आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल और बसपा का अवसरवादी गठबन्धन – एक संक्षिप्त टिप्पणी!

– ‘मुक्तिकामी छात्रों युवाओं का आह्वान’ से साभार

पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ अपने चुनावी जोड़-तोड़ में लग गयी हैं। हाल ही में शिरोमणि अकाली दल तथा मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का 25 वर्षों बाद दोबारा मिलन हुआ है। ग़ौरतलब है कि खेती क़ानूनों के चलते शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के साथ अपना ढाई दशक पुराना गठबन्धन पिछले वर्ष सितम्बर में तोड़ा था। धार्मिक कट्टरपन्थी राजनीति करने वाली अकाली दल मुख्य तौर पर पंजाब के धनी किसानों, कुलकों का प्रतिनिधित्व करती है। यह वही तबक़ा है जो जनविरोधी लाभकारी मूल्य को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है और ठीक इसी वजह से कृषि कानूनों का विरोध कर रहा है।
अब नयी राह के राही के तौर पर शिरोमणि अकाली दल का साथ निभाने के लिए बसपा रंगमंच पर उभर कर सामने आयी है। बसपा दलित अस्मितावाद की राजनीति करती रही है। पंजाब के कुल 117 विधानसभा सीटों पर 1997 से शिरोमणि 93 तथा भाजपा 24 सीटों के समीकरण पर उम्मीदवारी पेश करती आई थी। बसपा आगामी चुनाव में नये गठबन्धन के तहत 20 सीटों से अपनी दावेदारी पेश करेगी।
पंजाब में दलित आबादी कुल आबादी का 31.94% है; देश के किसी भी राज्य के मुकाबले यह सबसे अधिक है। राज्य की आबादी में क़रीब एक तिहाई हिस्सा होने के बावजूद इनके पास पंजाब की कुल कृषि योग्य भूमि के मात्र 2.3% का मालिकाना है। यह आबादी ज़्यादातर धनी किसानों कुलकों के खेतों-खलिहानों तथा अन्य आर्थिक इकाइयों में अपना उजरती श्रम बेचकर जीवन गुज़र-बसर करती है। पंजाब की कुल आबादी का तक़रीबन 25% हिस्सा जट्ट सिक्खों का है। लेकिन पंजाब के क़रीब 80% ज़मीन का मालिकाना इनके पास है। हालांकि यह सच है कि जट्ट सिखों की एक विचारणीय आबादी छोटे और सीमांत किसान के रूप में भी विद्यमान हैं, लेकिन मध्यम और बड़े किसान लगभग विशेष रूप से जट्ट सिख ही हैं। ज़ाहिरा तौर पर इनके बीच भी वर्ग अन्तरविरोध व्याप्त हैं और आबादी का एक हिस्सा उजरती श्रम करने को भी मजबूर है।
राज्य की कुल 11 लाख जोतों में से केवल 63,480 (6.02%) दलितों के पास हैं। पंजाब की कुल श्रमिक आबादी का 35.88 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति से है। पंजाब में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले 523,000 परिवारों में से 321,000 या 61.4% दलित हैं। वहाँ कृषि और ग़ैर-कृषि क्षेत्र में ग़रीबी दर 17.9 प्रतिशत से 21.7 प्रतिशत होने के साथ ही दलित मज़दूर आबादी सबसे ग़रीब व अरक्षित आबादी है।
पूरे पंजाब में दलित उत्पीड़न का एक बर्बर इतिहास रहा है। अधिकांश गाँवों में दलितों के लिए अलग पूजा स्थल और श्मशान घाट हैं। वे प्रार्थना करने के लिए गुरुद्वारों में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन लंगर के कामों में शामिल नहीं हो सकते। दलितों को गुरुद्वारों में धार्मिक समारोहों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों को छूने की अनुमति नहीं है। यहाँ तक कि शादी-विवाह में घोड़ी चढ़ने की वजह से दलितों को स्थानीय सम्पत्तिशाली तबकों के कोप का शिकार होना पड़ता है। पंजाब में आम तौर पर दलित आबादी का आर्थिक शोषण तथा अर्थिकेतर उत्पीड़न करने का काम कुलक और धनी किसान आबादी करती है, जिसका राजनीतिक प्रतिनिधित्व शिरोमणि अकाली दल करती है।
यह गठबन्धन दलित अस्मितवादी राजनीति करने वाली बसपा की अवसरवादी राजनीति की एक और नुमाइश है। बसपा फासीवादी और सवर्णवादी भाजपा की गोद में बैठकर सत्ता सुख भी भोग चुकी है। और यही बात अकाली दल पर भी लागू होती है। ज़ाहिरा तौर पर धार्मिक कट्टरपन्थी तथा अस्मितावादी राजनीति के ये दोनों नुमाइन्दे अपने-अपने तरीक़ों से अवसरवादी राजनीति करते रहे हैं, ऐसे में इनका यह हालिया मेल इनकी राजनीति की तार्किक परिणति है। ये दोनों ही धाराएँ आम मेहनतकश आबादी को वर्ग आधार पर संगठित होने से रोकती हैं, और शोषकों-उत्पीड़कों के हितों का ख़्याल रखती हैं।

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

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