नरेन्द्र मोदी – यानी झूठ बोलने की मशीन के नये कारनामे

सनी

यह तथ्य सर्व विदित है कि हमारे देश के प्रधानमन्त्री सफ़ेद झूठ बोलते हैं। इन्होंने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान काला धन वापस लाने और 15 लाख सबके खाते में जमा कराने का वायदा किया और इस काले धन को ख़त्म करने के नाम पर लागू की नोटबन्दी में 100 से ज़्यादा लोगों की जान चली गयी पर काले धन का बाल भी बाँका न हुआ। फिर भी नरेन्द्र माेदी और अरुण जेटली सरीखे उनके चमचे बेशर्मी से कहे जा रहे हैं कि काले धन वालों की नींद हराम हो गयी है और पूरे देश की जनता नोटबन्दी के समर्थन में है। गंगा की सफ़ाई के नाम पर करोड़ों रुपये ख़र्च किये परन्तु सरकारी जाँच एजेंसी के अनुसार यह भी खोखला तथ्य था, गंगा पहले से ज़्यादा प्रदूषित हुई है। मोदी के पालतू गुरुओं में से एक श्री श्री रविशंकर ने यमुना के तटों को भी बर्बाद किया है। रोज़गार, शिक्षा के नाम पर जितने भी वायदे किये गये थे, वे झूठ निकले। परन्तु मोदी जी ने इस बीच भी नये झूठ बोलने और भ्रम फैलाने के काम को जारी रखा है। रोज़गार लगातार घट रहा है परन्तु स्किल इण्डिया का प्रचार ज़ोर-शोर से फैलाया जा रहा है। किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं को रोकने के लिए मोबाइल एेप लांच करना मूर्खता ही नहीं बेशर्मी भी है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नाम पर असम में संघ द्वारा लड़कियों की तस्करी का मामला हो या किसानों को आगे बढ़ाने की बात हो, नरेन्द्र मोदी ने अपने हर वायदे के उलट हर तरफ़ बर्बादी का जो मंज़र खड़ा किया है, उसे ढँकने के लिए झूठों का अम्बार खड़ा किया गया है और पूँूजीपतियों के ग़ुलाम मीडिया के ज़रिए इन झूठों के धुुआँधार प्रचार ने लोगों को ठहरकर इस पर कभी सोचने का मौक़़ा ही नहीं दिया है। लेकिन यह काम क्रान्तिकारी ताक़तों का है कि इस फासीवादी प्रचार का पर्दाफ़ाश किया जाये। मोदी सरकार द्वारा देशभक्ति के नाम पर जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों पर पुलिसिया लाठीचार्ज और मुक़दमे दर्ज करवाये गये। नोटबन्दी के दौर में वायदा किया कि काला धन ख़त्म होगा और आतंकवाद रुक जायेगा परन्तु यह भी कोरा झूठ निकला। मोदी जी ने बोला कि 31 मार्च तक आरबीआई की खिड़कियों पर पुराना नोट बदला जायेगा और 31 दिसम्बर तक बैंकों और पोस्ट ऑफि़सों में बदला जायेगा परन्तु सभी जानते हैं कि मोदी ने कितनी बेशर्मी से इस बात को भुला ि‍दया और दर्जनों बार नये नियम घोषित किये जिसने आम ग़रीब जनता को भयंकर परेशानी में धकेल दिया। प्रधानमन्त्री जी की डिग्री में भी गड़बड़ी है, जिस वजह से मोदी जी ने इस पर भी मौन धारण कर रखा है।

मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से भी जो भाषण दिया उसमें अर्थव्यवस्था पर, किसानों की जीवनस्थिति पर ग़लत तथ्य दिये गये थे; गाँवों की बिजली के बारे में जो तथ्य दिये गये थे, वे भी ग़लत थे। पहली सरकारों के बारे में इनके सभी आँकड़े सरासर झूठ होते हैं। दरअसल जिन योजनाओं को मोदी ने 2014 में सत्ता में आने से पहले धोखाधड़ी और जनविरोधी करार दिया था उन्हें भी अब मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों में गिनाने का काम कर रही है। यह फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि मोदी और मोदी सरकार के झूठों पर मोटी पुस्तक लिखी जा सकती है।

दरअसल जब भी कोई नेता सत्ता में पहुँचता है तो जनता यह पाती है कि उसके वायदे झूठे थे और नेता की यारी जनता नहीं पूँजीपति के साथ है। परन्तु नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने इस मामले में 60 साल राज करने वाली कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है। इसके पीछे एक वजह है और वह यह कि नरेन्द्र मोदी फासीवादी नेता है जिसकी फासीवादी राजनीति नंगे तौर पर कारपोरेट हितों की सेवा करती है और जनता को इस लूट-खसोट से भरमाने के लिए झूठों का पहाड़ खड़ा करती है। राष्ट्रवाद का उन्माद जगाकर उन वायदों को भुलाया जा रहा है जो सरकार ने कभी किये थे। फासीवादी सरकार और उसका ज़मीनी स्तर पर मौजूद काडर जो एक अनौपचारिक राज्यसत्ता की तरह काम करता है, इस झूठे प्रचार को जनता तक ले जाता है जिसमें ख़ासतौर पर उसे निम्न मध्य वर्ग और लम्पट सर्वहारा वर्ग का समर्थन मिलता है। यही इस झूठ के सबसे बड़े समर्थक होते हैं जिनमें भक्ति पैदा हुई है।

लेकिन झूठ और झूठ में फ़र्क़ होता है। मार्क ट्वेन ने लिखा था कि झूठ तीन प्रकार के होते हैं – झूठ, मक्कारी और तथ्य। मोदी ने इन तीनों तरह के झूठ को बोलने में महारत हासिल की है। हाँ, इसमें एक ख़ास कि़स्म का झूठ भी है जो मोदी जी अपने भोलेपन में बोल देते हैं। नरेन्द्र मोदी की इतिहास ज्ञान-शून्यता सभी को जाहिर है, इन्होंने ही सिकन्दर को बिहार पहुँचा दिया था और तक्षशिला को बिहार में पहुँचा दिया था, श्यामा प्रसाद मुखर्जी को विवेकानन्द से मुख़ातिब करवा दिया, जबकि विवेकानन्द की मृत्यु के समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी महज़ कुछ महीनों के थे। आज भी भाषणों में और सभाओं में नरेन्द्र मोदी ऐसी मूर्खताएँ करते रहते हैं, मसलन कभी पर्यावरण में तब्दीली को लोगों की सहनशीलता में बदलाव बताते हैं तो कभी लाल किले को लाल दरवाज़ा बोल देते हैं, और कभी डॉक्टरों की सभा में कहते हैं कि गणेश की कथा भारत में हज़ारों साल पहले प्लास्टिक सर्जरी का प्रमाण है।

नरेन्द्र मोदी की मूर्खता का कारण उनका टटपुँजिया वर्ग चरित्र है और गली-कूचों में चलने वाली इस राजनीति में पारंगत प्रचारक, जिसे गुण्डई भी पढ़ सकते हैं, की बोली है जिसे वे प्रधानमन्त्री पद से बोलने लगते हैं। यह टटपुँजिया वर्ग चरित्र उनकी कई अभिव्यक्तियों में झलक जाता है, मसलन कैमरा देखते ही उनकी भाव-भंगिमा में ख़ास कि़स्म का बदलाव आता है, शायद शरीर में सिहरन भी होती हो जिस वजह से अक्सर अख़बारों में आये फ़ोटो में उनका चेहरा कैमरे की तरफ़ होता है। मंच पर भाषण देते हुए नरेन्द्र मोदी के नाटकीय सख्तपन और कैमरे के आगे इस व्यवहार में साफ़ अन्तर दिखाई देता है। फ्युहरर (हिटलर) जैसा आभा मण्डल बनाने के लिए जिस तरह से पहले से ही तय किये अन्दाज़ में हाथों को उठाना और थामे रखना और भाषण में कुछ ख़ास जगह पर डाले गये विराम में मोदी का कैमरा प्रेम उछाल मारता रहता है। फ़ोटो स्टूडियो में घण्टों अलग-अलग अन्दाज़ में खिंचवाए हुए फ़ोटो को तमाम प्रचारों में इस्तेमाल करना, रेलियों के आयोजन की भव्यता आदि में फासीवादी राजनीति के गुण झलक जाते हैं जो राजनीति का सौन्दर्यकरण करती है।

मोदी और संघ परिवार ने अपने खाक़ में मिल चुके गुरु गोएबल्स और हिटलर से ये तरक़ीबें सीखी हैं। गोएबल्स ने जिस तरह से हिटलर के लिए फ्युहरर कल्ट को रचने में भूमिका अदा की थी वह यहाँ ग़ौर करने लायक है। उसने ही हिटलर द्वारा जर्मनी में चुनाव प्रचार से पहले की जा रही हवाई यात्राओं को “आकाश में फ्युहरर” की संज्ञा दी थी। उसने अपने ज़माने में नयी रेडियो की तकनोलोजी का सबसे व्यापक इस्तेमाल किया और कई जगह जनता के बीच रेडियो बाँटे भी, और जहाँ रेडियो नहीं पहुँच सकता था, वहाँ लाउडस्पीकर लगवाए ताकि हिटलर का भाषण सभी लोगों के कानों तक पहुँच सकें। देश के हर संस्थान में हिटलर की काडर फ़ोर्स एसएस के लोग शामिल किये गये। मीटिंग, परेड और भाषणों के भव्य आयोजनों के ज़रिये हिटलर की छवि को गढ़ा गया। यहूदियों और कम्युनिस्टों को यातना गृह में मारने के लिए आधार तैयार करने का काम इस प्रचार ने ही किया था। मशहूर फि़ल्मकार लेनी रायिफे़न्स्ताल द्वारा हिटलर की अलग-अलग भाव-भंगिमाओं का इस्तेमाल किया जिससे कि हिटलर की छवि को सर्वोच्च नेता के रूप में गढ़ा जा सके।

अब नरेन्द्र मोदी की प्रचार नीतियों को देखा जाये तो इनमें भयंकर समानता दिखाई देती है। मोदी के फ्युहरर कल्ट को गढ़ने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। सिर्फ़ रेडियो की जगह सोशल मीडिया, टीवी, रेडियो लगभग हर तकनीकी माध्यम से मोदी के नाम को लोगों तक पहुँचाया गया है। वाट्स एप, फे़सबुक और ट्विटर पर संघ के आईटी सेल द्वारा प्रचार व ज़ी न्यूज़, इण्डिया टीवी, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी सरीखे मुख्य टीवी चैनलों द्वारा प्रचार गोएबल्स का फासीवादी एजेण्डा ही दिखाता है। वहीं यहूदियों की जगह मुस्लिम आबादी के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा कभी खुला तो कभी छिपा प्रचार उनके ख़िलाफ़ लगातार समाज में उनकी छवि गढ़ता है। मोदी के प्रचार में कुछ फ़िल्में भी बनी लेकिन वे बेहद खराब थीं। हर मीटिंग या सभा को आयोजित करने से पहले तमाम राज्यों से लोगों को बुलाया जाता है, सभा को बड़े से बड़ा करने की कोशिश की जाती है। जर्मनी में न्युरेम्बर्ग की रैली की भव्यता सरीखे योग दिवस पर मोदी की छवि को बड़ा बनाया जाता है। कांग्रेस द्वारा पिछले 60 सालों में जो प्रतीक गढ़े गये थे, उन्हें ज़रूर मोदी ने 5 साल में चुनौती दी है और असल में मोदी सरकार का मक़सद भी यही है। हिटलर और गोएबल्स की तरह प्रधानमन्त्री मोदी भी ज़रूर शीशे के आगे अपने भाषण तैयार करते हैं बल्कि बाकायदा भाषणों की पुरानी वीडियो देखकर एक-एक शब्द पर ज़ोर और चेहरे के भाव की तैयारी करते होंगे। ऐसे में उनके द्वारा फासीवादी प्रचार का गोएबल्स का यह मन्त्र भी लागू किया जाता है कि एक झूठ को सौ बार दोहराने पर वह सच में तब्दील हो जाता है। गोएबल्स द्वारा रूस से युद्ध हारने की परिस्थिति में भी जर्मनी की जनता को यक़ीन दिलाना कि वे युद्ध जीत रहे हैं इसका एक प्रतीक उदाहरण है।

मोदी द्वारा शिक्षा, रोज़गार, कपड़ा, मकान के मुद्दों को गोल करके हवाई विकास का ढोल पीटना और इन्हें भारी शब्दावली वाली नीतियों के पीछे छिपाना झूठ बोलने की इस रणनीति का ही हिस्सा है। झूठ बोलना नरेन्द्र मोदी की एेतिहासिक नियति है। यह झूठ और पाखण्ड के पहाड़ पर खड़े होकर ही अपनी सत्ता चला सकता है। हमने मोदी के सिर्फ़ प्रचार तन्त्र की यह तस्वीर इसलिए पेश की है, ताकि यह समझा जा सके कि फासीवाद किस तरह प्रचार तन्त्र को काम में लेता है और झूठ बोलने को एक नियम की तरह इस्तेमाल करता है। जिस तरह यह गुरुत्व का नियम है कि पेड़ पर से सेब ज़मीन पर गिरेगा, उसी तरह यह फासीवादी प्रचार का नियम है कि प्रधानमन्त्री झूठ बोलेगा। भारत के चुनावबाज नेताओं की जमात में शामिल नेताओं के तू नंगा तू नंगा के खेल से अलग मोदी का इस पटल पर किरदार बिल्कुल भिन्न है जो संसद में आता है परन्तु प्रश्नों का जवाब नहीं देता तो वहीं उसकी छवि ऐसी बनायी जाती है जो प्रश्नों से परे है। मोदी और संघ लगातार इसी छवि को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद प्रधानमन्त्री मोदी झूठ बोलते रहेंगे, क्योंकि वे गोएबल्स की तरह झूठ बोलने की मशीन हैं और झूठ बोले बिना उनका काम नहीं चल सकता है।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2017


 

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