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स्त्रियों के उत्पीड़न और बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के पीछे कारण क्या?

कुछ अव्वल दर्जे के मूर्ख इन घटनाओं के पीछे पश्चिमी मूल्यों के प्रभाव की बात करते नहीं थकते। लेकिन असल बात यह है कि आज स्त्रियों पर बढ़ रहे अत्याचारों का सबसे बड़ा कारण यह है कि आज हम जिस समाज में जी रहे हैं वह एक पितृसत्तात्मक समाज है, यानी कि पुरुष प्रधान समाज है। यह समाज स्त्रियों को भोग विलास की वस्तु और बच्चा पैदा करने (यानी कि ‘यशस्वी पुत्र’) का यन्त्र समझता है। हमारे समाज में प्रभावी पुरुषवादी मानसिकता स्त्रियों को चाभी का खिलौना समझती है जिसे जैसे मर्जी इस्तेमाल किया जा सकता है। तभी स्त्रियों के साथ होने वाली घटनाओं के पीछे 50 से 60 फीसदी उनके अपने नज़दीकी रिश्तेदार या पड़ोसी होते है और ऐसी घटनाओं में माँ-बाप को पता होने के बावजूद वे चुप ही रहते हैं क्योंकि ऐसी घटनाओं में बिना सोचे समझे स्त्रियों को ही दोषी ठहरा दिया जाता है। इन घटनाओं के पीछे दूसरा सबसे बड़ा कारण ये पूँजीवादी व्यवस्था है जिसने स्त्रियों को उपभोग की वस्तु बना दिया है पिछले दो दशकों में स्त्री-विरोधी अपराधों में बढ़ोत्तरी के कारण को देखें तो तो साफ हो जायेगा कि 1990 में सरकार की उदारीकरण- निजीकरण की नीतियों की वजह से पूरे देश में एक नव-धनाढ्य अभिजात वर्ग पैदा हुआ है जो खाओ-पियो-ऐश करो की संस्कृति में ही जीता है। जिसकी मानसिकता है कि वह पैसे के दम पर कुछ भी खरीद सकता है, और दूसरी तरफ उपभोक्तावादी संस्कृति में हर चीज़ की तरह स्‍त्री को भी एक बिकाऊ माल बना दिया है।

हरियाणा में बिजली के बढ़े हुए दामों के विरोध में प्रदर्शन!

नौजवान भारत सभा के बैनर तले आज बिजली के बढ़े हुए दामों के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया. शहर भर से आम आबादी बड़ी संख्या में उक्त प्रदर्शन में शामिल हुई. नौभास के संयोजक रमेश खटकड़ ने बताया कि हरियाणा में पिछले एक साल के अन्दर बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। अलग-अलग मदों में की गयी दामों की बढ़ोत्तरी 30 से 100 प्रतिशत तक की है। ध्यान रहे यह वही भाजपा है जो दिल्ली में चुनाव से पहले 30 प्रतिशत बिजली के दाम कम करने की बात कर रही थी। मोदी-खट्टर चुनाव में शोर मचा रहे थे ‘‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’। लेकिन सत्ता में आने बाद भाजपा सरकार ने महँगाई के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये हैं। मोदी सरकार ने 1.5 साल में ही रेल किराये में 14 प्रतिशत बढ़ोत्तरी कर दी, सभी वस्तुओं व सेवाओं पर सर्विस टैक्स को 14.6 प्रतिशत कर दिया। साथ ही दालों से लेकर प्याज के रेट आज आसमान छू रहे हैं। आज महँगाई की मार ने मध्यमवर्ग आबादी की भी कमर तोड़ दी है। अब जले पर नमक छिड़कते हुए बिजली के दामों को बढ़ाकर जनता की जेब पर सरेआम डाकेजनी है। ऐसे में पहले से ही महँगाई की मार झेल रही जनता के लिए यह ‘जले पर नमक छिड़कने’ के समान है

धौलेड़ा क्रेशर ज़ोन हादसा: 12 निर्माण मज़दूरों की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

गत 7 अगस्त के दिन हरियाणा के नारनौल जिले के गाँव धौलेड़ा में क्रेशर की दीवार गिरने से 12 मज़दूरों की मौत हो गयी और 40 से अधिक घायल हो गये। दुर्घटना के बाद पता चला कि उक्त क्रेशर जोन का निर्माण उचित लाइसेंस व अनुमति के बिना ही कराया जा रहा था। काम पर लगे मज़दूरों को कोई भी सुरक्षा का उपकरण मुहैया नहीं कराया गया था। इस हादसे की जिम्मेदार एक तो सीधे-सीधे क्रेशर मालिक की मुनाफा कमाने की हवस थी क्योंकि न तो दीवार में लगायी गयी सामग्री का अनुपात सही था और न ही मज़दूरों की सुरक्षा का कोई इन्तज़ाम किया गया था। बेशर्मी का आलम देखिये कि इस भयानक हादसे के बाद मालिक तुरन्त भाग खड़ा हुआ।

खट्टर सरकार द्वारा नर्सिंग छात्राओं पर बर्बर पुलिसिया दमन!

आज यह बात स्पष्ट है कि मौजूदा खट्टर सरकार भी पिछली तमाम सरकारों की तरह ही हरियाणा की आम जनता के हक़-अधिकारों पर डाका डाल रही है। असल में चुनाव से पहले किये जाने वाले बड़े-बड़े वायदे केवल वोट की फ़सल काटने के लिए ही होते हैं। गेस्ट टीचर, अस्थायी कम्प्यूटर टीचर, आशा वर्कर, रोडवेज़ कर्मचारी, मनरेगा मज़दूर, एनसीआर के औद्योगिक मज़दूर आदि आयेदिन अपनी जायज़-न्यायसंगत माँगों को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं लेकिन सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही।

हमारी ताक़त हमारी एकजुटता में ही है!

मेरी उम्र 30 साल है और 16 साल की उम्र से ही मैंने दिहाड़ी-मज़दूरी का काम शुरू कर दिया था। घर के आर्थिक हालात अच्छे न होने के कारण स्कूल के दिनों में खेत मज़दूरी जैसे कामों में घरवालों का हाथ बँटाना पड़ता था। खेती का काम तो मौसमी होता था और इसमें मेहनत ज़्यादा थी और पैसा कम, इसलिए स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूर के तौर भी मैंने काफ़ी दिन बेलदारी का काम किया। किन्तु यहाँ भी काम में अनिश्चितता बनी रहती थी। उसके बाद मैंने एक आरा मशीन पर काम पकड़ा, यहाँ मैं लगातार आठ साल तक खटता रहा। मालिक कहा-सुनी व गाली-गलौज करता था, पैसा भी बेहद कम मिलता था। अन्त में एक दिन काम के दौरान आरा मशीन में मेरा हाथ आ गया जिसके कारण मुझे अपनी एक उँगली गँवानी पड़ी। न तो मुझे कोई मुआवज़ा मिला और काम भी मुझे छोड़ना पड़ा

देश के मज़दूरों से अलग नहीं है पानीपत के मज़दूरों के हालात!

फ़ैक्टरी रिहाइश से करीब 15 किलोमीटर दूर है, आने-जाने की व्यवस्था ख़ुद ही करनी पड़ती है थोड़ा सा लेट होने पर आधे दिन की तनख़्वाह काट ली जाती है। पिछले दिनों ही अलग-अलग करके करीब सौ मज़दूरों की छुट्टी कर दी गयी थी। बच्चों से भी फ़ैक्टरी में काम करवाया जाता है। जब कभी इंस्पेक्शन होती है प्लाण्ट बन्द दिखाकर बच्चों को हटा दिया जाता है और काम फिर से चालू हो जाता है। यह हाल केवल हमारी फ़ैक्टरी का ही नहीं है बल्कि पानीपत भर के पूरे औद्योगिक इलाक़े के ऐसे ही हालात हैं। कुछ धन्धेबाज़ यूनियनें काम करती हैं लेकिन मज़दूरों की कोई व्यापक एकजुटता नहीं है। मुझे आधी से ज़्यादा उम्र काम करते हो गयी, अभी तक सिर पर अपनी छत नहीं है। किराये के मकान में किसी तरह रहना पड़ता है। मैंने देश के कई हिस्सों में देखा है कि मज़दूर कहीं भी अच्छे हालात में नहीं हैं।

हरियाणा के मनरेगा मज़दूरों का संघर्ष जारी!

गत 5 फरवरी को हरियाणा के फतेहाबाद जिला में हुए मनरेगा मज़दूर के प्रदर्शन के बाद तमाम जनसंगठनों ने आगे के संघर्ष के लिए एक साझा मोर्चे का निर्माण किया है जिसमें संघर्ष को चलाने के लिए एक माह की जनकार्रवाई की रूपरेखा तैयार की गई। तय किया गया की मनरेगा में काम के अधिकार के लिए फरवरी माह में फतेहाबाद के गांव-गांव में मोदी-खट्टर सरकार के पुतले दहन किये जाएँगे । साथ ही 27 फरवरी से 2 मार्च तक साझा मोर्चा के बैनर तले क्रमिक अनशन शुरू किया जाएगा।

फ़तेहाबाद, हरियाणा के मनरेगा मज़दूर संघर्ष की राह पर

हरियाणा की भाजपा सरकार ने ग्रामीण मज़दूरों को ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना’ के तहत काम देना बन्द कर दिया है। केन्द्र सरकार ने भी अपने अन्तरिम बजट में मनरेगा के तहत दी जाने वाली राशि में भारी कटौती की है। आने वाले समय में इसमें और कटौती की जानी है। मनरेगा के तहत होना तो यह चाहिए था कि रोज़गार गारण्टी को साल में 100 दिन से और ज़्यादा बढ़ाया जाता किन्तु केन्द्र सरकार ने इसे 34 दिन करने का प्रस्ताव रखा है।

हरियाणा के रोहतक में हुई एक और “निर्भया” के साथ दरिन्दगी

एक तरफ़ तो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ का ढोल पीटा जाता है, “प्राचीन संस्कृति” का यशोगान होता है लेकिन दूसरी तरफ़ स्त्रियों के साथ बर्बरता के सबसे घृणित मामले यहीं देखने को मिलते हैं। स्त्री विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या होती है और लड़के-लड़कियों की लैंगिक असमानता बहुत ज़्यादा है। हिन्दू धर्म के तमाम ठेकेदार आये दिन अपनी दिमाग़ी गन्दगी और स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने की अपनी मंशा का प्रदर्शन; कपड़ों, रहन-सहन और बाहर निकलने को लेकर बेहूदा बयानबाज़ियाँ करके करते रहते हैं लेकिन तमाम स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ बेशर्म चुप्पी साध लेते हैं। यह हमारे समाज का दोगलापन ही है कि पीड़ा भोगने वालों को ही दोषी करार दे दिया जाता है और नृशंसता के कर्ता-धर्ता अपराधी आमतौर पर बेख़ौफ़ होकर घूमते हैं। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए, जब हरियाणा के मौजूदा मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर फ़रमा रहे थे कि लड़कियों और महिलाओं को कपड़े पहनने की आज़ादी लेनी है तो सड़कों पर निर्वस्त्र क्यों नहीं घूमती!

निर्माण मज़दूर यूनियन (नरवाना, हरियाणा) द्वारा निःशुल्क मेडिकल कैम्पों का आयोजन

गत 30 दिसम्बर को निर्माण मज़दूर यूनियन द्वारा नौजवान भारत सभा के सहयोग से निःशुल्क मेडिकल कैम्पों का आयोजिन किया गया। पहला कैम्प शहीद भगतसिंह चौक पर लगाया गया तथा दूसरा निर्माण मज़दूर यूनियन के कार्यालय पुराने बस अड्डे के पास लगाया गया। दो डॉक्टर साथियों ने कैम्प के लिए अपना समय दिया। कैम्पों में करीब 400 लोगों के स्वास्थ्य की जाँच की गयी, उन्हें दवाइयाँ वितरित की गयी और स्वास्थ्य के सवाल पर जागरूक किया गया।