नहीं थम रहा ऑटो सेक्टर के श्रमिकों पर कम्पनी प्रबन्धन का प्रहार
होण्डा से 3,000 ठेका मज़दूरों को निकालने के विरोध में संघर्ष तेज़

रवि

होण्डा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर्स के मानेसर प्लाण्ट से मन्दी की आड़ में पिछले तीन महीनों से ठेका श्रमिकों को 50 से 100 के समूह में निकाला जा रहा है। धीरे-धीरे कम्पनी ने लगभग तीन हज़ार मज़दूरों की छँटनी कर दी है। अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में भी मज़दूरों ने इसके विरोध में सांकेतिक भूख हड़ताल की थी। मगर कम्पनी प्रबन्धन अपनी मनमानी करने में लगा हुआ है। 4 नवम्बर को कम्पनी की ओर से मन्दी का बहाना करते हुए यह नोटिस लगा दी गयी कि ऑटो सेक्टर में अभी सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है, इसलिए नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फ़रवरी माह तक जिन श्रमिकों का ‘रिलीविंग’ होना था उनका नवम्बर माह में कर दिया जा रहा है, वे अगले तीन माह तक घर बैठेंगे; अभी कम्पनी श्रमिकों को काम देने में असमर्थ है। 5 नवम्बर को सुबह से ही कम्पनी गेट पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया और लगभग 300 ठेका श्रमिकों को काम पर नहीं लिया गया। इस पर रोष प्रकट करते हुए ठेका श्रमिकों ने यूनियन व प्रबन्धकों से दरियाफ़्त की मगर जब कोई नतीजा नहीं निकला तो जो ठेका श्रमिक कम्पनी के अन्दर थे वे बाहर निकल आये और निकाले गये श्रमिकों के साथ वहीं धरने पर बैठ गये।

इन ठेका मज़दूरों के समर्थन में स्थायी मज़दूरों की यूनियन भी आ गयी जिसने प्रबन्धन से वार्ता करने के लिए ठेका मज़दूरों को लेकर एक कमेटी बनायी। कई दिन की वार्ता के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि प्रबन्धन अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ था।

कई-कई साल से काम कर रहे ठेका मज़दूरों का समय से पहले रिलीविंग कर छँटनी करने के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे मज़दूरों की माँग है कि उन्हें स्थायी श्रमिक का दर्जा दिया जाये या फिर न्यूनतम एक लाख रुपये सालाना की दर से हिसाब किया जाये। प्रबन्धक ऐसे मज़दूरों को निशाना बना रहे हैं जो पिछले 7 से 10 वर्ष तक इस कम्पनी में काम कर रहे थे। इन्हीं मज़दूरों की मेहनत से मुनाफ़ा बटोरकर मालिकों ने भारत में 3 नये प्लाण्ट खड़े किये हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में त्योहारों के मौसम में होण्डा से 5 लाख दुपहिया वाहनों की बिक्री हुई। कम्पनी प्रबन्धन द्वारा स्थायी कर्मचारियों पर उत्पादकता बढ़ाने का दबाव डाला जा रहा है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में तमाम कम्पनियाँ ठेका श्रमिकों से सालों-साल काम कराती हैं मगर बीच-बीच में 7 या 11 महीने पर मज़दूरों की ‘रिलीविंग’ कर देती हैं। ‘रिलीविंग’ यानी ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों की ठेका अवधि बदल दी जाती है, ताकि सालों से काम कर रहे मज़दूरों को काग़ज़ों पर मात्र चन्द महीनों से काम करता हुआ दिखलाया जा सके। होण्डा कम्पनी सुकमा सन्स एण्ड एसोसिएट्स, केसी इण्टरप्राइजे़ज़ और कमल इण्टरप्राइजे़ज़ नामक ठेका एजेंसियों के ज़रिये मज़दूरों की भर्ती करती है। रिलीविंग के वक़्त मज़दूरों की ठेका एजेंसी को बदल दिया जाता है यानी पिछले सत्र में जो मज़दूर कमल इण्टरप्राइजे़ज़ का श्रमिक था, वह अगले सत्र में केसी या सुकमा सन्स एण्ड एसोसिएट्स का श्रमिक हो जाता है। इस तरह सालों-साल तक मुख्य उत्पादन बेल्ट पर स्थायी प्रकृति का काम कर रहे मज़दूर महज़ कुछ माह से काम करने वाले ठेका श्रमिक के तौर पर दिखाये जाते हैं।

पिछले कई महीने से, इस प्लाण्ट में सालों से काम कर रहे मज़दूरों को इसी तरीक़े से रिलीविंग करके घर बैठा दिया जा रहा है। मज़दूरों को झूठा आश्वासन दिया जाता है कि जब काम दोबारा गति पकड़ेगा तो उन्हें वापस काम पर बुला लिया जायेगा। इसी तरह छँटनी करने से पहले कारख़ाने के अन्दर उनके काम की जगह को कई बार बदला जाता है ताकि निकाले गये मज़दूर संगठित होकर संघर्ष न छेड़ दें। नीमराणा स्थित हीरो कम्पनी ने तो तमाम श्रम क़ानूनों को ताक़ पर रखते हुए कोई स्थाई मज़दूर रखा ही नहीं है। वहाँ सिर्फ़ ठेका मज़दूरों से काम कराया जाता है। इसी बात से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि मज़दूरों का भविष्य कितना अन्धकारमय है।

मैनेजमेंट मन्दी की आड़ में मज़दूरों की छँटनी कर रहा है जोकि पूरी तरह ग़लत है। मैनेजमेंट कह रहा है कि दूसरे प्लाण्ट के मुक़ाबले इस प्लाण्ट में उत्पादन की लागत अधिक है मगर इस तर्क का आधार मैनेजमेंट की घनघोर मज़दूर-विरोधी मानसिकता ही है। अन्य प्लाण्टों में काम करने वाले मज़दूरों की औसत उम्र क़रीब 25 साल है जबकि इस प्लाण्ट के मज़दूरों की औसत उम्र लगभग 42 साल है क्योंकि यह भारत में होण्डा का सबसे पुराना प्लाण्ट है जिसमें मज़दूर लगभग 10 साल से काम कर रहे हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि उनका वेतन नये मज़दूरों से अधिक होगा। उनके श्रम की बदौलत बेहिसाब मुनाफ़ा कमाने के बाद अब मैनेजमेंट बेशर्मी के साथ कह रहा है कि इन मज़दूरों की वजह से लागत अधिक हो गयी है। अगर ऐसा है तो मज़दूरों से पहले मैनेजमेंट के लोगों को हटाया जाना चाहिए जो लाखों रुपये वेतन ले रहे हैं।

संघर्षरत मज़दूरों के साथ होण्डा प्रबन्धन का अमानवीय व्यवहार

पूरे जोशो-ख़रोश के साथ होण्डा के संघर्षरत मज़दूर संघर्ष के मैदान में डटे रहे हैं। लगातार, दिन और रात, मज़दूर अन्दर व बाहर अपनी लड़ाई लड़ते रहे हैं। बाहर बैठे मज़दूर सड़क किनारे घास पर दरी बिछाकर ठण्ड में रात गुज़ारते रहे हैं। धूल-धक्कड़, भूख-प्यास सब झेलते हुए मज़दूर डटे रहे हैं। कारख़ाने के अन्दर के मज़दूरों के साथ होण्डा प्रबन्धन ने नंगई पर उतरकर अमानवीय व्यवहार किया। कारख़ाने के अन्दर मज़दूरों को ठण्ड में सीढ़ियों पर सोने के लिए मजबूर किया गया और उन्हें खाने-पीने से वंचित करने के लिए कंपनी ने कैंटीन भी बन्द कर दी। मज़दूरों के दबाव में कैंटीन खुली, लेकिन उसे दोबारा बन्द कर दिया गया। हद तो तब हो गयी जब अन्दर शौचालय भी बन्द कर दिया गया और शौचालय के दरवाज़े वेल्डिंग करके जाम करा दिये गये। होण्डा प्रबन्धन मज़दूरों के रोज़गार के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहा था। कारख़ाने के अन्दर काफ़ी मज़दूरों की सेहत भी ख़राब हो गयी थी। बाहर बैठे मज़दूर अन्दर के अपने साथियों को खाना पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे तो प्रबन्धन उन्हें भी रोक रहा था। मज़दूरों के काफ़ी विरोध के बाद अन्दर के मज़दूरों के लिए खाना उपलब्ध कराया गया।

जिस समय सारे मीडिया में अयोध्या के फ़ैसले को लेकर चर्चाएँ छायी हुई थीं उस समय होण्डा के हज़ारों मज़दूर मानेसर में कारख़ाने के अन्दर-बाहर धरने पर बैठे हुए थे जिनके लिए अयोध्या से ज़्यादा ज़रूरी उनकी रोज़ी-रोटी का सवाल है। मगर बिकाऊ मीडिया के लिए यह कोई ख़बर नहीं थी।

यूँ तो ठेका श्रमिकों की नौकरियाँ शुरू से ही दाँव पर रही हैं। मगर हाल के दिनों में इनकी स्थिति भयंकर रूप से बदतर हो गयी है। जब-जब मालिक के मुनाफ़े में गिरावट आयी है ठेका श्रमिकों को उसकी क़ीमत अपनी नौकरी गँवाकर चुकानी पड़ी है। पूरे ऑटो सेक्टर में 85 से 90% ठेका श्रमिकों की भागीदारी है। लेकिन सबसे ज़्यादा मार इन्हीं को झेलनी पड़ रही है। होण्डा के साथ-साथ ऑटो सेक्टर की तमाम ऐसी फ़ैक्टरियाँ हैं जहाँ ठेका श्रमिकों को काम से बाहर कर दिया गया है। हाल ही के दिनों में शिरोकी टेक्निको इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड से 280 ठेका श्रमिक बाहर कर दिये गये। कंसाई नेरोलैक से ठेका कर्मचारियों की छँटनी के साथ-साथ यूनियन पदाधिकारियों को बर्ख़ास्त कर दिया गया। राने एनएसके स्टीयरिंग सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड से 250 ठेका कर्मचारियों को निकाल दिया गया।

आज पूरे ऑटो सेक्टर में हाहाकार मचा हुआ है। मगर न सरकार पर, न मालिकों पर इसका कोई असर पड़ रहा है। सभी कम्पनियों के कर्मचारी अपनी-अपनी माँगों को लेकर अलग-अलग संघर्षरत हैं। मगर पिछले लम्बे समय से हमने देखा कि अलग-अलग लड़कर ज़्यादा कुछ हासिल नहीं किया जा सका है। आज मज़दूरों को इन तमाम आन्दोलनों को एक कड़ी में पिरोने की ज़रूरत है। कम्पनी गेट के अन्दर स्थायी व ठेका कर्मचारियों की एकता के साथ-साथ पूरे सेक्टर की एक सेक्टरगत एकता क़ायम करने की ज़रूरत है। यह न सिर्फ़ वक़्त की माँग है, बल्कि यही वह रास्ता है जिस पर चलकर मज़दूर अपने रोज़गार सहित तमाम अधिकारों और बुनियादी माँगों को लेकर संघर्ष कर सकते हैं।

छपते-छपते

होण्डा मानेसर के मज़दूरों के संघर्ष का 15वां दिन

20 नवम्बर होण्डा प्लाण्ट के अन्दर बैठे मज़दूरों के साथ बाहर बैठे मज़दूरों का धरनास्थल पर एक साथ बैठने का पहला दिन था। इसके पहले मज़दूरों का एक हिस्सा कारख़ाने के अन्दर डेरा जमाये हुए था, तो दूसरा कारख़ाने के मुख्य दरवाज़े के पास बाहर डटा हुआ था। जिसके कारण कारख़ाना प्रबन्धन को विवश होकर अनिश्चित काल के लिए उत्पादन रोकना पड़ा था। कल 14 दिनों बाद होण्डा यूनियन के आश्वासन पर मज़दूर कारख़ाना परिसर के बाहर आ गये। अभी भी प्रबन्धन और श्रमिक पक्ष में मज़दूरों की मांगों को लेकर वार्ता जारी है। अन्दर बैठे श्रमिकों ने पिछले 14 दिनों का अपना अनुभव साझा किया। मज़दूरों ने बताया कि किस तरह प्रबन्धन गीदड़भभकी देने से लेकर खाने पीने की बदइन्तज़ामी, शौचलय बन्द करने आदि हथकण्डों से मज़दूरों को तोड़ने का असफल प्रयास कर रहा था। उन्हें जान बूझकर ठण्डा, कच्चा खाना दिया जा रहा था ताकि मज़दूर बीमार पड़ें और कारख़ाना परिसर छोड़कर चले जायें। बीमार मज़दूरों को अस्पताल रेफर करने के नाम पर कारख़ाना परिसर से निकाला जाये। पिछले 14 दिन से एक ही जोड़ी कपड़े में रहने और खाने, सोने की ख़राब परिस्थितियों के कारण काफ़ी मज़दूरों का स्वास्थ्य ख़राब हुआ किन्तु किसी के हौसले में कोई कमी नहीं आयी।

मज़दूरों के समर्थन में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के साथ-साथ बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने सभा में शिरकत की, बात रखी और गीतों की प्रस्तुति दी। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन होंडा मज़दूरों के इस संघर्ष में शुरू से उनके साथ खड़ी है। यूनियन के कार्यकर्त्ता संघर्षरत मज़दूरों के साथ दिनों रात संघर्ष के मैदान में डटे हैं। यूनियन की तरफ़ से साथी अनन्त ने कहा कि आज पूरे सेक्टर के मज़दूरों की नज़र होण्डा के संघर्षरत मज़दूरों की तरफ़ है। यह संघर्ष ठेकेदारी प्रथा को कठघरे में खड़ा कर रहा है। इसीलिए इस संघर्ष के भी आगे की दिशा इसे एक कारख़ाने की चौहद्दी के बाहर पूरे ऑटो सेक्टर में फैलने की ओर जाती है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में जारी मन्दी की मार सबसे ज़्यादा ठेका श्रमिकों के ऊपर पड़ रही है। आज कई अन्य कारख़ानों में मज़दूर ठीक उन्हीं मांगों को लेकर लड़ रहे जिन मांगों को लेकर होण्डा के मज़दूर लड़ रहे हैं। AICWU की तरफ़ से धारूहेड़ा, मानेसर, गुड़गांव में आम मज़दूरों के बीच होण्डा के मज़दूरों के जारी संघर्ष में जुड़ने की अपील करता हुए पर्चा भी बांटा जा रहा है।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019


 

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