कम्युनिस्ट पार्टी की ज़रूरत के बारे में लेनिन के कुछ विचार…

(साथियो, इस समय पूरे देश बल्कि कहना चाहिए कि पूरी दुनिया के मज़दूर आन्दोलन के भीतर गैरपार्टी क्रान्तिवाद की सोच नये सिरे से सिर उठा रही है। जगह-जगह कुछ राजनीतिक नौदौलतिये पैदा हुए हैं जो यह दावा कर रहे हैं कि मज़दूर वर्ग को पार्टी की ज़रूरत नहीं है; या पार्टी ऐसी होनी चाहिए जो मज़दूर वर्ग के पीछे-पीछे चले; या पार्टी ऐसी होनी चाहिए जो मज़दूर वर्ग को नेतृत्व न दे, बस उसे सलाह-मशविरा दे। ऐसी रुझानों का लेनिन ने अपने समय में पुरज़ोर विरोध करते हुए बताया था कि इतिहास में कभी कोई भी वर्ग बिना अपने हिरावल के न तो विरोधी वर्ग का तख्तापलट करके क्रान्ति कर पाया है, और न ही कोई वर्ग बिना अपने हिरावल के शासन सम्भाल पाया है। ऐसा दावा करने वाले लोग अराजकतावादी संघाधिपत्यवाद, अराजकतावाद और विसर्जनवाद के शिकार हैं। आज पार्टी की ज़रूरत हमेशा से ज़्यादा है और ऐसे समय में पार्टी की लेनिनवादी अवधारणा की हिफ़ाज़त करना हर प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट का कर्तव्य है। ऐसे दौर में हमें लेनिन के निम्न दो उद्धरण बेहद प्रासंगिक लगे। – सम्पादक)

Lenin

“पूँजीवाद के ऊपर विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि नेतृत्व करने वाली (कम्युनिस्ट) पार्टी, क्रान्तिकारी वर्ग (सर्वहारा वर्ग), तथा आम जनता, अर्थात मेहनतकशों और शोषितों के सम्पूर्ण जनसमुदाय के बीच उचित सम्बन्ध कायम किये जायें। केवल कम्युनिस्ट पार्टी-यदि क्रान्तिकारी वर्ग का सचमुच वह हिरावल दस्ता है, यदि उसके अन्दर उस वर्ग के श्रेष्ठतम प्रतिनिधि सचमुच मौजूद हैं, यदि पूर्ण रूप से सचेत, पक्के और कम्युनिस्ट सचमुच उसमें शामिल हैं-जिनकी अनवरत क्रान्तिकारी संघर्ष के अनुभव द्वारा शिक्षा-दीक्षा हुई है और उसी में फौलादी बने हैं-यदि अपने वर्ग, और, उसके जरिये, शोषितों के जनसमुदाय के सम्पूर्ण जीवन के साथ अटूट रूप से अपना सम्बन्ध स्थापित करने तथा इस वर्ग और इस जनसमुदाय का पूरे तौर से विश्वास प्राप्त करने में वह सफल हुई है-तो केवल ऐसी ही पार्टी पूँजीवाद की तमाम ताक़तों के विरुद्ध अन्तिम, महानिर्मम तथा निर्णायक संघर्ष में सर्वहारा वर्ग का नेतृत्व करने में सक्षम हो सकती है। दूसरी तरफ़, केवल एक ऐसी ही पार्टी के नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग अपने क्रान्तिकारी आक्रमण की पूरी भीषण शक्ति का प्रदर्शन कर सकता है, और मज़दूरों में अभिजात वर्ग की, उनके उस छोटे अल्पमत की-जिसे पूँजीवाद ने ध्वस्त कर दिया है-यानी ट्रेड यूनियनों और सहकारी समितियों के नेताओं, आदि की अनिवार्य जड़ता को तथा यदा-कदा उठने वाले उनके प्रतिरोध को कुचल सकती है। सर्वहारा वर्ग केवल ऐसी ही पार्टी की रहनुमाई में अपनी उस पूरी शक्ति का प्रदर्शन कर सकेगा जो, पूँजीवादी समाज के आर्थिक ढाँचे की ही वजह से, आबादी में उसके अनुपात की अपेक्षा कहीं अधिक है। अन्त में, पूँजीपति वर्ग और राजसत्ता की पूँजीवादी मशीन के जुए से सचमुच मुक्त हो जाने के बाद भी, अपनी सोवियतों में सचमुच मुक्त ढंग से (शोषकों से मुक्त रहते हुए) अपने को संगठित करने का अवसर पाने के बाद भी, जनसमुदाय, अर्थात श्रमजीवी और शोषितों का पूरा समुदाय, इतिहास में पहली बार उन करोड़ों लोगों की पहलकदमी और शक्ति का पूरा जौहर दिखला सकता है, जिन्हें पूँजीवाद ने कुचल डाला है। सोवियतों के एकमात्र राजकीय यन्त्र बन जाने के बाद ही इस बात की पक्की गारण्टी हो सकती है कि प्रशासन के काम में शोषितों का पूरा जनसमुदाय, वह जनसमुदाय भाग ले जिसे अधिक से अधिक प्रबुद्ध और स्वतन्त्र पूँजीवादी जनतन्त्र के अन्तर्गत भी हमेशा प्रशासन के काम में भाग लेने से निन्यानबे प्रतिशत अलग रखा गया है। समाजवादी निर्माण करने, नये सामाजिक अनुशासन तथा मुक्त मज़दूरों के एक मुक्त संघ की सृष्टि करने के काम को वास्तव में केवल सोवियतों के अन्दर ही शोषित जनसमुदाय सीखना शुरू करते हैं-ऐसा वह किताबों के जरिये नहीं, बल्कि स्वयं अपने व्यावहारिक अनुभवों के जरिये करते हैं।” (सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व सोवियत सत्ता का सार)

“साथियो, साथी टैनर और साथी मैक्लेन के भाषणों के सम्बन्ध में मैं चन्द बातें करना चाहूँगा। टैनर कहते हैं कि वे सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के पक्ष में हैं किन्तु सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व को वह ठीक उसी तरह नहीं समझते जिस तरह हम समझते हैं। वह कहते हैं कि सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व से दरअसल हमारा मतलब सर्वहारा वर्ग के संगठित तथा वर्ग चेतन अल्पमत का अधिनायकत्व होता है।

“बिल्कुल सही है। पूँजीवाद के युग में, जबकि मज़दूर जनता निरन्तर शोषण की चक्की में पिसती रहती है और अपनी मानवीय क्षमताओं का विकास वह नहीं कर पाती है, मज़दूर वर्ग की राजनीतिक पार्टियों की सबसे ख़ास विशेषता यही होती है कि अपने वर्ग के केवल एक अल्पमत को ही वह अपने साथ ला पाती है। कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने वर्ग के केवल एक अल्पमत को ही अपने अन्दर समाविष्ट कर सकती है। उसी तरह जिस तरह कि किसी भी पूँजीवादी समाज में वास्तविक रूप से वर्ग चेतन मज़दूर तमाम मज़दूरों का मात्र एक अल्पमत होते हैं। इसलिए इस बात को मानने के लिए हम बाध्य हैं कि मज़दूरों के व्यापक जनसमुदायों का निर्देशन और नेतृत्व केवल यह वर्ग चेतन अल्पमत ही कर सकता है। और यदि साथी टैनर कहते हैं कि पार्टियों के वे ख़िलाफ़ हैं, किन्तु साथ ही साथ इस बात का वे समर्थन करते हैं कि वह अल्पमत ही, जो सबसे अच्छी तरह से संगठित और सर्वाधिक क्रान्तिकारी मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करता है, सम्पूर्ण सर्वहारा वर्ग का पर्थ प्रदर्शन करे, तो मैं कहता हूँ कि वास्तव में हमारी और उनकी बात में कोई फर्क नहीं है।

“यह संगठित अल्पमत है क्या? यदि यह अल्पमत सचमुच वर्ग चेतन है, यदि वह जनसमुदायों का नेतृत्व कर सकता है, यदि वह उस हर समस्या का जो दैनंदिन उठती हैं समाधान प्रस्तुत कर सकता है, तो दरअसल वह एक पार्टी ही है। परन्तु, यदि टैनर की तरह के साथी जिनकी बात की तरफ़ हम विशेष ध्यान देते हैं, कि वह एक जनान्दोलन के प्रतिनिधि हैं-जो चीज़ कि, बिना अतिशयोक्ति किये, ब्रिटिश सोशलिस्ट पार्टी के प्रतिनिधियों के सम्बन्ध में नहीं कही जा सकती-यदि ये साथी एक ऐसे अल्पमत के समर्थक हों जो सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के लिए दृढ़तापूर्वक लड़ेगा और मज़दूरों के जनसमुदायों को इसी दिशा में शिक्षित करेगा, तो यह अल्पमत दरअसल एक पार्टी के अलावा और कुछ भी नहीं है। साथी टैनर कहते हैं कि इस अल्पमत को मज़दूरों के सम्पूर्ण जनसमुदाय को संगठित करना चाहिए और उसका नेतृत्व करना चाहिए। यदि साथी टैनर और कारखानाई प्रतिनिधियों के दल व “दुनिया के औद्योगिक मज़दूरों” के दूसरे साथी इस बात को स्वीकार करते हैं- और उससे रोज़ाना जो हमारी बातें हुई हैं उनसे जाहिर है कि वे इसे निश्चित रूप से स्वीकार करते हैं-यदि वे इस विचार का अनुमोदन करते हैं कि मज़दूर वर्ग का वर्ग चेतन कम्युनिस्ट अल्पमत सर्वहारा वर्ग का नेतृत्व करता है, तब उन्हें इस बात से भी सहमत होना चाहिए कि हमारे समस्त प्रस्तावों का भी ठीक यही अर्थ है। वैसी हालत में, हमारे बीच केवल यही अन्तर रह जाता है कि वे “पार्टी” शब्द से कतराते हैं। इसकी वजह यह है कि ब्रिटेन के साथियों के अन्दर राजनीतिक पार्टियों के सम्बन्ध में एक विशेष प्रकार का अविश्वास भाव है। राजनीतिक पार्टियों की बात से उनके दिमाग़ में केवल गॉम्पर्स और हेण्डरसन की पार्टियों, व्यवसायपटु संसदीय व्यापारियों और मज़दूर वर्ग के ग़द्दारों की पार्टियों की ही तस्वीर बन पाती है। किन्तु, पार्लियामेण्टवाद (संसदवाद) से उनका अर्थ यदि उसी से है जो आज ब्रिटेन और अमेरिका में दिखलायी देता है, तो इस तरह के पार्लियामेण्टवाद और इस तरह की राजनीतिक पार्टियों के ख़िलाफ़ तो हम भी हैं। हम नयी और भिन्न प्रकार की पार्टियाँ चाहते हैं। हम ऐसी पार्टियाँ चाहते हैं जो जनसमुदायों के साथ लगातार और वास्तविक सम्पर्कों में रहें तथा उन जनसमुदायों का नेतृत्व कर सकें।”

(कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की द्वितीय कांग्रेस में कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका के सम्बन्ध में भाषण)

 

मज़दूर बिगुल, नवम्‍बर-दिसम्‍बर  2012

 


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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