भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी को मिले समर्थन के लिए अभिवादन

अन्धकार है घना! पर संघर्ष है ठना!!

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) ने लोकसभा चुनाव में पहली बार रणकौशलात्मक भागीदारी की थी। चुनाव के नतीजे भी सामने आ चुके हैं। चुनाव में भाजपा ने पूँजीपजियों के पुरज़ोर समर्थन से, आरएसएस के व्यापक नेटवर्क और ईवीमएम के हेरफेर से प्रचण्ड बहुमत के साथ जीत हासिल की। हालाँकि जनता में इस जीत के प्रति संशय का माहौल बना हुआ है। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का चुनाव में यह भागीदारी रणकौशलात्मक हस्तक्षेप था जिसके तहत चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया और जनता के बीच पूँजीवादी चुनावी पार्टियों और पूँजीपतियों के रिश्ते का भी भण्डाफोड़ किया लेकिन अभी छोटा संगठन होने के कारण हमारा प्रचार एक सीमित आबादी तक ही पहुँच सका। साथ ही पार्टी ने मज़दूर वर्ग के स्वतंत्र पक्ष के रूप में ख़ुद को पेश किया। चुनाव प्रचार में देश के विभिन्न हिस्सों में पार्टी को मज़दूरों, ग़रीब किसानों, रेहड़ी-खोमचा लगाने वाले, छोटे दुकान वाले और आम नौकरीपेशा लोगों में अच्छा समर्थन मिला और इस दौरान कई इलाक़ों में पार्टी की छोटी वालण्टियर कोर भी खड़ी हो गयी है। हमें अपने प्रचार और प्राप्त हुए वोटों की संख्या का मूल्यांकन करना होगा, इस प्रचार के दौरान सामने आये सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर भी बात करनी होगी ताकि हम आने वाले दौर में इस रणकौशलात्मक हस्तक्षेप को और अधिक कारगर बना सकें। हमने चार राज्यों में सात सीटों पर भागीदारी की। वोट के लिहाज़ से पहला चुनाव लड़ रही पार्टी का अहमदनगर, महराजगंज, कुरुक्षेत्र और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में सन्तोषजनक प्रदर्शन था। हालाँकि जनसमर्थन को केवल वोट के ज़रिये नहीं मापा जा सकता है।

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली व उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट पर भागीदारी

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की उम्मीदवार अदिति को उत्तर-पश्चिमी दिल्ली सीट पर 1464 वोट मिले और उत्तर-पूर्वी दिल्ली से योगेश को 544 वोट ही मिले। उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में एक बहुत बड़ी आबादी ने अदिति और पार्टी के प्रचार को स्वीकार किया परन्तु यह समर्थन वोट में नहीं झलका। यह पूँजीवादी चुनाव में सम्भव भी नहीं है क्योंकि इस चुनाव में वोट को पैसे, दारू और मुर्गा खिलाकर, जाति-धर्म के आधार पर बाँटकर खरीदा जाता है। एक बहुत बड़ी आबादी यह भी सोचती है कि मज़दूर पार्टी वाले बात तो सही कह रहे हैं लेकिन ये लोग चुनाव में जीतेंगे तो है नहीं, तो अपना वोट “बर्बाद” क्यों किया जाये। लेनिन ने भी कहा था कि वोट जनसमर्थन का सही बैरोमीटर नहीं है और असल में किसी पार्टी को कितना जनसमर्थन प्राप्त है यह जनआन्दोलनों, हड़तालों और पार्टी द्वारा चलाये जनअभियानों में जनता की भागीदारी से तय होता है।

साथ ही यह बात भी ग़ौर करने लायक है कि उत्तर बवाना औद्योगिक क्षेत्र, शाहाबाद डेरी, भीम नगर व अनेक मज़दूर वर्गीय रिहायश में एक बड़ी आबादी का दिल्ली का वोट ही नहीं है। मेहनतकशों की एक आबादी मतदान के दिन भी फैक्टरियों में, घरों में काम कर रही थी। निश्चित ही हमारा प्रचार भी अभी व्यापक नहीं था और हम पूरे निर्वाचन क्षेत्र में नहीं पहुँच पाए। कुल 10 विधानसभा क्षेत्रों में से हम 5 विधानसभा में प्रचार कर पाये जिसमें भी सघन तौर पर हम दो विधानसभाओं के कुछ क्षेत्रों में प्रचार अभियान चला पाये। लेकिन धनबल, बाहुबल, जाति-धर्म की राजनीति के बीच हमने मज़दूर वर्ग के स्वतंत्र पक्ष को मज़बूती से रखा और एक बड़ी आबादी ने हमें समर्थन भी दिया।

हमें अनेक मज़दूर यूनियनों व जनसंगठनों का भी समर्थन मिला। दिल्ली घरेलू कामगार यूनियन, दिल्ली आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन और बवाना औद्योगिक क्षेत्र मज़दूर यूनियन ने खुलकर हमें समर्थन दिया।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवार योगेश खड़े हुए थे। यह राजधानी दिल्ली का सबसे घनी आबादी वाला लोकसभा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अनुमानतः 60 फ़ीसदी मज़दूर आबादी रहती है और इसमें भी लगभग 95 फ़ीसदी ठेका मज़दूर हैं। इस क्षेत्र में कई छोटे-छोटे लघु उद्योग सीलमपुर, जाफ़राबाद, करावल नगर, बुराड़ी, मुस्तफ़ाबाद, मौजपुर, खजूरी इलाकों में हैं। पार्टी का प्रचार भी इस वर्ग पृष्ठभूमि के चलते सीलमपुर चौक, खजूरी चौक के आसपास पर केन्द्रित रहा। RWPI ने मज़दूर आबादी और निम्नमध्यम वर्गीय आबादी के बीच अपने चुनावी प्रचार में ठेका प्रथा समाप्त करने, न्यूनतम मज़दूरी 20,000 रुपये करने और रोज़गार गारण्टी क़ानून पारित करने व अन्य मज़दूरवर्गीय माँगों को ज़ोरदार ढंग से उठाया। पार्टी के उम्मीदवार योगेश को इलाके के बादाम मज़दूरों का व्यापक समर्थन मिला परन्तु अधिकतर बादाम मज़दूरों के पास मतदाता पहचान पत्र है ही नहीं। करावलनगर मज़दूर यूनियन और दिल्ली आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन ने लोकसभा चुनाव में हमारा समर्थन किया। इस क्षेत्र में हमारा प्रचार अधिक व्यापक नहीं था जिस कारण वोट की संख्या भी सापेक्षत: कम रही।

महाराष्ट्र में उत्तर-पूर्वी मुम्बई और अहमदनगर से भागीदारी

महाराष्ट्र के उत्तर पूर्वी मुम्बई से बबन सोपान ठोके उम्मीदवार थे। बबन को 344 वोट पड़े । उत्तर पूर्वी लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते है जो कि मानखुर्द शिवाजी नगर ,भांडुप, विक्रोली, मुलुंड, घाटकोपर ईस्ट व घाटकोपर वेस्ट हैं । पार्टी की तरफ से मानखुर्द, शिवाजी नगर और भांडुप के एक क्षेत्र में अभियान चलाया गया। शिवाजी नगर के लल्लू भाई कम्पाउण्ड, साठे नगर, ज़ाकिर हुसैन नगर, पीएमजीपी कॉलोनी, बैगनवाड़ी, मंडला और भाण्डुप के सोनापुर इलाके में घर-घर जाकर अभियान चलाया गया। ये इलाके निम्न मध्यम वर्ग और झुग्गी बस्तियों के इलाके हैं। मुम्बई की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी मानखुर्द गोवंडी और भाण्डुप मुलुण्ड दोनों ही इस लोकसभा क्षेत्र में आते हैं। इन इलाक़ों में स्थानीय मुद्दे जैसे कि अस्पताल बनवाने, देवनार और मुलुण्ड में स्थित डम्पिंग ज़ोन को हटाने, बायो वेस्ट ट्रीटमेंट प्लाण्ट हटाने जैसी समस्याओं को भी विशेष तौर पर उठाया गया। इतनी छोटी-सी अवधि में एक बड़े लोकसभा क्षेत्र के बहुत सारे इलाके तक हम नहीं पहुँच पाये।

अहमदनगर से संदीप लक्ष्मण शकट चुनाव में खड़े हुए थे जिन्हें 3740 वोट मिले। अहमदनगर शहर के सिद्धार्थ नगर, राम वाड़ी, गोकुल वाडी, मालेगाँव, विंसन पुरा के साथ उपनगर इलाक़ों कों में सवेरी, वाणी नगर, यशोदा नगर, श्रमिक नगर आदि में प्रचार अभियान चलाया गया। इस मतदान क्षेत्र में 8 तालुकों के गाँव पड़ते हैं। परन्तु एक छोटी टीम होने के कारण हम सिर्फ 5 तालुकों तक ही जा सके। हालाँकि लम्बे समय से सुधारों की गतिविधियों व पिछले साल अहमदनगर पालिका में एक सीट पर चुनाव लड़ने के कारण एक आबादी हमसे पहले से ही परिचित थी। कुल मिलाकर इस सीट पर भी हम व्यापक प्रचार नहीं कर पाये।

हरियाणा में कुरुक्षेत्र व रोहतक लोकसभा क्षेत्र से भागीदारी

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने कुरुक्षेत्र व रोहतक सीटों पर भागीदारी की। हरियाणा में ग़रीब किसानों, खेत मज़दूरों, मनरेगा मज़दूरों, औद्योगिक श्रमिकों और नौजवान आबादी को केन्द्र में रखते हुए समाजवादी कार्यक्रम का दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार किया गया। दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों में हज़ारों की संख्या में पर्चे बाँटे गये, सैकड़ों नुक्कड़ सभाएँ और गली-बैठकें आयोजित की गयी। जनसम्पर्क अभियानों के दौरान शिक्षा-स्वास्थ्य-रोज़गार-आवास-खेती-मज़दूरी आदि से जुड़े बहुत सारे नये पहलू कार्यकर्ताओं की नज़र में आये।

कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का प्रचार अभियान मुख्यतः खेतिहर आबादी और मनरेगा मज़दूरों के बीच केन्द्रित रहा। यहाँ से पार्टी के उम्मीदवार रमेश खटकड़ थे। इस लोकसभा क्षेत्र में 1467 वोट हासिल हुए। प्रचार अभियान का ज्यादा ज़ोर कलायत और कैथल विधानसभा क्षेत्रों में केन्द्रित रहा क्योंकि यहाँ पर RWPI से जुड़े साथी पिछले लम्बे समय से विभिन्न जन संगठनों के माध्यम से सामाजिक-राजनीतिक काम करते रहे हैं। निश्चित तौर पर मज़दूर पार्टी को जनता के बीच मज़बूत विकल्प के तौर पर उभरने में अभी समय लगेगा लेकिन जहाँ भी प्रचार टीम गयी लोगों ने पार्टी के एजेण्डे का खुलकर समर्थन किया। आने वाले समय में और व्यापक ढंग से पार्टी के समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया जायेगा।

रोहतक से पार्टी के उम्मीदवार इन्द्रजीत थे। यहाँ वोटों की संख्या अपेक्षाकृत कम रही। रोहतक से पार्टी को कुल 277 वोट प्राप्त हुए। दरअसल RWPI से जुड़े कार्यकर्ताओं का इस क्षेत्र में जन कार्य लगभग विश्वविद्यालय केन्द्रित ही रहा है। किन्तु जैसा कि लेनिन ने कहा है कि चुनावों के दौरान क्रान्तिकारियों को अपना समाजवादी एजेण्डा लोगों के बीच ले जाने से चूकना नहीं चाहिए। इसी मकसद से यहाँ पर भी चुनावों में मेहनतकश जन पक्षीय विकल्प प्रस्तुत करने के मकसद से भागीदारी की गयी थी। आगे जैसे ही पार्टी के जनकार्य यहाँ गति पकड़ेंगे तो जनाधार निश्चित रूप से बढ़ेगा।

उत्तर प्रदेश में महराजगंज लोकसभा क्षेत्र में भागीदारी

संसदीय चुनावों में रणकौशलात्मक भागीदारी के तहत उत्तर प्रदेश के महराजगंज लोकसभा क्षेत्र से आरडब्ल्यूपीआई ने प्रमोद कुमार को उम्मीदवार बनाया था। प्रमोद को कुल 2236 वोट मिले। प्रचार अभियान देर से शुरू हो पाने की वज़ह से प्रचार कार्य एक छोटे इलाक़े में ही केन्द्रित रहा। गोरखपुर और नेपाल के बीच पड़ने वाला महाराजगंज जि़ला उद्योग धन्धों को सस्ता श्रम उपलब्ध कराने वाली बेल्ट का हिस्सा है। जिस ग्रामीण इलाक़े को केन्द्रित करके आरडब्ल्यूपीआई ने चुनाव प्रचार किया, उन गाँवों में लगभग हर परिवार से कोई न कोई सदस्य बाहर जाकर मज़दूरी करता है। महराजगंज और आसपास के इलाक़ों में उद्योग-धन्धे नहीं के बराबर हैं। जो चीनी मिलें और अन्य छोटे-मोटे उद्योग थे भी वो बरसों से बन्द पड़े हैं। इसी लोकसभा क्षेत्र में स्थित फरेन्दा में गणेश सुगर मिल, निचलौल के पास गडौरा में भी इसी तरह से चीनी मिल बन्द पड़ी है। चेहरी में कई सौ एकड़ का सरकारी फ़ार्म बेकार पड़ा है। इनको चालू करवाना किसी भी बुर्जुआ चुनावबाज़ पार्टी के लिए चुनावी वायदे में भी शामिल नहीं था। योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद खाद कारख़ाने का उद्घाटन कर दिया लेकिन अभी भी वो कारख़ाना चालू होने का इन्तज़ार कर रहा है। इन बन्द पड़े कारख़ानों में काम करने वालों के करोड़ों रुपये बकाया हैं। मशीनें, सैकड़ों एकड़ ज़मीन, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि पूँजीवादी विकास के मॉडल की भेंट चढ़ गया है। खेती-किसानी की हालत यह है कि पूरे क्षेत्र में हार्वेस्टर-कम्बाइन जैसी मशीनों का व्यापक इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से खेती-किसानी के मौसम में भी लोगों को काम नहीं मिलता है। दिल्ली, मुम्बई, पंजाब, हरियाणा से लेकर खाड़ी देशों तक जाकर हाड़तोड़ मेहनत करने वाली आबादी का परिवार जीवन की बहुत बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम है। छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को 50-100 किमी की दूरी तय करके गोरखपुर जाना पड़ता है। इलाक़े के जो प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कभी खुलते भी हैं, वहाँ भी न तो डॉक्टर हैं, न जाँच उपकरण और न ही दवाइयाँ। आरडब्ल्यूपीआई द्वारा उठाये गये शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार और न्यूनतम मज़दूरी के मुद्दों को जनता का व्यापक समर्थन मिला। बहुत सी महिलाओं ने आरडब्ल्यूपीआई के प्रचार कार्य को आगे बढ़ाने के लिए सभाओं के दौरान सहयोग के डिब्बों में पैसे डाले। बहुत से युवाओं और नागरिकों ने नम्बर दिये। बाज़ारों में प्रचार के दौरान बहुत से रेहड़ी-खोमचा लगाने वालों, सड़क किनारे दुकान लगाने वालों का कहना था कि इस तरह का प्रचार उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। पूरे अभियान के दौरान एक जगह पर कुछ लोगों ने सीधे पैसे की माँग की। बाक़ी सभी जगहों पर लोगों ने बात सुनने के बाद ख़ुद ही आगे बढ़कर सहयोग किया।

एक समय ऐसा भी था जब इस पूरे इलाक़े में कम्युनिस्ट आन्दोलन की ज़मीन थी। कई गाँवों में जाने पर आरडब्ल्यूपीआई के कार्यकर्ताओं के पहुँचते ही लोगों ने लाल झण्डा देखकर घेर लिया। ये वो गाँव थे जहाँ कम्युनिस्टों ने ज़मींदारों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके दलित और पिछड़ी जातियों को बसाया था। कम्युनिस्ट पार्टियों के संशोधनवादी होने के कारण वह जनाधार खिसक कर बसपा, सपा जैसी पार्टियों के जनाधार में तब्दील हो गया। कम्युनिस्टों के संघर्ष से अनुपस्थित होने के कारण ऐसे भी गाँव मिले जो कि कम्युनिस्टों द्वारा ज़मीन कब्ज़ा करके बसाये गये थे। बाद में बड़े कुलकों से उसे कोर्ट से ख़ाली करवा लिया।

आरडब्ल्यूपीआई के प्रचार अभियान की शुरुआत होते ही पूँजीवादी पार्टियों ने योजनाबद्ध तरीक़े से उन इलाक़ों में, जिसमें आरडब्ल्यूपीआई का प्रचार था, पहले तो यह शोर मचाना शुरू किया कि ये लोग वोट काटने के लिए आये हैं। लेकिन जनता का व्यापक समर्थन मिलता देख वह ख़ुद उन्हीं मुद्दों पर बात करने लगे जिन पर आरडब्ल्यूपीआई चुनाव लड़ रही थी। गाँव-गाँव में ग्राम प्रधानों, पूर्व प्रधानों, दलालों आदि के माध्यम से पूँजीवादी पार्टियों द्वारा पैसे बाँटे गये। लोगों का अनुमान था कि अकेले भाजपा के प्रत्याशी ने इस इलाक़े में लगभग 26 करोड़ रूपये बाँटे हैं। कुल मिलाकर आरडब्ल्यूपीआई समाजवादी कार्यक्रम के प्रचार के जिस मुख्य मक़सद को लेकर चुनावों में उतरी थी, उन सभी मुद्दों पर लोगों का बहुत अच्छा समर्थन मिला। कम वोट मिलने की वज़ह पहली तो यह थी कि कम समय होने की वज़ह से हम बहुत छोटे से इलाक़े तक ही पहुँच सके। दूसरे, लोगों में इसका भी थोड़ा असर था कि चूँकि ये जीत नहीं पायेंगे, इसलिए अपना वोट किसी जीतने वाले प्रत्याशी को दिया जाये। तीसरे, इस इलाक़े में संगठन का काम एकदम शुरुआती दौर में है।

कुल मिलाकर कहें तो सबसे प्रमुख सकारात्मक बात यह है कि इस अभियान के ज़रिये चुनाव के दौरान राजनीतिक तौर पर सक्रिय आबादी के बीच हमने समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया। यह सिर्फ मज़दूर वर्ग तक केन्द्रित नहीं रहा बल्कि आम जनता के हर तबके तक हमारी बात पहुँची। इस प्रचार के ज़रिये पूँजीपति वर्ग की पार्टियों का बेहतरीन भण्डाफोड़ भी किया गया। कुछ क्षेत्रों में हमने मज़दूरों के बीच वालण्टियर कोर भी खड़ी की है। वहीं नकारात्मक के तौर पर जो बात उभर कर आयी उसके पीछे एक छोटी पार्टी होने के वस्तुगत कारण अधिक थे जिस कारण हम जनता के व्यापक हिस्से में प्रचार नहीं कर पाये। दूसरा, दिल्ली में रह रही मज़दूर आबादी के एक बड़े हिस्से का वोटर कार्ड यहाँ नहीं है जिस कारण वे वोट नहीं डाल सकते हैं। आगे पार्टी की तरफ़ से इस बाबत मतदाता कार्ड कैम्प भी लगवाये जायेंगे। उन इलाक़ों में प्रचार को अधिक सकारात्मक रूख के साथ लोगों ने सुना और वोट की संख्या भी ठीक रही जहाँ जनता के बीच हमारे संस्थाबद्ध सुधार कार्य चल रहे हैं। पार्टी के नेतृत्व में इस ओर भी विशेष ज़ोर देना होगा, यह कार्य फासीवाद के विरुद्ध हमारी रणनीति का भी अहम हिस्सा है।

आगे का रास्ता क्या होगा

जिन मुद्दों को लेकर हमने संसदीय चुनाव में हस्तक्षेप किया था उन मुद्दों को लेकर ही हमें फिर से जनता के बीच निरन्तर मौजूद रहना होगा। रोज़गार की गारण्टी, ठेका प्रथा का ख़ात्मा, न्यूनतम वेतन 20000 रुपये, नि:शुल्क और समान शिक्षा, नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा, पक्की नालियाँ, साफ़ पीने का पानी व अन्य तात्कालिक माँगों को मौजूदा सरकार के समक्ष रखने के लिए पार्टी हर इलाक़े में मोहल्ला सभाओं का आयोजन करेगी और इन सवालों को लेकर आन्दोलन छेड़ेगी। RWPI सभी मज़दूर साथियों का आह्वान करती है कि वे पार्टी से जुडें और अन्य इंसाफ़पसन्द लोगों को भी जोड़ें। पार्टी समाजवादी कार्यक्रम की दीर्घकालिक माँगों पर भी जनता में लगातार प्रचारित-प्रसारित करती रहेगी।

RWPI एक नवगठित पार्टी है जो पहली बार लोकसभा चुनावों में हिस्‍सेदारी कर रही है। अभी यह अपनी पहचान को स्थापित करने की ही मंज़िल में है। अभी व्यापक मेहनतकश जनसमुदाय तक इस नाम को पहुँचने और स्‍थापित होने में समय लगेगा, जो कि लाज़िमी है, क्‍योंकि यह किसी पूँजीवादी घराने, पूँजीवादी चुनावी ट्रस्टों, एनजीओ, फ़ण्डिंग एजेंसियों आदि के वित्‍तपोषण पर नहीं टिकी है। पूरा चुनाव अभियान RWPI ने जनता के बीच से और प्रगतिशील व्यक्तियों के बीच से जुटाये सहयोग से चलाया और समझा जा सकता है कि लोकसभा के विशाल निर्वाचक मण्डल को पूरी तरह ऐसे प्रचार से समेट पाना भी मुमकिन नहीं होता। कारपोरेट मीडिया का समर्थन आपके पास नहीं होता जिससे कि उस आबादी तक भी आपकी बात पहुँच सके, जिस तक आप स्‍वयं भौतिक रूप में नहीं पहुँच सकते। इन सभी सीमाओं के बावजूद RWPI को अपने प्रचार अभियान और कई लोकसभा सीटों पर वोटों के रूप में भी जनता का अच्छा समर्थन प्राप्त हुआ है। आने वाले समय में इस प्रदर्शन को पार्टी और बेहतर बनायेगी और पूँजीवादी संसद में मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधि और स्वर के रूप में पहुँचेगी। आने वाले समय में RWPI आम मेहनतकश जनता के सभी मुद्दों पर उन्हें गोलबन्द और संगठित करना जारी रखेगी और उसके राजनीतिक विकल्प ‍के तौर पर खड़ी होगी।


 

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