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विज्ञान कांग्रेस में संघी विज्ञान के नमूने

भारतीय विज्ञान कांग्रेस में जो हुआ वह अपने आपमें कोई अपवाद नहीं है। चारों ओर चाहे स्कूलों में पढ़ाये जाने वाली किताबों में इतिहास को बदलने की बात हो या विज्ञान के नाम पर संघी अविज्ञान और झूठों का प्रचार यह सब संघ के एक बड़े एजेण्डे के भीतर एकदम फिट बैठता है। आज का भारत भुखमरी, बेरोज़गारी, ग़रीबी और बीमारी को लेकर सवाल न करें और अपने आने वाले कल के बारे में न सोचे, इसीलिए उसे एक ऐसे सुनहरे अतीत की तस्वीर दिखायी जाती है, जो कभी थी ही नहीं। एक फन्तासी रची जाती है कि वैदिक काल में जब भारत एक महान हिन्दू राष्ट्र था तब यहाँ अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धियाँ थीं, जो आज इसीलिए नहीं हैं, क्योंकि भारत एक हिन्दुत्ववादी राष्ट्र नहीं है।

प्रधानमन्त्री आवास योजना की हक़ीक़त – दिल्ली के शाहबाद डेरी में 300 झुग्गियों को किया गया ज़मींदोज़!

2019 के चुनाव से पहले जहाँ एक तरफ़ “मन्दिर वहीं बनायेंगे” जैसे साम्प्रदायिक फ़ासीवादी नारों की गूँज सुनायी दे रही है, वहीं 2014 में आयी मोदी सरकार के विकास और “अच्छे दिनों” की सच्चाई हम सबके सामने है। विकास का गुब्बारा फुस्स हो जाने के बाद अब मोदी सरकार धर्म के नाम पर अपनी चुनावी गोटियाँ लाल करने का पुराना संघी फ़ॉर्मूला लेकर मैदान में कूद पड़ी है। न तो मोदी सरकार बेरोज़गारों को रोज़गार दे पायी है, न आम आबादी को महँगाई से निज़ात दिला पायी है और न ही झुग्गीवालों को पक्के मकान दे पायी है। इसीलिए अब इन सभी अहम मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए मन्दिर का सहारा लिया जा रहा है। मोदी सरकार ने 2014 में चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में लिखे झुग्गी की जगह पक्के मकान देने का वायदा तो पूरा नहीं किया, उल्टा 2014 के बाद से दिल्ली के साथ-साथ देश भर में मेहनतकश आबादी के घरों को बेदर्दी से उजाड़ा गया है। हाल ही में 5 नवम्बर 2018 को दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाक़े के सैकड़ों झुग्गीवालों के घरों को डीडीए ने ज़मींदोज़ कर दिया। 300 से भी ज़्यादा झुग्गियों को चन्द घण्टों में बिना किसी नोटिस या पूर्वसूचना के अचानक मिट्टी में मिला दिया गया।

दिल्ली में न्यूनतम मज़दूरी पर हाई कोर्ट का फ़ैसला पूँजीवादी व्यवस्था की कलई खोल देता है

देश के किसी भी महानगर में रहने वाला कोई भी व्यक्ति यह भली-भाँति जानता है कि इस महँगाई और भीषण बेरोज़गारी के दौर में गुज़ारा करना कितना मुश्किल है। उस पर दिल्ली जैसे शहर में मज़दूरी करना, जहाँ न्यूनतम वेतन के भुगतान के क़ानून का नंगा उल्लंघन किया जाता है, वहाँ अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करना कितना कठिन है। लेकिन इस सबके बावजूद भी जिस न्यायपालिका को पहले मज़दूरों की ज़िन्दगी के हालात को मद्देनज़र रखना चाहिए था, उसने अपनी प्राथमिकता में मालिकों के मुनाफ़े को रखा।

दिल्ली में बेरोज़गारी के गम्भीर हालात बयान करते आँकड़े

मोदी सरकार ने 2014 के चुनाव से पहले यह वादा किया था कि वो हर साल 2 करोड़ रोज़गार पैदा करेगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद वही मोदी आज देश की ग़रीब और बेरोज़गार आबादी से पकौड़े तलने को कह रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने भी चुनाव से पहले दिल्ली की जनता से 5 साल में 8 लाख नौकरियाँ पैदा करने और 55,000 रिक्त सरकारी पदों को भरने का चुनावी वादा किया था। लेकिन हक़ीक़त यह है कि 15-16 फ़रवरी 2018 को दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित रोज़गार मेले में बेरोज़गारों के अनुपात में न के बराबर नौकरियों के अवसर पेश किये गये।

कारखाना (संशोधन) विधेयक 2016 : मोदी सरकार ने भोंका मज़दूरों की पीठ में छुरा !

मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा अब जनता के सामने साफ़ हो चूका है लेकिन मज़दूरों के असंगठित होने और तमाम चुनावी पार्टियों से सम्बद्ध दलाल ट्रेड यूनियनों के कारण मज़दूर विरोधी कानून न सिर्फ संसद विधान सभाओं में पेश किये जाते है बल्कि बिना किसी असली विरोध के पारित भी कर दिए जाते है। आज के फ़ासीवाद के उभार के दौर में जहाँ धार्मिक कट्टरपंथी धर्म और जाति के नाम पर जनता को बाँट रहे है वहाँ इस सब उन्माद को पैदा करने वाले फ़ासीवादी पूँजीवाद को उसके संकट से बाहर निकालने के लिए ऐसे घोर मज़दूर विरोधी कानून पारित करवा रहे है।

वज़ीरपुर के मौत और मायूसी के कारखानों में लगातार बढ़ते मज़दूरों की मौत के मामले!

इन मौतों को बड़ी आसानी से दुर्घटनाओं का नाम दे दिया जाता है और न तो मालिकों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की जाती है और न ही सुरक्षा के इंतज़ामों को पुख़्ता किया जाता है जिससे दोबारा कोई मज़दूर ऐसी मौत का शिकार न हो। यह सब पुलिस प्रशासन, श्रम विभाग और मालिकों की मिलीभगत से चलने वाला माफिया है।

फासीवादी नारों की हक़ीक़त – हिटलर से मोदी तक

अगर हम आज अपने देश में उछाले जा रहे फ़ासीवादी नारों पर एक नज़र दौड़ाएँ तो हिटलर की इन नाजायज़ औलादों के मंसूबे भी हम अच्छी तरह समझ पाएंगे। ‘सबका साथ सबका विकास’ और ‘मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है’ सड़क पर, चौराहे पर बड़े-बड़े होर्डिंग पर यह नारे आँखों के सामने आ जाते है, रेडियो पर, अखबारों में, टीवी पर, बमबारी की तरह यह नारे हमारी चेतना पर हमला करते हैं। लेकिन जैसा ब्रेष्ट ने पहले ही चेता दिया है और जैसा हम अपनी ज़िन्दगी के हालात से भी समझ सकते है कि आखिर यह ‘सब’ कौन है जिनका विकास हो रहा है और यह कौनसा ‘देश’ है जो आगे बढ़ रहा है।

झूठी देशभक्ति और राष्ट्रवाद की चाशनी में डूबा संघी आतंक और फ़ासीवाद!

भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले साल अपनी आधिकारिक वेबसाइट शुरू करने के पश्चात अपना पहला लेख सावरकर को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा। भाजपा के नकली देशभक्तों की फेहरिस्त तो बेहद लम्बी है मगर उनमे से एक जो सबसे कुख्यात है वो है नाथूराम गोडसे। नाथूराम गोडसे जिसने महात्मा गांधी की हत्या की, आर.एस.एस. और हिन्दू महासभा के लिए वह ‘भारत का असली शूरवीर है’ और 15 नवंबर जिस दिन नाथूराम गोडसे को फांसी दी गयी थी उस दिन को संघी बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं। पिछले साल 15 नवंबर को बाकायदा नाथूराम गोडसे को समर्पित एक वेबसाइट का उद्घाटन किया गया जिसके पहले पन्ने पर भगवा रंग से लिखा है ‘भारत का भुला दिया गया असली नायक’। भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों की मुखबिरी करने में भी संघ ने कोई कमी नहीं छोड़ी। जिस गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से भाषण देते हैं उसी गणतंत्र दिवस को संघ से जुड़े लोग काले दिवस के रूप में मनाते हैं। संघ और उसके कुकृत्यों की फे़हरिस्त इतनी लम्बी है कि उसके बारे में कई ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। मगर इन सभी प्रतिनिधिक उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि देश भक्ति से इनका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है।

आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष के आगे झुकी केजरीवाल सरकार!

अपनी दीर्घकालिक मांगों जैसे कि सरकारी कर्मचारी का दर्जा पाने, न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई. व पी.एफ­. आदि के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। मगर जैसा तमाम सरकारे करती हैं वैसा ही कुछ केजरीवाल सरकार ने भी किया। 3 दिन का समय बीत जाने के बाद भी सभी कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान नहीं किया गया जिसके चलते 9 अगस्त को जंतर मंतर पर दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों की एक आम सभा बुलाकर फिर से सरकार पर दबाव बनाने और आगे की रणनीति पर बातचीत की। इसके बाद 16 अगस्त को फिर से जंतर मंतर पर महाजुटान आयोजित कर केजरीवाल सरकार से उनके द्वारा स्वीकार की गयी तात्कालिक मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की गयी। साथ ही यूनियन की सदस्यता का विस्तार भी किया जा रहा है। मात्र 2 हफ्तों के भीतर 2500 लोगों ने यिूनयन की सदस्यता हासिल की है। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जायज हकों के लिए संघर्षरत है। अपनी मिली इस जीत आंगनवाड़ी कर्मचारियों में उत्साह और जोश है और सभी अपनी दीर्घकालिक मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष करने के लिए तत्पर है।

झुग्गियों में रहने वालों की ज़िन्दगी का कड़वा सच: विश्व स्तरीय शहर बनाने के लिए मेहनतकशों के घरों की आहुति!

आम जनता में भी यही अवधारणा प्रचलित है कि झुग्गीवालों की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है जबकि सच इसके बिलकुल उलट है। झुग्गियों में रहने वाले लोगों को छत मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है, अप्रत्यक्ष कर के रूप में सरकार हर साल खरबों रुपया आम मेहनतकश जनता से वसूलती है, इस पैसे से रोज़गार के नये अवसर और झुग्गीवालों को मकान देने की बजाय सरकार अदानी-अम्बानी को सब्सिडी देने में ख़र्च कर देती है। केवल एक ख़ास समय के लिए झुग्गीवासियों को नागरिकों की तरह देखा जाता है और वो समय होता है ठीक चुनाव से पहले। चुनाव से पहले सभी चुनावबाज़ पार्टियाँ ठीक वैसे ही झुग्गियों में मँडराना शुरू कर देती है जैसे गुड़ पर मक्खि‍याँ।