशियल सर्विसेज मेंटेनेन्स एक्ट) जैसे दमनात्मक क़ानून का इस्तेमाल किया और उनकी हड़ताल पर छह महीने का प्रतिबन्ध लगा दिया।

यह पहली बार नहीं हुआ है जब आँगनवाड़ीकर्मियों की हड़ताल पर ‘एस्मा’ जैसा काला क़ानून थोपा गया हो! इससे पहले भी दिल्ली की 22,000 आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों की 38 दिनों तक चली शानदार हड़ताल को तमाम तरह से तोड़ने में विफल रही राज्य और केन्द्र सरकार ने मिलकर हड़ताल पर ‘एस्मा’ के जरिये प्रतिबन्ध लगाया।

एस्मा/हेस्मा का क़ानून अपने आप में ही बेहद अलोकतांत्रिक और मज़दूर-विरोधी है और आँगनवाड़ीकर्मियों पर इसका इस्तेमाल तो ग़ैर-क़ानूनी भी है।

क़ानूनन तो यह केवल सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है और आँगनवाड़ीकर्मियों को तो सरकार कर्मचारी मानती नहीं है फिर उनपर इसका इस्तेमाल क्या दिखलाता है!? और अगर आँगनवाड़ीकर्मियों द्वारा दी जा रहीं सेवाएँ आवश्यक सेवाएँ हैं, तो फिर उन्हें कर्मचारी का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा??

आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों को वॉलण्टियर के नाम पर बेगार खटवाने वाली तमाम राज्य सरकारें और केन्द्र में बैठी भाजपा सरकार ने उनके संघर्ष को कुचलने का यह नया तरीक़ा निकाला है।

‘एस्मा’ लगाने के पीछे आवश्यक सेवाओं के बाधित होने और बच्चों व औरतों की देखरेख के कार्य को हानि पहुँचाने का बचकाना तर्क देने वाली ये सरकारें भूल गयी हैं कि आँगनवाड़ीकर्मी ख़ुद भी ग़रीब मेहनतकश और निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से आने वाली औरतें ही हैं, जिन्हें अपना घर भी चलाना होता है। उन्हें चार हज़ार (हेल्पर के लिए) और आठ हज़ार (वर्कर के लिए) की ख़ैरात देकर दिनों-रात खटाया जाता है और इतनी मामूली राशि भी सभी राज्यों में समय से नहीं मिलती है।

यह बात आज बिल्कुल साफ़ है कि आँगनवाड़ी की पूरी स्कीम चलाने के पीछे सरकार की मंशा यह है कि आम तौर पर केयर वर्क के ज़रिये मज़दूरों-मेहनतकशों की श्रमशक्ति का मूल्य घट सके और उसकी पुनरुत्पादन की लागत को कम किया जा सके और वह भी इन्हीं मज़दूरों-मेहनतकशों के घरों की औरतों के श्रम का दोहन करके। इस लूट और शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर कहीं पुलिस के दम पर तो कहीं इन दमनकारी क़ानूनों का इस्तेमाल कर उन्हें चुप कराने की हरसम्भव तैयारी इन सरकारों ने कर रखी है। भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से मज़दूरों-मेहनतकशों के हक़ों के ऊपर न सिर्फ़ हमले तेज़ हुए हैं बल्कि उनके बचे-खुचे हक़ों को भी छीना जा रहा है और बाक़ी राज्य सरकारें भी इसमें पीछे नहीं हैं।

दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन की शुरुआत आन्ध्र प्रदेश की जगनमोहन रेड्डी सरकार के दमनात्मक रवैये के ख़िलाफ़ नारों से की गयी। आगे बात रखी गयी कि आज कैसे देश के अलग-अलग राज्यों में आँगनवाड़ीकर्मी अपनी वाजिब माँगों को लेकर सड़कों पर संघर्षरत हैं, लेकिन तमाम चुनावबाज़ पार्टियों की सरकारें उनके आन्दोलन को कुचलने का काम कर रही हैं। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन (DSAWHU) की प्रवक्‍ता प्रियम्वदा ने कहा कि अपने तमाम हथकण्डे इस्तेमाल करने के बाद शासक वर्ग उन्हीं हड़तालों के विरुद्ध एस्मा लगाने पर मजबूर होता है जिनकी फ़ौलादी एकजुटता को वह तोड़ नहीं पाता। आन्ध्र सरकार द्वारा आँगनवाड़ीकर्मियों की हड़ताल पर लगाया गया एस्मा इसी बात को पुष्ट करता है। 

प्रियम्‍वदा ने कहा, “हम आन्ध्र प्रदेश की हमारी संघर्षरत बहनों की माँगों का बिना शर्त समर्थन करते हैं और जगमोहन सरकार के इस महिला-मज़दूर विरोधी क़दम की कड़ी शब्दों में भर्त्सना करते हैं। हम यह माँग करते हैं कि एस्मा/हेस्मा जैसे काले क़ानून को फ़ौरन रद्द किया जाये और आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की सभी माँगों को तत्काल पूरा किया जाये। उन्हें पक्के कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये। ईएसआई, पीएफ़ व पेंशन जैसी सभी सुविधाएँ मुहैया करायी जाएँ।”

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2024


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments