नोएडा के निर्माण मज़दूरों पर बिल्डर माफिया का आतंकी कहर

आनन्द सिंह

नोएडा की गिनती उन स्थानों में होती है जिनको “उभरते हुए” और “चमकते दमकते” भारत का गढ़ कहा जाता है। जगमगाते शॉपिंग मॉल, विश्व-स्तरीय एक्सप्रेसवे, फ्लाईओवर, एफ-वन इंटरनेशनल सर्किट, लक्जरी अपार्टमेंट, विला ये सभी भारत की तरक्की के प्रतीक माने जाते हैं और नोएडा में ये सब देखे जा सकते हैं। पिछले दो दशकों से मुख्य धारा का कॉरपोरेट मीडिया उदीयमान शहरी उच्च मध्य वर्ग को इस तरक्की की दास्तान सुनाकर लम्बे-चौड़े सपने दिखा रहा है, मिसाल के लिए सुख सुविधासम्पन्न अपने घर का सपना। परन्तु, सोचने की बात है कि जिन मज़दूरों की हाड़तोड़ मेहनत से इस तथाकथित विकास की अट्टालिका का निर्माण होता है उनकी दास्तान मीडिया में कहीं नहीं सुनायी देती। मज़दूर खबरों में तभी आते हैं जब कहीं कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटती है और निहायत ही बेशर्मी से बिना किसी तहकीकात के उनको ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है। ऐसी ही एक घटना 28 अप्रैल को नोएडा के एक निर्माणाधीन साइट पर हुई जिसमें सिक्योरिटी गार्डों ने मज़दूरों पर गोली चला दी जिससे कुछ मज़दूर जख्मी हो गये।

28 अप्रैल की सुबह नोएडा के सेक्टर 110 में स्थित थ्री सी लोटस पनाश कम्पनी की निर्माणाधीन साइट के मज़दूरों ने कम्पनी प्रबन्धन के बर्बर आतंक राज का मुज़ाहिरा देखा। उस दिन 8 बजे से चालू होने वाली सुबह की शिफ़्ट में जब मज़दूर काम पर पहुँचे तो वहां उन्हें गेट में अन्दर जाने के लिए बहुत लम्बी लाइन में खड़ा होना पड़ा। इसका कारण यह था कि गेट पर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड एक-एक मज़दूर की सघन सुरक्षा जाँच और एन्ट्री करवाने में काफी समय लगा रहे थे। मज़दूरों ने गार्डों की ढिलाई का विरोध किया क्योंकि काम पर एक मिनट भी देर से पहुँचने पर उन्हें सुपरवाइजर की डाँट और गालियाँ सुननी पड़ती हैं। इसी बात पर गार्डों और मज़दूरों के बीच कहासुनी हो गई और देखते ही देखते गार्डों ने मज़दूरों पर ताबड़तोड़ गोलियाँ चला दीं। मीडिया की ख़बरों के अनुसार दो मज़दूर जख्मी हुए। परन्तु जब बिगुल मज़दूर दस्ता की एक टीम निर्माणाधीन साइट से लगी मज़दूर बस्ती गयी तो वहाँ कुछ मज़दूरों ने बताया कि जख्मी मज़दूरों की संख्या चार तक हो सकती है जिनमें से एक की हालत गम्भीर है और उसकी ज़िन्दगी खतरे में है। जिला अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार केवल एक ही मज़दूर वहां भर्ती हुआ। अन्य मज़दूर किसी निजी अस्पताल में भर्ती किये गये।

पूछताछ करने पर मज़दूरों ने बताया कि सिक्योरिटी गार्ड और सुपरवाइजर आम तौर पर मज़दूरों से गाली-गलौज की ही भाषा में बात करते हैं। कुछ मज़दूरों का कहना था कि ठेकेदार ने पिछले तीन महीने से मज़दूरों का वेतन रोक रखा है। मज़दूरों ने बताया कि उस साइट पर एक अकुशल मज़दूर की दिहाड़ी 140 से 150 रुपये है और कुशल मज़दूरों की 250 रुपये। जब बिगुल मज़दूर दस्ता की टीम ने उनसे कहा कि यह तो सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम मज़दूरी से भी कम है (जो अपनेआप में बेहद कम है), तो मज़दूरों का कहना था कि वे जब भी दिहाड़ी बढ़ाने की माँग करते हैं, ठेकेदार कहता है कि इसी दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूरों की कोई कमी नहीं है और यदि उन्हें इसी मज़दूरी पर काम करना है तो करें वरना कहीं और काम ढूँढ लें। स्त्री मज़दूरों की हालत तो और भी खस्ता है। उन्हें पुरुष मज़दूरों के मुकाबले कम मज़दूरी मिलती है। उनके बच्चों के लिए शिशुघर की कोई व्यवस्था न होने के कारण कई स्त्री मज़दूर अपने बच्चों के साथ काम पर जाती हैं।

जिस बस्ती में मज़दूर रहते हैं उसके हालात नरकीय हैं। इस बात की कल्पना करना मुश्किल है कि टिन के शेड से बनी इस अस्थायी बस्ती में मज़दूर कैसे रहते हैं। मुर्गी के दरबों जैसे कमरों में एक साथ कई मज़दूर रहते हैं और उनमें से कई अपने परिवार के साथ भी रहते हैं। बस्ती में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। मज़दूरों को पानी खरीद कर पीना पड़ता है। बिजली भी लगातार नहीं रहती। शौचालय के प्रबन्ध भी निहायत ही नाकाफी हैं और समूची बस्ती में गन्दगी का बोलबाला है। नाली की कोई व्यवस्था न होने से बस्ती में पानी जमा हो जाता है और बरसात में तो हालत और बदतर हो जाती है। यही नहीं, जैसे ही यह प्रोजेक्ट पूरा हो जायेगा, इस बस्ती को उजाड़ दिया जायेगा और मज़दूरों को इतनी ही ख़राब या इससे भी बदतर किसी और निर्माणाधीन साइट के करीब की मज़दूर बस्ती में जाना होगा।

जीने के नारकीय हालात को बयान करते निर्माणाधीन साइट से लगी मज़दूर बस्ती के दृश्य

जीने के नारकीय हालात को बयान करते निर्माणाधीन साइट से लगी मज़दूर बस्ती के दृश्य

Mazdoor Bigul_April-May 2013_Page_03_Image_0002

मज़दूरों के इस नग्न शोषण की दास्तान मुख्यधारा की कॉरपोरेट मीडिया में देखने को नहीं मिलतीं। जैसा कि अक्सर होता है, इस मामले में भी स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने मज़दूरों की व्यथा को नजरअन्दाज कर सिर्फ मज़दूरों की तोड़फोड़ की कार्रवाई पर ही ध्यान केन्द्रित किया जो उन्होंने पुलिस की निर्लज्ज अकर्मण्यता से आिज़ज़ होकर गुस्से में की थी। मज़दूरों के अनुसार जब सिक्योरिटी गार्ड गोली चला रहे थे तो पुलिस वाले पास में ही थे, परन्तु उन्होंने कुछ नहीं किया। कोई और रास्ता न देखकर जब मज़दूरों ने गुस्से में आकर तोड़ फोड़ करनी शुरू की तो एक भारी पुलिस बल और पीएसी की बटालियन वहाँ फौरन पहुँच गयी और गुस्साये मज़दूरों को काबू में किया और सिक्योरिटी गार्डों को बचाकर अपने साथ ले गई। मज़दूरों का कहना है कि पुलिस ने बाद में गार्डों को छोड़ दिया क्योंकि अगले ही दिन उनमें से कुछ गार्ड साइट के आसपास देखे गये। जबकि मज़दूर बस्ती को चारों ओर से घेरकर उसे पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया मानों वहाँ मज़दूर नहीं गुण्डे और अपराधी रहते हों।

ज़ाहिर है कि इस पूरी घटना के लिए मज़दूरों को ही ज़िम्मेदार ठहराने के लिए पुलिस मशीनरी की कन्स्ट्रक्शन कम्पनी के प्रबन्धन के साथ मिलीभगत है। इस प्रकार रियल इस्टेट माफिया का आतंक राज पुलिस की मदद से बेरोकटोक जारी है और मज़दूर शोषण और उत्पीड़न की चक्की में पिसे जा रहे हैं पूँजीवादी विकास की देवी की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। यह घटना एक बार फिर यह दिखाती है कि भारतीय शासक वर्ग द्वारा मध्य वर्ग को दिखाये जा रहे सपनों की अट्टालिका की नींव मज़दूरों के खून और नरकंकालों से पटी हुई है।

 

मज़दूर बिगुलअप्रैल-मई  2013

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments