भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु की याद में क्रान्तिकारी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन
सैकड़ों लोगों ने दी महान क्रान्तिकारी शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि

बीते 26 मार्च को लुधियाना में मज़दूर पुस्तकालय, ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी (ताजपुर रोड) पर शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु की याद में, शहादत की 86वीं वर्षगाँठ को समर्पित क्रान्तिकारी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कारख़ाना मज़दूर यूनियन, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, स्त्री मज़दूर संगठन व नौजवान भारत सभा द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। संगठनों द्वारा शहादत दिवस के सम्बन्ध में लुधियाना की मज़दूर आबादी में एक सप्ताह तक सघन प्रचार अभियान चलाया गया था। व्यापक पर्चा वितरण, नुक्कड़ नाटकों की पेशकारी और नुक्कड़ सभाओं आदि माध्यमों के ज़रिये लोगों तक क्रान्तिकारी शहीदों का सन्देश पहुँचाया गया।

26 मार्च के कार्यक्रम की शुरुआत शहीदों की याद में दो मिनट के मौन से की गयी। इस अवसर पर ‘इंकलाब जि़न्दाबाद’, ‘इस समाज को बदल दो’ और ‘एक मज़दूर की मौत’ नाटकों का मंचन किया गया। अनेकों क्रान्तिकारी-जुझारू गीत पेश किये गये। कार्यक्रम को लोगों ने ख़ूब सराहा। कारख़ाना मज़दूर यूनियन के राजविन्दर और स्त्री मज़दूर संगठन की बलजीत ने शहीदों के जीवन, विचारों और मौजूदा परिस्थितियों, चुनौतियों, कार्यभारों की चर्चा की। मंच संचालन टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के लखविन्दर ने किया।

वक्ताओं ने कहा कि शहीद भगतसिंह और उनके साथियों ने जिस शोषण रहित समाज के निर्माण के लिए जि़न्दगी-भर संघर्ष संघर्ष किया और कुर्बानियाँ कीं, वह समाज नहीं बन सका है। उनकी लड़ाई सिर्फ़ लुटेरे अंग्रेज़़ हुक्मरानों के खि़लाफ़ नहीं थी, बल्कि हर तरह के शोषकों के खि़लाफ़ थी, चाहे वे शोषक अंग्रेज़़ हों, भारतीय हों और चाहे कोई ओर हो। भगतसिंह ने कहा था कि जब तक इंसान के हाथों इंसान की लूट ख़त्म नहीं होती यह जंग जारी रहेगी। अंग्रेज़़ी गुलामी सेे मुक्ति का मीठा फल भारत के धन्नासेठों ने चखा है। मेहनतकश जनता तो आज भी लूट, शोषण, अन्याय की चक्की में पिस रही है। मज़दूरों को बिना श्रम अधिकारों के 12-14 घण्टे खटना पड़ता है। महिलाओं की हालत बद से बदतर हो चुकी है। नौजवान ग़रीबी-बेरोज़गारी की चक्की में पिस रहे हैं। भाजपा की मोदी सरकार कांग्रेस द्वारा शुरू की गयीं उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियों को और भी ज़ोर-शोर से लागू कर रही है। हिन्दुत्ववादी फासीवादी भाजपा का राज्यसभा में भी बहुमत हो गया है। श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी बदलावों तथा अन्य जन विरोधी क़ानून पारित करने की प्रक्रिया को अब और भी तेज़ी से आगे बढ़ाया जायेगा। लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, खाने-पीने, पहनने, प्रेम करने, शादी करने आदि तमाम जनवादी अधिकारों पर बड़े हमले हो रहे हैं। भगतसिंह ने जाति-धर्म के नाम पर लोगों को बाँटने की साज़ि‍शों से देश के लोगों को आगाह किया था और वर्गीय एकता क़ायम करने पर ज़ोर दिया था।

वक्ताओं ने कहा कि क्रान्तिकारी शहीदों को रस्म अदायगी के तौर पर याद करने का कोई मतलब नहीं है। आज ज़रूरत है कि क्रान्तिकारी शहीदों के जीवन व विचारों को जन-जन तक पहुँचाया जाये, लोगों को मौजूदा समय की चुनौतियों से परिचित कराया जाये, संगठित किया जाये और इस तरह शहीदों के सपनों के समाज के निर्माण के लिए आगे बढ़ा जाये। यही क्रान्तिकारी शहीदों को एक सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2017


 

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