युद्ध की वि‍भीषिका और शरणार्थियों का भीषण संकट
पूँजीवाद के पास आज मानवता को देने के लिए ये त्रासदियाँ ही बची हैं

आनन्द सिंह

Aylan-Kurdi-400x200पूँजीवाद अपने जन्मकाल से ही लोगों को उनकी आजी‍विका के साधनों से बेदखल करके और उनको दर-बदर कर एक इलाके से दूसरे इलाके, एक मुल्क से दूसरे मुल्क और यहाँ तक कि एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक पलायन करने के लिए मजबूर करता आया है। हालाँकि जब तक पूँजीवाद सामन्तवाद के ि‍ख़‍लाफ़ संघर्ष कर रहा था उस समय तक उसके पास मानवता को देने लायक कुछ सकारात्मक मूल्य थे और और बेहतर जीवन के सपने थे तथा उसके आगमन से मानवता निश्चित रूप से एक उन्नत अवस्था में पहुँची, परन्तु आज यह व्यवस्था इतनी मानवद्रोही हो चुकी है कि इसके पास मानवता को देने के लिए विनाशकारी युद्धों और उनसे उपजी मानवीय त्रासदियों के सिवाय और कुछ नहीं बचा है। शरणार्थियों का संकट पूँजीवाद द्वारा पैदा की गयी ऐसी ही एक त्रासदी है जो पूँजीवाद की उम्र बीतने के साथ-साथ विकराल रूप लेती जा रही है।

पिछले महीने ऐलान कुर्दी नामक तीन वर्षीय शिशु की तुर्की में भूमध्यसागर के तट पर औंधे मुँह पड़ी लाश की हृदय विदारक तस्वीरें दुनिया भर में मीडिया एवं सोशल मीडिया की सुर्खियों में छाई रहीं। नन्हा ऐलान कुर्दी सीरिया में रहने वाले एक कुर्द परिवार का बच्चा था जो सीरिया में जारी साम्राज्यवादी हमले एवं गृहयुद्ध की वजह से समुद्री नाव से कनाडा में शरण लेने जा रहा था और नाव में क्षमता से अधिक लोग होने की वजह से वह डूब गयी। इस घटना के बाद यूरोप और अमेरिका के तमाम पूँजीवादी देशों के शासकों ने भी शरणार्थियों की समस्या पर जमकर घड़ि‍याली आँसू बहाये। मानवतावाद का मुखौटा लगाये इन पूँजीवादी शासकों और उनके टुकड़ो पर पलने वाली मुख्यधारा की मीडिया ने घड़ि‍याली आँसुओं की बाढ़ में इस नंगी सच्चाई को दबा दिया कि इस भयंकर त्रासदी के ज़िम्मेदार दरअसल वे ख़ुद हैं।

शरणार्थियों के मामले को देखने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचसीआर (यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिशनर फॉर रिफ्यूजीज़) के मुताबिक दुनिया भर में शरणार्थियों की संख्या आज 6 करोड़ का आँकड़ा पार कर चुकी है जो अब तक के इतिहास में सबसे अधिक है। ग़ौरतलब है कि इन शरणार्थियों में अधिकांश बच्चे हैं। वर्ष 2014 में ही लगभग 1.4 करोड़ लोगों को गृह युद्ध एवं अन्य प्रकार की हिंसा की वजह से मजबूरन विस्थापित होना पड़ा जिनमें से 1.1 करोड़ लोग अपने-अपने देशों की सीमाओं के भीतर ही विस्थापित हुए जबकि 30 लाख लोगों को अपना वतन छोड़ना पड़ा। इस वर्ष तो यह संख्या और भी ज़्यादा बढ़ गयी  होगी।

refugeesइतने बड़े पैमाने पर विस्थापन की वजह समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि वे कौन से क्षेत्र हैं जहाँ से आज विस्थापन सबसे अधिक हो रहा है। आँकड़े इस बात की ताईद करते हैं कि हाल के वर्षों में जिन देशों में साम्राज्यवादी दखल बढ़ी है वही वे देश हैं जहाँ सबसे अधिक लोगों को विस्थापन की मार झेलनी पड़ रही है, मसलन सीरिया, अफ़गानिस्तान, इराक़ और लीबिया। पिछले डेढ़ दशक में इन देशों में अमेरिका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी दखल से पैदा हुई हिंसा और अराजकता ने इन इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। इस हिंसा में भारी संख्या में जानमाल की तबाही हुई है और जो लोग बचे हैं वो भी सुरक्षित जीवन के लिए अपने रिहायशी इलाकों को छोड़ने पर मजबूर कर दिये गये हैं। अमेरिका ने 2001 में अफ़गानिस्तान पर तथा 2003 में इराक़ पर हमला किया जिसकी वजह से इन दो देशों से लाखाें लोग विस्थापित हुए जो आज भी पड़ोसी मुल्कों में शरणार्थी बनकर नारकीय जीवन बिताने को मज़बूर हैं। 2011 में मिस्र में हुस्नी मुबारक की सत्ता के पतन के बाद सीरिया में स्वत:स्फूर्त तरीके से एक जनबग़ावत की शुरुआत हुई थी जिसका लाभ उठाकर अमेरिका ने सऊदी अरब की मदद से इस्लामिक स्‍टेट नामक सुन्‍नी इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन को वित्तीय और सैन्य प्रशिक्षण के ज़रिये मदद पहुँचाकर सीरिया के गृहयुद्ध को और भी ज़्यादा विनाशकारी बनाने में अपनी भूमिका निभायी जिसका नतीजा यह है कि 2011 के बाद से सीरिया में एक करोड़ से भी अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं जिनमें से 40 लाख लोग तो वतन तक छोड़ चुके हैं। वैसे पूँजीवाद के इतिहास से वाकिफ़ लोगों के लिए यह कोई नयी बात नहीं है। पिछली सदी में भी पूँजीवाद-साम्राज्यवाद ने दो विश्वयुद्धों एवं उसके बाद इज़रायल-फ़ि‍लिस्तीन विवाद, कोरिया युद्ध, वियतनाम युद्ध, एवं सोमालिया, रवांडा, कांगो जैसे अफ्रीकी मुल्कों में क्षेत्रीय युद्धों को बढ़ावा देकर लाखों की संख्या में लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर किया था।

पूँजीवादी देशों में शासक वर्गों के दक्षिणपंथी एवं वामपंथी धड़ों के बीच शरणार्थियों की समस्या पर बहस कुल मिलाकर इस बात पर केन्द्रित होती है कि शरणार्थियों को देश के भीतर आने दिया जाये या नहीं। सापेक्षत: मानवतावादी चेहरे वाले शासकवर्ग के वामपंथी धड़े से जुड़े लोग आमतौर पर शरण‍ार्थियों के प्रति उदारतापूर्ण आचरण की वकालत‍ करते हैं और यह दलील देते हैं कि शरणार्थियों की वजह से उनकी अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचता है। लेकिन शासकवर्ग के ऐसे वामपंथी धड़े भी कभी यह सवाल नहीं उठाते कि आखिर शरणार्थी समस्या की जड़ क्या है। वे ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि यदि वे ऐसे बुनियादी सवाल उठाने लगेंगे तो पूँजीवादी व्यवस्था कटघरे में आ जायेगी और उसका मानवद्रोही चरित्र उजागर हो जायेगा। सच तो यह है कि साम्राज्यवाद के युग में कच्चे माल, सस्ते श्रम एवं बाज़ारों पर क़ब्ज़े के लिए विभिन्न साम्राज्यवादी मुल्कों के बीच होड़ अवश्यम्भावी रूप से युद्ध की विभीषिका को जन्म देती है। यही नहीं संकटग्रस्त पूँजीवाद संकट से निजात पाने के लिए भी युद्ध का सहारा लेता है क्योंकि युद्धों में भारी पैमाने पर उत्पादक शक्तियों की तबाही पूँजीवाद के अतिउत्पादन के संकट के लिए संजीवनी का काम करती है। इसके अलावा हथियारों के विश्व-व्यापी व्यापार को क़ायम रखने के लिए भी यह ज़रूरी हो जाता है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में छोटे या बड़े पैमाने के युद्ध या तनाव की स्थिति बनी रहे। यही वो भौतिक परिस्थितियाँ हैं जो शरणार्थियों के संकट को पैदा करती हैं।

विश्व के अलग-अलग हिस्‍सों में रहने वाले मज़दूर वर्ग का रवैया शरणार्थियों के प्रति दोस्ताना होना चाहिए क्योंकि शरणार्थी मज़दूर वर्ग का ही हिस्सा होते हैं। उनके साथ किसी भी क़ि‍स्म के भेदभाव एवं ज़्यादतियों के ि‍ख़‍लाफ़ हमें आवाज़ उठानी चाहिए। मज़दूर वर्ग को अन्तरराष्ट्रीयतावादी भावना का परिचय देते हुए हर मुल्क में शरणार्थियों के हक़ों के लिए लड़ना चाहिए एवं शरणार्थियों के बीच मज़दूर वर्ग के ऐतिहासिक मिशन यानी पूँजीवाद के ख़ात्मे एवं समाजवाद की स्थापना के विचारों को लेकर जाना चाहिए और शरणार्थियों को यह यकीन दिलाना चाहिए कि उनकी त्रासदी का अन्त भी सर्वहारा क्रान्ति में निहित है।

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2015


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments