शाहाबाद डेयरी में नारकीय हालत में रहते मज़दूर

शाहबाद डेयरी, मज़दूर-मेहनतकश बहुल झुग्गी इलाक़ा है। दिल्ली की तमाम कोठियों को चमकाने वाले घरेलू कामगार भी यहाँ रहते हैं। झुग्गियों में रहने वाली इस मेहनतकश आबादी के हालात पर ग़ौर करें तो यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ये लोग एक नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। आज केन्द्र में सत्तासीन मोदी सरकार हो या दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी सरकार, इन्होंने हमें ठगने के अलावा कुछ नहीं किया है।

लम्बे समय से यहाँ  रहने वाली आबादी को साफ़ पानी की कमी, गन्दे नाले, टूटी-फूटी सड़कों की भीषण समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। साफ़ पानी न मिलने और लबालब भरे नालों की वजह से लोग यहाँ लगातार बीमार पड़ते रहते हैं और आये दिन मलेरिया-टायफ़ाइड जैसी बीमारियों इन्हें धर दबोचती हैं। ख़ासतौर पर बरसात में दिक़्क़त और भी बढ़ जाती है। समस्या इतनी विकराल है कि प्रदूषित पानी की वजह से बच्चों समेत कई लोगों की मौत हो चुकी है।

झुग्गियों के हालात पर एक नज़र :

पूरे इलाक़े में पार्क के नाम पर एक धूलभरा मैदान है जिसमें न तो झूले हैं और न ही पेड़ पौधे, घास या बैठने के लिए बेंच।

इलाक़े की आबादी लगभग एक लाख है लेकिन यहाँ  एक डिस्पेंसरी तक नहीं है। हालाँकि मोहल्ला क्लिनिक के नाम पर केजरीवाल सरकार ने अपनी पीठ ख़ूब थपथपायी है, लेकिन असलियत आपको शाहबाद डेयरी जैसे झुग्गी इलाक़े में आकर पता चलेगी जहाँ लोग इलाज कराने दूर अम्बेडकर अस्पताल या महर्षि बाल्मीकि अस्पताल जाते हैं जहाँ लम्बी लाइनों में घण्टों धक्के खाने और स्टाफ़ व डॉक्टरों की बदतमीज़ी सहने के बाद काम चलाने भर की ही दवा मिल पाती है।

राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार दोनों ही ने न तो मज़दूरों को रहने के लिए पक्के मकान दिये, न कोई सुविधा। उल्टे, समय-समय पर मज़दूरों की झुग्गियों को अनाधिकृत बताकर तोड़ा जाता रहा है।

केजरीवाल सरकार, शिक्षा की ‘प्रगति’ के नाम पर भी देश-विदेश में ख़ूब डींगें हाँक रही है लेकिन आप जैसे ही शाहबाद डेयरी जैसे इलाक़ों की ओर रुख़ करते हैं इनकी पोल यहाँ भी खुल जाती है। शाहबाद डेयरी के 8000 बच्चे निकट के इलाक़े प्रहलादपुर पढ़ाई के लिए जाते हैं जहाँ न तो शिक्षक हैं, न ही बच्चों पर कोई ध्यान दिया जाता है, न ही कोई सुविधा है। दिल्ली के मध्यवर्गीय इलाक़ों में कुछ स्कूलों की चमचमाती बिल्डिंगे बनाकर केजरीवाल सरकार वाहवाही लूट रही है जबकि मज़दूरों के बच्चों के शिक्षा के हालात आज भी वहीं के वहीं हैं। यहाँ भी सरकार की वर्ग पक्षधरता साफ़ दिखायी देती है।

बच्चों के गुमशुदा होने के मामले में भी शाहबाद डेयरी अग्रणी स्थान रखता है। क्योंकि यहाँ मज़दूरों और ग़रीबों के बच्चे रहते हैं इसलिए इनकी गुमशुदगी पर पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती। अपराध का भी यहाँ ज़बर्दस्त बोलबाला है। आये दिन लोगों से छीना-झपटी होती रहती है। हर झुग्गी इलाक़े की तरह यहाँ भी नशाखोरी की विकराल समस्या है।

सुविधा के नाम पर इलाक़े में दो-तीन गन्दे शौचालय हैं, सामुदायिक केन्द्र के नाम पर एक जर्जर पड़ी बिल्डिंग है। न तो खेलकूद के लिए कोई पार्क या स्टेडियम है, और न ही पठन-पाठन के लिए कोई पुस्तकालय ही है।

हर पाँच साल में भाजपा, आम-आदमी पार्टी, कांग्रेस आदि चुनावबाज़ पार्टियों से विधायक-सांसद चुनकर आते हैं। पिछले तीन साल से आम आदमी पार्टी से विधायक रामचन्द्र इस इलाक़े में हैं, लेकिन समस्याएँ ज्यों की त्यों हैं। जब भी लोग इन “जन-प्रतिनिधियों [या धन-प्रतिनिधियों!]” के पास अपनी समस्याएँ लेकर पहुँचे हैं तो ये हमेशा हमारी आँखों में धूल ही झोंकते हैं।

शाहबाद डेयरी से सटा इलाक़ा रोहिणी है जिसमें हर प्रकार की सुविधा है, चमचमाती सड़कें, साफ़-सुथरी और ढँकी नालियाँ, पीने के साफ़ पानी इत्यादि की बेहतरीन सुविधा है। फिर शाहबाद डेयरी में ये समस्याएँ ज्यों की त्यों क्यों हैं? क्या यह ग़ैर-बराबरी नहीं है?

ये सरकारें चाहे वो केन्द्र में हों या राज्य में, हम मज़दूरों के लिए बहरी, अन्धी और गूँगी हैं। इन्हें हमारी दुख-परेशानियों से कुछ लेना देना नहीं है। अगर ये हमें याद करते हैं तो सिर्फ़ चुनाव के समय। जल्दी ही चुनाव होने वाले हैं और तब तमाम पूँजीपतियों की पार्टियाँ हमारे बीच वोट माँगने के लिए आयेंगी। उनसे बस यह सवाल पूछना है कि अभी तक हमारे इलाक़े की समस्याओं का समाधान क्यों नहीं किया?

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2019


 

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