‘जातिवाद की समस्या व इसका समाधान’ विषय पर विचार गोष्ठी
”जातिवाद के ख़ि‍लाफ़ संघर्ष किये बिना जनता को पूँजीवादी व्यवस्था के ख़ि‍लाफ़ क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए एकजुट नहीं किया जा सकता”

बिगुल संवाददाता

बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा डा. अम्बेडकर धर्मशाला, लुधियाना में ‘जातिवाद की समस्या व इसका समाधान’ पर आयोजित विचार गोष्ठी में ‘मज़दूर बिगुल’ के सम्पादक साथी सुखविन्दर ने मुख्य वक्ता के तौर पर बात रखी। उन्होंने कहा कि लगभग ढाई हज़ार साल पहले शुरू हुआ जाति आधारित भेदभाव, लूट, दमन आज भी भारतीय समाज के लिए एक गम्भीर समस्या बना हुआ है। मौजूदा जातिवादी व्यवस्था पूँजीवादी व्यवस्था की सेवा कर रही है और यह पूँजीवादी जातिवादी व्यवस्था है। जातिवाद के तीन स्तम्भ हैं- दर्जाबन्दी, काम आधारित विभाजन और जाति के भीतर विवाह। इनमें से मुख्य रूप से आज तीसरा स्तम्भ ही बचा हुआ है जो कि पूँजीवादी व्यवस्था के अनुकूल है।

सुखविन्दर ने कहा कि बहुत से लोग भारत पर अंग्रेज़ी हुकूमत की प्रशंसा करते हुए दावा करते हैं कि इसके कारण जाति व्यवस्था ख़त्‍म हो रही थी। उन्होंने कहा कि वास्तविक तथ्य इसके विपरीत हैं। भारत के उपनिवेश बन जाने से सामन्ती व्यवस्था की उम्र लम्बी हुई। इसके कारण जाति व्यवस्था भी बची रही। अगर भारत उपनिवेश न बनता तो यहाँ स्वाभाविक तौर पर जो पूँजीवादी विकास होता उसने जाति व्यवस्था पर बड़ी चोट होती।

सुखविन्दर ने कहा कि जातिवाद के ख़ात्मे का रास्ता सिर्फ़ मार्क्सवाद के पास है। मार्क्सवाद और अम्बेडकरवाद को आपस में मिलाने की कोशिशें बेबुनियाद हैं, इनका फ़ायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हो रहा है। जय भीम लाल सलाम का नारा एक ग़लत नारा है। डा. अम्बेडकर ने जातीय उत्‍पीड़न के मुद्दे को उभारने में अहम भूमिका निभायी लेकिन उनके पास जाति व्यवस्था के ख़ात्मे का कोई रास्ता नहीं था। वे भाववादी दर्शन और पूँजीवादी अर्थशास्त्र व राजनीति के पैरोकार थे। डा. अम्बेडकर ने ‘जाति का उन्मूलन’ लेख में खुद ही कहा है कि जाति का ख़ात्मा नहीं हो सकता। साथी सुखविन्दर ने कहा कि अतीत में जातिवाद की समस्या को समझने में भारतीय कम्युनिस्टों की कमज़ोरी रही है (कई अन्य बुनियादी सवालों को समझने की तरह) लेकिन कम्युनिस्ट ही हैं जिन्होंने जातिवाद के ख़ि‍लाफ़ सबसे अधिक संघर्ष किया है, बेमिसाल लड़ाइयाँ लड़ी हैं, कुर्बानियाँ की हैं। जातिवाद के ख़ि‍लाफ़ कभी ना लड़ने का दोष लगाते हुए जो लोग कम्युनिस्टों के ख़ि‍लाफ़ कुत्साप्रचार कर रहे हैं वे पूरी तरह ग़लत हैं। सुखविन्दर ने कहा कि जातिवाद का मुकम्मल ख़ात्मा निजी सम्पत्ति‍ के अन्त के साथ ही हो सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आज हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा जाये। अगर आज जातिवाद के ख़ि‍लाफ़ हम संघर्ष नहीं करते तो कभी भी जनता को पूँजीवादी व्यवस्था के ख़ि‍लाफ़ क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए एकजुट नहीं कर पायेंगे। हमें जाति-आधारित लूट, दमन, अन्याय, भेदभाव के ख़ि‍लाफ़ ज़ोरदार संघर्ष करना चाहिए। जनता को जातिवादी मूल्य-मान्यताओं से सम्बन्ध विच्छेद के लिए प्रेरित करना चाहिए। कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को जातिवादी मूल्य-मान्यताओं से सम्बन्ध विच्छेद करने का उसूल सख़्ती से निजी जीवन में लागू करना चाहिए जो कि कम्युनिस्ट आन्दोलन की एक बड़ी कमी रही है। उन्होंने कहा कि हमें जाति आधारित संगठन नहीं बनाने चाहिए लेकिन जातिवाद विरोधी संगठन ज़रूर बनाने चाहिए जिनमें सभी जातियों के जातिवाद विरोधी व्यक्ति शामिल हों। दलितवादी संगठनों के साथ मिलकर मुद्दा आधारित संघर्ष किये जा सकते हैं। अन्तरजातीय प्रेम विवाहों का पुरज़ोर समर्थन किया जाना चाहिए। अन्तरजातीय विवाह जाति व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं।

साथी सुखविन्दर के बाद रामसेवक, छोटेलाल, निर्भय, रजिन्दर जण्डियाली, तुलसी प्रसाद, मस्तराम, राजेन्द्र, सुनील सिंह, घनश्याम, लक्की, जसप्रीत, व अन्य साथियों ने इस विषय पर अपनी बात रखी और सवाल-जवाब में हिस्सेदारी की। मंच संचालन लखविन्दर ने किया। इस अवसर पर जनचेतना द्वारा क्रान्तिकारी-प्रगतिशील साहित्य की प्रदर्शनी भी लगाई गयी।

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2016


 

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