हरियाणा में शिक्षा व्यवस्था और स्थायी रोज़गार सरकारी हमले की चपेट में !

– बिगुल संवाददाता

हरियाणा की खट्टर-दुष्यन्त के नेतृत्व वाली भाजपा-जजपा ठगबन्धन सरकार प्रदेश के 450 स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई बन्द करने जा रही है। यह क़दम बच्चों की कम संख्या के नाम पर उठाया जा रहा है। होना तो यह चाहिए था कि सरकारी मशीनरी द्वारा प्रचार करके और पढ़ाई का स्तर सुधारकर सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या और फ़िर स्कूलों की संख्या को भी बढ़ाया जाता किन्तु यहाँ यह जनविरोधी सरकार विभिन्न संकायों की पढ़ाई और स्कूलों को ही बन्द करने पर तुली हुई है! हरियाणा में शिक्षा व्यवस्था लगातार सरकारी हमले की चपेट में है। मोटे तौर पर हरियाणा में शिक्षा व्यवस्था पर हमला कांग्रेस की हुड्डा सरकार के समय में ही होना शुरू हो गया था। खट्टर सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल से ही शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
खट्टर सरकार अपने पिछले कार्यकाल के समय 2015 से 2019 के बीच के चार सालों के दौरान 208 सरकारी स्कूल बन्द कर चुकी है जबकि इस अवधि में सिर्फ़ 23 नये सरकारी स्कूल खुले हैं किन्तु दूसरी ओर 974 प्राइवेट स्कूलों को मान्यता दी गयी। यही नहीं आने वाले समय में 1,026 प्राइमरी स्कूलों को बन्द करने की योजना थी। ये ऐसे स्कूल थे जिनमें छात्रों की संख्या 25 से कम थी। इसके अलावा खट्टर सरकार अध्यापकों की छँटनी करने का भी कोई मौक़ा नहीं चूक रही है। हाल ही में कोर्ट के आदेश की आड़ लेकर 1983 पीटीआई शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। हालाँकि यदि सरकार पीटीआई अध्यापकों की सही ढंग से पैरवी करती तो इनका रोज़गार बच सकता था। दूसरी तरफ़ सरकार ख़ाली पड़े पदों को भरने की बजाय उन पदों को ही ख़त्म करने की योजना बना रही है! प्रदेश में अब तक 25 विद्यार्थियों के अनुपात में 1 शिक्षक के हिसाब से प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती की जाती थी यानी 25 छात्रों पर एक शिक्षक। अब सरकार इसे बढ़ाकर 30 अनुपात 1 करने जा रही है। नयी भर्ती तो गयी भाड़ में ऐसा करने से जेबीटी शिक्षकों के ही तक़रीबन 4,000 पद और “अतिरिक्त” हो जायेंगे! प्राथमिक स्तर पर 125 बच्चों पर एक हैडमास्टर की जगह अब 151 बच्चों पर एक हैडमास्टर की नियुक्ति की जायेगी। इसी को कहते हैं हींग लगे न फ़िटकरी रंग चोखा!
एक आरटीआई के जवाब में हरियाणा सरकार ने पिछले महीने ही यह माना था कि प्रदेश में स्कूली शिक्षकों के 31,232 पद रिक्त हैं जबकि 2017 की हरियाणा अध्यापक संघ की ‘डायरी’ की रिपोर्ट कहती है कि हरियाणा में शिक्षकों के कुल 1,28,405 पदों में से 44,962 पद रिक्त हैं। हमारी जानकारी में तबसे कोई भर्ती भी नहीं निकली है तो ये पद घट कैसे गये!? एक अन्य आरटीआई से यह पता चलता है कि ख़ुद राज्य सरकार के अनुसार ही हरियाणा में जेबीटी शिक्षकों के भी 6,000 के क़रीब पद रिक्त पड़े हैं जबकि 96,000 के क़रीब जेबीटी-टीजीटी-एचटेट पास युवा चप्पलें फटकारते घूम रहे हैं। अध्यापकों की छँटनी हो रही है तथा स्कूलों और संकायों को बन्द किया जा रहा है। यही कारण है कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था का भट्ठा बैठा हुआ है और बहुत सारे पढ़े-लिखे सक्षम युवा या तो दो-ढाई हज़ार में प्राइवेट स्कूलों में अपना ख़ून चुसवाने के लिए मजबूर हैं या फ़िर मायूसी और अवसाद की दलदल में समा रहे हैं।
बदतर शिक्षा व्यवस्था के चलते बच्चों का भविष्य ख़तरे में है तो बेरोज़गारी से उपजी हताशा युवाओं को नशे, अपराध और आत्महत्या की तरफ़ धकेल रही है। सेन्टर फ़ॉर मोनिटरिंग इण्डियन इकॉनमी (CMIE) के अगस्त 2020 के ताज़ा आँकड़ों के अनुसार हरियाणा में बेरोज़गारी की दर 33.5% है। यह बेरोज़गारी दर देश में सभी राज्यों से ज़्यादा है। इसके बावजूद भी शिक्षा व्यवस्था के ख़ाली पदों तक को नहीं भरा जा रहा है। शिक्षा-रोज़गार का सवाल सरकार के एजेण्डे से पूरी तरह से ग़ायब है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार में बैठे धनपशुओं के पालतू चाकर यह अच्छी तरह से जानते हैं कि लोगों को बेवक़ूफ़ कैसे बनाया जाता है और असल मुद्दों से जनता का ध्यान कैसे भटकाया जाता है। उदाहरण के लिए प्राइवेट नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने का लुकमा इसीलिए फेंका गया है ताकि नौजवान आबादी क्षेत्रवाद में उलझकर एक-दूसरे का ही सिर फोड़ने में लग जाये और हरियाणा क्षेत्रवाद का नया अखाड़ा बन जाये।
अब सवाल यह है कि सरकार क्यों नहीं चाहती कि शिक्षकों की भर्ती हो व सरकारी स्कूली व्यवस्था बेहतर हो? इसका कारण यह है कि अगर ऐसा होता है तो सरकार में बैठे या सरकार के चहेते निजी शिक्षा माफ़िया धन्नासेठों के मुनाफ़े पर चोट पहुँचेगी। बड़ी पूँजी के लिए शिक्षा के क्षेत्र की बाधाएँ हटाने के मक़सद से ही अध्यापकों की छँटनी हो रही है तथा स्कूलों और संकायों को बन्द किया जा रहा है। बड़ी पूँजी के लिए शिक्षा का क्षेत्र भी मुनाफ़ा कमाने का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था शिक्षा में पूँजी निवेश को आतुर बाज़ारू ताक़तों के सामने फ़िलहाल न केवल एक चुनौती है बल्कि सरकारी ढाँचे के समाप्त होते ही ज़मीन, भवन से लेकर तमाम संसाधन आदिम पूँजी संचय के तौर पर इनके द्वारा लगभग मुफ़्त के दामों में हथियाये जायेंगे।
नयी शिक्षा नीति – 2020 आने के बाद तो तस्वीर और भी साफ़ हो चुकी है कि आने वाले समय में जो सरकारी स्कूली व्यवस्था पहले से ही चरमरा रही है उसे पूरी तरह से कैसे ढहाया जायेगा। शिक्षा को बाज़ारू माल बनाकर उन्हीं के लिए सीमित कर दिया जायेगा जो चाँदी का चम्मच मुँह में लेकर पैदा होते हैं। प्रदेश की बहुसंख्यक ग़रीब आबादी के बच्चे शिक्षा से महरूम कर दिये जायेंगे। और फ़िर बच्चों की कमी दिखाकर सरकारी शिक्षकों की नौकरियों पर क़ैंची चला दी जायेगी।
अगर शिक्षा और रोज़गार के अपने मूलभूत हक़ को पाना है तो प्रदेश के लाखों-लाख छात्रों-युवाओं और प्रबुद्ध नागरिकों को एकजुट होना होगा और प्रदेश की आम जनता को भी लामबद्ध करना होगा। “सबको निःशुल्क और एक समान शिक्षा” और “हर किसी को पक्के रोज़गार के हक़ की गारण्टी” की माँगों पर हमें सरकारों को घेरना चाहिए। यदि हम आज भी नहीं चेते तो कल को बहुत देर हो चुकी होगी।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल-सितम्बर 2020


 

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