भारत जोड़ो न्याय यात्रा की असलियत

केशव

‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद पिछले 14 जनवरी से कांग्रेस ने राहुल गाँधी के नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ शुरू की है। इस यात्रा में जहाँ एक ओर अपनी अवसरवादी राजनीति का परिचय देते हुए तमाम नक़ली लाल झण्डे वाली पार्टियाँ कांग्रेस की गोद में जाकर बैठ चुकी हैं, वहीं लेफ़्ट लिबरल जमात भी राहुल गाँधी की नैया पर सवार होकर फ़ासीवाद के ज्वार से पार पाने के शेखचिल्ली के सपने देख रही है। 6,700 किलोमीटर लम्बी यह यात्रा पिछले 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई जो कि आने वाले मार्च के महीने में मुम्बई में ख़त्म होगी। फ़ासीवादी निज़ाम किस प्रकार सारे पूँजीवादी जनवादी आधिकारों की धज्जियाँ उड़ा देता है, इसका नमूना भी हमें पिछले 14 जनवरी को देखने को मिला, जब मणिपुर की बिरेन सरकार ने राहुल गाँधी की यात्रा को इम्फ़ाल से शुरू करने से रोक दिया। सर्वहारा वर्ग किसी के भी जनवादी अधिकार का समर्थन करता है, सिवाय फ़ासीवादियों के जो जनवाद के धुर विरोधी हैं। वजह यह कि जब भी फ़ासीवादी जनता के जनवादी अधिकारों पर हमला करते हैं, तो सर्वहारा वर्ग की चुप्पी फ़ासीवादियों के “दमन के अधिकार” का वैधीकरण बन जाती है और इस “अधिकार” का सर्वाधिक इस्तेमाल तो हमेशा हम मज़दूरों के ही ख़िलाफ़ होता है। राहुल गाँधी को अपनी यात्रा निकालने का पूरा अधिकार है और निश्चय ही भाजपा सरकार अपनी घबराहट में उसमें जगह-जगह व्यवधान डालने का प्रयास कर रही है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या “आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय” की बात करती हुई इस यात्रा से मज़दूर वर्ग को फ़ासीवादी निज़ाम को शिकस्त देने की रत्तीभर भी उम्मीद करनी चाहिए या नहीं? हमें यह समझ लेना चाहिए कि आज भारत में कोई भी पूँजीवादी दल इस फ़ासीवादी उभार को निर्णायक तौर पर परास्त नहीं कर सकता है। इनकी वजहों पर हम नीचे चर्चा करेंगे।

अगर हम यह मान भी लें कि इण्डिया गठबन्धन इस बार चुनाव में एनडीए को हरा दे, जिसकी सम्भावना काफ़ी कम है, फिर भी कांग्रेस कुछ धीमी रफ्तार से और कुछ कल्याणवाद के साथ अन्ततः उन्हीं आर्थिक नीतियों को लागू करेगी, जिसे भाजपा धड़ल्ले से, नंगई से और तानाशाहाना तरीके से लागू कर रही है। कांग्रेस ने कई जगहों पर इस बात को स्पष्ट किया है। साथ ही कांग्रेस का पिछला कार्यकाल और इस पार्टी को पूँजीपतियों से मिलने वाली फण्डिंग इस बात को पुख़्ता करने के लिए काफ़ी है, हालाँकि आज आर्थिक संकट के दौर में भाजपा और मोदी पूँजीपति वर्ग के चहेते हैं और उनको मिलने वाली फण्डिंग के सामने कांग्रेस को मिलने वाली फण्डिंग आपको सरस्वती पूजा के चन्दे जैसी लगेगी। लेकिन यह भी सच है कि पूँजीपति वर्ग कांग्रेस को भी आर्थिक समर्थन दे रहा है। पूँजीपति वर्ग का पूँजीवादी बहुदलीय जनवाद में यह चरित्र होता है, कि किसी भी वक्त किसी एक बुर्जुआ राजनीतिक नुमाइन्दे को वरीयता देते हुए वह कई बुर्जुआ राजनीतिक नुमाइन्दों को पालता है, जिन्दा रखता है। फ़ासीवाद आज उसकी ज़रूरत है। इसके बावजूद अगर कोई कांग्रेस से जनता के लिए “आर्थिक न्याय” की उम्मीद करता है, तो वह आज भी किसी मुग़ालते में जी रहा है। इसके अलावा ऐसा हो सकता है कि जनवादी आधिकारों पर आज यह फ़ासीवादी निज़ाम जो हमले कर रहा है इसमें थोड़ी कमी आये, लेकिन आज के उदाहरण भी इसके कुछ अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। हाल में ही तेलंगाना में, जहाँ कांग्रेस सरकार सत्ता में आयी है, राम मन्दिर के लिए संघ द्वारा फैलाये गये उन्मादी शोर के बीच बाबरी मस्जिद विध्वंस की असलियत दिखाती हुई एक फ़िल्म स्क्रीनिंग को संघ द्वारा रोकने की कोशिश की गयी। इसके बाद तेलंगाना पुलिस ने उल्टा स्क्रीनिंग आयोजित करने वाले लोगों पर ही धाराएँ लगा दीं। इसलिए हमें यह समझना होगा कि आर्थिक संकट के इस दौर में पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े को बरकरार रखने के लिए फ़ासीवाद फ़र्क के बावजूद कांग्रेस भी जनता पर दमन का चक्र चलाने से पीछे नहीं हटेगी।

दूसरा, इस बात की भी उम्मीद करना हास्यास्पद होगा कि कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद सड़कों पर संघी तत्त्वों की गुण्डागर्दी कम हो जायेगी, क्योंकि जनता की एकजुटता पर लगाम लगाने के लिए कांग्रेस को भी मज़हबी राजनीति की ज़रूरत पड़ती है। और राम मन्दिर का ताला खुलवाने से लेकर ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं। अगर वह सीधे ऐसी मज़हबी राजनीति नहीं करती, तो वह साम्प्रदायिक राजनीति करने वाली फ़ासीवादी शक्तियों पर कोई निर्णायक रोक भी नहीं लगाती। क्योंकि पूँजीपति वर्ग को सत्ता में या सत्ता से बाहर फ़ासीवादी शक्तियों की आवश्यकता है क्योंकि ये शक्तियाँ राजनीतिक तौर पर जनता की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस ने यह वायदा किया था कि वह बजरंग दल और विहिप जैसे संगठनों को बैन करेगी, लेकिन सत्ता में पहुँचने के बाद कांग्रेस सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार भी फ़ासीवादी गिरोह को ज़ंजीर में बंधे कुत्ते की तरह इस्तेमाल करेगी। इसके साथ ही यह भी समझना ज़रूरी है कि अगर इस बार चुनाव में कांग्रेस अगर सत्ता में आ भी गयी तो आर्थिक संकट के गहराने के साथ भारत का पूँजीपति वर्ग आने वाले चुनावों में फिर से फ़ासीवादी ताक़तों का ही चयन करेगा और फ़ासीवाद पहले से अधिक आक्रामक रूप में सामने आयेगा। हालाँकि यह बात दीगर है कि इण्डिया गठबन्धन ख़ुद ही लड़खड़ाते हुए चल रहा है और उसके जीतने की उम्मीद फिलहाल कम दिख रही है।

आज के दौर में किसी भी रूप में कांग्रेस या किसी पूँजीवादी पार्टियों के गठबन्धन नेतृत्व में फ़ासीवादी ताक़तों को निर्णायक रूप में परास्त नहीं किया जा सकता। हाँ, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद एक सम्भावना यह हो सकती है कि क्रान्तिकारी ताक़तों को कुछ मोहलत मिले। लेकिन यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। मज़दूर वर्ग को यह समझ लेना चाहिए कि फ़ासीवाद कभी भी चुनाव के रास्ते से नहीं हराया जा सका है। यह टुटपुँजिया वर्ग का एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन होता है, जो बड़ी पूँजी की सेवा करता है। इसलिए चुनावी रास्ते से इसे किसी भी रूप में नही हराया जा सकता। इसके लिए मज़दूर वर्ग को स्वतन्त्र क्रान्तिकारी पार्टी के निर्माण के साथ एक जुझारू क्रानितकारी जनआन्दोलन खड़ा करना होगा। तभी फ़ासीवाद को निर्णायक तौर पर शिकस्त दी जा सकती है। आज इसकी शुरुआत व्यापक मेहनतकश जनता को रोज़गार और महँगाई, शिक्षा और चिकित्सा के मसले पर अपने जुझारू जनान्दोलनों को खड़ा करने से करनी होगी।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2024


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments