सरकार की धोखेबाज़ी से सावधान! एनपीआर ही एनआरसी है!
सिविल नाफ़रमानी की राह चलेंगे! एनपीआर फ़ॉर्म नहीं भरेंगे!

– विभिन्न जनसंगठनों की ओर से जारी पर्चा

पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के विरोध में चल रहे तूफ़ानी आन्दोलन के कारण, मोदी-शाह की जोड़ी और सरकार में खलबली मची हुई है। सत्ताधारी लोग गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं। गृहमन्त्राी अमित शाह ने बार-बार कहा, ‘आप क्रोनोलॉजी समझिये, पहले सीएए आयेगा, फि‍र एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जायेगा!’ इसके जवाब में शाहीन बाग, दिल्ली की बहादुर औरतों ने एक ऐसा आन्दोलन खड़ा किया जो देश भर में संघर्ष की मिसाल बन गया। थोड़े समय में ही देश में 50 से भी ज़्यादा जगहों पर शाहीन बाग जैसे ही दिनो-रात चलने वाले धरने शुरू हो गये। छोटे क़स्बों से लेकर बड़े महानगरों तक पिछले डेढ़ महीने से लाखों लोग लगातार सड़कों पर हैं।

मगर सरकार जनता की बात सुनने के बजाय सिर्फ़ झूठ बोल रही है और धमकियाँ दे रही है। ख़ुद प्रधानमन्त्राी मोदी ने हमेशा की तरह झूठ बोलते हुए कहा कि उनकी सरकार में एनआरसी की तो कोई बात ही नहीं हुई है! लेकिन इसी बीच साज़िशाना तरीके से सरकार ने 1 अप्रैल 2020 से एनपीआर शुरू करने की घोषणा कर दी। इस पर लोगों ने जवाब दिया कि वे इसके लिए ‘काग़ज़ नहीं दिखायेंगे!’ इस ज़बर्दस्त विरोध से घबराकर मोदी सरकार ने अब कहा कि ‘आपसे कोई दस्तावेज़ नहीं माँगे जायेंगे!’ इस पर हमारे जुझारू आन्दोलन ने कहा कि ‘हम एनपीआर में पूछे जा रहे सवालों का जवाब नहीं देंगे!’ सरकार ने यह बात भी मान ली कि आप जिस सवाल का जवाब देना चाहें, सिर्फ़ उसी का जवाब दें! मोदी सरकार धीरे-धीरे पीछे हट रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सरकार की साज़िशें थम गयी हैं और यह अपने नापाक मंसूबों से बाज़ आ गयी है? ऐसा सोचना हमारी भारी भूल होगी।

किसी धोखे में न रहें, असल में एनपीआर ही एनआरसी का पहला कदम है!

दोस्तो! पहली बार 2003 में वाजपेयी सरकार ने नागरिकता क़ानून में बदलाव और फिर एनपीआर और एनआरसी लाने की बात की थी। इसी क़ानून के आधार पर ‘नागरिकता नियम 2003’ बनाये गये जिसका चौथा नियम साफ़ कहता है कि एनआरसी की प्रक्रिया का पहला क़दम एनपीआर है। एनपीआर के ज़रिए इकट्ठा की गयी जानकारियों से ही एनआरसी तैयार होगा। इसके लिए सरकार देश में एक रजिस्ट्रार जनरल आफ़ सिटिज़नशिप रजिस्ट्रेशन नियुक्त करेगी, उसके नीचे ज़िला रजिस्ट्रार और उसके नीचे तहसील रजिस्ट्रार होंगे। तहसील रजिस्ट्रार का दफ्तर एनपीआर के फ़ॉर्म भरवायेगा। उसके ही आधार पर स्थानीय स्तर का एनआरसी तैयार किया जायेगा। जिसका नाम एनआरसी में नही होगा, वे पहले तहसील रजिस्ट्रार के पास अपील करेंगे जो 90 दिना (या ज़्यादा) में अन्तिम फै़सला लेगा और फिर दूसरी सूची प्रकाशित होगी। इसके बाद तहसील रजिस्ट्रार इस सूची पर 30 दिनों तक आपत्तियाँ मँगवायेगा और फिर 90 दिनों में वह अन्तिम सूची ज़िला रजिस्ट्रार को देगा। इस सूची में जिनका नाम नहीं होगा वे 30 दिनों के अन्दर ज़िला रजिस्ट्रार के पास अपील करेंगे जोकि 90 दिनों के अन्दर ज़िले की अन्तिम सूची दे देगा। इसमें नाम नहीं आने पर आपको विदेशी लोगों के लिए बने ट्रिब्यूनल के सामने अपील करनी पड़ेगी। उसके बाद हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के अनेक चक्कर काटने पडे़ंगे। अगर तब भी आप एनआरसी में शामिल नहीं हो पाये तो आपको डिटेंशन सेंटर में डाल दिया जायेगा, वोट देने समेत आपके सारे नागरिक अधिकार छीन लिये जायेंगे। सेंटरों में आपसे ग़ुलामों की तरह काम करवाया जायेगा और बेहद ख़राब हालात में रखा जायेगा। इसकी एक बानगी असम के डिटेंशन सेंटरों के रूप में हमारे सामने है जहाँ ख़ुद सरकार के मुताबिक अब तक 30 लोगों की मौत हो चुकी है।

सरकार एनपीआर करने के बाद आपसे दोबारा कुछ पूछने या फ़ॉर्म भरवाने नहीं आयेगी। एनपीआर के आधार पर ही एनआरसी तैयार की जायेगी और अगर आपका नाम उसमें नहीं शामिल हो पाया, तो आपकी ज़िन्दगी नरक बन जायेगी। अगर किसी तरह आप डिटेंशन सेंटर में जाने से बच भी गये तो भी आपके सारे अधिकार छीन लिये जायेंगे। आप राशन कार्ड, गैस कनेक्शन, फ़ोन कनेक्शन नहीं ले पायेंगे, किसी सरकारी योजना का आपको लाभ नहीं मिलेगा, बैंक में खाता नहीं खुलेगा। आप पूरी तरह सरकारी एजेंसियों के रहमोकरम पर होंगे और आपकी ज़िन्दगी हमेशा डर के साये में गुज़रेगी। ऐसे में आप जीने के लिए कुछ भी करने को मजबूर हो जायेंगे और कौड़ियों के मोल पर आपसे मनमाना काम कराया जा सकेगा।

इसलिए एनपीआर का फ़ॉर्म भरने का मतलब है, सरकार को एनआरसी करने की इज़ाजत देना। मोदी सरकार धोखे से एनपीआर के ज़रिये देश भर में एनआरसी करने जा रही है। हमें किसी भी कीमत पर एनपीआर में शामिल नहीं होना है। हम सिविल नाफ़रमानी यानी नागरिक अवज्ञा करते हुए इसका फ़ॉर्म भरने से इंकार करेंगे और फ़ॉर्म न भरने पर लगाये जाने वाले 1000 रुपये का जुर्माना भरने से भी इंकार करेंगे। लोकतंत्र में जनता का स्थान सबसे ऊपर होता है और सरकार के ग़लत क़दमों को मानने से इंकार करना हमारा हक़ है। अगर हर सरकारी फै़सले को, और संसद में पास होने वाले हर क़ानून को लोग सर झुकाकर मान लेते तो दुनिया में आज भी ग़ुलामी क़ायम रहती और औरतों तथा ग़रीबों को वोट देने का भी अधिकार नहीं मिलता।

धोखे से एनपीआर फ़ॉर्म भरवाने की सरकारी चाल से सावधान रहें!

झूठ-फ़रेब में माहिर मोदी सरकार ने अब एक शातिर चाल चली है। वह एनपीआर को जनगणना के साथ ही करवाने जा रही है ताकि लोगों का एनपीआर फ़ॉर्म पर ध्यान न जाये और वे जनगणना का फ़ॉर्म ही मानकर एनपीआर का फ़ॉर्म भी भर दें। हम सभी बहनों और भाइयों को सावधान करना चाहते हैं – जनगणना का फ़ॉर्म भरें, मगर एनपीआर का नहीं!’

जनगणना के फ़ॉर्म में 13 सवाल होंगे। मगर एनपीआर के फ़ॉर्म में 21 सवाल होंगे जिनमें छह नयी जानकारियाँ माँगी गयी हैं जिन पर सारे देश में सवाल खड़े किये जा रहे हैं। आपके आधार नम्बर, मतदाता कार्ड, पैन नम्बर, ड्राइविंग लायसेंस और मोबाइल नम्बर के अलावा आपसे यह भी पूछा जायेगा कि आपके माता-पिता किस तारीख़ को और कहाँ पैदा हुए और आप इससे पहले कहाँ रहते थे। एनआरसी का डेटाबेस बनाने के अलावा इन जानकारियों को माँगने की और कोई वजह नहीं है।

इनके आधार पर सरकार आपकी पूरी वंशावली बनाकर आपकी नागरिकता के बारे में फै़सला कर लेगी। सरकारी दफ्तरों में बैठे हुए क्लर्क और अफ़सर कलम घुमाकर किसी की नागरिकता का फै़सला कर देंगे! इतने बड़े पैमाने पर होने वाली कार्रवाई में यह सरकार निश्चित तौर पर बहुत-सा काम ठेके पर करवायेगी। इसमें कितने बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ, धाँधली, बदले की कार्रवाई आदि होंगे, इसका तो बस अन्दाज़ा ही लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर, तस्वीर बहुत डरावनी है।

इसलिए यह ज़रूरी है कि एनपीआर फ़ॉर्म को लोग कत्तई न भरें। यदि आप फ़ॉर्म भरते हैं, तो इसका मतलब होगा कि आप एनपीआर की प्रक्रिया में शामिल हो गये। फ़ॉर्म न भरने पर सरकार 1000 रुपये का जुर्माना कर सकती है। हमारा कहना है – ‘हम जुर्माना भी नहीं भरेंगे! हम जेलें भरेंगे! तुम्हारी जेलें कम पड़ जायेंगी लेकिन हमारा आन्दोलन धीमा नहीं पड़ेगा!’ 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सीएए पर केन्द्र सरकार को जवाब देने के लिए 28 दिन दिये हैं। इन 28 दिनों में हमें अपने आन्दोलन को और तेज़ करना होगा। दूसरी तरफ़ सरकार और आरएसएस-भाजपा के लोग आन्दोलन को तोड़ने, बदनाम करने और कुचलने के लिए हर तरह के घटिया हथकण्डे आज़मा रहे हैं। इसलिए सावधान रहें। एनपीआर के फ़ॉर्म धोखे से भरवाने की मोदी सरकार की योजना को नाकाम करें और अपने आन्दोलन को और एकजुट, व्यापक और तूफ़ानी बनायें। यदि वे एनपीआर करने में नाकाम होंगे, तो वे एनआरसी भी नहीं कर पायेंगे।

एनआरसी और एनपीआर सिर्फ़ मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं हैं, ये सभी ग़रीबों और मेहनतकशों के ख़िलाफ़ हैं!

इस ग़लतफ़हमी को दूर करना ज़रूरी है कि एनआरसी-एनपीआर केवल मुसलमानों को निशाना बनायेगा। यह सच है कि सीएए के साथ मिलकर यह मुसलमानों को ख़ास तौर पर निशाना बनाता है। लेकिन इसकी मार निशाना देश के तमाम ग़रीब मेहनतकश लोगों पर पड़ेगी, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, या समुदाय के हों। इसका सबूत है असम में हुई एनआरसी की कवायद। असम में एनआरसी के अन्तिम राउण्ड में 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर हो गये, जिसमें 13.5 लाख से अधिक हिन्दू थे। इन हिन्दुओं को वापस नागरिकता तभी मिल सकती है जबकि वे साबित कर सकें कि वे बंगलादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के हिन्दू हैं और वहाँ से आये हैं। इस पर असम भाजपा के नेता हेमन्त सरमा ने ख़ुद ही कहा है कि यह इतना आसान नहीं है।

जिस देश में करोड़ों लोगों के पास ख़ुद अपने जन्म और सम्पत्ति के काग़ज़ नहीं हैं, वहाँ अपनी पिछली पीढ़ी के काग़ज़ कितने लोग दिखा पायेंगे? एक मोटे अनुमान के अनुसार अगर अमित शाह की घोषणा के मुताबिक पूरे देश में एनआरसी करायी गयी, तो कम से कम दस करोड़ लोग नागरिकता साबित नहीं कर पायेंगे! कहने की ज़रूरत नहीं कि इनमें सबसे बड़ी तादाद हर धर्म के ग़रीबों की होगी। इन लोगों का क्या होगा? इन्हें देश से निकाला नहीं जा सकता क्योंकि कोई भी देश इन्हें अपने यहाँ लेने का तैयार नहीं होगा। फिर? देशभर में अरबों रुपये ख़र्च करके जो बड़े-बड़े डिटेंशन सेंटर बनाये जा रहे हैं उनमें भारी संख्या में लोगों को रखा जायेगा। एक-एक कमरे में दर्जनों लोग। आधा पेट खाकर बैल की तरह काम करते-करते वे मर जायेंगे। इसके बाहर जो आबादी रह जायेगी वह भी डर और ग़ुलामी में ही जियेगी।

यह आम अवाम की लड़ाई है

मोदी सरकार अपने छह साल के शासन में जनता से किये सारे वादे तोड़ चुकी है। अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर है। बेरोज़गारी पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। महँगाई ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। सरकार एक-एक करके सारे सार्वजनिक उद्योग अपने चहेते पूँजीपतियों को बेच रही है। लाखों करोड़ रुपये अम्बानी-अडानी जैसे सेठों पर लुटाये जा रहे हैं, मोदी के प्रचार पर हज़ारों करोड़ बहाये जा रहे हैं और ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का राज क़ायम है। इससे होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, मनरेगा आदि के बजट में कटौती करके सारा पैसा सरकार हड़प ले रही है।

हर मोर्चे पर नाकाम यह सरकार केवल एक मकसद में कामयाब हुई है! वह है धर्म और जाति के नाम पर नफ़रत फैलाना और लोगों को आपस में बाँट देना। देश में अगर कोई ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ है, तो वह यही लोग हैं। लेकिन जनता के आन्दोलन ने अब उनके इस मंसूबे पर भी करारी चोट की है। हर जगह भारी संख्या में मुसलमानों के साथ-साथ हर जाति और मजहब के लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और धुआँधार झूठे प्रचार के बावजूद ‘नहीं बँटेंगे, एक रहेंगे’ का नारा बुलन्द कर रहे हैं। इस एकजुटता को हमें और भी व्यापक बनाना है, क्योंकि यही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है।

हम हिटलरी जर्मनी का काला इतिहास यहाँ दोहराने नहीं देंगे!

हिटलर के ज़माने में जर्मनी में बनाये गये डिटेंशन सेंटरों का इतिहास बताता है कि इनका इस्तेमाल देश के पूँजीपतियों को मुफ़्त ग़ुलाम श्रम मुहैया कराने के लिए किया गया था। हमारे देश में अम्बानी-अडानी, टाटा-बिड़ला जैसे सरमायेदारों को डिटेंशन सेंटरों में मुफ़्त ग़ुलाम मज़दूर मुहैया कराये जायेंगे जिनमें हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को ही खटना और मरना होगा। इसके अलावा बाहर भी अधिकारों से वंचित करोड़ों की आबादी का वे मनमाने तरीक़े से शोषण कर सकेंगे। यह सब इसीलिए किया जा रहा है ताकि मन्दी से बिलबिला रहे पूँजीपतियों-सरमायेदारों को राहत दिलायी जा सके। यही इनके असली नापाक मंसूबे हैं। मन्दी, बेरोज़गारी और महँगाई से ध्यान भटकाने के लिए और पूँजीपतियों को मुनाफे़ के संकट से राहत दिलाने के लिए मोदी-शाह की तानाशाह सरकार ने सीएए-एनपीआर-एनआरसी की चाल चली है। यही इनके तथाकथित “हिन्दू राष्ट्र” की असलियत है।

लेकिन यह हमारे वजूद का सवाल है और हम किसी भी कीमत पर उनके इन नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे। ये सभी ग़रीबों और मेहनतकशों को निशाना बनाने वाली फासीवादी चालें हैं और इसीलिए हमारे आन्दोलन का रंग किसी भी कीमत पर किसी मजहब या सम्प्रदाय से नहीं जुड़ना चाहिए। हमें हर धर्म और हर जाति के तमाम मेहनतकशों की एकजुटता के बूते इस फासीवादी मंसूबे को नाकाम करना होगा और इसी रास्ते से यह सम्भव भी है। संघी प्रचार मशीनरी और गोदी मीडिया से दिनो-रात जारी ज़हरीले और झूठे प्रचार से यह राय बनाने की कोशिश हो रही है कि यह आन्दोलन केवल मुसलमानों का है, ताकि इस आन्दोलन के विरोध में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जा सके। हमें संघ परिवार की इस साज़िश को बेनक़ाब और नाकाम करना होगा और सभी धर्मों और सम्प्रदायों के आम अवाम की फ़ौलादी एकजुटता क़ायम कर मोदी-शाह की जोड़ी के फासीवादी मंसूबों को नाकाम करना होगा।

(बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, और स्त्री मुक्ति लीग की ओर से विभिन्न शहरों में बाँटा जा रहा पर्चा)

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2020


 

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