नोएडा में सैम्संग के नये कारख़ाने से मिलने वाले रोज़गार का सच

बिगुल डेस्क

इसी महीने प्रधानमंत्री मोदी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने नोएडा में सैम्संग के विस्तारित कारख़ाने का उद्घाटन किया। इसे दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री बताया जा रहा है। पहले से मौजूद कारख़ाने को करीब 35 एकड़ अतिरिक्त ज़मीन पर विस्तारित किया गया है। सैम्संग इस समय देश में 6.70 करोड़ मोबाइल फोन बना रही है और इस कारख़ाने के चालू हो जाने के बाद यह संख्या बढ़कर 12 करोड़ हो जायेगी। पिछले 20 वर्ष से भारत में मौजूद सैम्संग के नोएडा और तमिलनाडु में दो कारख़ाने हैं जहाँ यह देश में बिकने वाले अपने मोबाइल सेट का 90 प्रतिशत उत्पादन करती है। इसके करीब 45,000 कर्मचारी हैं।

मोदी ने फैक्ट्री का उद्घाटन करते हुए बड़े ज़ोर-शोर से दावा किया कि यह कारख़ाना ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता की मिसाल है और इससे हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा। नई फैक्ट्री से कितने लोगों को रोज़गार मिला यह तो अभी पता नहीं लेकिन सैम्संग कैसा रोज़गार दे रही है, यह जानना ज़रूरी है। नोएडा कारख़ाने में 1000 से अधिक ठेके के मज़दूर हैं जिन्हें 12-12 घण्टे काम करने के बाद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिलती। स्थायी मज़दूरों को मिलने वाली कोई भी सुविधा उन्हें नहीं मिलती। कारख़ाने के मज़दूरों की कोई यूनियन नहीं है और अतीत में जिसने भी यूनियन बनाने की कोशिश की उसे निकाल दिया गया।

वैसे सैम्संग के इस नये कारख़ाने को ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता के तौर पर पेश करना ही सच्चाई से कोसों दूर है। वास्तव में फ़ोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस फ़ैक्ट्री में बनेंगे ही नहीं। सारे बने-बनाये पुर्जे़ सैम्संग की विदेशों में स्थित फ़ैक्टरियों से आयात किये जायेंगे और यहाँ पर केवल उनकी असेम्बलिंग की जायेगी। तमाम बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सस्ते श्रम की तलाश में विकासशील देशों में अपने कारख़ाने लगाती हैं। मोदी सरकार ने ‘व्यापार करने में आसानी’ के नाम पर पहले से ही खोखले हो चुके ज़्यादातर श्रम क़ानूनों को और भी लचर बना दिया है ताकि कम्पनियाँ बेरोकटोक मज़दूरों का शोषण कर सकें। इसी लालच में सैम्संग भारत में अपना कारोबार बढ़ा रही है।

अपने कर्मचारियों के साथ बदसलूकी के मामले में सैम्संग दुनिया भर में बदनाम है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) के समक्ष इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कॉन्फ़ेडरेशन तथा कोरिया की कई ट्रेड यूनियनों द्वारा रखी गयी रिपोर्ट के अनुसार कम्पनी ने अपने मज़दूरोंकी जासूसी करने और उन्हें आतंकित करने की एक व्यवस्था लागू कर रखी है, यूनियन के सदस्यों को बर्खास्त कर देती है, जिन सप्लायरों के यहाँ यूनियन है उनसे कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म कर देती है, समझौतों का पालन नहीं करती, मज़दूरों के साथ फ़र्ज़ी कॉन्ट्रैक्ट बनाती है और मैनेजरों को श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने के लिए निर्देश जारी करती है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह से सैम्संग अपने कर्मचारियों और अपने सप्लायरों के लिए काम करने वाले लोगों को अँगूठे के नीचे दबाकर रखने के लिए रिश्वत, धमकियों, गुण्डागर्दी, नौकरी से निकालने और यहाँ तक कि अपहरण जैसे हथकण्डों का इस्तेमाल करती रही है। रिपोर्ट बताती है कि सैम्संग के 200 कर्मचारी ल्यूकेमिया, लिंफ़ोमा और अन्य पेशागत बीमारियों से ग्रस्त हो चुके हैं फिर भी कम्पनी प्रोडक्शन में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स का ब्यौरा देने से तब तक इंकार करती रही जब तक कि अदालत ने इस वर्ष सैम्संग की गोपनीयता नीति के विरुद्ध आदेश नहीं जारी किया। बीमार मज़दूरों में से 76 की मृत्यु हो चुकी है जिनमें से ज़्यादातर की उम्र 22 से 36 के बीच थी।

आई.एल.ओ. के समक्ष सुनवाई में सैम्संग की ‘’ग्रीनिंग’’ प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया जिसे मानने के लिए कम्पनी के सप्लायरों को बाध्य किया जाता है। इसके तहत मज़दूरों को यूनियन में शामिल होने से रोकने के लिए छोटे-छोटे लालच दिये जाते हैं, मज़दूरों के परिवारों पर इसके लिए दबाव डाला जाता है और स्थानीय यूनियनों में अगुआ भूमिका निभाने वाले मज़दूरों को निकाल दिया जाता है। इसमें विस्तार से यह बताया गया कि यूनियन तोड़ने के लिए सैम्संग किस हद तक जाती है। उल्सान स्थित सैम्संग के सर्विस सेंटर के एक कर्मचारी का मामला उदाहरण के तौर पर पेश किया गया जिसका मैनेजरों द्वारा अपहरण कर लिया गया था। वे उसे जबरन कार में बैठाकर दसियों किलोमीटर दूर एक टापू पर ले गये जहाँ उसका फ़ोन छीन लिया गया और उसे एक कमरे में बन्द कर दिया गया। उससे कहा गया कि अगर वह यूनियन से हटने के लिए राज़ी नहीं हुआ तो उस टापू से बाहर नहीं निकल सकेगा।

कम्पनी के दूसरे नम्बर के मालिक जे वाई. ली को एक पूर्व राष्ट्रपति को रिश्वत देने के आरोप में जेल की सज़ा भी हो चुकी है। इसी वर्ष अप्रैल में दक्षिण कोरियाई अधिकारियों ने यूनियन बनाने के प्रयासों में तोड़-फोड़ करने के आरोपों की जाँच करने के लिए सैम्संग के मुख्यालय पर छापा भी मारा था।

सैम्संग ही नहीं, भारत के सस्ते श्रम को लूटने और विशाल बाज़ार का लाभ उठाने के लिए यहाँ उत्पादन कर रही तमाम कम्पनियों का यही हाल है। एक और कोरियाई कम्पनी, एलजी की नोएडा स्थित इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री में मज़दूरों के हालात के बारे में पीपुल्स यूनियन ऑफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स ने 2016 में एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक वर्षों से मज़दूरों के वेतन में नहीं के बराबर बढ़ोत्तरी हुई थी और उनके काम की स्थितियाँ बहुत ख़राब थीं। हर मज़दूर को रोज़ाना 25-40 मिनट अतिरिक्त काम करना पड़ता था जिसके कोई पैसे नहीं मिलते थे।

रिपोर्ट कहती है: ‘’…काम की अधिकता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2003-05 में करीब 300 मज़दूर प्रति दिन 1000 यूनिट उत्पाद तैयार करते थे जबकि आज रोज़ 2500 यूनिट उत्पादन हो रहा है मगर मज़दूरों की संख्या घटकर 180 रह गयी है।’’

रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि किस तरह से कम्पनी ने तरह-तरह के हथकण्डे इस्तेमाल करके मज़दूरों को ट्रेड यूनियन बनाने से रोका जो कि संविधान में दिया गया एक मौलिक अधिकार है। जब मज़दूरों ने अपना माँगपत्रक तैयारा किया और अपनी यूनियन के लिए वार्ता तथा रजिस्ट्रेशन के वास्ते 11 प्रतिनिधि अपने बीच से चुने तो कम्पनी ने मज़दूरों में फूट डालने के लिए प्रतिनिधियों सहित 150 कर्मचारियों को ‘सुपरवाइज़री भत्ता’ देना शुरू कर दिया। उसने मज़दूरों के माँगपत्रक को देखने से भी इंकार कर दिया। उप श्रमायुक्त (डीएलसी) के सामने मामला उठने पर कम्पनी ने कहा कि मज़दूर नेताओं को मज़दूरों का ‘प्रतिनिधित्व’ करने का अधिकार नहीं है क्योंकि उन्हें सुपरवाइज़री ग्रेड में तनख्वाह मिल रही है और वे सुपरवाइज़र का काम कर रहे हैं। डीएलसी ने मैनेजमेंट के पक्ष में आदेश दिया और इसी के आधार पर यूनियन के रजिस्ट्रेशन के लिए मज़दूरों का आवेदन भी ख़ारिज कर दिया गया।

‘मेक इन इंडिया’ अभियान और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में निर्माण करने के लिए न्यौता देने से रोज़गार पैदा होने के दावे किस तरह का रोज़गार पैदा कर रहे हैं इसका एक उदाहरण चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी वीवो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड भी है। भारतीय बाज़ार में इसका प्रवेश दिसम्बर 2015 में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत हुआ था और यह आईपीएल 2017 की प्रायोजक भी थी। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में स्थित इसकी निर्माण इकाई उस समय सुर्खियों में आई जब कम्पनी ने आईपीएल सत्र के समापन पर अपने एक हज़ार कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया और इससे नाराज़ कर्मचारियों ने 25 जुलाई 2017 को इसके विरोध में फै़क्टरी में तोड़फोड़ की। मज़दूरों का कहना था कि पिछले दो महीनों के दौरान कई हज़ार और मज़दूरों को भी किसी-न-किसी बहाने से निकाला जा चुका है।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2018


 

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