ग़रीबों की बस्ती ईडब्ल्यूएस कालोनी (लुधियाना) में बुरी रिहायशी परिस्थितियाँ और सरकारी व्यवस्था बेरुख़ी

बलजीत

दुनिया की ख़ूबसूरत इमारतों का निर्माण करने वाले, अपने हाथों से मिट्टी से अनाज, पत्थरों से हीरे तराशने वाले, बंजर ज़मीन को इंसान के रहने लायक बनाने वाले सृजकों के अपने रहने की जगहों की परिस्थितियाँ बहुत भयानक हैं। दुनिया के किसी भी कोने में देख लीजिए हर जगह मज़दूरों-मेहनतकशों के साथ धक्केशाही होती है। दुनिया की ज़रूरतें पूरी करने के लिए दिन-रात एक करके अपनी जान की बाज़ी लगाकर, ख़तरनाक मशीनों पर अपने हाथ-पैर कटाकर काम करने वाले मज़दूर ख़ुद सभी बुनियादी ज़रूरतों से वंचित रह जाते हैं। जिस जगह वे अपने परिवार के साथ समय बिताने व आराम करने के लिए रहे हैं वहाँ के हालात शब्दों में बयान नहीं किये जा सकते। ऐसी ही हालत लुधियाना की ईडब्ल्यूएस कालोनी (आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों की कालोनी) की है।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह ग़रीब लोगों की कालोनी है। यहाँ लोगों के घरों के सामने वाली जगहों और कूड़ा फेंकने वाली जगहों में कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आता। गलियाँ किसी गन्दे तालाब से कम नहीं। लोगों के कमरों तक गन्दा पानी जाता है। यह पानी बारिश का ही नहीं बल्कि सीवरेज का भी होता है। जगह-जगह पीने वाले पानी की पाइप भी टूटी हुई हैं। अकसर फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है कि खड़ा पानी सीवरेज जाम के चलते है या पीने वाले पाइप के टूटने के कारण। गन्दा पानी पीने वाले पानी में मिल जाता है और बीमारियाँ फैलती हैं। पिछले दिनों गन्दगी के चलते काफ़ी बीमारियाँ फैली हैं। कई लोगों की मौत भी हुई है। कमरों तक बदबू फैली रहती है। ऐसी जगह इंसान तो क्या पशुओं के रहने लायक भी नहीं है।

नगर-निगम प्रशासन की बात करें तो इसका लोगों की समस्याओं की तरफ़ कोई ध्यान नहीं। बिगुल मज़दूर दस्ता, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, स्त्री मज़दूर संगठन जैसे जनपक्षधर संगठनों के नेतृत्व में कई बार लोगों ने नगर-निगम अफ़सरों को कालोनी की बुरी परिस्थितियों के बारे में धरना-प्रदर्शनों के ज़रिये भी जानकारी दी है लेकिन काम चलाऊ रिपेयर से नगर-निगम आगे नहीं बढ़ता। लोगों के दबाव के चलते सीवरेज में डण्डे मारकर काम चला दिया जाता है जब कि सीवरेज की सफ़ाई मशीन से करने की ज़रूरत है। जब से कालोनी बनी है कभी भी इसकी मशीनों से सफ़ाई नहीं करवाई गयी। पीने वाले पानी की टूटी हुई पाइपों पर लिफ़ाफ़े बाँधकर मिट्टी डाल दी जाती है जबकि पाइप गल चुके हैं और इन्हें बदलने की ज़रूरत है। अगर साफ़-सफ़ाई के नियमित प्रबन्ध की बात करें तो एक भी सफ़ाई कर्मचारी पक्के तौर पर नहीं लगाया गया है। लोगों को अपने स्तर पर पैसे देकर साफ़-सफ़ाई करवानी पड़ती है। अधिकतर सीवरेज ठीक करवाने के लिए भी लोगों को पैसे ख़र्च करने पड़ते हैं। कालोनी के लिए कम से कम सौ पक्के सफ़ाई कर्मचारियों की ज़रूरत है। लेकिन यहाँ नगर निगम बहुत दबाव पड़ने पर कुछ सफ़ाई कर्मचारियों को भेज देता है।

नगर निगम अफ़सर तो ‘लोगों का कसूर है’ कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं। कभी वे कहते हैं कि लोग सफ़ाई नहीं रखते, कभी कहते हैं कि आबादी बहुत अधिक हो गयी है। लेकिन कालोनी की सफ़ाई के लिए बाकायदा सफ़ाई कर्मचारियों की पक्की ड्यूटी न लगाने और ग़रीबों की समस्याओं की तरफ़ ध्यान न देने की बात को वे हमेशा टालने की कोशिश करते हैं। अगर लोग सफ़ाई नहीं रखते और आबादी पहले से अधिक हो गयी है तो क्या नगर निगम को लोगों की परवाह करनी छोड़ देनी चाहिए? लोगों में साफ़-सफ़ाई के प्रति जागरूकता फैलाने की नगर निगम की कोई जि़म्मेदारी नहीं? वैसे तो बढ़ी आबादी के मुताबिक़़ भी व्यवस्था करना कोई मुश्किल काम नहीं है लेकिन वास्तव में ऐसी कोई समस्या है भी नहीं। नगर निगम के अफ़सर सरकारी व्यवस्था को दोष छिपाने के लिए जनता को दोषी ठहराते हैं।

वोट-बटोरू पार्टियाँ लोगों को तरह-तरह की बातें करके लोगों को अपने भ्रमजाल में फँसाती रहती हैं। लोग इनकी बातों में फँसकर इनसे सुधार की उम्मीदें पालने लगते हैं। पिछले दिनों पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए हैं। वोट-बटोरू नेताओं ने लोगों के सामने झूठ के महल खड़े किये कि अगर उन्हें वोट दिये जायेंगे तो वे लोगों के लिए सहूलतें मुहैया करवायेंगे। ईडब्ल्यूएस कालोनी के लोग भी इनके भ्रमजाल का शिकार हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने जिसे वोट दिया है वह नेता उनके दुख दूर करने आयेगा। लेकिन लोगों की समस्याएँ इन वोट-बटोरू पूँजीवादी पार्टियों के एजेण्डे पर नहीं हैं। चुनाव प्रचार के दौरान कई पार्टियों के लीडर कालोनी में आये। लोगों ने उन्हें अपनी समस्याएँ बतायीं। लोगों द्वारा बात करने पर उन्होंने समस्याएँ दूर करने का वादा किया। लेकिन न तो चुनाव प्रचार से पहले ये नेता लोग जनता में दिखायी देते हैं और न ही चुनाव होने के बाद। समस्याएँ बनी हुई हैं।

मज़दूर 12-14 घण्टे कारख़ानों में हड्डियाँ गलाते हैं। घरों पर भी औरतें-बच्चे शालों के बण्डल बनाने व कारख़ाने के अन्य काम घरों पर करने में व्यस्त रहते हैं। घर का गुज़ारा चलाने के लिए कमाई करने के लिए उन्हें रात-रात भर जागकर काम करना पड़ता है। रोज़ कमाकर खाने वाले लोग समय की कमी के चलते कालोनी की समस्याओं के बारे में सोचने और संघर्ष के लिए अधिक समय नहीं निकाल पाते। मकान मालिकों और किरायेदारों की एक-दूसरे से अलग रहने की मानसिकता भी काफ़ी फैली है। लोगों में एकजुटता की भावना की बड़ी कमी है।

लेकिन अगर लोगों को सच्चे जनपक्षधर संगठन लगातार जागरूक करने, लामबन्द व संगठित करने का काम करें तो लोग वोट-बटोरू पार्टियों के जाल में से बाहर आ सकते हैं, लोगों में एकजुटता की भावना पैदा की जा सकती है और जनता को बड़े स्तर पर संगठित करके संघर्षों की राह पर आगे बढ़ाया जा सकता है। अनेकों बार विभिन्न मसलों पर हुए संघर्षों में चाहे छोटे स्तर पर ही सही लोगों ने देखा है कि अगर वे एकजुट होकर संघर्ष करते हैं तो उनकी समस्याएँ हल हो सकती हैं।

स्त्री मज़दूर संगठन ने सीवरेज निकासी की समस्या हल करवाई

बिगुल संवाददाता, लुधियाना

बीती 8 फ़रवरी को स्त्री मज़दूर संगठन द्वारा ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी, लुधियाना में सीवरेज, पीने के पानी और साफ़-सफ़ाई की समस्याओं के बारे में मीटिंग की गयी। स्त्रियों ने नगर-निगम के ख़िलाफ़ रोष व्यक्त किया। ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी में लम्बे समय से सीवरेज जाम होने और पेयजल की पाईपें लीक होनी के समस्या चल रही है। इसके बारे में इलाक़े के लोगों ने कई बार नगर-निगम कार्यालय पर शिकायत दर्ज करवाई है लेकिन ठीक से समस्या हल नहीं की जाती। सीवरेज का गन्दा पानी पेयजल वाली पाईपों में चले जाने से लोगों को बीमारियाँ लग रही हैं। लोगों भारी रोष है। इस बारे में इसी दिन बलजीत, नरिन्दर सोनी, सबिता, बिन्दरावति व चिन्तादेवी ने जोनल कमिश्रर को मिलकर माँग-पत्र भी दिया और कहा कि समस्याओं का फौरी तौर पर हल किया जाये नहीं तो मजबूरन लोगों को प्रदर्शन करना पड़ेगा। जनसंघर्ष के डर से अगले ही दिन सीवरेज निकासी की समस्या ठीक कर दी गयी। लेकिन यह सिर्फ़ आंशिक जीत हुई है, असल मसला पक्के हल का है जो पानी की पाईपों के नये पाईप डालने, सीवरेज पाइपों की मशीनों से सफ़ाई, और पक्के तौर पर सफ़ाई कर्मचारी लगाने से ही हल हो सकता है। जोनल कमिश्रर ने कहा तो है कि समस्याएँ हल की जायेँगी लेकिन इतना पक्का है कि लोगों को समस्याएँ ठीक ढंग से हल करवाने के लिए एकजुट संघर्ष तो लड़ना ही पड़ेगा।

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2017


 

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