आरएसएस का “गर्भ विज्ञान संस्कार” – जाहिल नस्लवादी मानसिकता का नव-नाज़ी संस्करण

डॉ. पावेल पराशर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नस्लवादी एजेण्डा, जो इनके राजनैतिक पूर्वजों यानी जर्मनी की नाज़ी पार्टी का भी प्रमुख एजेण्डा था, आए दिन ख़ुद इन्हीं के द्वारा बेनकाब होता रहता है। आरएसएस की स्वास्थ्य विंग आरोग्य भारती ने “गर्भ विज्ञान संस्कार” नाम से एक प्रोज़ेक्ट शुरू किया है। इसके तहत गर्भ से “उत्तम सन्तति”, यानी लम्बी, गोरी नस्ल के शिशु पैदा करने के लिए माँ-बाप को तीन महीने का एक कोर्स करना पड़ता है। इस कोर्स में ग्रह नक्षत्रों की दिशा-दशा के आधार पर युगलों के सहवास का समय और तरीक़ा तय किया जाता है, ताकि “उत्तम” नस्ल के बच्चे पैदा हों। यह प्रोज़ेक्ट पिछले एक दशक से गुज़रात में चल रहा है और 2015 से इसे राष्ट्रव्यापी स्तर पर लॉन्च किया जा चुका है। संघ की शिक्षा विंग “विद्या भारती” की मदद से इस प्रोज़ेक्ट के फि़लहाल दस ब्रांच हैं जो गुज़रात और मध्यप्रदेश में स्थित हैं। जल्द ही यूपी और बंगाल में भी इसे फैलाने का प्रोग्राम है और 2020 तक एक “श्रेष्ठ” नस्ल पैदा करने की परियोजना है।

”गर्भ में आर.एस.एस. का आदर्श बच्चा”
— कार्टून:अभिषेक, छात्र, आई.आई.टी. कानपुर

यह प्रोज़ेक्ट जो प्रथम दृष्टया ही जहालत और पोंगापन्थ का एक बेजोड़ नमूना है, उसकी अवैज्ञानिकता पर तो बाद में बात की जाये। फि़लहाल बात इस पर होनी ज़्यादा ज़रूरी है कि जो ये “श्रेष्ठ” नस्ल के लम्बे गोरे बच्चे पैदा करने की मानसिकता है, वह इनके राजनैतिक पूर्वजों यानी जर्मन नाज़ियों के “नस्ली शुद्धता” के फासीवादी सिद्धान्त से उधार ली हुई है।
हिटलर के दौर में नाज़ी पार्टी ने जो नस्लवादी नफ़रत का प्रचार किया, उसमें आर्य नस्ल को श्रेष्ठ नस्ल के रूप में स्थापित करने और यहूदियों, अश्वेतों, भूरों को निम्न नस्ल और दूषित रक्त के रूप में प्रचारित करते हुए घृणा का प्रसार किया गया। हिटलर के नेतृत्व में कथित “श्रेष्ठ” आर्य नस्ल की शुद्धता को बरक़रार रखने के नाम पर नाज़ियों ने ऐसे ही जाहिल और अमानवीय वैज्ञानिक शोधों पर पानी की तरह पैसा बहाया था। जोसफ़ मेंजेल नामक डॉक्टर के रूप में एक नाज़ी हत्यारा था जिसे नाज़ियों ने औश्विट्ज़ यातना शिविर का मुख्य डॉक्टर नियुक्त किया था। उस यातना शिविर में किसको श्रम के लिए भेजना है और किसको गैस चैम्बर में हत्या के लिए, यह तय करने के साथ-साथ वह जर्मन आर्य नस्ल को “उन्नत” करने के लिए भी शोध करता था। इस शिविर में उसने 3000 बच्चों पर भयानक यातनादायी प्रयोग किये जिसमें दो सौ बच्चे ही ज़िन्दा बचे थे।
अपनी नस्लवादी व रंगभेदी मानसिकता का एक नमूना हाल ही में बीजेपी नेता व आरएसएस की साप्ताहिक पत्रिका ‘पांचजन्य’ के भूतपूर्व सम्पादक तरुण विजय ने कुछ दिनों पहले ही दक्षिण भारतीय लोगों पर रंगभेदी टिप्पणी करते हुए दे डाला था।
हमारे देश के ये संघी फासिस्ट तो जहालत के मामले में नाज़ियों से भी दो क़दम आगे हैं। ये जाहिल, मूर्ख और मध्ययुगीन मानसिकता वाले हैं, इसमें तो कोई शक की गुंजाइश नहीं, लेकिन यह नस्लवादी विचारधारा जो इनके रग-रग में बसी है, उसकी भी नंगी नुमाइश 21वीं सदी में ये स्वदेशी फ़ासिस्ट अब बिना किसी शर्म या संकोच के कर रहे हैं। इनके इस “गर्भ विज्ञान” का वैसे तो कोई वैज्ञानिक आघार भी नहीं है। लेकिन सही मायने में “उत्तम सन्तति” यानी स्वस्थ जच्चा-बच्चा की बात की जाये, तो वह इनकी सरकार के एजेण्डा में दूर-दूर तक कहीं नहीं है। साल दर साल स्वास्थ्य बजट में कटौती करती मोदी सरकार इस तथ्य की बेशर्मी के साथ अनदेखी करती आयी है कि मातृत्व मृत्यु दर, मातृत्व, शिशु व बाल कुपोषण के आँकड़ों के मामले में भारत दुनिया के सबसे पिछड़े देशों की क़तार में खड़ा है। सरकारी आँकड़े के अनुसार, देश की 75 फीसदी माँओं को पोषणयुक्त भोजन नहीं मिलता। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, यू.एन.ए़फ.पी.ए. और विश्व बैंक द्वारा तैयार की गयी ‘मैटर्नल मॉर्टेलिटी रिपोर्ट’ (2007) के अनुसार, पूरी दुनिया में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान 5.36 लाख स्त्रियाँ मर जाती हैं। इनमें से 1.17 लाख मौतें सिर्फ़ भारत में होती हैं। भारत में प्रसव के दौरान 1 लाख में से 450 स्त्रियों की मौत हो जाती है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मृत्यु के 47 फीसदी मामलों में कारण ख़ून की कमी और अत्यधिक रक्तस्राव होता है।
ऐसे में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को दुरुस्त करने, सुरक्षित प्रसव के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने व सरकारी अस्पतालों को प्रसव के ज़रूरी उपकरणों से लैस करने के बजाय ग्रह नक्षत्रों के आधार पर सहवास और गर्भधारण का समय तय करने जैसी बेहूदा और जाहिल परियोजनाओं को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है, वह एक ख़तरनाक प्रवृत्ति है जिसका विरोध होना चाहिए। साथ ही ऐसी मानसिकता का भी विरोध ज़रूरी है जो अपने इस जाहिल नस्लवादी खुमार में इंसान के प्राकृतिक गुणों को दोयम दर्जे का स्थापित करते हुए कोयल जैसी आवाज़, चीते जैसी चाल और कुत्ते जैसी वफ़ादार “श्रेष्ठ” नस्ल पैदा करने की महत्वाकांक्षा रखता है।

 

मज़दूर बिगुल, मई 2017


 

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