लाइफ़ लौंग (धारूहेड़ा) के कारख़ाने में हुए भयानक विस्फोट में 16 मज़दूरों की मौत
अगर हम लड़ते नहीं, तो पूँजीवाद हमें ऐसी ही अमानवीय मौतें देता रहेगा

शाम मूर्ति

पिछले 16 मार्च को शाम क़रीब 5:50 बजे धारूहेड़ा (जिला रेवाड़ी, हरियाणा) में स्थित दोपहिया व चार पहिया वाहनों के लिए कलपुर्जे बनाने वाली एक वेण्डर कम्पनी – लाइफ लौंग इण्डिया लिमिटेड के प्लाण्ट में डस्ट कलेक्टर में भयानक विस्फोट हुआ। इसकी वजह से आग लगी और अनेक मज़दूर उसकी चपेट में आकर झुलस गये। 16 ठेका मज़दूरों की मौत हो गयी और 50 से अधिक गम्भीर रूप से घायल हो गये। विस्फोट इतना भयंकर था कि कई किलोमीटर तक इसकी आवाज़ सुनायी दी। आसपास की कम्पनियों में खिड़की व दरवाज़े के शीशे तक टूट गये।

इस हादसे वाली जगह पर काम करने वाले कई मज़दूरों ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर आग लगने का कारण बताया। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी दो दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। बार-बार इसकी शिकायत करने के बावजूद डस्ट कलेक्टर से लेकर अन्य कमियों व सुरक्षा मानकों का उल्लंघन पहले से जारी था। वहाँ पर कुल चार डस्ट कलेक्टरों में से सिर्फ़ एक ही काम कर रहा था और उस चालू डस्ट कलेक्टर की भी मानकों के आधार पर नियमित सर्विस नहीं होती थी। न ही इनकी कोई ऑडिट रिपोर्ट उपलब्ध है। यहाँ तक कि चारों डस्ट कलेक्टर आईएसआई मार्क के हैं या नहीं, इस पर भी सन्देह है। इसके अलावा चारों डस्ट कलेक्टरों में उचित दूरी बनाये रखने के बजाय, उन्हें क़रीब-क़रीब रखा गया था। साथ ही कई बिजली के तार खुले थे, जो सुरक्षा के लिहाज़ से आपराधिक लापरवाही है। इन कमियों के मौजूद रहने के साथ ही सोने में सुहागा यह कि कार्यस्थल पर लेआउट के अनुपात को नज़रन्दाज़ करते हुए कम जगह में ज़्यादा मशीनें लगायी गयी थीं व ज़्यादा सामान रखा गया था। इसके कारण इतनी कम जगह बची थी कि वहाँ से आने-जाने में अवरोध पैदा हो रहा था और इसी लिए विस्फोट होने के बाद मज़दूर जल्दी से बाहर नहीं निकल पाये और अनेक मज़दूर आग से बुरी तरह झुलस गये।

घायल मज़दूरों में कुछेक झुलसने के बावजूद किसी तरह रेंगकर, कुछेक नंगे बदन व कराहते हुए बाहर आ रहे थे। वहीं कुछेक झुलसे मज़दूरों के कपड़े उतारते और दवा लगाते हुए उनके शरीर की चमड़ी पपड़ी की तरह निकल रही थी। बहुत ही भयावह दृश्य था।

लाइफ लौंग इण्डिया लिमिटेड फैक्ट्री का यह प्लाण्ट गुड़गाँव से जयपुर तक फैली हरियाणा-राजस्थान की औद्यौगिक पट्टी में स्थित है। यहाँ देश में विभिन्न ऑटो सेक्टर समेत औद्योगिक सेक्टरों का हब बनाया जा रहा है। यह वेण्डर कम्पनी ऑटो सेक्टर से लेकर इलेक्ट्रिक सेक्टर की लगभग 9 विभिन्न मदर व वेण्डर कम्पनियों के लिए पुर्जों का निर्माण करके सप्लाई करती है। इनमें हीरो, जनरल मोटर्स, लुकास टीवीएस लिमिटेड तथा पैनासोनिक, एक्साइड, लेग्रान्दे आदि शामिल हैं। इसका दूसरा प्लाण्ट हरिद्वार (उत्तराखण्ड) और तीसरा गुजरात में है। लाइफ लौंग कम्पनी का देश-विदेश में 12,000 करोड़ का कारोबार है। तब भी सुरक्षा मानकों में कटौती! इस पर कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?

यह बात भी गौरतलब है कि धारूहेड़ा जैसे औद्यौगिक इलाक़े में लाखों मज़दूर काम करते हैं और अक्सर गम्भीर दुर्घटनाएँ होती रहती हैं लेकिन धारूहेड़ा में अभी तक कोई ट्रॉमा सेण्टर व बड़ा अस्पताल नहीं है। नतीजतन इलाज के लिए घायल मज़दूरों को रेवाड़ी के अलावा रोहतक पीजीआई तथा दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल ले जाना पड़ा। तब भी 16 मज़दूर बच नहीं सके। ज़्यादातर मृतक व घायल ठेका मज़दूर यूपी, बिहार, दिल्ली के रहने वाले प्रवासी मज़दूर हैं। दो मज़दूरों (40+) को छोड़कर बाक़ी के मज़दूर युवा थे। इसमें कई नवविवाहित युवा मज़दूर भी थे जिनकी ज़िन्दगियों को मालिक के मुनाफ़े ने लील लिया।

इस दुर्घटना को महज़ लापरवाही कहना इस पर आपराधिक लीपापोती के समान है। वास्तव में यह नियमों व मानकों के उल्लंघन का एक अपराधिक मामला है। महज़ हल्की धाराओं के तहत कम्पनी के मालिकान और प्रबन्धन को खुला छोड़ना आने वाले दिनों में और नयी और बड़ी दुर्घटनाओं की ज़मीन तैयार करेगा। दोषियों को गिरफ़्तार न करना व कोई कड़ी कार्रवाई न करना मालिक वर्ग के प्रति सरकार और राज्यसत्ता की वर्गीय पक्षधरता ही दिखाता है।

मोदी सरकार मालिकों व प्रबन्धन के प्रति ऐसे अपराधों पर कार्रवाई के नियमों और क़ानूनों को यह बोलकर ख़त्म कर रही है कि इससे निवेशक हतोत्साहित हो जायेंगे! वास्तव में, तो पहले भी ये नियम और प्रावधान बेहद कमज़ोर और निष्प्रभावी थे, लेकिन अब उन्हें भी ख़त्म करने का काम मोदी सरकार कर रही है। यह अनायास नहीं है कि इन्हीं अरबपति कम्पनियों और पूँजीपतियों से भाजपा को इलेक्टोरल बॉण्ड के ज़रिये करीब सात हज़ार करोड़ रुपये का चन्दा मिला है! मज़दूरों को इस बात को गहराई से समझना चाहिए। और यह भी समझना चाहिए कि यही वजह है कि मोदी सरकार जनता को हिन्दू-मुसलमान के झगड़े और नकली गर्व और नकली शान की राजनीति में क्यों उलझा रही है।

दूसरी बात, कम्पनी के प्लाण्ट में कार्यरत मज़दूरों की संख्या 900 बतायी जा रही है, जबकि वास्तव में वहाँ एक ही जगह पर दो प्लाण्ट दिखाये जा रहे हैं। इसका घटना के रिकार्ड में कहीं जिक्र नहीं किया गया। वास्तव में दिखाये गये दोनों प्लाण्ट एक ही जगह पर हैं, इस तरह देखा जाये तो प्लाण्टों में मज़दूरों की संख्या दोगुनी है। इसमें 90% से ऊपर ठेका मज़दूर देखे जा सकते हैं। यानी बड़े स्तर पर श्रम क़ानूनों के उल्लंघन का मामला दर्ज होना चाहिए लेकिन ऐसा हुआ कि नहीं इसकी भी कोई जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है।

इस समूची औद्योगिक पट्टी में देश में ऑटो सेक्टर के कुल उत्पादन का क़रीब 50 प्रतिशत उत्पादन होता है। यहाँ 90 प्रतिशत मज़दूर ठेका, पीस रेट व दिहाड़ी पर काम करते हैं। स्थायी प्रकृति के काम पर हेल्पर/अस्थायी भरती दिखाकर मशीनों पर दशकों तक खटाया जाता है। यहाँ पर कोई नियम-क़ायदा काम नहीं करता है। ऐसे में, यहाँ होने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं की स्थिति कितनी भयंकर होगी इसका सहज ही अन्दाज़ा लगा सकता है।

ऐसे ख़तरनाक कार्यों के लिए सबसे अरक्षित मज़दूरों को (ठेका, दिहाड़ी, पीस रेट आदि) काम पर लगाया जाता है। यानी जिन्हें स्थायी प्रकृति के काम के लिए भरती दस्तावेज़ों में हेल्पर दिखाया जाता है। जबकि ठेका क़ानून अधिनियम, 1970 के तहत उन्हें सिर्फ़ स्थायी नौकरी के लाभ से वंचित करने के लिए अनुबन्ध श्रमिक (ठेका मज़दूर) नहीं माना जा सकता है। इसलिए संविदा-अस्थायी मज़दूरों के स्थायीकरण को प्राथमिक तौर पर लागू करवाने की सिफारिश कई बार कोर्ट के औपचारिक फैसले तक करते हैं। ऐसे में सुरक्षा मानकों व श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाली लाइफ लौंग समेत सभी कम्पनियों पर सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन विडम्बना यह है कि कोर्ट के जारी आदेशों के बावजूद अभी तक उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। उल्टा ठेका प्रथा को ही बढ़ावा देते हुए नियमित प्रकृति पर अनियमित यानी ठेका श्रमिकों की भर्ती लाइफ लौंग समेत हर जगह की जा रही है। नये लेबर कोड के अनुसार तो मालिकों को मज़दूरों को निचोड़ने व जवाबदेही से छूट पर छूट दी जाने की पूरी तैयारी मोदी सरकार द्वारा की जा रही है। पहले के संघर्षों की बदौलत हासिल श्रम क़ानूनों को क़दम-ब-क़दम कमज़ोर व ख़त्म किया जा रहा है। इसके अलावा, कोई यूनियन न होने के चलते व रोज़गार असुरक्षा के चलते अस्थायी मज़दूरों के लिए खुलकर विरोध कर पाना मुश्किल होता है। समूचे सेक्टर के मज़दूरों की फ़ौलादी एकजुटता के बूते ही अपने अधिकारों के लिए लड़ पाना ठेका व अन्य अस्थायी मज़दूरों के लिए मुमकिन है।

जब ऐसी दुर्घटनाएँ होती हैं तो मौक़े पर पहुँचे तमाम मन्त्री व नेता इन मौतों पर घड़ियाली आँसू बहाते हैं। गुस्से को शान्त करने के लिए नेताशाही लीपापोती करने के लिए कुछ राहत, मुआवज़े, “सख़्त जाँच” के दिखावटी आदेशों की घोषणा कर मामले को ठण्डा करने की कोशिश करते हैं। पूँजीपतियों के इन नुमाइन्दों के लिए मज़दूरों की मौत महज़ एक संख्या है। सभी पार्टियों के बहुत से नेता-मन्त्री स्वयं कारख़ाना-मालिक हैं और किसी श्रम क़ानून को लागू नहीं करते, मज़दूरों को कोई सुरक्षा उपकरण नहीं देते हैं। सच्चाई यह है कि मज़दूरों की मौत के ज़िम्मेदार कोई और नहीं बल्कि फैक्टरी मालिक और उनके चन्दे से चलने वाली इन्हीं पूँजीवादी पार्टियों की सरकारें हैं। इन्हीं मालिकों, पूँजीपतियों के पैसे से तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं। बदले में वे ही इस हत्या, लूट और शोषण को क़ानूनी ज़ामा पहनाते हैं।

लाइफ लौंग की दुर्घटना को महज़ लापरवाही कहना इस पर पर्दा डालने के समान है। वास्तव में यह मालिकों की मुनाफ़े की अन्धी हवस का नतीज़ा है। ये हादसे दर्शाते हैं कि मालिकों के लिए मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं है, इसलिए कारख़ानों में सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं होते। आख़िर क्यों कारख़ाने मौत के कारख़ाने बन रहे हैं? आख़िर क्यों हरियाणा से लेकर देश भर में कारख़ानों समेत कार्यस्थलों में आग व भयानक दुर्घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं? इसे समझे बिना आगे की संघर्ष की दिशा और व्यापक मज़दूरों की सही लामबन्दी सम्भव नहीं है।

कार्य स्थलों पर दुर्घटनाओं के बढ़ने का बुनियादी कारण

कार्यस्थलों पर दुर्घटनाओं के बढ़ने का बुनियादी कारण मौजूदा पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था में आपसी प्रतियोगिता के चलते मुनाफ़े की घटती औसत दर का संकट है। इसके कारण हर मालिक अपनी लागत को कम-से-कम करने का प्रयास करता है, ताकि अपने मुनाफ़े की दर को बढ़ा सके। हर मालिक अपने मुनाफ़े को बरकरार रखने के लिए मज़दूरों से अधिक से अधिक काम करवाता है और मज़दूरों की ज़रूरतों को पूरा करने वाले ख़र्च कम कर देता है। यही कारण है कि मुनाफ़े का मार्जिन बढ़ाने के लिए सुरक्षा प्रबन्धों में कटौती की जाती है। समय पर जाँच व सर्विस नहीं होती, मशीनों से सेंसर हटा दिये जाते हैंं। इसका ख़ामियाज़ा मज़दूर वर्ग को निर्मम व असुरक्षित परिस्थितियों में काम करके और अक्सर दर्दनाक तरीक़े से अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है।

देश के किसी भी राज्य में कारख़ानों में सुरक्षा के कोई पुख़्ता इन्तज़ाम नहीं हैं। बड़े हादसों की ख़बरें मीडिया की सुर्ख़ियाँ एक-दो दिन बन जाती हैं। छोटे हादसे तो ख़बर भी नहीं बनते। इन हादसों की जाँच-पड़ताल होती ही नहीं या उसके बाद शायद ही कोई जाँच रिपोर्ट लोगों के सामने रखी गयी हो या दोषियों को सज़ा हुई हो!

तात्कालिक तौर पर क्या किया जाये? कहाँ से शुरुआत की जाये?

पहले हमको जानना होगा कि सुरक्षा के हमारे अधिकार क्या हैं? ऐसी दुर्घटनाओं पर रोकथाम तभी सम्भव होगी जब हम अपनी व्यापक वर्गीय एकजुटता के ज़रिये कारख़ानों के प्रबन्धन के साथ-साथ उन पर निगाह व नियन्त्रण रखने वाले विभागों पर दवाब बनायें। अगर हम चाहते हैं कि आगे ऐसी घटनाओं को दोहराया न जाये तो हमारे पास एकजुट होने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इस घटना में भी अभी तक मालिक पर कोई कारवाई नहीं हुई है।

धारूहेड़ा में ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की ओर से मज़दूरों को साथ लेकर श्रम विभाग ज़िला रेवाड़ी को मुआवज़े, सुरक्षा व दोषियों पर कार्रवाई के लिए ज्ञापन भी दिया गया। इसके अलावा उपायुक्त रेवाड़ी, हरियाणा व केन्द्रीय श्रम मन्त्रालय, मुख्यमन्त्री हरियाणा व प्रधानमन्त्री को शिकायत की जा चुकी है। यूनियन द्वारा रिहायशी बस्ती में जाकर कुछ मज़दूरों की एमएलसी करवाने में भी मदद की गयी।

इस घटना में सभी मज़दूरों को न्याय मिले इसके लिए लगातार प्रशासन व सरकार पर दबाव बनाये रखना होगा। ताकि भविष्य में भी कारख़ानों में जारी ठण्डी हत्याओं पर रोक लगाने के लिए तैयारी रहे। अगर अपने आपको सुरक्षित रखना है तो हमें स्थायी एकता बनानी होगी। यानी हमें सही और क्रान्तिकारी यूनियन से जुड़ना होगा और यूनियन का सदस्य बनना होगा। ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ऐसी ही एक यूनियन है। मज़दूरों को इसकी सदस्यता लेनी चाहिए और इसके ज़रिये समूचे औद्योगिक सेक्टर के मज़दूरों की एकजुटता स्थापित करनी चाहिए। वरना सिर्फ़ गुस्सा होने, रोने-धोने से निराशा ही हाथ लगेगी। आज यूनियन के तहत व्यापक जुझारू एकजुटता के ज़रिये ही हम इस अन्याय, शोषण, लूट व उत्पीड़न पर लगाम लगा सकते हैं। हमें अपनी प्रमुख माँगों को व्यापक मज़दूर आबादी के बीच ले जाना होगा, उन्हें जागरूक, लामबन्द और संगठित करके प्रबन्धन, प्रशासन व सरकार पर लगातार दवाब बनाने के सिवाये कोई दूसरा रास्ता नहीं है। ये माँगें इस प्रकार हैं :

  1. हर कम्पनी सभी कारख़ानों में मानकों के अनुरूप सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम सुनिश्चित करे।
  2. सभी कार्यस्थलों पर सुरक्षा क़ानूनों समेत सभी श्रम क़ानूनों को तत्काल सख़्ती ले लागू किया जाये।
  3. दोषी मालिक/प्रबन्धन व ठेकेदारों के अलावा ज़िम्मेदार लेबर इंस्पेक्टर व श्रम विभाग पर तत्काल सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाये।
  4. मृतक मज़दूर के परिवार को 50 लाख व घायल मज़दूरों के परिवार को 20 लाख रुपये मुआवज़ा दिया जाये।
  5. सरकार की तरफ़ से तत्काल राहत राशि पीड़ितों व उनके परिवार के सदस्यों को दी जाये।
  6. कम्पनी में ठेका प्रथा उन्मूलन एवं विनियमन एक्ट (1970-1971) के उल्लंघन पर सख़्ती से रोक लगायी जाये और इसका उल्लंघन करने वाली कम्पनी पर सख़्त कार्रवाई की जाये।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2024


 

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