दिल्ली आँगनवाड़ी महिलाओं का लम्बा और जुझारू संघर्ष!

 विशेष संवाददाता

इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक दिल्ली की आँगनवाड़ी की कार्यकर्ताएँ और सहायिकाएँ अपनी यूनियन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में अपनी हड़ताल के पचासवें दिन में प्रवेश कर चुकी है। यह हड़ताल दिल्ली के मज़दूर आन्दोलन के इतिहास में एक ऐतिहासिक हड़ताल बन चुकी है। देश और दुनिया के अन्य कोनों से इसे कई यूनियनों का समर्थन भी प्राप्त हो रहा है। जहाँ एक तरफ़ तो यह हड़ताल आँगनवाड़ी महिलाओं के साहस और बहादुरी की एक मिसाल बन गयी है, वहीं अरविन्द केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी का मज़दूर एवं स्त्री विरोधी चेहरा भी पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है।

आज के इस दौर में अगर आपकी तनख़्वाह सिर्फ़ 2500 और 5000 हो और वो भी दिल्ली जैसे शहर में, तो क्या आप चुप रहेंगे? क्या इस अन्याय के खि़लाफ़ आवाज़ बुलन्द नहीं करेंगे? और अगर ऐसा करेंगे तो क्या आपको ही जि़म्मेदार ठहराया जायेगा? न्याय का तक़ाज़ा तो ये नहीं है, पर दिल्ली की आँगनबाड़ी महिला कामगारों के साथ ऐसा हो रहा है। पूरी रिपोर्ट नीचे पढ़ें –

ज्ञात हो कि जून की 28 तारीख़ से दिल्ली की आँगनवाड़ी की महिलाएँ अपनी यूनियन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में हड़ताल पर हैं। रिपोर्ट के लिखे जाने तक उनका धरना और क्रमिक भूख हड़ताल मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के आवास पर जारी है। हड़ताल में हज़ारों की संख्या में वर्कर्स और हेल्पर्स शामिल हो रहे हैं। ख़ुद को ‘आम आदमी’ की सरकार कहने वाली अरविन्द केजरीवाल की सरकार कितनी मज़दूर-विरोधी, ग़ैर-जनवादी और संवेदनहीन हो सकती है, इसका पता आँगनवाड़ी महिलाओं की हड़ताल को देखकर लगाया जा सकता है।

आखि़र आँगनवाड़ी की महिलाएँ हड़ताल पर क्यों गयीं?

जैसाकि पहले भी 2015 में बिगुल के पन्नों पर ख़बर आ चुकी है कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में आँगनवाड़ी महिलाओं की 23 दिन लम्बी चली हड़ताल जीतने के बाद मुख्यमन्त्री केजरीवाल ने स्वयं यूनियन के साथ एक लिखित समझौता किया था, जिसमें उन्होंने आँगनवाड़ी महिलाओं की सभी माँगों को स्वीकार किया था। लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी दिल्ली सरकार ने हमारी मुख्य माँगों को लागू नहीं किया। पिछले दो सालों से महिलाओं ने यूनियन के बैनर तले कभी दिल्ली सचिवालय पर तो कभी केजरीवाल के आवास पर प्रदर्शन किया। लेकिन इतने पर भी सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो यूनियन के नेतृत्व में आँगनवाड़ी महिलाओं ने फै़सला लिया कि इस साल अप्रैल में होने वाले नगर निगम के चुनाव में आँगनवाड़ी की महिलाएँ अपने परिवारों के साथ मिलकर ‘आम आदमी पार्टी’ का पूर्ण बहिष्कार करेंगी।

आम आदमी पार्टी का नगर निगम चुनाव में बुरी तरह से हारने का एक कारण आँगनवाड़ी की वर्कर्स और हेल्पर्स के द्वारा किया गया बहिष्कार भी था। चुनाव के बाद हार से बौखलायी केजरीवाल सरकार ने आँगनवाड़ी की ग़रीब महिलाओं से बदला निकालना शुरू कर दिया।

दिल्ली के उपमुख्यमन्त्री मनीष सिसोदिया जिसके पास शिक्षा विभाग के अलावा  महिला एवं  बाल विकास विभाग भी है, ने दिल्ली के खस्ताहाल पड़े सरकारी स्कूलों का कभी निरीक्षण नहीं किया, लेकिन अलग-अलग आँगनवाड़ी में जाकर निरीक्षण करना शुरू कर दिया। आँगनवाड़ी के खस्ता हालत जैसेकि खाना ख़राब आना, बच्चों का न आना, रजिस्टर में फ़र्ज़ी एण्ट्री होना, इत्यादि के लिए ग़रीब कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को जि़म्मेदार ठहराया गया और तीन कार्यकर्ताओं और तीन सेविकाओं को ‘टर्मिनेट’ करने का फ़रमान सुना दिया गया। जबकि आँगनवाड़ी में खाने में गड़बड़ी के लिए वे एनजीओ जि़म्मेदार हैं, जिन्हें वहाँ के खाने का टेण्डर मिलता है। पिछले दिनों एक अंग्रेज़ी दैनिक ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ में एक ख़बर छपी थी कि जिन एनजीओ को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में मध्यान्तर भोजन के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था, वे एनजीओ अब भी आँगनवाड़ी में खाना देने का काम कर रहे हैं। और इन एनजीओ का रिश्ता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर ‘आम आदमी पार्टी’ से जुड़े एनजीओ ‘कबीर’ और ‘परिवर्तन’ से है (इन दोनों ही एनजीओ को कई सौ करोड़ की विदेशी फ़ण्डिंग साम्राज्यवादी फ़ण्डिंग एजेंसियों से हर साल होती है और दोनों के ही खि़लाफ़ भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के गम्भीर आरोप हैं)! ज़ाहिर है कि अपने ही लोगों द्वारा किये गये घपले-घोटालों के लिए मनीष सिसोदिया आँगनवाड़ी की ग़रीब महिलाओं को जि़म्मेदार ठहरा रहा है और उन्हें दिल्ली की जनता के सामने बदनाम भी कर रहा है। दूसरी ओर सुपरवाइज़र और सीडीपीओ इन महिलाओं पर दबाव डालकर रजिस्टर में फ़र्ज़ी नाम डलवाती हैं, लेकिन किसी सुपरवाइज़र या सीडीपीओ पर आज तक किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सरकार एक तरफ़ आँगनवाड़ी को जानबूझकर बर्बाद कर रही है और दूसरी तरफ़ प्लेस्कूलों (यहाँ भी अपने ही लोगों को) को लाइसेंस दे रही है और मनीष सिसोदिया इन सबका जि़म्मेदार आँगनवाड़ी की ग़रीब वर्कर्स और हेल्पर्स को ठहरा रहा है। ठेकेदारों, प्रॉपर्टी डीलरों, व्यापारियों, कारख़ानेदारों की नुमाइन्दगी करने वाली इस पार्टी का असली चरित्र यही है।

सरकार की इस बदले की कार्रवाई की वजह से आँगनवाड़ी की महिलाओं में ज़बरदस्त गुस्सा भरा हुआ था। साथ ही साथ अरविन्द केजरीवाल सरकार की पिछले दो सालों की वायदा-खि़लाफ़ी और धोखेबाज़ी की याद भी उन्हें थी। अपनी यूनियन के नेतृत्व में महिलाएँ  आन्दोलन की राह पर चलने का मन बना रही थी।

10 जून को ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने आगे की योजना के लिए एक बैठक बुलायी और फै़सला लिया कि आगामी 24 जून को दिल्ली सचिवालय पर 1 दिन का चेतावनी प्रदर्शन किया जायेगा। 24 जून को भारी संख्या में महिलाएँ दिल्ली सचिवालय पहुँचीं। इतनी संख्या में महिलाओं को देखकर सरकार घबरा गयी और मनीष सिसोदिया के ओएसडी ने प्रतिनिधिमण्डल को बातचीत के लिए बुलाया। ओएसडी ने यूनियन को 27 जून को मनीष सिसोदिया से बातचीत का निमन्त्रण दिया।

हड़ताल की शुरुआत

27 जून को जब भारी संख्या में महिलाएँ मनीष सिसोदिया के बँगले (हालाँकि ये ख़ुद को ‘आम आदमी’ कहते हैं और चुनाव से पहले इनके पार्टी के नेताओं ने  बँगले, गाड़ी, सुरक्षा आदि लेने से इनकार किया था) पर पहुँचीं तो पहले पुलिस ने बैरीकेड लगा दिये और अन्दर आने से ही मना कर दिया। लेकिन जब महिलाओं का दबाव बढ़ता गया तो पाँच महिलाओं को यूनियन की अध्यक्षा शिवानी के साथ बात करने के लिए अन्दर जाने दिया गया। लेकिन सिसोदिया बात करने से ज़्यादा महिलाओं को डराने के मूड में था। जब उसे मालूम चला कि महिलाओं के साथ यूनियन की साथी शिवानी भी आयी हैं तो उसने बात करने से ही मना कर दिया। जब प्रतिनिधिमण्डल की महिलाएँ बातचीत की वीडियो रिकॉर्डिंग करने लगी तो सिसोदिया ने कहा कि तुम लोग मेरा स्टिंग ऑपरेशन करने आये हो? यूनियन द्वारा यह कहे जाने पर कि उनकी पार्टी ने ही तो इस बात का ख़ूब हल्ला मचाकर प्रचार किया था कि जब किसी सरकारी अधिकारी से बात करो तो उसकी वीडियो भी बनाओ, इस पर सिसोदिया अपना सा मुँह लेकर रह गया। यूनियन द्वारा यह बात भी रखी गयी कि इस देश का क़ानून कामगारों को यूनियन बनाने का संवैधानिक अधिकार देता है और यह अधिकार छीनने वाली आप सरकार कोई नहीं होती। जब मज़दूर सरकार का प्रतिनिधिमण्डल तय नहीं कर सकते तो केजरीवाल सरकार आँगनवाड़ी महिलाओं का प्रतिनिधिमण्डल कैसे तय कर सकती है? लेकिन सिसोदिया ने यूनियन से बात करने से साफ़ इनकार कर दिया। बात-बात पर संविधान और जनवाद की दुहाई देने वाली ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार कितने संवैधानिक और जनवादी तरीक़े से व्यवहार कर रही थी, यह दिख रहा था। सरकारों से लेकर मालिकान का ये पुराना हथकण्डा रहा है कि जो यूनियन वास्तविक तरीक़े से मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करती है, उसे मान्यता और पहचान दो ही नहीं। मनीष सिसोदिया भी यही कर रहा था।

मनीष सिसोदिया की इस दग़ाबाज़ी से महिलाओं का रोष और बढ़ गया और अब ये केजरीवाल और सिसोदिया से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार थीं। प्रतिनिधिमण्डल ने बाहर आकर जब मनीष सिसोदिया की कारगुज़ारी को बयान किया तो महिलाओं का गुस्सा और बढ़ गया। और तब यूनियन ने 28 जून से हड़ताल की घोषणा कर दी, जिसका मतलब था आँगनवाड़ी सेण्टरों को पूरी तरह से बन्द करना, खाना न बाँटना और सेण्टरों पर ताले लगा देना। इसके साथ ही 30 जून को दिल्ली सचिवालय पर विराट जुटान का आह्वान किया गया।

30 जून को होने वाले प्रदर्शन को लेकर केजरीवाल सरकार में ज़बरदस्त खलबली मची हुई थी। तरह-तरह की दलाल यूनियन, धार्मिक कट्टरवादी संगठन व आम आदमी पार्टी के पिछलग्गुओं ने प्रदर्शन को समर्थन देने के बहाने आन्दोलन को ख़त्म करने की कोशिश की। लेकिन यूनियन ने इस तरह के किसी भी संगठन का समर्थन लेने से साफ़ इनकार कर दिया। 30 जून को लगभग दस हज़ार की भारी संख्या में महिलाओं ने प्रदर्शन में हिस्सेदारी की। ऐसा लग रहा था, जैसे कोई जनसैलाब उमड़ आया हो। प्रदर्शन में यूनियन ने यह फै़सला किया कि मुख्यमन्त्री स्वयं आकर हमसे मिलकर हमारी सारी माँगों को पूरा करें, वरना हम यहीं डटे रहेंगे और रिंग रोड जाम करेंगे। लेकिन जब मुख्यमन्त्री या सरकार का कोई प्रतिनिधि मिलने को तैयार नहीं हुआ तो महिलाओं ने रिंग रोड को चार घण्टे तक जाम रखा। उसके बाद यूनियन ने आम सहमति से यह फै़सला लिया कि आगामी 3 जुलाई से मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के बँगले पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जायेगा। साथ ही, बीच के दो दिनों में यानी 1 और 2 जुलाई को महिलाएँ अपने-अपने इलाक़ों के विधायकों का घेराव करेंगी। विधायकों के घेराव का कार्यक्रम ज़बरदस्त सफल रहा। कई जगह महिलाओं ने रोड जाम किये। और आम आदमी पार्टी के विधायकों को केजरीवाल सरकार की वायदा-खि़लाफ़ी के दुष्परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी।

इसके बाद 3 जुलाई को हज़ारों की संख्या में आँगनवाड़ी महिलाएँ केजरीवाल के आवास के बाहर सिविल लाइन्स पहुँचीं। अभी कार्यक्रम शुरू हुए आधा घण्टा भी नहीं हुआ था कि दिल्ली पुलिस के अधिकारियों द्वारा सरकार का यह सन्देश पहुँचाया गया कि पाँच सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल को अन्दर भेजा जाये। जब प्रतिनिधिमण्डल अन्दर पहुँचा, जिसमें यूनियन की अध्यक्षा शिवानी भी शामिल थी, तो मुख्यमन्त्री कार्यालय के लोगों द्वारा यह कहा गया कि मुख्यमन्त्री केजरीवाल ‘किसी यूनियन’ से बात नहीं करेंगे। एक बार फिर केजरीवाल सरकार की मंशा सभी महिला कामगारों के सामने साफ़ हो गयी। प्रतिनिधिमण्डल ने तय किया कि वे किसी भी वार्ता में यूनियन नेतृत्व के साथ ही हिस्सेदारी करेगी, वरना ऐसी किसी भी वार्ता का बहिष्कार करेंगी। बाहर आकर यही बात आम सभा में रखी गयी। उपस्थित सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से अरविन्द केजरीवाल सरकार के इस रवैये का खण्डन किया और प्रण लिया कि आने वाले दिनों में हड़ताल को और अधिक व्यापक बनाया जायेगा और केजरीवाल सरकार को उसकी वायदा-खि़लाफ़ी का मुँहतोड़ जवाब दिया जायेगा। तब से यूनियन के नेतृत्व में आँगनवाड़ी महिलाओं की हड़ताल जारी है और 6 जुलाई से वे क्रमिक भूख हड़ताल पर हैं। इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि केजरीवाल सरकार यूनियन से बात न करके कामगारों से उनकी सामूहिक मोलभाव की क्षमता को ही छीनना चाहती है, जोकि न सिर्फ़ ग़ैर-क़ानूनी है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के भी खि़लाफ़ है। यूनियन के नेतृत्व से अलग कामगारों को अरक्षित स्थिति में रखकर केजरीवाल-सिसोदिया गुट आँगनवाड़ी महिलाओं को प्रताड़ित और आतंकित करना चाहता था और उन पर हड़ताल ख़त्म करने का दबाव बनाना चाहता था। और यूनियन की उपस्थिति में इन लोगों के लिए ऐसा कर पाना नामुमकिन था। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ से केजरीवाल सरकार के बात न करने का दूसरा कारण यह था कि 2015 की हड़ताल के दौरान इसी यूनियन के साथ केजरीवाल सरकार का लिखित समझौता हुआ था। केजरीवाल-सिसोदिया गिरोह यह जानता था कि अगर वार्ता में यूनियन शामिल होगी तो वह उसे 2015 के लिखित समझौते कि वायदा-खि़लाफ़ी को लेकर घेरेगी और जवाब तलब करेगी। केजरीवाल-सिसोदिया गिरोह इस बात को भी अच्छी तरह समझता था कि जो यूनियन 2015 में भी बिना लिखित समझौते के नहीं मानी थी, वह इस बार भी लिखित में ही मानदेय बढ़ोतरी की माँग मनवायेगी। और यह केजरीवाल-सिसोदिया को करना नहीं था।

3 जुलाई को ही हड़ताल को संचालित करने के लिए एक 25 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। सामूहिक और जनवादी तरीक़े से निर्णय लेने की प्रक्रिया शुरू की गयी। स्ट्राइक फ़ण्ड भी बनाने का निर्णय लिया गया। आँगनवाड़ी सेण्टरों को बन्द करवाने के लिए महिलाओं की ही पिकेटिंग टीमों और हड़ताली दस्तों का गठन किया गया। हड़ताल को सफल बनाने में इन हड़ताली दस्तों का ख़ासा योगदान रहा है। हड़ताली दस्तों की महिलाओं ने अभूतपूर्व साहस और बहादुरी का परिचय दिया। यूँ कहें तो इन हड़ताली दस्तों ने हड़ताल की रीढ़ की हड्डी का काम किया। इसके अलावा हड़ताल-स्थल पर वालण्टियर्स की कोर टीम ने अनुशासन और व्यवस्था बनाये रखने में महती भूमिका अदा की। हड़ताल की पाठशाला में महिला कामगारों की पहलक़दमी न सिर्फ़ खुली बल्कि नयी उड़ानें भरने लगी। हड़ताल के दौरान कई बहनों ने कई गीत, कविताएँ और नज़्में भी रचीं। इस तरीक़े से मेहनतकश स्त्रियों के सर्जनात्मकता के नये आयाम भी सामने आये। साथ ही, यूनियन की तरफ़ से दिल्ली के आम नागरिकों के नाम परचा निकालने का निर्णय भी लिया गया और यह तय किया गया कि इससे लेकर बसों और रिहाइशी इलाक़ों में व्यापक अभियान चलाया जायेगा।

*हड़ताल तोड़ने के लिए दलाल यूनियन केजरीवाल के साथ!*

जब आँगनवाड़ी की महिलाओं की यह जुझारू हड़ताल पूरी दिल्ली में फैल गयी और लगभग सभी आँगनवाडि़यों में काम पूरी तरह ठप्प हो गया, तब से तरह-तरह के बिचौलिये, दलाल और मज़दूरों के साथ ग़द्दारी करने का रिकॉर्ड बना चुकी दलाल यूनियनें अपने काम में लग गयीं और केजरीवाल का साथ देने लगीं।

इन दलाल यूनियनों में सबसे अग्रणी नाम सीटू की कमला वाली यूनियन का है। सीटू, जिनका इतिहास मज़दूरों के साथ ग़द्दारी का है, बंगाल से लेकर केरल तक जिनकी माता चुनावी पार्टी माकपा मज़दूरों पर गोलियाँ बरसा चुकी है, जो गुण्डों से पिटवाने और मालिकों का खुल्ला साथ देने के लिए बदनाम है, वह भला दिल्ली में आँगनवाड़ी की महिलाओं से ग़द्दारी करने और उनकी हड़ताल तुड़वाने में पीछे कैसे रह सकती थी! कमला जो पहले भी 2015 में हड़ताल तुड़वाने के लिए आयी थी, लेकिन महिलाओं ने उसे भगा दिया था, अब वह तरह-तरह की चालों के ज़रिये यह काम करने लगी। पहले वह यूनियन को समर्थन देने के बहाने हड़ताल में घुसने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी यह चाल जब क़ामयाब नहीं हुई तो वह यूनियन के साथियों के खि़लाफ़ कुत्सा-प्रचार करने में जुट गयी। इससे भी जब काम नहीं बना तो कमला और सीटू ने अपना नाम बदलकर ‘स्वतन्त्र आँगनवाड़ी कर्मचारी और सहायिका संघ’ के नाम से पर्चा निकाला और महिलाओं में भ्रम फैलाने का काम किया और 10 जुलाई को मनीष सिसोदिया के आवास को घेरने का आह्वान किया। जबकि यूनियन पहले ही मनीष सिसोदिया से उसके घर पर मुलाक़ात करने गयी थी, पर वहाँ बात न बन पाने के कारण ही हड़ताल का निर्णय लिया गया था। ज़ाहिर है कि कमला की यह चाल हड़ताल तोड़ने की ही थी।

लेकिन कमला और सीटू की ग़द्दारी का पर्दाफ़ाश आँगनवाड़ी की महिलाओं ने दमदार तरीक़े से किया। सिसोदिया के घर पर कमला अपनी 3 चमचियों के साथ ही पहुँची और उसका प्रदर्शन पूरी तरह से ‘फ़्लॉप शो’ साबित हुआ।

दूसरा एक दलाल रामकरण है, जिसने 2015 में ही आँगनवाड़ी के साथ शुरू हुए आशा वर्कर्स के आन्दोलन को डुबाने का काम किया था। इस हड़ताल की शुरुआत में रामकरण खुलकर केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी की पैरवी कर रहा था और महिलाओं के सामने बड़ी-बड़ी डींगें हाँक रहा था कि अगर वे ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ को छोड़कर उसके साथ आ जायें तो वह उनका केजरीवाल के साथ समझौता करवा देगा और सारी माँगें मनवा देगा। अब वह यह झूठ फैला रहा है कि शिवानी की वजह से ही माँगें पूरी नहीं हो रही हैं। रामकरण, जिसने आशा वर्कर्स के साथ ग़द्दारी की और अब वही काम वह आँगनवाड़ी की महिलाओं के साथ करने की कोशिश कर रहा था, को एक दफ़ा फिर महिलाओं ने माक़ूल जवाब दिया।

सोचने वाली बात तो यह है कि एक तरफ़ केजरीवाल और सिसोदिया हमारी यूनियन से बात करने को तैयार नहीं होते हैं, जिनके साथ आँगनवाड़ी की महिलाएँ हैं, लेकिन उन सारी दलाल यूनियनों से बात करने को राज़ी हैं जिनके साथ कोई नहीं है। ऊपर से यह “केजरीवाल और सिसोदिया गैंग” झूठी अफ़वाहें फैलाने में माहिर है। हद तो तब हो गयी जब सिसोदिया ने 5 जुलाई को एक फ़र्ज़ी यूनियन ‘दिल्ली आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स एसोसिएशन’, जिसमें सुपरवाइज़र और सीडीपीओ शामिल थे, के साथ मिलकर ‘मानदेय बढ़ाने की’ और ‘हड़ताल ख़त्म होने’ की घोषणा भी कर दी। इसी से इस दोमुँही केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी के चरित्र का पता चलता है। और यहीं से इनकी सरकार के झूठ और फ़र्ज़ीवाड़े का सिलसिला भी शुरू हो जाता है।

 लेकिन इस फ़र्ज़ी यूनियन से फ़र्ज़ी समझौते के बाद भी आँगनवाड़ी महिलाओं की हड़ताल ख़त्म नहीं हुई, बल्कि और ज़्यादा व्यापक और मज़बूत बनने लगी। केजरीवाल सरकार की समझ में आ गया था कि फ़र्ज़ी यूनियन बनाकर समझौता करने वाला दाँव उल्टा पड़ गया है। अब हड़ताल तोड़ने के लिए वह नये फ़र्ज़ीवाड़े की तलाश में थी। इस फ़र्ज़ीवाड़े को अंजाम देने की लिए अरविन्द केजरीवाल सरकार ने अपनी पार्टी के विधायकों को ही काम पर लगाया। विधायकों से कहा गया कि अपने-अपने इलाक़ों की आँगनवाड़ी महिलाओं से बात करके आन्दोलन को ख़त्म कराया जाये। लेकिन यह फ़ार्मुला बुरी तरह से फेल हो गया। जब इससे भी बात नहीं बनी, तो 15 जुलाई को अरविन्द केजरीवाल ने अपने ही आवास पर अपनी पार्टी के विधायकों, एनजीओ के चेले-चपाटों, सुपरवाइज़र-सीडीपीओ और कुछ ग़द्दारों-चमचों के साथ मिलकर यह घोषणा कर दी कि जल्द ही मानदेय बढ़ाया जायेगा। यह फ़र्ज़ीवाड़े में नम्बर वन इनकी सरकार का नया फ़र्ज़ीवाड़ा था। इस फ़र्ज़ीवाड़े का जवाब आँगनवाड़ी की महिलाओं ने धरना-स्थल पर 17 जुलाई को एक बड़ी प्रेस कांफ्रें़स करके दिया। प्रेस कांफ्रें़स में बड़ी संख्या में मीडियाकर्मियों ने शिरकत की। हज़ारों की संख्या में महिलाएँ भी उपस्थित थीं। उस दिन बारिश भी जमकर हो रही थी, लेकिन महिलाओं के हौसले बुलन्द थे और केजरीवाल सरकार के फ़र्ज़ीवाड़े के प्रति रोष भी ज़बरदस्त था। प्रेस कांफ्रें़स में यूनियन की अध्यक्षा शिवानी द्वारा न सिर्फ़ केजरीवाल सरकार के आँगनवाड़ी महिलाओं के साथ फ़र्ज़ीवाड़े की पोल-पट्टी खोली गयी, बल्कि आईसीडीएस स्कीम (समेकित बाल विकास योजना) में अरविन्द केजरीवाल सरकार और इनकी पार्टी से जुड़े एनजीओ के भ्रष्टाचार को भी बेपर्द किया गया। प्रेस कांफ्रें़स के बाद महिलाओं में जोश और उत्साह और बढ़ गया।

केजरीवाल सरकार इससे काफ़ी बौखला गयी थी। मानदेय बढ़ोतरी की नक़ली घोषणा इसके गले की फाँस बन गयी थी। और दूसरी तरफ़ हड़ताल ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी, बल्कि हर बीतते दिन के साथ और आगे बढ़ रही थी। इसके बाद 18 जुलाई को यूनियन द्वारा घोषणा की गयी कि अगर आने वाले 3 दिनों के भीतर अरविन्द केजरीवाल सरकार ने यूनियन से बातचीत नहीं की और मानदेय बढ़ोतरी को लेकर कोई लिखित आश्वासन यूनियन को नहीं दिया तो बवाना विधान सभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव में आँगनवाड़ी महिलाओं द्वारा अरविन्द केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी का पूर्ण सक्रिय बहिष्कार किया जायेगा और बवाना की जनता को आम आदमी पार्टी की सरकार के फ़र्ज़ीवाड़े और फ़रेब से अवगत कराया जायेगा।  हालाँकि आज दिल्ली का बच्चा-बच्चा जानता है कि अरविन्द केजरीवाल की सरकार कितनी बड़ी फ्रॉड और नौटंकीबाज़ है! जब 3 दिन का समय बीतने के बाद भी अरविन्द केजरीवाल सरकार द्वारा बातचीत का कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया तो 21 जुलाई से बड़े ज़ोर-शोर के साथ बवाना में आम आदमी पार्टी की सरकार के खि़लाफ़ बहिष्कार अभियान की शुरुआत की गयी। इस सम्बन्ध में बवाना की जनता के नाम यूनियन की तरफ़ से एक परचा भी निकाला गया, जिसमें आप सरकार के फ़र्ज़ीवाड़े की पोल-पट्टी खोली गयी। धरना-स्थल से रोज़ महिलाओं की टीम बवाना जाकर बहिष्कार अभियान चलाने का काम करने लगी। गौरतलब है कि बवाना में आम आदमी पार्टी के विधायक वेद प्रकाश के भाजपा में शामिल होने के बाद वहाँ की सीट ख़ाली पड़ जाने के कारण उपचुनाव की घोषणा की गयी थी। यह इस बात का ही सबूत है कि तमाम चुनावबाज़ पार्टियों में नाम और चुनाव-चिन्ह की भिन्नता के अलावा और कुछ भी अलग नहीं है। सबका काम असल में जनता को लूटना-खसोटना ही है।

इसके बाद 22 जुलाई को हड़ताल के दबाव और बवाना में बहिष्कार अभियान के डर के चलते अरविन्द केजरीवाल को अपने ट्विटर हैण्डल से ट्वीट करके कहना पड़ा कि आँगनवाड़ी वर्करों का मानदेय बढ़ाकर 9678 रुपये और हेल्परों का मानदेय बढ़ाकर 4839 रुपये कर दिया जायेगा। लेकिन यह कब से किया जायेगा, इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया गया था। यह ट्वीट केजरीवाल ने आँगनवा‍ड़ी कर्मचारियों की 25 दिन से चल रही हड़ताल के बाद किया था, जिसका नेतृत्व ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ कर रही थी।  इस हड़ताल के कारण पिछले 25 दिनों से आँगनवाडि़यों का काम दिल्ली  में पूरी तरह से ठप्प हो गया था। इसी दबाव में आकर केजरीवाल सरकार ने यह ट्वीट किया था। लेकिन इस ट्वीट को लेकर अरविन्द केजरीवाल के घर के बाहर धरने पर बैठी हज़ारों औरतों को कोई भरोसा नहीं था। सभी के ज़ेहन में एक ही बात थी – जब यूनियन के साथ 2015 में किये गये लिखित समझौते का केजरीवाल सरकार ने 2 वर्षों तक नंगा उल्लंघन किया जो कि एक क़ानूनी दस्तावेज़ था, तो फिर एक ट्वीट पर कैसे भरोसा कर लिया जाये।  यूनियन के नेतृत्व की स्पष्ट राय थी कि सरकार और सरकारी काम ट्विटर पर नहीं चलते हैं। अगर केजरीवाल सरकार सच बोल रही थी तो फिर उसे या तो केजरीवाल के ही घर के बाहर यूनियन के नेतृत्व में धरने पर 25 दिनों से बैठी हज़ारों महिलाओं के साथ आकर लिखित समझौता करना चाहिए या फिर उसे एक सरकारी आज्ञा अथवा अधिसूचना जारी करके स्पष्ट तौर पर बताना चाहिए कि ये बढ़े हुए मानदेय कब से लागू होंगे। साथ ही इस क़रारनामे अथवा सरकारी आज्ञा में इस बात का वचन भी दिया जाना चाहिए कि 25 दिनों से हड़ताल पर बैठी आँगनवाड़ी वर्करों व हेल्परों को बाद में हड़ताल के लिए निशाना नहीं बनाया जायेगा, उन्हें बहानेबाज़ी करके किसी भी प्रकार से परेशान या दण्डित नहीं किया जायेगा। इन वायदों के बिना और यूनियन से समझौते अथवा सरकारी आज्ञा अथवा गजेट जारी किये बिना हड़ताल समाप्त करने का प्रश्न ही नहीं उठता है। यूनियन पदाधिकारियों व वर्करों-हेल्परों का कहना था कि जब केजरीवाल सरकार ने दो वर्षों तक एक क़ानूनी समझौते का पालन नहीं किया तो हम एक ट्वीट पर भरोसा कैसे कर सकते हैं? केजरीवाल सरकार जिस क्षण ऐसा समझौता करेगी अथवा सरकारी आज्ञा या गजेट जारी करेगी, जिसमें उपरोक्त  शर्तों का उल्लेख किया गया हो, उसी समय हड़ताल समाप्त कर दी जायेगी।

इस बिगुल संवाददाता से बातचीत में ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ की अध्यक्षा शिवानी  ने कहा, ”पिछले कुछ दिनों में हमारी हड़ताल को तोड़ने के लिए केजरीवाल सरकार ने हरसम्भव प्रयास किया है। सुपरवाइज़रों व आईसीडीएस स्कीम अधिकारियों की नक़ली यूनियन बनाकर उसके साथ समझौते की बात प्रेस में फैलाना, जब वह भी काम नहीं आया तो अपने ही पार्टी के कार्यकर्ताओं व एनजीओ के लोगों के साथ दूसरी फ़र्ज़ी यूनियन बनाकर समझौते की अफ़वाह फैलाने जैसी हास्यास्पद कार्रवाइयों के ज़रिये हमारी हड़ताल को तोड़ने का प्रयास किया गया है। लेकिन जब ऐसा करने में केजरीवाल सरकार कामयाब नहीं हुई तो अब हड़ताल के भारी दबाव में आकर मुख्यमन्त्री केजरीवाल ने यह ट्वीट किया है। लेकिन अगर केजरीवाल सरकार ने हमारी यूनियन के साथ ख़ुद मिलकर किये गये लिखित समझौते का दो वर्षों तक उल्लंघन किया, जिसके पालन के लिए वह क़ानूनी तौर पर बाध्य है, तो फिर हम महज़ एक ट्वीट पर भरोसा करके अपनी हड़ताल ख़त्म कैसे कर दें? अगर केजरीवाल सरकार अपने मुख्यमन्त्री के इस ट्वीट में की गयी घोषणा को लेकर गम्भीर है, तो फिर उसे मुख्यमन्त्री के घर के बाहर ही बैठी हज़ारों आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं से आकर लिखित समझौता करना चाहिए या फिर एक सरकारी आज्ञा या गजेट जारी करके स्पष्ट करना चाहिए कि मानदेय बढ़ोत्तरी कितनी होगी और किस तारीख़ से लागू होगी और साथ ही उसे यह लिखित घोषणा भी करनी चाहिए कि किसी भी हड़ताली कर्मचारी को बाद में निशाना नहीं बनाया जायेगा या उसे नाजायज़ तरीक़े से दण्डित या परेशान करने का प्रयास नहीं किया जायेगा। यूनियन के साथ किये गये ऐसे लिखित क़रारनामे अथवा सरकारी अधिसूचना या गजेट के बिना हम अपनी हड़ताल समाप्त करने की भूल नहीं करेंगे। सरकार की ओर से ऐसे संवाद के बिना हम कभी सुनिश्चित नहीं हो सकते कि यह हमारी हड़ताल को तोड़ने का एक नया प्रयास नहीं है। सरकारें ट्विटर पर नहीं चलती हैं। जिस सरकार के लिए क़ानूनी समझौते का कोई मूल्य नहीं है, उसके लिए एक ट्वीट का क्या मूल्य हो सकता है? इसलिए सरकार को आधिकारिक प्रक्रिया का पालन करते हुए उस यूनियन से समझौता करना चाहिए जिसके नेतृत्व में हज़ारों आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने 25 दिन से यह हड़ताल जारी रखी है, अथवा, यदि उन्हें डर लगता है, तो वे एक सरकारी अधिसूचना या गजेट जारी कर दें जिसमें उपरोक्त शर्तों का स्पष्ट शब्दों में जि़क्र हो। इसके बिना हड़ताल समाप्त  करने का प्रश्न ही नहीं उठता।”

 अरविन्द केजरीवाल सरकार के इस नए फ़र्ज़ीवाड़े के जवाब में 24 जुलाई को ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में हज़ारों आँगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स ने रामलीला मैदान से जन्तर-मन्तर तक अपनी महारैली का आयोजन किया गया। रामलीला मैदान से जन्तर-मन्तर तक की यह रैली एक ऐतिहासिक रैली थी। यह आँगनवाड़ी महिलाओं की दिल्ली के दिल में दस्तक थी। इस  महा रैली में 10000-12000 आँगनवाड़ी कर्मियों ने शिरकत की। जन्तर-मन्तर पर एक प्रेस कांफ्रें़स का भी आयोजन किया गया। मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान यूनियन के सदस्यों ने बताया कि हड़ताल को ख़त्म करवाने के सारे प्रयासों के असफल होने के बाद केजरीवाल सरकार ने दबाव में आकर दो दिनों पहले यह घोषणा की कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाकर 9678 रुपये और सहायिकाओं का मानदेय बढ़ाकर 4839 रुपये कर दिया जायेगा। लेकिन इस क़दम की जि़म्मेदारी केजरीवाल सरकार ने उपराज्यपाल के ऊपर डाल दी है, जबकि केजरीवाल सरकार हमेशा से यह कहती रही है कि पुलिस, ज़मीन व न्याय-व्यवस्था के अतिरिक्त दिल्ली सरकार किसी भी मामले में उपराज्यपाल पर निर्भर नहीं है और वह हर फ़ैसला उपराज्यपाल के हस्तक्षेप या आज्ञा के बिना ले सकती है। ऐसे में, वह मानदेय बढ़ाने के लिए उपराज्यपाल की आज्ञा की बात क्यों कर रही है? क्या अपने प्रचार पर 1000 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा धन ख़र्च करने का फ़ैसला केजरीवाल सरकार ने उपराज्यपाल के पास फ़ाइल भेजकर किया था? या अपने विधायकों का वेतन ढाई लाख करने से पहले केजरीवाल सरकार ने उपराज्यपाल से पूछा था? अगर नहीं, तो हमारा मानदेय बढ़ाने पर यह नौटंकी क्यों? इसी से पता चलता है कि इन घोषणाओं पर तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता है, जब तक कि केजरीवाल सरकार मानदेय की बढ़ोत्तरी और यह बढोत्तरी कब से लागू होगी, उसकी तिथि किसी सरकारी अधिसूचना अथवा गजेट में जारी नहीं करती। यूनियन प्रवक्ता वृशाली ने कहा कि हड़ताल आज ही ख़त्म की जा सकती है, बशर्ते कि केजरीवाल सरकार ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ को लिखित क़रारनामा देकर यह वायदा करे कि मानदेय बढ़ाया जायेगा, उक्त तिथि से बढ़ाया जायेगा और किसी भी हड़ताली वर्कर या हेल्पर को बाद में बदले की भावना से सताया नहीं जायेगा। लेकिन केजरीवाल सरकार उसी यूनियन से डरी हुई है और बात करने को तैयार नहीं है जिससे उसने 2015 में लिखित समझौता किया था। इसका मूल कारण यह है कि केजरीवाल सरकार की मज़दूर-विरोधी नीति है जो कि उसे यूनियनों को मान्यता देने से रोकती है।

प्रेस कांफ्रें़स के दौरान यूनियन अध्यक्षा शिवानी ने कहा, ”कई लोग सोच रहे होंगे कि केजरीवाल सरकार द्वारा वर्करों व हेल्परों का मानदेय बढ़ाने की घोषणा के बाद भी यूनियन हड़ताल को ख़त्म क्यों नहीं कर रही है। आज हम हज़ारों की संख्या में रामलीला मैदान से जन्तर-मन्तर चलकर मीडियाकर्मी साथियों को यही बताने आये हैं। हमसे 2015 में स्वयं मुख्यमन्त्री केजरीवाल ने एक क़ानूनी लिखित क़रारनामा करके यह वायदा किया था कि हमारा मानदेय बढ़ा दिया जायेगा, इसके अलावा छह माँगें भी उन्होंने लिखित तौर पर स्वीकार की थीं। लेकिन इस क़ानूनी तौर पर बाध्यताकारी क़रारनामे के बावजूद 2 वर्षों तक हमसे धोखा किया गया और क़रारनामे को लागू नहीं किया गया। अन्त में थककर हमें हड़ताल पर जाना पड़ा। लेकिन केजरीवाल सरकार ने अपना मज़दूर-विरोधी रवैया दिखलाते हुए यूनियन से बात करने से ही इंकार कर दिया और हड़ताल ख़त्म करवाने के लिए हर प्रकार का फ़र्ज़ीवाड़ा किया, जैसे कि सुपरवाइज़र, अधिकारियों, एनजीओपन्थियों या अपनी ही आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को लेकर नक़ली यूनियनें बनाना और उनसे फ़र्ज़ी समझौतों की अफ़वाहें फैलाना। जब ये तमाम चालें नाकामयाब हो गयीं, तो केजरीवाल ने पहले ट्वीट किया और फिर सिसोदिया ने प्रेस सम्मलेन कर पत्रकारों को बताया कि मानदेय में बढ़ोत्तरी कर दी जायेगी। अब आप ही बतायें कि हमने 27 दिनों से धूप, बारिश, गर्मी में यह हड़ताल और धरना जारी रखा है, तो क्या एक ट्वीट या प्रेस बयान के आधार पर हम इसे ख़त्म कर देंगे? जिस सरकार के लिए क़ानूनी क़रारनामे का कोई मूल्य नहीं है, उसके मुख्यमन्त्री के ट्वीट या उपमुख्यमन्त्री के प्रेस बयान का क्या मूल्य हो सकता है? हम क्यों न मानें कि उपराज्यपाल के पाले में बॉल इसलिए डाल दी गयी है, ताकि हमारी हड़ताल ख़त्म करवायी जा सके? इसलिए हम दो सूरत में ही हड़ताल ख़त्म करेंगे : या तो सरकार यूनियन से बात करके लिखित क़रारनामे में वायदा करे कि बढ़ा हुआ मानदेय इस तिथि से लागू होगा और किसी भी हड़ताली कर्मचारी को सताया नहीं जायेगा; या फिर, वह एक सरकारी गजेट या अधिसूचना जारी करे, जिनमें उपरोक्त शर्तों का जि़क्र हो। हम इस खुले मंच से और मीडियाकर्मी साथियों के ज़रिये सारे दिल्लीवासियों को बता देना चाहते हैं कि हड़ताल करना हमारा शौक़ नहीं है; मगर 5000 या 2500 रुपये में घर नहीं चल सकता। हम केजरीवाल सरकार पर भरोसा नहीं करते, क्योंकि पिछले ढाई साल में हमें धोखे, झूठे वायदों और खोखली घोषणाओं के अलावा कुछ नहीं मिला है। हम आज इसी वक़्त हड़ताल ख़त्म करने को तैयार हैं, अगर केजरीवाल सरकार हमारी यूनियन के साथ लिखित समझौता करे। लेकिन उसके बिना हमें सरकारी अधिसूचना या गजेट का इन्तज़ार करना ही होगा। दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पीता है। यह सच है कि केजरीवाल सरकार का दम्भ टूटा है, लेकिन अभी पूरी तरह से नहीं टूटा है। वह यूनियन से इस क़दर डरी हुई है कि उसका सामना करने की उसकी हिम्मत नहीं है। इसीलिए वह बन्द कमरों में ही सारे काम कर रही है। इसके बचे-खुचे दम्भ को भी यूनियन तोड़ देगी और बवाना उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार का आँगनवाड़ी वर्करों व हेल्परों द्वारा पूर्ण सक्रिय बहिष्कार तब तक जारी रहेगा, जब तक कि केजरीवाल सरकार यूनियन से बात नहीं करती। पिछले दो दिनों से सैकड़ों आँगनवाड़ी महिलाओं ने बवाना जाकर आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार का ज़बरदस्त भण्डाफोड़ किया है। यह भण्डाफोड़ अभियान तब तक जारी रहेगा, जब‍ तक कि यूनियन को डिलेजिटिमाइज़ करने की केजरीवाल सरकार की साजि़श ख़त्म नहीं होती और सरकार यूनियन से वार्ता में नहीं उतरती।”

यूनियन की लीडिंग कमेटी की सदस्या हुमा क़ाज़ी ने बिगुल संवाददाता से बातचीत में बताया कि ”वही मनीष सिसोदिया जो कि 27 जून को आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के प्रतिनिधिमण्डल से बात करने या मानदेय बढ़ाने की माँग को सुनने को भी तैयार नहीं थे, वे दो दिन पहले प्रेसकर्मियों के सामने घडि़याली आँसू बहा रहे थे कि हम बेचारी आँगनवाड़ीकर्मियों को कितना कम मानदेय मिलता है। यह नौटंकी किसी को मूर्ख नहीं बना सकती। अगर आपका दिल इतना ही जार-जार था, तो पिछले दो वर्षों में अपनी सरकार द्वारा किया गया वायदा पूरा क्यों नहीं किया? यूनियन के साथ वार्ता क्यों नहीं की? अपने सुपरवाइज़रों व सीडीपीओ अधिकारियों द्वारा हमें डराने, धमकाने और यहाँ तक कि हम पर हमला करवाने की कोशिशें क्यों कीं? सच यह है कि हमारी अभूतपूर्व रूप से सफल हड़ताल को तुड़वाने का केजरीवाल सरकार का हर प्रयास असफल रहा। 95 प्रतिशत आँगनवाडि़याँ बन्द हैं। इसके भारी दबाव में आकर केजरीवाल सरकार ने अपनी हार को स्वीकार किया है और मानदेय बढ़ोत्तरी का दावा किया है। लेकिन अब दावों और वादों का वक़्त बीत चुका है। हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या। जब हमसे लिखित क़रारनामा किया जायेगा या सरकारी अधिसूचना जारी हो जायेगी, तो ही हम हड़ताल ख़त्म करेंगे।”

24 जुलाई की महारैली ने आँगनवाड़ी महिलाओं की हड़ताल में नयी ऊर्जा और उत्साह का संचार कर दिया। ट्वीट के फ़र्ज़ीवाड़े के बाद इतनी बड़ी रैली अरविन्द केजरीवाल सरकार के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं थी। दिल्ली सरकार के मन्त्रिमण्डल में खलबली मची हुई थी। अब एक नये फ़र्ज़ीवाड़े का वक़्त आ चुका था। और आँगनवाड़ी हड़ताल के एक माह पूरे होने पर केजरीवाल सरकार ने एक नया फ़र्ज़ीवाड़ा शुरू कर भी दिया। वह ऐसा जता रही थी कि केजरीवाल के घर के बाहर बैठी हज़ारों आँगनवाड़ी महिलाकर्मी वास्तव में आँगनवाड़ी कर्मचारी हैं ही नहीं! कुछ पत्रकारों ने जब केजरीवाल के मुख्यमन्त्री कार्यालय से पूछा कि उनकी सरकार मानदेय बढ़ोत्तरी पर सरकारी अधिसूचना क्यों नहीं ला रही है या फिर वह यूनियन से समझौता क्यों नहीं कर रही है, तो उनके सचिव ने जवाब दिया कि वास्तव में जो दस हज़ार आँगनवाड़ी कर्मचारी केजरीवाल के निवास के बाहर बैठे हैं, वे आँगनवाड़ी कर्मचारी हैं ही नहीं, वे तो किसी राजनीतिक षड्यन्त्र के तहत पैसे देकर बुलाई गयी औरतें हैं। इस बयान से केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी किस स्तर तक नीचे गिर सकती है, यह उसने दिखला दिया है। हज़ारों औरतें जो कि 5 हज़ार या ढाई हज़ार रुपये महीने पर दिल्ली की 11 हज़ार आँगनवाडि़यों में खटती हैं, उन्हें एक झटके में ही केजरीवाल सरकार ने भाड़े पर बुलाई गयी औरतें बता दिया। असलियत यह थी कि केजरीवाल सरकार की मंशा में खोट थी और इसीलिए वह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ से बात करने में घबरा रही थी। एक तरफ़ तो वह एक माह से धरने पर बैठी हज़ारों औरतों को कर्मचारी मानने से और उनकी यूनियन को मान्यता देने से इंकार कर रही थी, और दूसरी ओर वह अपने ही पार्टी के गुण्डों, एनजीओ के भ्रष्टाचारियों और आँगनवाड़ी योजना में जमकर हेराफेरी करने वाली सुपरवाइज़रों और आईसीडीएस अधिकारियों को अपने कमरों में बुला रही थी, और उन्हें ही फ़र्ज़ी यूनियन के तौर पर स्थापित करके, उनसे ही समझौता कर ले रही थी। इससे भी मज़ाकि़या बात यह थी कि वह इसी फ़र्ज़ी यूनियन से बाद में अपने आपको मानदेय बढ़ोत्तरी की ट्विटर घोषणा पर धन्यवाद ज्ञापन भी करवा रही थी! और यह सब तब जबकि हज़ारों आँगनवाड़ी महिलाकर्मी गर्मी, धूप, बारिश के बावजूद केजरीवाल के घर के ठीक बाहर धरना दे रही थीं। इस नये फ़र्ज़ीवाड़े का जवाब 28 जुलाई को हज़ारों कर्मचारियों ने मीडियाकर्मियों के समक्ष अपने आईकार्ड लहराकर बताया कि वे आँगनवाड़ी कर्मचारी हैं और अगर मुख्यमन्त्री केजरीवाल और उपमुख्यमन्त्री सिसोदिया को रत्ती-भर भी शर्म है तो उन्हें ऐसे झूठ, फ़रेब और फ़र्ज़ीवाड़े के लिए चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए।

‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने बयान जारी कर कहा, ”केजरीवाल ने यह नया बयान देकर फ़र्ज़ीवाड़े और झूठ-फ़रेब का नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। अगर बाहर बैठी औरतें आँगनवाड़ी की कर्मचारी नहीं हैं, तो दिल्ली की 11 हज़ार आँगनवाडि़याँ अभी तक बन्द क्यों हैं? अगर आँगनवाड़ी की औरतें हड़ताल पर नहीं हैं, तो ये आँगनवाडि़याँ चल क्यों नहीं रहीं हैं? अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके एनजीओपन्थी लग्गू-भग्गू चाहे जितना भी झूठ बोल लें, आज मीडियाकर्मियों ने इनकी सच्चाई को देख लिया है। उन्होंने स्वयं इन हज़ारों महिलाओं के आईकार्ड, नियुक्ति पत्र आदि जाँचें और पाया कि केजरीवाल के घर के बाहर बैठी हज़ारों महिलाएँ वास्तव में आँगनवाड़ी की हड़ताल पर बैठी कार्यकर्ताएँ व स‍हायिकाएँ ही हैं। अब मीडियाकर्मियों को केजरीवाल सरकार से इन सफे़द झूठ के बारे में पूछना चाहिए। सच तो यह है कि केजरीवाल सरकार ने जानबूझकर मानदेय बढ़ोत्तरी की बात उपराज्यपाल पर डाल दी है, ताकि हड़ताल ख़त्म हो सके। हड़ताल के कारण इनके हाथ-पाँव फूल गये हैं। यूनियन का नाम सुनते ही इनकी रातों की नींदें उड़ जाती हैं। लाख झूठ, अफ़वाहबाज़ी, धोखेबाज़ी, फ़र्ज़ी यूनियनें बनाने, धमकियाँ दिलवाने और आम आदमी पार्टी के टुच्चे गुण्डों से हमले करवाने के बावजूद वे इस अभूतपूर्व और ऐतिहासिक हड़ताल को तोड़ने में नाकाम रहे हैं। नतीजतन, वे ऐसी तरक़ीबों पर उतर आये हैं, जिनका इस्तेमाल उठाईगीर, सेंधमार, चोर और उचक्के करते हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए कि दिल्ली की जनता ने उन्हें भारी बहुमत से सत्ता दी, और उन्होंने दिल्ली की जनता को कुछ नहीं दिया। पिछले तीन वर्षों में हर विभाग के मज़दूरों व कर्मचारियों को देर से वेतन मिलना, वेतन न मिलना, झूठे वायदे करना, आदि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आँगनवाड़ी कोई अपवाद नहीं है। लेकिन आँगनवाड़ी महिलाओं ने तय कर लिया है कि बढ़े हुए मानदेय का यूनियन के साथ लिखित समझौता या फिर सरकार गजेट या अधिसूचना के बिना हड़ताल जारी रहेगी। केजरीवाल व सिसोदिया के ऐसे सस्ते और सड़कछाप झूठों से हड़ताल नहीं टूटने वाली।”

हज़ारों आँगनवाड़ी महिलाओं का स्पष्ट तौर पर मानना था कि केजरीवाल सरकार को सरकार चलाने का एबीसी भी नहीं आता। वरना आँगनवाड़ी की महिलाकर्मियों से बैर लेने की मूर्खता वह नहीं करती। महिलाकर्मियों ने अभी तो अपने बहिष्कार से केवल एमसीडी चुनावों में आम आदमी पार्टी को हरवाया है। बवाना उपचुनाव में भी अब आम आदमी पार्टी को मज़ा चखाया जायेगा। आँगनवाड़ी महिलाओं के यूनियन नेतृत्व में चल रहे सक्रिय बहिष्कार अभियान को ज़बरदस्त सफलता मिल भी रही है। सभी महिलाएँ सुनिश्चित करेंगी कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की ज़मानत ज़ब्त हो जाये। डेढ़ साल बाद के विधानसभा चुनावों में भी इनका सक्रिय बहिष्कार कर इन्हें हरवायेंगे, अगर ये हमारी माँगों की सुनवाई नहीं करते और यूनियन से बात नहीं करते। असल में केजरीवाल सरकार को पूरी दिल्ली में फैली 22 हज़ार आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की ताक़त का अन्दाज़ा नहीं है। इन्होंने आँगनवाड़ी महिलाओं को  कर्मचारी मानने से इंकार किया है, अब यही महिलाएँ इन्हें अपने बहिष्कार की ताक़त दिखायेंगी।

अगस्त माह के शुरू होने के साथ ही केजरीवाल सरकार ने आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का मानदेय बढ़ाने की सारी जि़म्मेदारी उपराज्यपाल और चुनाव आयोग के सर पर मढ़ दी है। बहुत सोची-समझी साजि़श के तहत केजरीवाल ने मानदेय बढ़ोतरी की फ़ाइल तब उपराज्यपाल के पास भेजी, जब बवाना उप चुनाव बिल्कुल सिर पर आ गया, ताकि वो अपनी ज़िम्मेदारी से बच जाये और वेतन न बढ़ने का सारा ढीकरा उपराज्यपाल और चुनाव आयोग पर फोड़ा जा सके।

वैसे तो उपराज्यपाल का इस मसले से कोई लेना देना नहीं था। अपने विधायकों की तनख़्वाह बढ़ाने में और अपने प्रचार-प्रसार में 526 करोड़ ख़र्च करने के लिए तो केजरीवाल सरकार ने राज्यपाल से कोई अनुमति नही माँगी। केजरीवाल सरकार अगर चाहती तो 24 जून को ही, जिस दिन 2015 के बाद बड़ी संख्या में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने पहला प्रदर्शन किया था, मानदेय बढ़ोतरी का फ़ैसला ले सकती थी। पर इस फ़ैसले को जानबूझकर टाला गया। केजरीवाल ने अलग-अलग “आँगनवाड़ी कर्मचारियों” से मुलाक़ात का ढोंग रचा, पर उस यूनियन से बात करने से इनकार कर दिया जो इस हड़ताल का नेतृत्व कर रही है। और अब ऐन वक़्त पर सारी ज़िम्मेदारी से दिल्ली सरकार पल्ला झाड़ रही है। इस पूरे घटनाक्रम से साफ़ है कि केजरीवाल सरकार ने जानबूझकर आचार संहिता लगने के बाद ही वेतन बढ़ाने की घोषणा की, ताकि यह मामला रुक जाये और जि़म्मेदारी भी उनके सर न आये। वास्तविकता तो यह है कि केजरीवाल सरकार वेतन बढ़ाना ही नहीं चाहती है।

अरविन्द केजरीवाल सरकार की इस लगातार जारी वायदा-खि़लाफ़ी को देखते हुए हड़ताल की लीडिंग कमिटी ने 4 अगस्त को फिर एक ज़बरदस्त कार्यक्रम की योजना बनायी। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में हज़ारों आँगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स ने राजघाट से दिल्ली सचिवालय तक ‘आँगनवाड़ी आक्रोश रैली’ का आयोजन किया। 15 अगस्त के मद्देनज़र दिल्ली पुलिस कार्यक्रम को लेकर आना-कानी कर रही थी, लेकिन महिलाओं की ताक़त के आगे आखि़र उसे भी झुकना पड़ा। दिल्ली सचिवालय पहुँचकर महिलाओं ने ज़बरदस्त नारेबाज़ी की और अपनी सभा को चलाया। लेकिन केजरीवाल महाशय उस दिन भी नदारद थे।

इसके बाद 11 अगस्त को, दिल्ली विधान सभा सत्र के आख़री दिन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ की अगुवाई में हड़ताल पर बैठी दिल्ली आँगनवाड़ी की हज़ारों महिलाओं ने केजरीवाल सरकार की वायदा-खि़लाफ़ी के विरोध में सिविल लाइन्स से विधान सभा तक रैली निकाली और दिल्ली विधानसभा का घेराव किया। इस रैली के कार्यक्रम की जानकारी दिल्ली पुलिस को भी नहीं थी। हज़ारों की संख्या में जब आँगनवाड़ी की महिलाओं ने दिल्ली विधान सभा का रुख़ किया तो पुलिस के भी होश उड़ गये। आनन-फ़ानन में पुलिस को सारी तैयारियाँ करनी पड़ी। एक बार फिर महिलाओं ने लगभग एक घण्टे के लिए रिंग रोड जाम कर दिया और विधानसभा के सामने केजरीवाल के खि़लाफ़ जमकर नारेबाज़ी की। इसी दिन केजरीवाल के आवास के बाहर सिविल लाइन्स पर इन हज़ारों आँगनवाड़ी कर्मियों ने दिल्ली विधानसभा के समान्तर अपनी असेम्बली भी चलायी। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ द्वारा आयोजित आँगनवाड़ी की इस असेम्बली में हज़ारों महिलाओं ने भाग लिया। इस असेम्बली में आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की माँगें केजरीवाल सरकार द्वारा न माने जाने के कारण आम आदमी पार्टी के विरोध में पाँच प्रस्ताव भी पारित हुए। इस असेम्बली के आखि़री सत्र में मीडिया के सामने वे दस्तावेज़ दिखाये गये जिनसे यह साबित किया गया कि आँगनवाड़ी के पूरे कार्य में केजरीवाल सरकार द्वारा घोटला किया जा रहा है। इस असेम्बली में पास हुए पाँच प्रस्ताव थे – पहला, बवाना में रहने वाली आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और उसका परिवार 23 अगस्त को वहाँ होने वाले उपचुनाव में आप पार्टी का बहिष्कार करेगा। दूसरा, अगर आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की माँगें नहीं मानी गयीं तो 2020 में दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में आप पार्टी का पूर्ण बहिष्कार किया जायेगा। तीसरा, केजरीवाल सरकार द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रमों का आँगनवाड़ी महिलाएँ बहिष्कार करेंगी। चौथा प्रस्ताव था दिल्ली सरकार की मज़दूर-विरोधी  नीतियों को दिल्ली के लोगों के बीच गलियों में, बसों में अभियान चलाकर ले जाया जायेगा और केजरीवाल सरकार की असलियत का पर्दाफ़ाश किया जायेगा। और पाँचवाँ प्रस्ताव था कि आईसीडीएस स्कीम में दिल्ली सरकार द्वारा किये गये घोटाले को लेकर ‘भ्रष्टाचार निरोधक शाखा’ में शिकायत की जायेगी व दिल्ली हाईकोर्ट में इसी सम्बन्ध में जनहित याचिका भी लगायी जायेगी।

हड़ताल के पचासवें दिन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। हड़ताल के दौरान कई सांस्कृतिक टीमों द्वारा हड़ताली महिलाकर्मियों के उत्साहवर्धन के लिए कार्यक्रम किये गये। इनमें प्रमुख थे – निशान्त नाट्य मंच, संगवारी, हसरतें आदि।

हड़ताल के दौरान कुछ दुखद घटनाओं का सामना भी करना पड़ा। इसी दौरान एक महिलाकर्मी का खराब स्वास्थ्य के कारण देहान्त हो गया। यूनियन द्वारा उनके परिवार के लोगों से मिलकर संवेदनाएँ व्यक्त की गयीं। साथ ही, यह निर्णय भी लिया गया कि स्ट्राइक फ़ण्ड से उनके परिवार की आर्थिक मदद भी की जाये।

आँगनवाड़ी की महिलाएँ अपनी यूनियन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में ज़बरदस्त और शानदार तरीक़े से अपनी हड़ताल को चला रही हैं और अपनी एकता के दम पर ज़रूर दिल्ली सरकार को झुकायेंगी!

 

मज़दूर बिगुल,अगस्त 2017


 

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