सोवियत क्रान्ति के नेता लेनिन के जन्मदिवस (22 अप्रैल) पर उनकी जीवनसाथी क्रुप्सकाया के संस्मरण के अंश
सेण्ट पीटर्सबर्ग का वह कार्यकाल जिसने लेनिन को मेहनतकश जनता के नेता के रूप में ढाला

1894-95 ई. के जाड़े में मैं व्लादीमिर इलिच के और निकट परिचय में आयी। वे उस समय नेव्सकाया ज़स्तावा ज़िले में मज़दूरों के अध्ययन मण्डलों में भाषण कर रहे थे। मैं इस ज़िले के स्मोलेंस्काया स्थान पर वयस्कों के लिए रविवारीय सान्ध्य विद्यालय में तीन वर्षों से अध्यापक का काम कर रही थी। जो मज़दूर व्ला. इ. लेनिन के अध्ययन मण्डलों में आते थे, उनमें से कई मेरी रविवारीय पाठशाला के विद्यार्थी थे, जैसे बाबुश्किन, बोरोव्कोव, ग्रिबाकिन, बोद्रोव भाई (आर्सेनी और फि़लिप) तथा झुकोव। उन दिनों रविवारीय सान्ध्य पाठशाला श्रमिक वर्ग की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी, मज़दूरों के काम की स्थितियों और जनता के मिजाज़ का अध्ययन करने का अच्छा अवसर प्रदान करती थी। सान्ध्यकालीन तकनीकी कक्षाओं, महिलाओं की पाठशालाओं और ओबुखोव पाठशालाओं को, जो स्कूल से जुड़े थे, छोड़कर स्मोलेंस्काया स्कूल में छह सौ विद्यार्थी थे। मुझे कहना पड़ेगा कि मज़दूरों को अपनी पाठशाला की अध्यापिकाओं पर पूरा विश्वास था।…

वे मज़दूर, जो संगठन से सम्बद्ध थे, लोगों को जानने और ऐसे व्यक्तियों को जो संस्था और गोष्ठियों में लाये जा सकते हैं, चुनने के लिए स्कूल में जाते थे। ऐसे मज़दूर कार्यकर्ताओं की निगाह में अध्यापिकाएँ बस महिलाओं का एक समूह मात्र नहीं थीं। कौन अध्यापिका किस सीमा तक राजनीतिक नज़रिया रखती है, यह आँक लेने की क्षमता उनमें मौजूद थी। यदि वे पहचान लेते कि कोई अध्यापिका अपनों में से एक है तो उसे किसी शब्द या वाक्यांश से यह जता देते। जैसे दस्तकारी उद्योग पर बहस होते समय कोई मज़दूर कहता, ”दस्तकारी मज़दूर बड़े पैमाने के उत्पादन का मुक़ाबला नहीं कर सकता” या वह कोई ऐसा सवाल पूछता जैसे ”सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूर और आरखंगेल्स्क के किसान में क्या अन्तर है?” और इस सवाल के बाद वह अध्यापिका की ओर एक ख़ास अन्दाज़ में देखकर सिर हिलाता मानो कह रहा हो, ”तुम अपनों में से ही एक हो, हम जानते हैं।”

यदि स्थानीय रूप से कुछ किया जा रहा था तो अध्यापिका को वे इसके बारे में फ़ौरन बता देते। वे जानते थे कि यह सूचना संगठन को दे दी जायेगी। इस विषय में उन लोगों में एक तरह का अलिखित समझौता था।…

मैं उन दिनों स्तारोनेव्स्की गली के एक ऐसे मकान में रहती थी, जिसके आर-पार सहन था। व्लादीमीर इलिच अपने क्षेत्र का कार्य समाप्त करके इतवार को वहाँ आते थे। उनके आने पर हमारी लम्बी-लम्बी न ख़त्म होने वाली बहसें शुरू होती थीं। मुझे पाठशाला का काम बहुत रुचिकर लगता था और मुझे अगर कोई न टोकता तो मैं उस विषय पर पाठशाला पर, विद्यार्थियों – सेम्यानीकोव, थाॅर्नटन, मैक्सवेल पर तथा पड़ोस के दूसरे कारख़ानों और मिलों पर घण्टों बातें कर सकती थी।

व्लादीमिर इलिच को उस हर छोटी बात में दिलचस्पी थी, जो मज़दूरों की जि़न्दगी और उनके हालात की तस्वीर को उभारने में मदद कर सके और जिसके सहारे वे क्रान्तिकारी प्रचार कार्य के लिए मज़दूरों से सम्पर्क क़ायम कर सकें। उस ज़माने के अधिकांश बुद्धिजीवी मज़दूरों को अच्छी तरह नहीं जानते थे। वे किसी अध्ययन मण्डल में आते और मज़दूरों के सामने एक तरह का व्याख्यान पढ़ देते। एंगेल्स की पुस्तक ”परिवार व्यक्तिगत सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति” का हस्तलिखित अनुवाद बहुत दिनों तक गोष्ठियों में घूमता रहा। व्लादीमिर इलिच मज़दूरों को मार्क्स का ग्रन्थ पूँजी पढ़कर सुनाते और उसे समझाते। वे अपने पाठ का आधा समय मज़दूरों से उनके काम और मज़दूरी के हालात के विषय में पूछने पर लगाते। और इस प्रकार उन्हें दिखाते और बताते कि उनकी जि़न्दगी समाज के पूरे ढाँचे के लिए क्या महत्त्व रखती है तथा वर्तमान व्यवस्था को बदलने का उपाय क्या है? अध्ययन मण्डलों में सिद्धान्त को व्यवहार से इस प्रकार जोड़ना व्लादीमिर इलिच के कार्य की विशेषता थी। धीरे-धीरे हमारे अध्ययन मण्डलों के अन्य सदस्यों ने भी यह तरीक़ा अपना लिया।

अगले वर्ष जब हेक्टोग्राफ़ (साइक्लोस्टाइल जैसी मशीन) से ‘आन्दोलन के बारे में’ नामक परिपत्र प्रकाशित हुआ तो उस समय पर्चों द्वारा आन्दोलन करने की ज़मीन तैयार की जा चुकी थी। बात सिर्फ़ शुरू करने की थी। मज़दूरों को रोज़मर्रा की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर आन्दोलन करने की पद्धति ने हमारे दल के कार्यों में गहरी जड़ें जमा ली थीं। यह तरीक़ा कितना कारगर है, इसे ठीक से मैंने कुछ वर्षों बाद उस वक़्त समझा जब मैं फ़्रांस में राजनीतिक निष्कासन का जीवन व्यतीत कर रही थी। मैंने देखा कि किस तरह पेरिस के डाक कर्मचारियों की महान हड़ताल के दौरान फ़्रांसीसी समाजवादी पार्टी इससे बिल्कुल अलग रही। उनका कहना था कि हड़ताल का काम देखना ट्रेड यूनियनों का कार्य है। उनके अनुसार किसी पार्टी का कार्य राजनीतिक संघर्ष तक ही सीमित होता है। आर्थिक और राजनीतिक संघर्ष को एक करने की आवश्यकता की कोई स्पष्ट धारणा उनके दिमाग़ में नहीं थी।

पर्चा आन्दोलन का प्रभाव देखकर, उस समय सेण्ट पीटर्सबर्ग में काम करने वाले कई साथी इतने अभिभूत हो गये कि वे यह भूल गये कि जनता में काम करने का यह कई रूपों में से सिर्फ़ एक रूप है – यह नहीं कि और तरीक़े हैं ही नहीं। इन लोगों ने कुख्यात अर्थवाद का रास्ता अपना लिया।

व्लादीमिर इलिच कभी नहीं भूले कि काम करने के तरीक़े और भी हैं। 1895 ई. में लेनिन ने ”कारख़ानों के मज़दूरों पर किये गये जुर्मानों से सम्बद्ध नियम की एक व्याख्या” नामक परिचय लिखा। इस परिचय के ज़रिये उन्होंने उस समय एक औसत मज़दूर से सम्पर्क स्थापित करने, उसकी ज़रूरतों को समझते हुए उसे धीरे-धीरे राजनीतिक संघर्ष की आवश्यकता के सवाल से परिचित कराने की विधि का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया। बहुत से बुद्धिजीवियों ने उस परिपत्र को उबाऊ और अनावश्यक रूप से विस्तृत समझा, लेकिन मज़दूरों ने उसे गहरी उत्सुकता से पढ़ा क्योंकि परिपत्र सुस्पष्ट और उनसे सुपरिचित था। यह नारोदनाया वोल्या मुद्रणालय से छपकर मज़दूरों में बँटा था। उन दिनों व्लादीमिर इलिच ने कारख़ाना क़ानून का सम्यक अध्ययन किया था। उनका विश्वास था कि कारख़ाना क़ानून के नियमों की व्याख्या करने से मज़दूरों को यह समझाना, कि उनकी स्थिति और राजनीतिक सत्ता के सम्बन्ध क्या हैं बहुत आसान हो गया। उस समय इलिच ने मज़दूरों के लिए जो कई लेख और परिपत्र लिखे, उनमें इस अध्ययन के सबूत मिलते हैं। विशेषतः ”नया कारख़ाना क़ानून” नामक परिपत्र में तथा ‘हड़ताल पर’ और औद्योगिक अदालतों पर तथा अन्य लेखों में।

मज़दूरों के क्षेत्रों में आते-जाते रहने और काम करने का नतीजा यह हुआ कि हमारे ऊपर पुलिस की निगरानी बढ़ गयी। हम लोगों में व्लादीमिर इलिच काम करने के गुप्त तरीक़ों में सबसे ज़्यादा अनुभवी थे। वे रास्तों को भली-भाँति जानते थे और खुफि़या पुलिस को चकमा देने में उस्ताद थे। उन्होंने हमें न दिखाई पड़ने वाली रोशनाई इस्तेमाल करना, किताबों में संकेतिक नुक्तों और ‘गूढ़’ लिपि में सन्देश लिखना सिखाया तथा हर तरह के गुप्त नाम रखे। लगता था कि जैसे वे नारोदनाया वोल्या तरीक़ों को भलीभाँति सीख चुके हैं। पुराने नारोदयायी मिखालोव का, जिन्हें लोगों ने ‘द्वोरनिक’ (रखवाला) नाम दे रखा था अपने प्रथम कोटि के रहस्यमय तरीक़ों की वजह से लेनिन द्वारा आदर पाना सकारण उचित था। इस बीच पुलिस की निगरानी बढ़ती जा रही थी और व्लादीमिर इलिच का आग्रह था कि उनका कोई ऐसा ‘उत्तराधिकारी’ नियुक्त किया जाना चाहिए जिसका पुलिस पीछा न करती हो और जो सारी जि़म्मेदारियाँ सँभाल ले। चूँकि पुलिस की निगाह में मैं सबसे ज़्यादा ‘पाक-साफ़’ थी इसलिए मुझे ही उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय हुआ। ईस्टर इतवार को हममें से पाँच-छह लोग छुट्टी मनाने अपने एक सदस्य सिलिवन के पास ज़ारस्कोए सेलो गये जो वहाँ प्रशिक्षक (कोच) के रूप में रहता था। ट्रेन में सफ़र करते हुए हम लोगों ने एक-दूसरे से अपरिचित होने का बहाना किया।। हम क़रीब-क़रीब पूरे दिन उन कामों के विषय में बातें करते रहे जिन्हें चालू रहना था। व्लादीमिर इलिच ने हमें गूढ़ लिपि में लिखने की शिक्षा दी और हम लोगों ने क़रीब आधी किताब उसमें लिख डाली। मुझे कहते हुए अफ़सोस होता है कि मैं बाद में सामूहिक सांकेतिक-लेख को पढ़ने में नाकाम रही। सन्तोष की बात सिर्फ़ यही थी कि उस सांकेतिक लिपि को पढ़ने के समय तक अधिकांश ‘सम्पर्क’ बचे ही नहीं थे।

व्लादीमिर इलिच ने सब जगह से ऐसे लोगों की तलाश करके जो किसी न किसी रूप में क्रान्तिकारी कार्य में सहायक हो सकते थे, इन ‘सम्पर्कों’ को बनाया। मुझे एक ऐसी भेंट याद आती है जो व्लादीमिर इलिच के कहने पर हमारी टोली के प्रतिनिधियों (जहाँ तक मुझे याद है हमारे प्रतिनिधि व्लादीमिर इलिच और क्रझिझानोव्स्की थे) और रविवारीय स्कूल की अध्यापिकाओं की एक टोली के बीच हुई थी। इसके बाद उनमें से लगभग सभी सामाजिक जनवादी बन गये। उनमें नारोदनाया वोल्या की पुरानी सदस्या लिदिया क्निपोविच थीं जो सामाजिक जनवादी दल में शामिल हो गयी। पार्टी के पुराने सदस्य उन्हें याद करते हैं। वे आत्मानुशासित, अपने और दूसरों, दोनों के लिए कार्यतत्पर, शानदार साथी और महान क्रान्तिकारी आत्मानुशासन से युक्त महिला थीं। लोगों को पहचान लेने की उनमें अद्भुत क्षमता थी। अपने साथियों के प्रति उनका व्यवहार विनम्रता और प्यार से भरा हुआ होता था। लिदिया ने व्लादीमिर इलिच के क्रान्तिकारी रूप को फ़ौरन पहचान लिया।

लिदिया ने नारोदनाया वोल्या मुद्रणालय के सारे काम सँभाल लेने की जि़म्मेदारी ले ली। वे छपाई का सारा इन्तज़ाम करती थीं, पाण्डुलिपियाँ दे आती थीं, छपे हुए परिपत्रों को छुड़ाती थीं, टोकरियों में उन्हें मित्रों के पास ले जाती थीं और मज़दूरों के बीच साहित्य के वितरण की व्यवस्था करती थीं। मुद्रणालय के एक मुद्रक के विश्वासघात करने से जब वे गिरफ़्तार की गयीं तो, उनके विभिन्न मित्रों के यहाँ से बारह टोकरी ग़ैरक़ानूनी साहित्य बरामद हुआ। उस समय नारोदोवोल्त्सी लोग मज़दूरों के लिए परिपत्रों का जन-संस्करण छापते थे। कुछ परिपत्र इस प्रकार थे – ‘काम का दिन’, ‘जीवन और हित’ तथा व्लादीमिर इलिच के परिपत्र ‘जुुर्मानों के बारे में’ तथा ‘बादशाह भूख’ इत्यादि। शपोवालोव और कतान्स्काया नामक दो नारोदोवोल्त्सी जो लाख्तीन्एकी छपाईखाने में काम करते थे, अब (1930 – सं.) कम्युनिस्ट पार्टी में हैं। लिदिया क्निपोविच अब जीवित नहीं हैं। क्रीमिया में जहाँ वे दो वर्षों से निवास कर रही थी, उनकी मृत्यु हो गयी। उस समय क्रीमिया श्वेत गार्डोंं के अधिकार में था। मृत्युशैया पर भी उनका दिलो-दिमाग़ कम्युनिस्टों के साथ ही था और मरते समय उनके होठों पर कम्युनिस्ट पार्टी का नाम था।

मेरे ख़याल से उस सम्मेलन में शामिल होने वाले अन्य लोगों में स्कूली शिक्षक प.फ़. कुदैली, अ.इ. मेशेचर्याकोवा (दोनों अब पार्टी के मेम्बर हैं) शामिल थे। नेव्सकाया ज़ास्तावा की अध्यापिकाओं में से एक थीं अलेक्सान्द्रा काल्माइकोवा। वे एक बेहतरीन अध्यापिका थीं – मज़दूरों के बीच राज्य बजट पर दिया गया उनका भाषण मुझे अब तक याद है। लिटिनी स्ट्रीट पर उनकी एक पुस्तकों की दुकान थी। उन्हीं दिनों व्लादीमिर इलिच से उनका घनिष्ठ परिचय हो गया। स्त्रूवे उनके शिष्यों में से था और उनका पुराना स्कूल-साथी पोत्रोसोव उनके यहाँ अक्सर आया करता था। बाद में अलेक्सान्द्रा काल्माइकोवा ने पुराने ‘इस्क्रा’ की आर्थिक जि़म्मेदारी द्वितीय कांग्रेस की अवधि तक सँभाली। स्त्रूवे के उदारवादियों से मिल जाने पर उन्होंने उनका साथ नहीं दिया बल्कि दृढ़ता से ईस्क्रावादी दल के साथ रहीं। उन्हें लोग ‘चाची’ कहकर बुलाते थे। व्लादीमिर इलिच से उनकी बहुत मित्रता थी।…

व्लादीमिर इलिच ने 1895 का ग्रीष्म काल देश के बाहर बिताया। वे कुछ समय के लिए बर्लिन में रहे जहाँ मज़दूरों की सभाओं में शामिल हुए और कुछ समय के लिए स्विट्ज़रलैण्ड में रहे जहाँ पहली बार उनकी भेंट प्लेख़ानोव, अक्सेलरोद और ज़ासुलिच से हुई। वे अपने ऊपर बहुत से नये प्रभाव और दो अस्तरों वाला एक सूटकेस भरकर ग़ैरक़ानूनी साहित्य लेकर वापस आये।

जिस क्षण वे रूस पहुँचे पुलिस ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। पुलिस की निगाह उन पर और उनके सूटकेस पर थी। उस समय मेरी एक चचेरी बहन ‘पता विभाग’ में काम करती थी। उसने बताया कि व्लादीमिर इलिच के आने के दो दिन बाद जब वह रात की ड्यूटी पर थी, तो एक जासूस आया और वर्णक्रम के अनुसार रखी हुई फ़ाइलों को यह कहते हुए देख गया कि ”हम लोगों ने राज्य के एक महत्त्वपूर्ण अपराधी का पता लगा लिया है। उसका नाम उल्यानोव है। इसका भाई फाँसी पर लटकाया गया था और यह विदेश से होकर आया है। अब यह बचने नहीं पायेगा।” चूँकि मेरी बहन जानती थी कि व्लादीमिर इलिच मेरे परिचित हैं इसलिए इस बात की इत्तला उसने मुझे फ़ौरन दी। ज़ाहिर है कि व्लादीमिर इलिच को मैंने फ़ौरन आगाह कर दिया। उस समय अत्यधिक सतर्कता की ज़रूरत थी, लेकिन काम तो इन्तज़ार नहीं कर सकता था। हम कार्य में व्यस्त रहे। काम का बँटवारा कर लिया गया और क्षेत्रों में काम बाँट दिया गया। हमने पर्चे लिखने और बाँटने शुरू कर दिये। मुझे याद है कि सेमियानीकोव कारख़ाने के मज़दूरों के लिए व्लादीमिर इलिच ने पहला पर्चा लिखा था। उस समय हमें छपाई की सुविधा नहीं थी। पर्चे की नक़ल हाथ से छापकर की जाती थी। उनका वितरण बाबुश्किन करते थे। चार कापियों में से दो चौकीदार ले लेते थे और बाक़ी दो हाथों हाथ बाँटी जाती थी। पर्चे अन्य क्षेत्रों में भी बाँटे जाते थे। लाफ़र में तम्बाकू कारख़ाने की महिला-श्रमिकों के लिए एक पर्चा वासिल्यवस्की द्वीप भेजा जाता था। अ.अ. याकैबोवा और ज.प. नेवज़ोरोवा (क्रिझिझानोव्स्काया) पर्चों को वितरित करने के लिए जो तरीक़ा अपनाती थी। वह इस प्रकार था – वे पर्चों को इस ढंग से लपेट लेते कि आसानी से एक-एक करके निकाले जा सकें। फिर सीटी बजते ही कारख़ाने के दरवाज़ों में से प्रवाह की भाँति निकलती हुई मज़दूरनियों की भीड़ के पास तेज़ी से पहुँच एक साँस में हैरत में पड़ी हुई औरत के हाथ में पर्चा दे देते थे। ये पर्चे अत्यन्त सफल साबित हुए।

हमारे पर्चों और परिपत्रों ने मज़दूरों को जगा दिया। चूँकि हम लोगों के पास एक ग़ैर-क़ानूनी छापाखाना था, इसलिए यह तय किया गया कि राबोचयेदेलो (मज़दूरों का हित) नामक एक पत्रिका भी निकाली जाये। व्लादीमिर इलिच ने इसके लिए सारी सामग्री पूर्ण रूप से प्रस्तुत कर दी। पत्रिका की कापी की एक-एक पंक्ति वे देखते थे। मुझे अपने निवास पर हुई एक मीटिंग याद आती है जिसमें मोस्कोव्स्काया जास्तावा के पास स्थित एक जूते के कारख़ाने से पत्रिका के लिए कुछ सामग्री ले आने पर जापोरोेजेत्स ख़ुशी में मगन हो रहे थे। वे कह रहे थे ”वहाँ (कारख़ाने में) हर बात पर जुर्माना होता है, अगर जूते की एड़ी ज़रा-सा टेढ़ी हो जाये तो फ़ौरन जुर्माना कर दिया जाता है।” व्लादीमिर इलिच हँसे और बोले ”अगर कोई एड़ी टेढ़ी कर देता है तो वह जुर्माने का काम तो करता ही है।” वे पूरी सामग्री का संग्रह और उनकी जाँच अत्यन्त सावधानी के साथ करते थे। उदाहरण के लिए मुझे याद है, कि थाॅर्नटन मिल के विषय में सामग्री कैसे जुटाई गयी थी। मुझे अपने विद्यार्थी क्रोलिकोव के पास जाकर व्लादीमिर इलिच की बनायी हुई योजना के अनुसार सारी सूचनाएँ हासिल करनी थीं (वह एक बार सेण्ट पीटर्सबर्ग से निष्कासित किया जा चुका था और मिल में छटाई करने का काम करता था)। क्रोलिकोव किसी से माँगा हुआ फ़र का एक भड़कीला कोट पहनकर आया। उसके पास एक पूरी किताब-भर के लिखे हुए नोट्स थे और उसने कई बातें ज़ुबानी बतायीं। उसकी दी हुई सूचनाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थीं। व्लादीमिर इलिच ने उन्हें फ़ौरन लपक लिया। बाद में अ.अ. याकूवोवा और मैं मिल मज़दूरों जैसा दिखने के लिए अपने सिरों को शाल से ढँककर थाॅर्नटन मिल के रिहायशी मकानों में गये। हम विवाहित और अविवाहित दोनों प्रकार के क्वार्टरों में गये। वहाँ की हालत बहुत बुरी थी। इस प्रकार से प्राप्त सच्ची सूचना के आधार पर ही व्लादीमिर इलिच समाचार छापते और पर्चे लिखते थे। थाॅर्नटन मिल के स्त्री-पुरुष कर्मचारियों के लिए जो पर्चा उन्होंने लिखा है, उसे देखिए। अपने विषय की कितनी पूर्ण जानकारी उससे प्रकट होती है। जो साथी उन दिनों काम कर रहे थे, वे इससे कितने प्रशिक्षित होते थे। यह तब हुआ जब हमने सचमुच तफ़सील पर ध्यान देना शुरू किया। उन तफ़सीलों का हमारे दिमाग़ों पर कितना गहरा असर पड़ा है।

हमारा ‘राबोचिए’ निकल नहीं पाया। 8 दिसम्बर को मेरेे कमरे में मीटिंग हुई जिसमें प्रेस में दी जाने वाली सामग्री का अन्तिम रूप पढ़ा गया। वानेएव आखि़री बार देखने के लिए उसकी प्रतिलिपि अपने साथ ले गया। एक प्रतिलिपि मेरे पास रह गयी। दूसरे दिन सुबह जब मैं ठीक की हुई कापी लेने वानेएव के पास गयी तो नौकर ने बताया कि वह रात को ही कहीं चला गया है। व्लादीमिर इलिच से पहले ही तय कर लिया गया था कि कुछ गड़बड़ी हो जाये तो मुझे उनके दोस्त चेवोतारयोव से पूछताछ करनी चाहिए। चेवोतारयोव केन्द्रीय रेलवे प्रशासन के स्टाफ़ में मेरे साथ काम करता था। व्लादीमिर इलिच उसके यहाँ रोज़ भोजन करने जाते थे। चेवोतारयोव अपने दफ़्तर में नहीं था। मैं उसके घर गयी। व्लादीमिर इलिच भोजन करने वहाँ नहीं पहुँचे थे। स्पष्टतः वे गिरफ़्तार हो गये थे। बाद में दिन में पता चला कि हमारे दल के कई लोग गिरफ़्तार कर लिये गये हैं। ‘राबोचिए’ की जो प्रति मेरे पास थी उसे सुरक्षा के लिए नीनाजर्द को दे दिया। नीना स्कूल की मेरी पुरानी दोस्त थी, बाद में उसकी स्त्रूव से शादी हो गयी। हममें से और लोग गिरफ़्तार न कर लिये जाये, इसलिए तय हुआ कि राबोचिए फि़लहाल न निकाला जाये।

यद्यपि व्लादीमिर इलिच के सेण्ट पीटर्सबर्ग के इस निवास काल का कार्य उल्लेखनीय या ऊपर से देखने में कुछ ख़ास नहीं है। फिर भी वास्तविक रूप में यह काल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। ख़ुद उन्होंने भी इसे महत्त्वपूर्ण कहा है। यह दिखायी पड़ने वाला काम नहीं था। यह वीरनायकोचित कारनामों का नहीं बल्कि जनता से घनिष्ठ सम्पर्क बनाने, उसको नज़दीक से जानने और उनकी आकांक्षाओं का माध्यम बनने, उनका विश्वास प्राप्त करने की शिक्षा लेने और उन्हें अपने साथ लाने का काम था। लेकिन सेण्ट पीटर्सबर्ग का यह कार्यकाल ही वह समय था, जिसने व्लादीमिर इलिच को मेहनतकश जनता के नेता के रूप में ढाला।

 

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2017


 

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