बेनक़ाब हुई केजरीवाल सरकार, श्रम मन्त्री मज़दूरों की महासभा से भागे! ठेका प्रथा उन्मूलन के वायदे से मुकरी केजरीवाल सरकार!
दिल्ली के मज़दूरों ने आने वाले लोकसभा चुनावों में सभी चुनावी पार्टियों और ख़ासकर आम आदमी पार्टी के भण्डाफोड़ का फैसला किया

MMA demonstration6.2.14056 फरवरी को विशाल संख्या में दिल्ली सचिवालय पर दिल्ली के मज़दूरों ने प्रदर्शन और महासभा का आयोजन किया। पिछले एक माह से ‘दिल्ली मज़दूर यूनियन’, ‘करावलनगर मज़दूर यूनियन’, ‘दिल्ली मेट्रो रेल ठेका कामगार यूनियन’, ‘उद्योगनगर मज़दूर यूनियन’, ‘मंगोलपुरी मज़दूर यूनियन’, ‘वज़ीरपुर कारख़ाना मज़दूर यूनियन’, ‘उत्तर-पश्चिमी दिल्ली मज़दूर यूनियन’ व ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ दिल्ली के मज़दूरों का माँगपत्रक आन्दोलन चला रहे थे। इस आन्दोलन में दिल्ली के समस्त असंगठित ठेका मज़दूरों का एक माँगपत्रक तैयार किया गया था। इस 13-सूत्रीय माँगपत्रक में ठेका प्रथा के उन्मूलन, न्यूनतम मज़दूरी लागू करवाने, मज़दूर हेल्पलाइन शुरू करवाने, और अन्य सभी श्रम क़ानूनों को लागू करवाने की माँग शामिल थी। दिसम्बर 2013 में केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी, जिसने चुनाव से पहले वायदा किया था कि दिल्ली के सभी नियमित प्रकृति के कामों में लगाये गये ठेका मज़दूरों को स्थायी किया जायेगा और दिल्ली से ठेका प्रथा समाप्त की जायेगी। साथ ही केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने यह वायदा किया था कि श्रम विभाग के कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाकर दिल्ली में श्रम क़ानूनों के सख़्ती से अमल को भी सुनिश्चित किया जायेगा। लेकिन सरकार बनने के लगभग डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी केजरीवाल सरकार को मज़दूरों से किये गये वायदे याद नहीं आ रहे थे। व्यापारियों, ठेकेदारों और मालिकों की सभाओं और बैठकों में केजरीवाल लगातार आ-जा रहे थे; उन्हें राहत देने के लिए तमाम कदम उठा रहे थे; लेकिन दिल्ली के करीब 52 से 55 लाख ठेका मज़दूरों से किये गये वायदे ‘आप’ की सरकार भूल गयी थी। माँगपत्रक आन्दोलन इन्हीं वायदों को केजरीवाल सरकार को याद दिलाने और उन्हें पूरे करवाने के लिए चलाया जा रहा था।

एक माह तक दिल्ली मज़दूर यूनियन और अन्य यूनियनों ने दिल्ली के तमाम औद्योगिक क्षेत्रों, मज़दूर बस्तियों और झुग्गी-झोपड़ी कालोनियों में सभाएँ आयोजित कीं, पर्चे बाँटे, पोस्टर लगाये, घर-घर जनसम्पर्क अभियान चलाया। मज़दूरों को बताया गया कि दिल्ली राज्य के सभी मज़दूर एकजुट होकर 6 फरवरी को केजरीवाल सरकार का घेराव कर रहे हैं। प्रचार अभियान में मज़दूरों को उनके क़ानूनी हक़ों से अवगत कराया गया, ‘आप’ पार्टी द्वारा किये गये वायदों के बारे में बताया गया, और यह बताया गया कि अब केजरीवाल सरकार किस तरह से उन वायदों से मुँह चुरा रही है। मज़दूरों का आह्नान किया गया कि वे केजरीवाल सरकार को अपने वायदों से भागने न दे। करावलनगर, खजूरी, मुस्तफ़ाबाद, वज़ीरपुर, मंगोलपुरी, उद्योगनगर, बादली, बवाना, शाहाबाद डेरी, नरेला, भोरगढ़, झिलमिल, मायापुरी, नारायणा समेत दिल्ली के अनेक औद्योगिक क्षेत्रों में सघन प्रचार अभियान चलाया गया। साथ ही, दिल्ली मेट्रो रेल के मज़दूरों के बीच भी निरन्तर प्रचार अभियान जारी रहा।

मज़दूर महासभा के लिए अभियान और 6 फरवरी को मज़दूर महासभा का आयोजन

इस प्रचार अभियान के तहत यह भी बताया गया कि केजरीवाल सरकार अब ठेका प्रथा उन्मूलन करने के वायदे से भाग रही है। पहले तो आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में ठेका प्रथा के उन्मूलन की बात की थी। जब सरकार बन गयी तो केजरीवाल केवल सरकारी उपक्रमों में ठेका प्रथा ख़त्म करने की बात कहने लगा। और अब सरकारी क्षेत्रों के ठेका मज़दूरों से भी वायदे से मुकर रहा है। ठेके के सैकड़ों शिक्षकों को केजरीवाल ने हड़ताल वापस लेने की धमकी दी और कहा कि अगर वे काम पर नहीं लौटे तो फिर उन्हें कभी स्थायी नहीं किया जायेगा। ठेका मज़दूरों से इस धोखाधड़ी के कारण ठेका मज़दूरों में ‘आप’ की सरकार के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त रोष था। दिल्ली परिवहन निगम के ठेके पर काम करने वाले हज़ारों चालकों और परिचालकों के प्रदर्शन में गये केजरीवाल को ठेका कर्मचारियों ने दौड़ा लिया और केजरीवाल को पुलिस सुरक्षा में भागना पड़ा। इन सभी घटनाओं के बाद इस बात को लेकर मज़दूरों में सन्देह और अविश्वास पैदा हो चुका था कि ‘आप’ सरकार मज़दूरों से किये गये अपने वायदों को पूरा करेगी या नहीं। दिल्ली मज़दूर यूनियन के अजय स्वामी ने बताया कि इस माँगपत्रक आन्दोलन का यही मक़सद है कि केजरीवाल सरकार को इस वायदे से मुकरने न दे।

अपने अपराधी मंत्री को बचाने के लिए धरने पर बैठने वाले केजरीवाल ने पुलिस को ख़ूब कोसा लेकिन अपनी जायज़ माँगें लेकर उससे मिलने गये मज़दूरों को  रोकने के लिए सैकड़ों की तादाद में पुलिस तैनात कर दी

अपने अपराधी मंत्री को बचाने के लिए धरने पर बैठने वाले केजरीवाल ने पुलिस को ख़ूब कोसा लेकिन अपनी जायज़ माँगें लेकर उससे मिलने गये मज़दूरों को रोकने के लिए सैकड़ों की तादाद में पुलिस तैनात कर दी

एक माह के सघन अभियान के बाद, बड़ी संख्या में दिल्ली के विभिन्न पेशों के मज़दूर दिल्ली सचिवालय पर एकत्र हुए। 6 फरवरी को सुबह 11 बजे से मज़दूरों का सचिवालय पर पहुँचने का सिलसिला शुरू हो गया। करीब साढ़े बारह तक बारह सौ से तेरह सौ मज़दूर दिल्ली सचिवालय के निकट किसान घाट के गेट पर एकत्र हो चुके थे। इसके बाद मज़दूर दो पंक्तियों में एक जुलूस की शक्ल में दिल्ली सचिवालय की ओर बढ़ने लगे। कुछ ही आगे केजरीवाल सरकार ने मज़दूरों को रोकने के लिए बैरीकेड लगा रखे थे। ग़ौरतलब है कि अपने क़ानून तोड़ने वाले मन्त्री को बचाने के लिए केजरीवाल खुद कृषि भवन पर धरने पर बैठ गये थे और तब वह बैरीकेड लगाने के लिए पुलिस की आलोचना कर रहे थे। लेकिन जब मज़दूर अपने जायज़ हक़ों को लेने और वायदे पूरे करने की माँग को लेकर आये तो केजरीवाल ने ख़ुद पुलिस को आगे कर दिया! लेकिन ये बैरीकेड और सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी मज़दूरों को रोक नहीं सकी। इस पूरे दौरान मज़दूरों की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी। करीब 1 बजे के आस-पास मज़दूरों ने बैरीकेड को तोड़ दिया और पुलिस देखती रह गयी। मज़दूर दिल्ली सचिवालय की ओर आगे बढ़ने लगे। बीस मिनट में मज़दूर दिल्ली सचिवालय के गेट के करीब पहुँच गये। यहाँ पर मज़दूरों ने मज़दूर महासभा (दिल्ली के मज़दूरों की जनरल बॉडी मीटिंग) की शुरुआत की। जनसभा का संचालन उत्तर-पश्चिमी दिल्ली मज़दूर यूनियन के राकेश ने किया। इसके बाद तमाम यूनियनों के प्रतिनिधियों ने महासभा को सम्बोधित किया। दिल्ली मज़दूर यूनियन के अजय स्वामी ने स्पष्ट किया कि जब तक स्वयं मुख्यमन्त्री केजरीवाल या फिर श्रम मन्त्री गिरीश सोनी आकर मज़दूरों की महासभा को सम्बोधिन नहीं करते और मज़दूर प्रतिनिधियों को जवाब नहीं देते, तब तक मज़दूर यहाँ से नहीं उठेंगे और ज़रूरत पड़ी तो दिल्ली सचिवालय के गेट को जाम करेंगे।

कैसे भागे श्रम मन्त्री गिरीश सोनी मज़दूरों के सवालों से बचने के लिए!

दिल्ली के श्रम मंत्री गिरीश सोनी अपने सचिव के साथ मज़दूरों से मिलने पहुँचे लेकिन उनके सवालों से घबराकर भाग खड़े हुए।

दिल्ली के श्रम मंत्री गिरीश सोनी अपने सचिव के साथ मज़दूरों से मिलने पहुँचे लेकिन उनके सवालों से घबराकर भाग खड़े हुए।

मज़दूर महासभा शुरू होने के कुछ समय बाद ही विशाल संख्या में मज़दूरों के जुटान को देखकर श्रम मन्त्री गिरीश सोनी प्रदर्शन पर आने को मजबूर हुए। अपने निजी सचिव अवधेश के साथ गिरीश सोनी मज़दूर महासभा में आये और उन्होंने पूछा कि मज़दूर क्या चाहते हैं। दिल्ली मज़दूर यूनियन के अभिनव ने कहा कि हमारी सबसे प्रमुख माँग है कि दिल्ली राज्य के स्तर पर केजरीवाल सरकार एक ठेका मज़दूरी उन्मूलन विधेयक पास करे। हालाँकि, केन्द्रीय एक्ट (ठेका मज़दूरी विनियमन व उन्मूलन क़ानून, 1970) में इस बात का प्रावधान है कि किसी भी नियमित प्रकृति के काम पर ठेका मज़दूरी का उन्मूलन हो सके, लेकिन ऐसा करने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। साथ ही, सेक्शन 31 में सरकारों को इस बात की इजाज़त दी गयी है कि किन्हीं “विशेष” या “अपवाद स्वरूप परिस्थिति” में सरकार इस क़ानून को लागू करने से इंकार भी कर सकती है; यानी कि सरकार चाहे तो नियमित प्रकृति के कामों पर भी ठेका मज़दूरी लगा सकती है। नतीजतन, यह केन्द्रीय क़ानून बेहद कमज़ोर है। इसलिए दिल्ली राज्य के पैमाने पर एक अलग ठेका मज़दूरी उन्मूलन विधेयक बनाया जाना चाहिए। इस पर श्रम मन्त्री ने कहा कि यह नीतिगत मसला है और इस पर सरकार तुरन्त फैसला नहीं ले सकती है; साथ ही श्रम मन्त्री सोनी ने कहा कि ठेका प्रथा तो बहुत पुरानी समस्या है, इसे पहले की सरकारों ने अपने भ्रष्टाचार से पैदा किया है। इसके लिए केजरीवाल सरकार क्या कर सकती है? इस पर स्त्री मज़दूर संगठन की शिवानी ने कहा कि भ्रष्टाचार भी बहुत पुरानी समस्या थी और अगर केन्द्रीय भ्रष्टाचार-विरोधी क़ानून के कमज़ोर होने के कारण केजरीवाल सरकार आनन-फानन में जनलोकपाल विधेयक पास कर सकती है, तो फिर ठेका मज़दूरी उन्मूलन के लिए अलग विधेयक क्यों नहीं पास कर सकती? लाजवाब होने पर श्रम मन्त्री गोलमाल करने लगे और उन्होंने कहा कि हम इसके लिए एक कमेटी बना देते हैं जो अपनी रिपोर्ट एक माह में दे और उसके अनुसार अगर क़ानून की ज़रूरत होगी तो क़ानून बनाने पर विचार होगा। इस पर मज़दूर प्रतिनिधियों ने उन्हें बताया कि किसी रिपोर्ट की ज़रूरत नहीं है क्योंकि दिल्ली के असंगठित क्षेत्र के तमाम ठेका मज़दूरों के बारे में पर्याप्त सूचनाएँ सरकार के पास पहले से ही हैं। अब नये सिरे से किसी रिपोर्ट की ज़रूरत क्यों? यह सिर्फ़ इसलिए किया जा रहा है ताकि रिपोर्ट-रिपोर्ट और कमेटी-कमेटी खेलने में केजरीवाल सरकार के 20-25 दिन और कट जायें, लोकसभा चुनावों की आचार-संहिता लागू हो जाये, और उसके बाद केजरीवाल सरकार मज़दूरों से किये गये वायदे, विशेष तौर पर ठेका मज़दूरी उन्मूलन के वायदे से बच जाये। मज़दूर साथियों को पता होगा कि एक बार चुनाव की आचार संहिता लागू हो गयी तो केजरीवाल सरकार कोई क़ानून या नयी नीति नहीं लागू कर सकती। ऐसे में, केजरीवाल किसी तरह से 20-25 दिन काटना चाहते हैं ताकि वह मज़दूरों से किये वायदों को पूरा करने से बच सकें।

MMA demonstration6.2.1404इस पर श्रम मन्त्री गिरीश सोनी थोड़ी देर तक चुप हो गये और अपने सचिव से विचार-विमर्श करने लगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि केन्द्रीय क़ानून में कोई कमी नहीं है और केजरीवाल सरकार को ठेका उन्मूलन क़ानून बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके बाद उनसे पूछा गया कि केन्द्रीय क़ानून में क्या लिखा है? इस पर वह चुप हो गये। उन्होंने केन्द्रीय क़ानून देखा तक नहीं था। इसके बाद उन्हें केन्द्रीय क़ानून पढ़कर सुनाया गया और दिखाया गया कि केन्द्रीय क़ानून क्यों कमज़ोर है। इसके बाद, उन्होंने कहा कि वह सारे मज़दूरों के सामने नहीं बोल सकते और 5 लोगों का प्रतिनिधि मण्डल आकर उनसे मुलाकात करे। इस पर मज़दूर प्रतिनिधियों ने ज़ोर देकर कहा कि पहले वह कोई मौखिक आश्वास मज़दूरों को देकर जायें, इसके बाद कोई प्रतिनिधि मण्डल उनसे इसी आश्वासन को लिखित में लेने के लिए मिल सकता है। इसके बाद श्रम मन्त्री गिरीश सोनी अपने सचिव के साथ भाग खड़े हुए।

केजरीवाल सरकार की मज़दूरों से धोखाधड़ी

केजरीवाल सरकार के एक मन्त्री ने ठेका उन्मूलन विधेयक पास करने से साफ़ इंकार कर दिया। श्रम मन्त्री गिरीश सोनी के भागने के बाद मज़दूरों की महासभा जारी रही और शाम 6 बजे तक चलती रही। इस महासभा को स्त्री मज़दूर संगठन की शिवानी और कविता, करावलनगर मज़दूर यूनियन की बेबी कुमारी, वज़ीरपुर कारखाना मज़दूर यूनियन के सनी, उद्योगनगर मज़दूर यूनियन के नवीन, उत्तर-पश्चिमी दिल्ली मज़दूर यूनियन के रामाधार और दिल्ली मेट्रो रेल ठेका मज़दूर यूनियन के अजय स्वामी ने सम्बोधित किया। यूनियनों के प्रतिनिधियों ने बताया कि किस प्रकार खुलेआम दिल्ली के सभी उद्योगों, दुकानों और होटलों आदि में नियमित प्रकृति के कार्यों को ठेके पर कराया जाता है, किस प्रकार जहाँ उचित तौर पर भी ठेका मज़दूर रखे जाते हैं (यानी कि अनियमित कार्यों पर) वहाँ भी न तो मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी दी जाती है, न आठ घण्टे के कार्यदिवस का पालन होता है, न स्वैच्छिक ओवरटाइम होता है और न ही ओवरटाइम के लिए डबल रेट से भुगतान होता है। वज़ीरपुर, मंगोलपुरी, उद्योगनगर, बादली, बवाना, नरेला से लेकर करावलनगर, मायापुरी, नारायणा, झिलमिल के औद्योगिक क्षेत्रों में आये दिन दुर्घटनाएँ होती हैं क्योंकि तमाम ख़तरनाक किस्म के कामों में मज़दूरों को क़ानूनी तौर पर आवश्यक सुरक्षा उपकरण नहीं मुहैया कराये जाते हैं। कारखानों में मशीनों से हाथ कट जाना, आग लग जाना, बॉयलर में विस्फोट हो जाना आम बात है और दुर्घटना में पीड़ित होने या मरने वाले लोगों की संख्या को कम दिखलाने, उनके मुआवज़े को मारने और उन्हें ग़ायब करवाने के लिए पूरा प्रशासन, पुलिस और श्रम विभाग मालिकों और ठेकेदारों से मिलकर काम करते हैं। मीडिया भी इस तरह की घटनाओं को कभी सुर्ख़ी नहीं बनाता। अब केजरीवाल सरकार जो कि मज़दूरों से यह वायदा करके आयी थी कि ठेका मज़दूरी का उन्मूलन किया जायेगा, वह भी अपने वायदों से खुलेआम मुकर रही है। पिछले डेढ़ महीनों में ठेका मज़दूरी उन्मूलन, न्यूनतम मज़दूरी समेत तमाम श्रम क़ानूनों को लागू करवाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। जबकि व्यापारियों, वैश्य महासभा और उद्योगपतियों की तमाम बैठकों में सजदे करने के लिए अरविन्द केजरीवाल पहुँच जाता है। और जनता के सामने कुछ नौटंकीबाज़ियाँ कर अपने आपको ‘आम आदमी’ साबित करने की कोशिश करता है।

सचिवालय में श्रम मन्त्री गिरीश सोनी और मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल के बीच वार्ताः जब श्रम मन्त्री का असली चरित्र खुलकर सामने आ गया!

शाम करीब साढ़े चार बजे मज़दूरों के एक 5-सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल को श्रम मन्त्री गिरीश सोनी ने मिलने के लिए बुलाया। मज़दूरों का प्रतिनिधि मण्डल जब अन्दर गया तो उनके लोगों को यह घूस देने की कोशिश की गयी कि वे सरकारी ठेका मज़दूर समितियों के अध्यक्ष बन जायें। ऐसी दो समितियों का पत्र बनाकर मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल को सौंपा गया जिसमें निर्माण मज़दूरों व अन्य असंगठित मज़दूरों के लिए श्रम क़ानूनों को लागू करवाने के लिए एक दिखावटी कमेटी बनाने की नौटंकी की गयी थी। बाद में पता चला कि जिन सदस्यों का नाम इस कमेटी में रखा गया था, स्वयं उन्हें ही सूचित नहीं किया गया था! साफ़ है केजरीवाल सरकार ने मज़दूरों के प्रदर्शन से डरकर तुरन्त ही दो पत्र बनाकर मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल को सौंप दिये थे, जिसमें दो नयी कमेटियों का ज़िक्र किया गया था। लेकिन मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल की माँग थी कि श्रम मन्त्री लिखित में बतायें कि उनकी सरकार विधानसभा में ठेका उन्मूलन विधेयक पास करेगी या नहीं। इस पर श्रम मन्त्री ने कहा कि उन्हें सोचने के लिए एक घण्टा दिया जाय। एक घण्टे तक अपने सचिवों से विचार-विमर्श के बाद श्रम मन्त्री ने मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल को फिर से बुलाया और कहा कि ऐसे क़ानून को पास करने के लिए विधानसभा में तीन-चौथाई बहुमत की आवश्यकता होगी जो उन्हें नहीं मिलेगा। इस पर मज़दूर प्रतिनिधियों ने कहा कि आम आदमी पार्टी सरकार इस बात की परवाह क्यों कर रही है? उसका काम है अपना वायदा पूरा करते हुए ठेका उन्मूलन विधेयक पेश करना। जो भी इसके ख़िलाफ़ वोट करेगा, वह मज़दूरों के निगाह में नंगा हो जायेगा और मज़दूर उन्हें ज़मीनी धरातल पर मज़ा चखायेंगे। आप की सरकार बस विधेयक पेश करे। इस पर श्रम मन्त्री अपने असली रूप में आ गये! उन्होंने कहा कि ऐसे ठेका उन्मूलन क़ानून से कारखाना मालिकों और ठेकेदारों को नुकसान होगा इसलिए केजरीवाल सरकार ठेका उन्मूलन विधेयक पेश नहीं करेगी। उसी समय यह भी पता चला कि श्रम मन्त्री गिरीश सोनी स्वयं एक कारखाना मालिक है, जो कि पश्चिमी दिल्ली में मैस्कट लेदर वर्क्स नामक एक चमड़े का कारखाना चलाता है। ज़ाहिर है, मज़दूरों के हक़ों की रखवाली का काम कोई कारखाना मालिक कर ही नहीं सकता। इससे भी केजरीवाल सरकार के मज़दूर-विरोधी चरित्र का पता चलता है कि एक कारखाना मालिक को श्रम मन्त्री बना दिया गया है! इसके बाद, श्रम मन्त्री के कार्यालय को छोड़कर मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल बाहर आ गया। स्पष्ट हो गया कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के मज़दूरों से धोखाधड़ी की है और इसका असली मकसद पूँजीपतियों की और ठेकेदारों की सेवा करना है।

क्या कारण है कि पूरी दिल्ली के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में मालिकों और ठेकेदारों के संघ आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल को खुला समर्थन दे रहे हैं? क्या मज़दूरों का शोषण करने वाली ताक़तें, श्रम क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले लुटेरे अचानक सदाचारी और सन्त पुरुष हो गये हैं? जी नहीं साथियो! वास्तव में, अरविन्द केजरीवाल अन्दर ही अन्दर इन्हीं पूँजीपतियों और ठेकेदारों के हितों में काम कर रहा है। केजरीवाल जिस भ्रष्टाचार को दूर करने की बात कर रहा है उससे मालिकों और ठेकेदारों को ही फायदा होगा! वह यह चाहता है कि ठेकेदारों-मालिकों को अपने मुनाफ़े का जो हिस्सा घूस-रिश्वत के तौर पर नौकरशाहों, इंस्पेक्टरों, श्रम विभाग अधिकारियों को देना पड़ता है, वह न देना पड़े! इससे मालिकों के वर्ग का ही लाभ होगा। लेकिन जिस भ्रष्टाचार से मज़दूर पीड़ित है, उसके बारे में केजरीवाल और उसकी आम आदमी पार्टी की सरकार चुप है। और श्रम मन्त्री गिरीश सोनी ने साफ़ तौर पर बोल भी दिया कि केजरीवाल सरकार को ठेकेदारों और मालिकों के हितों की सेवा करनी है, मज़दूरों के लिए ठेका उन्मूलन क़ानून पास करने से उसने सीधे इंकार कर दिया। यानी ठेका उन्मूलन के वायदे से केजरीवाल सरकार खुलेआम मुकर गयी!

आगे का रास्ता! मज़दूरों का शपथ-ग्रहण!

वार्ता से लौटने के बाद मज़दूरों के प्रतिनिधि मण्डल ने केजरीवाल सरकार की सच्चाई को सभी मज़दूरों के सामने बेपर्द किया और कहा कि अब केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी का पूरा चरित्र खुलकर मज़दूरों के सामने आ गया है। इसके बाद यह प्रस्ताव रखा गया कि मज़दूर यूनियनें आगे के संघर्ष के लिए तैयारी करें और होली तक का समय केजरीवाल सरकार को दिया जाये कि वह मज़दूरों से किये गये वायदों से मुकरने की ग़लती न करे अन्यथा जिस ग़रीब आबादी ने कांग्रेस और भाजपा से मोहभंग के कारण आम आदमी पार्टी को भी मदद दी थी, वही ग़रीब आबादी आम आदमी पार्टी को धूल में भी मिला सकती है। इसके बाद यह तय किया गया कि होली के बाद इससे भी बड़ी संख्या में मज़दूर फिर से दिल्ली सचिवालय को घेरेंगे और दिल्ली के मज़दूरों की एक मज़दूर महापंचायत का आयोजन किया जायेगा। उस मज़दूर महापंचायत को फैसले का दिन बनाया जायेगा और सचिवालय के दरवाज़ों को जाम किया जायेगा। जब तक केजरीवाल सरकार मज़दूरों से किये गये वायदों को पूरा करने के लिए लिखित आश्वासन नहीं देगी तब तक मज़दूर सचिवालय के गेट को जाम करके रखेंगे।

मज़दूरों ने इसके बाद सामूहिक शपथ ली कि आने वाले समय में दिल्ली के सभी मज़दूर आम आदमी पार्टी का हर स्तर पर विरोध करेंगे, उसे किसी भी रूप में सहयोग या समर्थन नहीं देंगे; आने वाले चुनावों में कांग्रेस और भाजपा समेत सभी चुनावी दलों और विशेष तौर पर आम आदमी पार्टी का दिल्ली के सभी मज़दूर इलाकों और औद्योगिक इलाकों में भण्डाफोड़ किया जायेगा; मज़दूर महासभा में आये सभी मज़दूर ‘दिल्ली मज़दूर यूनियन’ के सदस्य बनेंगे और अन्य मज़दूरों को भी सदस्य बनायेंगे; हर मज़दूर आज से अपने आपको ‘माँगपत्रक आन्दोलन’ का वालण्टियर मानेगा और माँगपत्रक आन्दोलन की हर गतिविधि में शामिल होगा; होली तक यदि केजरीवाल लिखित में ठेका मज़दूरी उन्मूलन विधेयक पेश करने और सभी श्रम क़ानूनों को तत्काल सख़्ती से लागू करवाने का निर्णय नहीं लेता, तो होली के बाद हज़ारों मज़दूरों की एक मज़दूर महापंचायत दिल्ली सचिवालय पर लगायी जायेगी और जब तक केजरीवाल अपने वायदों को समयबद्ध रूप से पूरा करने का लिखित आश्वासन नहीं देता, तब तक मज़दूर वहाँ से हटेंगे नहीं। इस शपथ-ग्रहण के बाद सभा का समापन किया गया। ग़ौरतलब बात यह थी कि इस पूरे 6 घण्टे सभी बड़े समाचार चैनलों की गाड़ियाँ मज़दूरों के प्रदर्शन से 10 कदम की दूरी पर खड़ी रहीं लेकिन मज़दूरों के इस प्रदर्शन को कवर करने के लिए कोई भी न्यूज़ चैनल नहीं आया। अगर केजरीवाल अपने 10 चेलों के साथ कहीं बैठ जाता है तो सारे न्यूज़ चैनल 24 घण्टे उसकी कवरेज करने के लिए दर्जनों पत्रकारों को लगा देते हैं। लेकिन न्यूज़ चैनलों को 6 फरवरी को अपने सामने एकत्र हुए हज़ारों ठेका मज़दूर नहीं दिखायी दे रहे थे। इसका कारण यह है कि इन न्यूज़ चैनलों में तकनीशियन से लेकर पत्रकार और मज़दूर ठेके पर ही काम करते हैं और इन सभी न्यूज़ चैनलों के मालिक अम्बानी, बिड़ला, टाटा जैसे बड़े-बड़े पूँजीपति घराने हैं। तो समझा जा सकता है कि राशि-फल, भूतों की कहानियाँ, हीरो-हीरोइनों के किस्से और नेताओं की नौटंकियाँ दिखाने वाले न्यूज़ चैनलों को असंगठित मज़दूरों का इतना महत्वपूर्ण प्रदर्शन क्यों दिखायी नहीं दे रहा है। इससे भी पता चलता है कि मज़दूरों को अपना समानान्तर क्रान्तिकारी मीडिया खड़ा करना पड़ेगा। इसके बिना, हमारी बात पूरे देश तक नहीं पहुँच सकती और मज़दूर वर्ग की राजनीति देश भर अपने वर्चस्व को स्थापित नहीं कर सकती।

बहरहाल, दिल्ली के मज़दूरों के माँगपत्रक आन्दोलन की एक ज़ोरदार शुरुआत हुई है, जो कि 2011 में चले भारत के मज़दूरों के माँगपत्रक आन्दोलन का ही एक अंग है। इस आन्दोलन की शुरुआत में पहली चेतावनी मज़दूर महासभा का आयोजन किया गया। आगे का रास्ता यह है कि पहले तो केजरीवाल सरकार को मजबूर किया जाय कि वह मज़दूरों से कि‍ये गये अपने वायदों को पूरा करे या फिर कांग्रेस, भाजपा आदि की तरह ही बेनक़ाब हो जाये। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के सामने मज़दूरों को कोई विकल्प नहीं छोड़ना चाहिए। साथ ही, मज़दूरों को आने वाले समय में सरकार बदलने पर भी, यानी कि कांग्रेस या भाजपा की सरकार आने पर भी इन्हीं माँगों के साथ अपने संघर्ष को और सघनता से आगे ले जाना चाहिए। होली के बाद की मज़दूर महापंचायत की तैयारी दिल्ली मज़दूर यूनियन ने अभी से शुरू कर दी है। ‘मज़दूर बिगुल’ के ज़रिये दिल्ली के जितने मज़दूरों तक हमारी बात पहुँच रही है, वे हमसे सम्पर्क करें और इस आन्दोलन से जुड़ें!

सम्पर्क करें:

011-64623928 (मुख्य कार्यालय), 9540436262, 9711736435, 9289498250  (करावलनगर), 8750045975 (नांगलोई), 9873358124 (वज़ीरपुर), 9971158783 (बादली, शाहबाद डेरी, नरेला)

 

मज़दूर बिगुल, जनवरी-फरवरी 2014

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments