दिल्ली नगर निगम के उपचुनाव में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) की भागीदारी

बीते दिनों दिल्ली नगर निगम की पाँच सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों ने फिर से यह साबित कर दिया कि पूँजीवादी व्यवस्था में धनबल-बाहुबल के दम पर ही चुनाव लड़े और जीते जाते हैं। इस धनबल-बाहुबल के समक्ष मज़दूरों-मेहनतकशों का स्वतंत्र पक्ष खड़ा करने के उद्देश्य से भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने भी शाहाबाद डेयरी सीट पर चुनाव में भागीदारी की।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी एक ऐसी पार्टी है जिसे स्वयं मज़दूरों और मज़दूर वर्ग के राजनीतिक संगठनकर्ताओं ने खड़ा किया है। इस पार्टी का उद्देश्य मज़दूर वर्ग के अन्तिम लक्ष्य यानी कि मज़दूर सत्ता और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना के लिए काम करना है। इस लम्बी लड़ाई के एक अंग के तौर पर पूँजीवादी चुनावों में भी पार्टी हिस्सेदारी करती है ताकि मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी के राजनीतिक पक्ष और वर्ग हितों को मज़बूती से पेश किया जा सके।
वार्ड 32 एन, रोहिणी-सी वार्ड के उपचुनाव में आर.डब्ल्यू.पी.आई. ने इसी मक़सद से भागीदारी की। इस वार्ड में रोहिणी सेक्टर 24-25 और मुख्यतः शाहाबाद डेयरी का इलाक़ा आता है। इस वार्ड में वोटरों की संख्या क़रीब 72 हज़ार है जिनमें बड़ी आबादी मज़दूरों-मेहनतकशों की है। इस पूरे इलाक़े में मज़दूर पार्टी ने सघन अभियान चलाया और लोगों तक अपनी बात पहुँचायी।
पिछले तमाम चुनावों में पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियाँ सिर्फ़ जुमले उछालकर जीतती आयी हैं, पर यहाँ की असल समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।
शाहाबाद डेयरी में तीस से चालीस हज़ार आबादी असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है, जो घरेलू कामगारों, कारख़ाना मज़दूरों से लेकर रेहड़ी-खोमचा लगाने वालों की है। इसमें से क़रीब बीस से तीस प्रतिशत दलित मज़दूरों की आबादी है। शाहाबाद डेयरी को बसे लगभग पचास वर्ष हो गये हैं, पर यहाँ जीवन जीने के लिए बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं पहुँची हैं। इसके बहुत बाद बसे रोहिणी के सेक्टरों की मध्यवर्गीय आबादी के लिए सारी सुविधाएँ उपलब्ध करा दी गयी हैं पर यहाँ हर तरफ़ आपको बजबजाती नालियाँ, कूड़े का ढेर व उससे आती असह्य बदबू मिलेगी। अभी तक झुग्गियों में पानी की पाइपलाइन नहीं बिछी है। पानी के लिए चार दिनों में एक बार टैंकर आता है, वह भी आबादी के हिसाब से बहुत कम होता है। गर्मियों में तो हालात बहुत ही बुरे हो जाते हैं। डिस्पेंसरी के नाम पर बस एक कमरा है, जो कि जुए के अड्डे में तब्दील हो गया है और इलाज कराने के लिए लोगों को कई-कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। फ़ैक्टरियों, कोठियों में हाड़-मांस गलाने के बाद मेहनतकश अपने छोटे-छोटे दड़बेनुमा कमरों में बुनियादी सुविधाएँ तक न होने के कारण जैसे-तैसे जी लेते हैं।
निगम उपचुनाव की घोषणा होते ही सारी चुनावबाज़ पार्टियों के नेता अपने-अपने महल से बाहर निकले और बरसाती मेंढक की तरह हर तरफ़ उछल कूद करने लगे। धनबल-बाहुबल का उपयोग इस छोटे से चुनाव में भी बख़ूबी देखा गया। निगम के चुनाव में हर पार्टी ने अपने बड़े-बड़े नेता-मंत्री तक को उतारा।
‘आम आदमी पार्टी’ की तरफ़ से ख़ुद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया प्रचार के लिए उतरे और जमकर झूठे वादों की दुकान सजायी। जो केजरीवाल और उसके विधायक घरेलू कामगारों को मज़दूर का दर्जा देने पर चुप मार कर बैठे रहते हैं, वे शाहाबाद डेयरी को सीवर के नाम पर एक सौ करोड़ रुपये का झुनझुना बजा रहे थे। पिछले साल ही विधानसभा चुनाव में झुग्गी के बदले मकान, ठेका प्रथा ख़त्म करना जैसे जो झूठे वादे उछाले गये थे, आज उनको भूलकर नयी लफ़्फ़ाज़ियाँ की जा रही थीं।
भाजपा ने भी मनोज तिवारी से लेकर दिनेश लाल यादव निरहुआ, स्थानीय सांसद हंसराज हंस के साथ गौतम गम्भीर, आदेश गुप्ता जैसों को अपनी ज़हरीली राजनीति की बीन बजाने के लिए उतारा। भाजपा की तरफ़ से इस निगम उपचुनाव में बस मोदी-शाह की ही कमी थी। भाजपा ने दिल्ली के अपने सारे नेताओं को उतार दिया। रेल से लेकर तेल बेच चुके, करोड़ों को बेरोज़गार कर चुके, मज़दूरों को ग़ुलाम बनाने पर तुले इन संघी गुबरैलों के लिए इस निगम चुनाव में भी क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकता की घिनौनी राजनीति के अलावा कुछ नहीं बचा था।
वहीं बसपा जो सीवर में हो रही मौतों पर, दलित मेहनतकशों के साथ हो रहे उत्पीड़न पर हमेशा चुप रहती है, वह भी चुनाव में लोगों को जाति के नाम पर बाँटकर अपना वोट बैंक बनाने की कोशिश में जुटी थी। कांग्रेस ने भी 70 सालों तक देश की जनता को लूटने के अनुभवों से सीखकर, फिर से लूटने का सपना देखते हुए सारी ताक़त लगायी। सभी पार्टियों के उम्मीदवार भी फ़ैक्टरी मालिक, बड़े ठेकेदार, दलाल ही थे जो लम्बे समय से अपनी पार्टियों के साथ मिलकर लोगों को लूटने में संलग्न रहे हैं।
इस चुनाव में करोड़ों रुपये का ख़र्चा सारी चुनावबाज़ पार्टीयों ने किया और चुनाव आयोग हमेशा की तरह गांधीजी के तीन बन्दरों की भूमिका अदा करता रहा। किराये पर बुलायी गयी भीड़ से बड़ी-बड़ी रैलियाँ निकाली गयीं, हर गली में पार्टियों के बड़े-बड़े पोस्टर-बैनर-कटआउट लगे थे, कानफाड़ू आवाज़ के साथ हर दूसरे मिनट इनकी प्रचार गाड़ियाँ गलियों से गुज़रती रहती थीं।
इसी धनबल-बाहुबल के बरक्स भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने मज़दूरों-मेहनतकशों के दम पर ही पूरे चुनाव का ख़र्च भी उठाया। आर.डब्ल्यू.पी.आई के कार्यकर्ताओं, वॉलण्टियरों तथा शुभचिन्तकों ने चुनाव प्रचार अभियान में भागीदारी की व जनता के बीच के असल मुद्दों को उठाया। उन्होंने पूँजीवादी पार्टियों की राजनीति का भण्डाफोड़ किया और बताया कि किस तरह से ये जनता से वसूले गये टैक्सों पर अय्याशी करती हैं। इस व्यवस्था के भीतर भी जो काम हो सकते हैं वह भी नहीं किये जाते तथा जनता की पीठ पर सवार नेताशाही और अफ़सरशाही सारे संसाधनों की आपस में बन्दरबाँट कर लेती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अगर मज़दूर पार्टी की उम्मीदवार जीतती हैं तो क्या-क्या किया जा सकता है। जिन मुद्दों को लेकर मज़दूर पार्टी व उसकी उम्मीदवार अदिति खड़ी थीं, उन मुद्दों पर संघर्ष आगे भी जारी रहेगा।
उन्होंने बताया कि यह पार्टी स्वयं मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश व्यक्तियों द्वारा दिये गये आर्थिक सहयोग के दम पर काम करती है और यह किसी भी देशी-विदेशी कम्पनी, पूँजीपति घराने, सरकार, एनजीओ, फ़ण्डिंग एजेंसी, चुनावी ट्रस्ट या किसी अन्य पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टी से किसी भी प्रकार का चन्दा या फ़ण्ड नहीं लेती। यह महज़ आर्थिक नहीं बल्कि एक राजनीतिक सवाल है, क्योंकि जो पार्टी मज़दूरों और मेहनतकशों के आर्थिक संसाधनों पर खड़ी होती है, केवल वही पार्टी मज़दूर और आम मेहनतकश जनता के वर्ग हितों की सही मायने में नुमाइन्दगी कर सकती है।
आर.डब्ल्यू.पी.आई ने इस उपचुनाव में मुख्यत: इन माँगों को लेकर भागीदारी की थी :
1. शाहाबाद डेयरी में पानी की पाइपलाइन की व्यवस्था तत्काल की जाये।
2. नालियों की व्यवस्था के साथ-साथ साफ़-सफ़ाई का इन्तज़ाम किया जाये।
3. शाहाबाद डेयरी में निगम के स्कूलों की बेहतर व्यवस्था की जाये।
4. निगम के अस्पतालों को दुरुस्त किया जाये, जहाँ नि:शुल्क स्वास्थ्य देखभाल की गारण्टी हो।
5. सड़कों व पार्कों के निर्माण व रख-रखाव की उचित व्यवस्था की जाये।
6. आबादी के अनुसार राशन की दुकानें खोली जायें व मज़दूर रसोई की व्यवस्था की जाये।
7. साठ साल से अधिक उम्र वाले बुज़ुर्गों की संख्या जानने के लिए सर्वेक्षण किया जाये और सभी बुज़ुर्गों के लिए तत्काल वृद्धावस्था पेंशन की व्यवस्था की जाये।
8. इलाक़े में स्थित सामुदायिक भवनों के उचित रख-रखाव की व्यवस्था की जाये और आबादी के अनुपात में सामुदायिक भवनों का निर्माण किया जाये।
9. मज़दूर पार्टी की उम्मीदवार जीतने पर कुशल श्रमिक जितना ही वेतन लेंगी, बाक़ी पैसा इलाक़े के कामों में इस्तेमाल किया जायेगा।
10. पार्षद के पास आने वाले कुल फ़ण्ड का आवंटन जन-कमेटियों द्वारा किया जायेगा व इसका मासिक ऑडिट किया जायेगा और निर्णय लेने का काम जनता द्वारा गठित मोहल्ला कमेटियाँ करेंगी।
11. निगम द्वारा एम्बुलेन्स व शव-वाहन की सुविधा सुनिश्चित की जायेगी।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2021


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments