दक्षिण अफ्रीकी कहानी – अँधेरी कोठरी में

अलेक्स ला गुमा
अनुवादः आनन्दस्वरूप वर्मा
(‘आज की अफ्रीकी कहानियाँ’ संकलन से साभार)

एक झटके से कार पुलिस स्टेशन के सामने रुकी और खुफिया अधिकारी उसमें से बाहर निकले। चारों ओर ऊँचे घने पेड़ थे और अँधेरे में उनकी विशाल बेडौल आकृतियाँ हिल-डुल रही थीं। गेट से पुलिस स्टेशन के बरामदे तक लाल बजरी से बना रास्ता था जिसके दोनों तरफ घास के लॉन थे, जिस पर चाँद और बिजली की मिली-जुली रोशनी पसर रही थी। इस पीली मटमैली रोशनी में गाढ़े लाल ईंट से बनी पुलिस स्टेशन की नयी इमारत चमक रही थी।

सादी पोशाक में तैनात दोनों अधिकारी कार से निकलकर मुस्तैदी से खड़े हो गये और इलियास के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। इलियास के हाथों में हथकड़ी थी। दोनों उसे लेकर पुलिस स्टेशन की ओर बढ़े। इनमें से एक लम्बा और हट्टा-कट्टा नौजवान था और उसने बड़े करीने से अपने बाल सँवार रखे थे – उसके बाल किसी सुन्दर चिड़िया के पंख की तरह चमक रहे थे। दूसरा देखने में कोई खिलाड़ी लगता था। उसने चुस्त पैंट के साथ एक विंडचीटर और सिर पर गोल्प़फ़ कैप पहन रखी थी और लगता था जैसे खेल के मैदान से सीधे चला आ रहा हो। उसके सख़्त चेहरे पर लाल-भूरी मूँछें थीं।

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पुलिस स्टेशन के बरामदे में अच्छी-खासी रोशनी थी और कमर से रिवाल्वर लटकाये पुलिस अधिकारी अपनी वर्दियों में इधर-उधर आ-जा रहे थे। बरामदे की सीढ़ियाँ चढ़ते इलियास को उन्होंने ग़ौर से देखा। अन्दर पुलिस स्टेशन दो हिस्सों में बँटा था – एक हिस्सा गोरों के लिए और दूसरा अश्वेतों के लिए। दोनों खुफ़िया अधिकारी इलियास को लेकर अश्वेतों के लिए बने हिस्से में गये और वहाँ ड्यूटी पर तैनात सार्जेण्ट को इलियास को सौंप दिया। सख़्त चेहरे और भूरी मूँछों वाले अधिकारी ने उस सार्जेण्ट से कहा, “इसे सबेरे तक हिरासत में रखो। हम लोग कल इसे हटा देंगे।”

सार्जेण्ट ने तीखी नजरों से इलियास को घूरा। इस बीच दोनों अधिकारियों ने सार्जेण्ट की मेज पर सारा सामान रख दिया, जो इलियास के पास गिरफ़्तारी के समय बरामद हुए थे – एक पाइप और तम्बाकू का पैकेट, माचिस, एक मामूली किस्म की जेबघड़ी और मुड़ी-तुड़ी पासबुक।

पुलिस स्टेशन के अहाते से बाहर सड़क से एक बस गुज़री। यह लगभग आधी रात का वक्त था। भालों से लैस दो अफ्रीकी कांस्टेबल आकर इलियास के दोनों ओर खड़े हो गये थे। उन्होंने इलियास को देखा और आपस में कुछ बुदबुदाये। गोल्फ़ कैप वाले अधिकारी ने जम्हाई ली और अपने साथी की ओर मुख़ातिब होकर कहा, “मेरी ड्यूटी तो कब की ख़त्म हो गयी होती, लेकिन इन हरामज़ादों की वजह से आराम भी नहीं मिलता।” उसने अपने विंडचीटर के अन्दर हाथ डालकर सिगरेट का पैकेट निकाला और अपने साथी की ओर बढ़ाया।

इस बीच सार्जेण्ट ने उन सामानों की सूची तैयार कर दी थी, जो इलियास के पास से बरामद हुए थे। अभी वह सामानों को सहेज ही रहा था कि एक आदमी लड़खड़ाता हुआ आया और दीवार से लगी बेंच पर बैठ गया। इसे लेकर जो पुलिसवाला आया था, वह बेतहाशा गाली दिये जा रहा था। वह आदमी कराह रहा था और सिर से पाँव तक खून से तर था। ऐसा लगता था जैसे किसी ने बाल्टी में भरकर लाल रंग उसके ऊपर डाल दिया हो। वह नंगे पाँव खून से तर अपने चीथड़ों में बेंच पर लुढ़का रहा और चीखता रहा।

“ओफ्फ़ोह,” सार्जेण्ट ने गुस्से से घूरते हुए कहा, “अब इस साले को क्या हो गया?”

“पी के पड़ा हुआ था… शुक्रवार की रात है न!” साथ वाले कांस्टेबल ने कहा।

“सर, इन्होंने मुझे बहुत पीटा है,” घायल व्यक्ति ने बड़ी मुश्किल से फ़रियाद की।

“अबे साले, यहाँ कोई सर और मैडम नहीं है। बॉस बोल बॉस।”

“बॉस, इन्होंने मुझे पीटा।”

“तुझे कोई बयान देना है?” सार्जेण्ट ने पूछा।

इस बीच रेडक्रॉस की पोशाक पहने एक व्यक्ति उस घायल आदमी के करीब बैठकर घावों को देखने लगा। खुफ़िया विभाग के दोनों अधिकारी अन्यमनस्क भाव से खड़े देखते रहे। गोल्फ़ कैप वाला अधिकारी बार-बार मुट्ठियाँ खोलता और बन्द करता ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी को पीटने के लिए बेचैन हो। रेडक्रॉस वाले व्यक्ति ने घायल आदमी के ऊपर चादर डाल दी। सार्जेण्ट ने सामानों की सूची तैयार करने के बाद इलियास पर निगाह डाली।

“इसे दस्तख़त करना आता है?” सार्जेण्ट ने खुफ़िया अधिकारी से पूछा।

“बिल्कुल सार्जेण्ट। यह पढ़ा-लिखा विद्वान कलूटा है।”

सार्जेण्ट ने इलियास से सामान की रसीद पर दस्तख़त करवाया और उसकी एक प्रतिलिपि इलियास के हथकड़ी लगे हाथों में पकड़ा दी। सार्जेण्ट ने फिर आवाज़ देकर एक सिपाही को बुलाया और इलियास को उसके ज़िम्मे कर दिया। सिपाही उसे लेकर हवालात की ओर चल दिया।

अब इलियास अकेला था। उसने उस तंग अँधेरी कोठरी का निरीक्षण किया – निकलने की कोई गुंजाइश नहीं है। उसे लगा, जैसे बोतल के अन्दर किसी मक्खी को बन्द कर दिया गया हो। हथकड़ी अब भी लगी थी। वह चुपचाप फर्श पर बैठ गया और सोचने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पुलिस को कैसे मीटिंग वाली जगह का पता चला। साथियों ने पूरी एहतियात बरती थी, फिर भी यह कैसे हो गया? उसे उम्मीद थी कि ब्यूक्स ज़रूर बच गया होगा। कमरे के बाहर गोली चलने की आवाज़ सुनायी दी थी, लेकिन ब्यूक्स बच ही गया होगा। अगर वह पकड़ा गया होता तो खुफ़िया अधिकारी उसे भी अब तक यहाँ पहुँचा दिये होते। अब तक सब तितर-बितर हो गये होंगे ओर ब्यूक्स अगर बचा होगा तो भी उसे काम करने में काफी दिक्कत होगी।

“इलियास, अब उन बातों को सोचने से कोई फ़ायदा नहीं – तुम तैयारी करो अब उनके सवालों का जवाब देने की। कल से ही तुमसे पूछताछ का सिलसिला शुरू होगा,” उसने मन ही मन कहा और एक बार फिर कोठरी के हर कोने पर निगाह डाली।

इस तरह की कोठरी में उसे पहले भी एक बार डाला गया था, जब उसने हड़ताल में हिस्सा लिया था। उस समय पुलिस ने इतना पीटा था कि वह बेहोश हो गया था। बेहोशी की हालत में ही उसे हवालात की कोठरी में डाल दिया गया था। उसके ऊपर करारनामा तोड़ने का आरोप था और जेल से रिहा होने के बाद उसे शहर से दूर एक ट्रांज़िट कैम्प में रख दिया गया।

उसे आज फिर उस कैम्प की याद आ रही थी – टूटी-फूटी उजाड़ झोपड़ियों की उदास कतारें और कामचलाऊ तम्बू जिनके फटे कोने हवा के ज़ोर से इस तरह फड़फड़ाते थे जैसे किसी चिड़िया के नुचे हुए डैने हों। समूचा कैम्प विस्थापित और लावारिस बेरोज़गारों से भरा था। इनमें से कुछ ऐसे थे जिन्हें गोरों के इलाके में काम करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था और कुछ ऐसे थे जिन्होंने कुछ ही दिन पहले जेल की सज़ा काटी थी। तंग छोटी कोठरियों में पूरा का पूरा परिवार भरा रहता था।

इलियास को अच्छी तरह याद है, जब वे यहाँ आये तो कोई काम नहीं था। बड़ी देर तक वे उस पुरानी मरियल बस से उतरने के बाद चुपचाप खड़े रहे और दूर पहाड़ी से आ रही हवा के सर्द झोंकों को झेलते रहे। फिर कुछ अफ़सरनुमा गोरे आये, उनके कागज़ात देखे गये और उन्हें कैम्पों के हवाले कर दिया गया। सारा-सारा दिन वे झुण्ड बनाकर बैठे रहते और समझ में नहीं आता था कि क्या किया जाये। चारों ओर नंगी टूटी पहाड़ियाँ थीं। लगता था जैसे किसी दैत्य के बेडौल दाँतों के बीच उन्हें ठेल दिया गया हो। चकती लगे कम्बलों को लपेटे औरतें लगातार उस पथरीली ज़मीन को इस लायक बनाने में जुटी रहतीं, जिससे उसमें कुछ उगाया जा सके, पर सारी मेहनत बेकार जाती।

खाने के लिए कुछ भी नहीं था। कुछ समय तक इन्तज़ार करने के बाद इलियास ने एक आदमी से दोस्ती कर ली जिसका नाम मदलका था। वह जवान और हट्टा-कट्टा था और उसने सड़क बनाने वालों के साथ मज़दूरी शुरू कर दी थी।

“क्‍यों भाई, तुम्हें यहाँ क्यों लाया गया।” मदलका ने एक दिन उससे पूछा।

“मैं एक हड़ताल में शामिल था और अब गोरे मुझे शहर में नहीं रहने देंगे।”

“हड़ताल में? यह कब हुई थी?” मदलका ने पूछा।

इलियास ने उस हड़ताल का पूरा किस्सा सुनाया और मदलका ध्यान से सुनता रहा।

सड़क बनाने का काम बड़ा मेहनत वाला काम था लेकिन हफ्ते भर काम करने के बाद उसे कुछ शिलिंग मिल जाते थे जिससे वह भोजन और तम्बाकू की ज़रूरत किसी तरह पूरी कर लेता था। सबको काम भी नहीं मिलता था। तमाम बूढ़े और रिटायर्ड लोगों को भी यहीं भेज दिया गया था, शहर को अब इनकी कोई ज़रूरत नहीं थी। टूटी-फूटी और बेकार मशीन की तरह लोगों को यहाँ पाट दिया गया था।

“तुमने हड़ताल में हिस्सा लिया था, यह सुनकर मुझे अच्छा लगा,” मदलका ने कहा, “मैं ख़ुद जेल में छह महीना काट चुका हूँ। राजनीतिक अपराध के लिए। सरकार के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलो तो गोरे बर्दाश्त नहीं कर पाते। मुझे एक हमलावर भीड़ की अगुवाई करने के जुर्म में पकड़ लिया गया और जेल भेज दिया गया। जेल से छूटने के बाद सीधे यहाँ लाकर पटक दिया गया।”

“कैसी हमलावर भीड़,” इलियास की उत्सुकता बढ़ी। लंच का समय था और दोनों सड़क के किनारे पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ता रहे थे। मदलका बड़े उत्साह के साथ सारी घटना बताता रहा।

ठेकेदार के पास नौ लोग थे जो सड़क बनाने के इस काम में जुटे थे। इनमें से एक था बूढ़ा तसातू जो इलियास जैसे लोगों के दादा की उम्र का था। इतने बूढ़े आदमी को अपने नाती-पोते की उम्र के नौजवानों के साथ पत्थर तोड़ते देखना बड़ा बुरा लगता था, लेकिन कुछ किया भी नहीं जा सकता था। बूढ़ा तसातू अगर काम न करता तो भूखों ही मरता।

एक दिन जब ठेकेदार ने लंच ख़त्म होने की सीटी बजाई, सभी लोग आकर लाइन में खड़े हो गये, लेकिन तसातू लेटा ही रहा।

“इस बूढ़े से कह, जल्दी उठे…यह सोने का वक्त नहीं है।” ठेकेदार ने कड़कते हुए कहा।

जो आदमी बूढ़े तसातू को जगाने के लिए गया था उसने लौटकर बताया, “वह सो नहीं रहा है। वह अपने पुरखों के पास जा चुका है। हो सकता है उसे इस धरती की तुलना में वहाँ ज़्यादा ही प्यार मिले।” सबने गौर से देखा, बूढ़ा तसातू पुराने कपड़ों की गठरी की तरह ईंट-पत्थर के टुकड़ों पर पड़ा था।

तसातू की शवयात्रा में सभी ने हिस्सा लिया, हालाँकि किसी को यह नहीं पता था कि वह रहने वाला कहाँ का था या कहाँ से आया था। वह बस एक ऐसा अनजान बूढ़ा था जिसने ज़िन्दा रहने के लिए मरने की हद तक काम किया। उसे एक कम्बल में लपेटा गया – ऐसे कम्बल में जो कम से कम फटा हुआ था और कुछ हद तक साफ़ दिखाई देता था। फिर कैम्प के छोर पर चट्टानों के नीचे उसे दफना दिया गया।

इलियास को याद है, उस दिन मदलका ने ही सारा क्रियाकर्म किया। कुछ दिन बाद कैम्प से छुटकारा पाने के बाद एक चिट पर मदलका ने कोई चिट्ठी लिखी जिसे लेकर इलियास शहर में मदलका के साथियों से मिला और एक दूसरी ज़िन्दगी शुरू हुई।

बड़ी पुरानी बातें हैं। हवालात की अँधेरी कोठरी में बैठा इलियास बीती यादों में डूबा रहा। आज भी मदलका से हुई मुलाकात पर उसे कोई रंज नहीं है…

उधर, ब्यूक्स अपने घायल हाथ को कोट के अन्दर छिपाये घूमता रहा – कमीज़ की आस्तीन पर ख़ून जमकर पपड़ी बन गया था। सिर में बेहद दर्द था और हल्का बुखार भी। दर्द और बेसब्री के साथ वह तमाम मरीज़ों की तरह अपनी बारी आने का इन्तज़ार कर रहा था।

डॉक्टर का यह वेटिंग रूम एक प्राइवेट मकान का बाहर का कमरा था, जिसमें दीवार के सहारे लगी एक बेंच पर कई मरीज़ बैठे थे।

ब्यूक्स ने सोच लिया था कि वह भी डॉक्टर से वैसे ही मिलेगा जैसे कोई भी साधारण मरीज़ मिलता है। ऐसा करने से उस पर किसी तरह का सन्देह नहीं होगा।

आप आधी रात को डॉक्टर के यहाँ नहीं पहुँच सकते, यह कहते हुए कि पुलिस ने गोली मार दी है – ब्यूक्स ने सोचा। इसके अलावा इस डॉक्टर का ठीक-ठाक पता भी तो नहीं मालूम था। उसे याद था कि एक बार इस डॉक्टर ने उसके संगठन को चन्दा दिया था। उस समय ब्यूक्स अपने एक साथी के इलाज के सिलसिले में आया था। लेकिन यह बहुत पुराना किस्सा है और तब की बात है जब ब्यूक्स के साथी शहर में जगह-जगह घूमकर अपने हमदर्दों से सहायता राशि इकट्ठा कर रहे थे। मिलते भी उन्हीं से थे, जिनके बारे में एक हद तक निश्चिन्तता होती थी। अब, जबकि सारी कार्रवाईयाँ ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दी गयी हैं और सारे संगठनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, क्या डॉक्टर का वही रुख होगा जो पहले था? ब्यूक्स ने मन ही मन सोचा। फिर भी कुछ न कुछ तो करना होगा। चोट लगने का कोई वाजिब कारण ढूँढ़ना होगा। उसने हाथ हिलाया और दर्द बड़ी तेज़ी से उठा।

बूढ़ा व्यक्ति दीवार के कोने का सहारा लेकर सो गया था, लेकिन उसका मुँह अब भी काँप रहा था।

काफी इन्तज़ार के बाद ब्यूक्स की बारी आयी। “आइये… मिस्टर बेंजामिन,” डॉक्टर ने चश्मे के पीछे छिपी निगाहों से देखा – इस तरह जैसे जानना चाहता हो कि उसने सही नाम लिया या नहीं?

“ब्‍यूक्स… मेरा नाम ब्यूक्स है।”

“अच्छा-अच्छा, ब्यूक्स।” डॉक्टर ने कहा। वह मानता था कि इन दिनों लोग अपने नाम भी वैसे ही बदल रहे हैं जैसे कमीज़ बदलते हैं, “तुम पहले भी एक बार आ चुके हो। उस समय तुम बीमार नहीं थे। क्यों, मैं ठीक कह रहा हूँ ना?” फिर काली नर्स की ओर घूमकर कहा, “इस मरीज़ का कार्ड बनाने की ज़रूरत नहीं है।”

नर्स ने ब्यूक्स के कोट का बटन खोलना शुरू किया। डॉक्टर को एक साथ ईथर और तम्बाकू की गन्ध मिली और उसने कुछ हिचकिचाहट के साथ कहा, “ओफ्फ़ोह, तुमने तो ख़ुद को घायल कर रखा है।”

नर्स ने कैंची से कमीज की आस्तीन को काट दिया और वह साँप की सूखी खाल की तरह गिर गयी। घाव को देखकर ब्यूक्स घबरा गया और झट से दूसरी तरफ़ देखने लगा।

डॉक्टर उसे देखकर मुस्करा पड़ा। फिर आगे झुककर देखने लगा, “ओह, काफी गहरा घाव है। नर्स, टाँके लगाने पड़ेंगे – तुम इसे साफ़ करो।”

“दरअसल एक… एक एक्सीडेंट…” ब्यूक्स ने सफ़ाई देनी चाहिए, पर डॉक्टर ने उसके मुँह में थर्मामीटर डाल दिया और उसे चुप हो जाना पड़ा। थर्मामीटर के मुँह से बाहर आते ही ब्यूक्स ने कहा, “डॉक्टर, मैं आपसे अकेले में दो मिनट बात करना चाहता हूँ।”

“ठीक है, ठीक है, बात भी कर लेंगे, पर पट्टी तो बँध जाने दो।”

अब बाँह में पट्टी बाँधी जा चुकी थी और नर्स सारे सामान हटाने में लगी थी। डॉक्टर कोने में बने वाश बेसिन में हाथ धो रहा था।

“तुम्हें लगता होगा कि हाथ सुन्न हो गया है,” डॉक्टर ने कहा, “लेकिन घबराना नहीं – यह इंजेक्शन की वजह से है। मैं कुछ दवाइयाँ दे रहा हूँ – अगर बुखार महसूस हो तो खा लेना।” फिर नर्स की ओर मुखातिब होकर कहा, “नर्स, क्या हम लोगों को एक-एक कप चाय मिल सकती है?”

नर्स दूसरे कमरे में चली गई और वे दोनों अकेले रह गये। डॉक्टर अपनी सीट पर बैठकर मेज़ पर रखे सामानों, ब्लडप्रेशर नापने की मशीन और नुस्खा लिखने वाले पैड को यूँ ही इधर से उधर हटाकर रखने लगा।

ब्यूक्स ने बताया कि ऐसा लग रहा है जैसे उसके हाथ को काटकर शरीर से अलग कर दिया गया है। “डॉक्टर, क्या आपको हर एक्सीडेंट की रिपोर्ट करनी होती है?” उसने डॉक्टर की दुविधा को भाँपते हुए पूछा।

“सामान्य परिस्थिति में ऐसा करना ही होता है… और करना भी चाहिए।” डॉक्टर ने कहा और सिगरेट का पैकेट ब्यूक्स की तरफ बढ़ा दिया।

“दरअसल… ऐसा हुआ कि…” ब्यूक्स ने कहना चाहा पर डॉक्टर ने उसकी बात बीच में ही काट दी और सिगरेट का कश लेने के बाद बोला, “मिस्टर ब्यूक्स, घाव देखते ही मैं बता सकता हूँ कि यह गोली से लगा घाव है या चाकू से, हालाँकि गोली लगे घाव से मेरा ज़्यादा साबका नहीं पड़ा है। तुम्हारी बाँह के घाव को मैं समझ रहा हूँ… क्या पुलिस की गोली थी?”

ब्यूक्स ने स्वीकार में सिर हिलाया। डॉक्टर ने कहा, “मेरा भी यही अन्दाज़ा था। आजकल मेरे देश में यह सब ख़ूब हो रहा है… बेशक क़ानून कहता है कि ऐसे मामलों की मैं पुलिस में रिपोर्ट करूँ।”

“क्‍या आप क़ानून का पालन करेंगे?”

डॉक्टर ने एक बार अपनी सिगरेट की ओर देखा, फिर कुछ सोचते हुए आहिस्ता-आहिस्ता बोल पड़ा, “क़ानून बनाने में अगर समाज को भी हिस्सा लेने का मौक़ा दिया गया है तो इसका पालन करना समाज का नैतिक दायित्व हो जाता है, लेकिन अगर क़ानून बिना लोगों की सहमति या हिस्सेदारी के बनाया जाता है तब बात और है।”

कुछ देर चुप रहने के बाद डॉक्टर ने फिर कहा, “तो भी हमारे देश में जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए मैं अपने आपसे पूछता हूँ कि क़ानून किसके पक्ष में खड़ा हो रहा है। अगर क़ानून किसी अपराधी, हत्यारे या बलात्कारी को सज़ा देता है तो मुझे मदद करनी चाहिए, लेकिन अगर क़ानून अन्याय के पक्ष में खड़ा होता है और न्याय के लिए लड़ने वालों को दण्ड देता है तो मैं उसका पालन करने के लिए कतई बाध्य नहीं हूँ। असल में उन्होंने ही मुझे ऐसा अवसर दे दिया है कि मैं अपनी भूमिका तय कर लूँ। मिस्टर ब्यूक्स, हमारे देश में आज यही हो रहा है। अन्याय का बोलबाला है और कुछ हिम्मती लोग हैं जो अपनी जान पर खेलकर उसका विरोध कर रहे हैं… काश, मैं भी इसमें कुछ कर पाता।”

उसने ब्यूक्स की तरफ देखा। ऐसा लगता था जैसे कितने दिनों से वह ऐसा भाषण देने को सोच रहा था।

“आओ, हम लोग चाय पी लें… तुम भी सोच रहे होगे कि चाय के चक्कर में बुरे फँसे…”

“ऐसा क्यों?”

“क्‍योंकि मैं भाषण दे रहा हूँ।”

“नहीं डॉक्टर,” ब्यूक्स ने कहा, “मुझे आपकी बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा।”

डॉक्टर को अचानक कुछ याद आया और वह उठकर अन्दर गया।

बाहर शाम गहरी होती जा रही थी और आसमान पर बैंगनी रंग फैलता जा रहा था। दूर शहर की निओन बत्तियों की आभा फैली थी और लगता था कि हवाई हमले के बाद शहर फिर जगा हो। बाहर अश्वेतों के लिए बने एक सिनेमाघर की खिड़की के सामने टिकट लेने वालों की लाइन लगी थी। एक शराबी झूमता हुआ जा रहा था। शनिवार की रात मौज-मस्ती करने वालों की रात होती है। थोड़ा और आगे किसी अख़बार का इश्तिहार थाः “गुप्त पर्चों के बारे में सिक्योरिटी चीफ़ की रिपोर्ट।”

“मेरी पत्नी अपंगों के लिए कपड़े इकट्ठा करती है – तुम यह कोट ले लो, आराम रहेगा,” डॉक्टर ने कहा, “यह थोड़ा साइज़ में बड़ा होगा लेकिन कोई बात नहीं…”

“बहुत… बहुत शुक्रिया,” ब्यूक्स ने अपना पुराना कोट उतारकर डॉक्टर का दिया कोट पहन लिया। पुराने कोट की जेब में पड़े सामान को दूसरे कोट में रखने में डॉक्टर ने भी ब्यूक्स की मदद की।

ब्यूक्स अब चलने की तैयारी में था।

“डॉक्टर, अब मैं चलूँ… आपका काफ़ी समय लिया।” ब्यूक्स ने कोट का बटन बन्द करते हुए कहा, “मैं फिर मिलूँगा… आप तो समझ ही रहे होंगे कि…”

“बिल्कुल समझ रहा हूँ,” डॉक्टर ने कहा, “सिर दर्द होने पर चार-चार घण्टे के अन्तर में दवा ले लेना और… अपना पूरा ख़्याल रखना।”

ब्यूक्स सड़क पर बढ़ता जा रहा था। “मैं तुम्हें अपने सपनों में देखूँगा,” डॉक्टर ने मन ही मन में कहा और खिड़की बन्द कर दी।

 

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर 2012

 


 

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