जब बस्तियों के किनारे श्मशान बना दिये जायें तो समझो हालात बद से बदतर हो गये हैं

– अदिति

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने तमाम सरकारों के चेहरे से एक बार नक़ाब उतार दिया है। स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल पट्टी पूरी तरह खुल गयी है। कोरोना महामारी से प्रतिदिन 4000 के क़रीब मौतें हो रही हैं, जो सिर्फ़ सरकारी आँकड़ा है, पर असल में सरकारी आँकड़ों से तीन-चार गुना अधिक मौतें हो रही हैं। मौत न कहकर इनको व्यवस्था द्वारा की गयी हत्या कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। चारों तरफ़ हाहाकार है, लोग ऑक्सीजन, बेड और दवाइयों के लिए भटक रहे हैं। लेकिन केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ उठा लिये है।
मज़दूर इलाक़ों में कोरोना महामारी में हालात बद से बदतर है, क्योंकि यहाँ बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं हैं, रोज़ खाने-जीने का संघर्ष इस महामारी में भी जारी है। इसी से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि मज़दूर इलाक़ों की स्थिति कैसी है। मज़दूर इलाक़े कूड़ों के ढेर से अटे पड़े हैं, साफ़-सफ़ाई की कोई उचित सुविधा नहीं है।
स्थिति ये है कि सार्वजनिक शौचालयों में गन्दगी का अम्बार है, पीने के पानी के टैंकरो पर भारी भीड़ लग रही है, पर केजरीवाल सरकार मीडिया के सामने अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है।
उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के शाहबाद-डेरी से सटे पाँच-मन्दिर में जहाँ कोरोना महामारी में भी रिहायशी इलाक़े के पास श्मशान-घाट बना दिया गया है। जिससे लोगों को काफ़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। हवा में धुँआ और इन्सानी राख हमेशा वातावरण में रहते हैं, जिससे आस-पास के लोगो को साँस लेने में काफ़ी दिक़्क़त हो रही है। श्मशान का सारा धुँआ इलाक़े में आ रहा है, जिसके कारण इलाके़ में बुज़ुर्गों और बच्चों का स्वास्थ्य भी ख़राब हो रहा है। खाने से लेकर तमाम चीज़ों में धूल के कण गिर जाते हैं। लोगों के घरों के अन्दर से श्मशान में जलते लोग दिखायी देते हैं। बिना किसी सुरक्षा इन्तज़ाम के पी.पी.ई किट भी श्मशान में इधर-उधर फेंके जा रहे हैं। स्थानीय प्रशासन इस मसले में चुप्पी साधे बैठा है।
ग़ौरतलब है कि एक तरफ़ मध्यमवर्गीय अपार्टमेण्ट हैं, जहाँ कोविड होने पर ऐसे परिवारों की सहायता हेतु मार्शल दिये जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ मज़दूरों की ज़िन्दगी जानवरों सरीखी मानी जा रही है, जहाँ कोरोना से रक्षा तो दूर, पर बग़ल में ही कोरोना से मृत हुए लोगों को जलाया जा रहा है। इसी से पता चलता है कि मज़दूरों-मेहनतकशों की ज़िन्दगी से सरकारों को कोई लेना-देना नहीं है।
श्मशान घाट में काम करने वाले मज़दूरों ने बताया कि यहाँ कोविड और ग़ैर-कोविड लाशें जलायी जा रही हैं। सुबह 5 बजे श्मशान में जाकर अपना पंजीकरण करवाने पर ही लाशों को जलाने की जगह मिल रही है, ऐसी स्थिति आ गयी है कि श्मशान बनते ही लाशों की क़तारें लगना शुरू हो गयीं। एम.सी.डी. वाले सही आँकड़ा देने में आनाकानी कर रहे हैं, पर कम से कम रोज़ाना जलने वालों की संख्या 40-50 होती है। एम.सी.डी. के कर्मचारियों के अनुसार 1 मई को यहाँ अट्ठाइस लोगों को जलाया गया था और 2 मई तीस लोग जलाये गये थे और इसके बाद से रोज़ाना पचास लोगों को यहाँ जलाया जाता है। इतने क़रीब से लाशों को जलता देख लोग सो भी नहीं पा रहे हैं।
शाहबाद-डेरी में बीस वर्ष से पहले इस जगह श्मशान बनाने के ख़िलाफ़ लोगों ने संघर्ष किया था, लोगों के दबाव के कारण ही श्मशान घाट इलाक़े से दूर बना दिया गया था। लेकिन कोरोना महामारी में लोगों के स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के गठजोड़ से श्मशान घाट दो दशकों बाद पुनः चालू कर दिया गया, अब 30 अप्रैल से श्मशान घाट में दोबारा लाशों को जलाना शुरू कर दिया गया है। इससे एक बार फिर तमाम चुनावबाज़ पार्टियों का चेहरा उजागर होता हैं़ कि ये मुर्दाख़ोर लोगों को मारकर भी सिर्फ़ अपनी गोटी सेट करने चाहते हैं।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी लगातार इन लोगों के बीच जा रही है। प्रयास किया जा रहा है कि जल्द से जल्द इस श्मशान को बस्ती के पास से हटाकर कहीं दूर बनाया जाये। लगातार लोगों के बीच हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा रहा है, ताकि इन हस्ताक्षरों के साथ सरकार को ज्ञापन सौंपा जाये। आने वाले 10 मई को मज़दूर पार्टी के नेतृत्व में लोगों के साथ पार्षद के पास जायेंगे और तब तक चुप नहीं बैठेंगे जब तक यह श्मशान बस्ती के समीप से हटाकर कहीं दूर न बनाया जाये।
आज कोरोना की दूसरी लहर से चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था और फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा बरती गयी जघन्य आपराधिक लापरवाही से आज मज़दूर इलाक़े श्मशान में तब्दील हो रहे हैं। ये वो तथ्य है जो सामने आ गये, पर कोरोना से मची तबाही के असल आँकड़े ये सरकारें बता ही नहीं रहीं। हालात भयंकर होते जा रहे हैं, नरभक्षी फ़ासिस्ट मोदी सरकार और अन्य सरकारें स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त करने में पूरी तरह विफल हो चुकी हैं। इस क़त्लेआम को रोकना है, तो आज हमारे सामने एक ही विकल्प है: एकजुट होकर पूरे निजी अस्पतालों, पैथ लैब के राष्ट्रीकरण की माँग उठाना और सबको एक समान व सार्वभौमिक स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराने के लिए लड़ना।

मज़दूर बिगुल, मई 2021


 

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