भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहादत दिवस पर मुम्बई व अहमदनगर में चला 15 दिवसीय शहीद यादगारी अभियान

भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव के शहादत दिवस के अवसर पर नौजवान भारत सभा द्वारा मुम्बई व अहमदनगर में 15 दिवसीय शहीद यादगारी अभियान चलाया गया। इस अभियान के अन्तर्गत हिन्दी व मराठी में हज़ारों पर्चे वितरित किये गये, विचार गोष्ठिया़ँ, पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित की गयी व गौहर रज़ा की इंक़लाब डॉक्यूमेण्ट्री की स्क्रीनिंग भी की गयी। अन्तिम दिन यानी 3 अप्रैल को अहमदनगर के रहमत सुल्तान फ़ाउण्डेशन सभागृह में ‘फासीवाद के मौजूदा दौर में भगतसिंह की प्रासंगिकता’ विषय पर परिसंवाद रखा गया व साथ ही दो पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। परिसंवाद का मुख्य वक्तव्य कामगार बिगुल के सम्पादक सोमनाथ केंजळे ने रखा व उसके बाद सभी श्रोताओं ने भी परिसंवाद में भागीदारी की। भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन के धार्मिक पुनरुत्थानवाद से वैज्ञानिक समाजवाद तक की यात्रा पर सोमनाथ ने विस्तृत बातचीत रखी। भगतसिंह के लिए स्वतन्त्रता के असली मायने क्या थे, राजनीतिक जीवन में धर्म के हस्तक्षेप के बारे में भगतसिंह क्या सोचते थे, अस्पृश्यता समस्या को किस तरह देखते थे व भारत की जनता के लिए किस तरह वो सिर्फ़ मज़दूर क्रान्ति का सपना देखते थे, इस पर सोमनाथ ने रोचक ढंग से प्रकाश डाला। उसके बाद फासीवाद के बारे में बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यद्यपि भगतसिंह के समय में हिटलर व मुसोलिनी का बर्बर चेहरा पूरी तरह सामने नहीं आया था, पर फिर भी भगतसिंह समझते थे कि किस तरह जब पूँजीपति वर्ग जनता को लूटने में असहाय होने लगता है, तो वो लोगों को आपस में लड़वाता है। उन्होंने भगतसिंह के लेख ‘साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज’ व ‘धर्म व हमारा स्वतन्त्रता संग्राम’ का सन्दर्भ देते हुए बताया कि भगतसिंह साम्प्रदायिक झगड़ों के पीछे के असली कारण यानी आर्थिक कारण को समझते थे और इसीलिए ऐसे झगड़ों का सामना करने के लिए वर्गीय एकता पर ज़ोर देते थे। उन्होंने अन्त में कहा कि आज के समय में नौजवानों को भगतसिंह के रास्ते को ही आगे बढ़ाना होगा, देश के मज़दूर वर्ग को एकजुट करके फासीवाद को मात देनी होगी, तभी भगतसिंह का इंक़लाब जि़न्दाबाद का सपना साकार होगा।
इस मुख्य वक्तव्य के बाद कई अन्य श्रोताओं ने भी बातें रखीं और भगतसिंह के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने की बात पर बल दिया।

कार्यक्रम का दूसरा हिस्सा दो मराठी पुस्तिकाओं (कोळी व माशी – विल्हेल्म ‍लिब्कनेख्त, तरुणांना आवाहन – पीटर क्रोपोतकिन) का लोकार्पण था। लोकार्पण की शुरुआत में जनचेतना के महाराष्ट्र प्रभारी नागेश धुर्वे ने वैकल्पिक मीडिया अभियान का परिचय दिया व दोनों पुस्तिकाओं के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि आज पूँजीपति वर्ग अपने संचार माध्यमों से जनता पर लगातार वैचारिक हमला कर रहा है, परिवर्तन की किसी भी लड़ाई के प्रति लोगों को संशयकारी बना रहा है, घटिया दर्जे के नाटकों, फि़ल्मों, अख़बारों, टीवी चैनलों आदि के माध्यम से महिला विरोधी अपराधों को बढ़ावा दे रहा है। इसके बरक्स मज़दूर वर्ग को अपना वैकल्पिक मीडिया खड़ा करना होगा। जनचेतना एक ऐसा ही प्रयास है। जनचेतना हिन्दी, अंग्रेज़़ी, पंजाबी व मराठी भाषाओं के प्रगतिशील साहित्य का वितरण करती है। आने वाले समय में हमारा प्रयास रहेगा कि देश की हर भाषा में प्रगतिशील, क्रान्तिकारी, वैज्ञानिक व मानवीय मुल्यों के साहित्य को अपने सहयोगी प्रकाशन संस्थानों के सहयोग से पहुँचाया जा सके। जनचेतना का प्रयास रहेगा कि सिर्फ़ किताबें ही नहीं बल्कि वृत्तचित्रों, लघु फि़ल्मों व फि़ल्मों के माध्यम से भी मज़दूर वर्ग की आवाज़़ को बुलन्द किया जा सके।

उन्होंने कहा कि 28 सितम्बर 2016 को शुरू हुआ ऐरण प्रकाशन भी जनचेतना का सहयोगी प्रकाशन संस्थान है। इसका उद्देश्य मराठी भाषा में क्रान्तिकारी व मार्क्सवादी साहित्य को प्रकाशित करना है। इस अवसर पर लोकार्पित की गयी दो छोटी पुस्तिकाओं का ऐतिहासिक महत्व भी उन्होंने बताया। उन्होंने बताया कि ‘कोळी आणि माशी’ नामक छोटी सी पुस्तिका दुनियाभर के मज़दूरों के बीच लोकप्रिय है, जो बताती है कि किस तरह पूँजीपति वर्ग मज़दूर वर्ग का शोषण करके अपनी अय्याशियों के महल खड़े करता है। यह पुस्तिका मज़दूर वर्ग को इस अन्याय के खि़लाफ़ खड़े होने के लिए ललकारती है। उन्होंने बताया कि दूसरी पुस्तिका ‘तरुणांना आवाहन’ रूस के प्रसिद्ध अराजकतावादी क्रान्तिकारी प्रिंस पीटर क्रोपोतकिन द्वारा लिखी गयी थी। उनका यह प्रसिद्ध लेख अपने पेशों में शामिल होने के लिए तैयार युवकों-युवतियों को सम्बोधित था और सबसे पहले क्रोपोटकिन के अख़बार ‘ला रिवोल्ट’ में 1880 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद से दुनियाभर में एक पैम्फ़लेट के रूप में यह बार-बार छपता रहा है और आज भी इसकी अपील उतनी ही प्रभावी और झकझोर देने वाली है। इसके बाद दोनों पुस्तिकाओं का लोकार्पण शुभम व अलका माळी के हाथों किया गया। कार्यक्रम के दौरान कई क्रान्तिकारी गीत भी पेश किये गये। शहीद भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे तमाम शहीदों के सपनों को साकार करने के संकल्प के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2017


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments