अदम्य बोल्शेविक – नताशा – एक संक्षिप्त जीवनी (दूसरी क़िश्त)

एल. काताशेवा
अनुवाद : विजयप्रकाश सिंह

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बर्दस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आख़िरी साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल‘ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। – सम्पादक 

(पिछले अंक से जारी)

ओदेस्सा छोड़ने के नताशा के फैसले ने उन्हें काफी तकलीफ दी। मज़दूर उनके वहाँ से चले जाने का ग़लत अर्थ न निकालें, इसके लिए उन्होंने ओदेस्सा के सामाजिक-जनवादी संगठन के ग़लत रणकौशलों पर स्पष्ट और मुखर बयान दिया। उनका पत्र इस प्रकार था :
मैं ओदेस्सा कमेटी के सदस्यों (बोल्शेविकों) के समक्ष बयान देती हूँ कि निम्न कारणों से स्थानीय संयुक्त संगठन में बने रहना मुझे सम्भव नहीं जान पड़ता :
“पहली बात तो यह कि रणकौशलात्मक सवालों पर बोल्शेविकों और मेंशेविकों के बीच की असहमतियाँ अभी भी इतनी गम्भीर हैं कि इस समय एकता करना समझौते के रास्ते पर कदम बढ़ाना है और एकमात्र सच्चे क्रान्तिकारी रणकौशलों से किनारा करने के समान है, जिसे बोल्शेविक अभी तक अपनाते आये हैं, और जिसने उन्हें वामपन्थी और सही अर्थों में आरएसडीएलपी (रूसी सामाजिक जनवादी पार्टी) का क्रान्तिकारी धड़ा बनाये रखा है।”
“महत्‍वपूर्ण मसलों पर असहमत होते हुए एकता करना सिर्फ यान्त्रिक ही होगा और स्थानीय परिस्थितियों में व्यावहारिक तौर पर इसका नतीजा बोल्शेविकों पर मेंशेविकों का वर्चस्व होगा, जबकि, मौजूदा हालात में वर्चस्व के लिए सैद्धान्तिक लड़ाई निश्चित रूप से निरर्थक होगी और सिर्फ नये मतभेद, टकराव और नये विभाजन का कारण बनेगी। यह एकता काम को और भी असंगठित करेगी और चीज़ों को सुधारने में कोई मदद नहीं करेगी। मैं यह भी मानती हूँ कि यहाँ जो एकता हुई है वह पार्टी अनुशासन की सभी धारणाओं का बुनियादी तौर पर उल्लंघन करती है, जिसका बोल्शेविकों ने मेंशेविकों की पार्टी विरोधी और विघटनकारी प्रवृत्तियों के ख़िलाफ अपने संघर्ष में हमेशा ही ज़ोरदार बचाव किया है।”
”मैं बाहरी ज़िलों की एक बैठक में बोलने वालों में से उस एक व्यक्ति के दृष्टिकोण से सहमत नहीं हूँ जिसने घोषणा की थी कि ‘हमें तीसरी कांग्रेस की काग़ज़ी घोषणा पर ध्‍यान देने की ज़रूरत नहीं है’, मुझे लगता है कि स्थानीय संगठन को पूरी पार्टी (यानी बोल्शेविकों) की सहमति के बिना मेंशेविकों के साथ एकता जैसा महत्तवपूर्ण फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है, और इस मामले में एकमात्र उचित और विश्वसनीय रास्ता पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं की चौथी कांग्रेस बुलाना है।
”एकता के रास्ते पर समझ में न आने वाली हड़बड़ी से आगे बढ़ रहे ओदेस्सा के संगठन ने केन्द्रीय कमेटी या बोल्शेविकों की दूसरी कमेटियों को सूचित करना भी ज़रूरी नहीं समझा। उसने सेण्ट पीटर्सबर्ग और मास्को की कमेटियों के उस उदाहरण की भी सिरे से अवहेलना की जिन्होंने सिर्फ संघीय लाइन पर ही एकता को सम्भव माना था।
”इस तरह स्थानीय संगठन को स्थापित केन्द्रों और पार्टी की सीमाओं से बाहर रखकर, एकता ने पार्टी सम्बन्‍धों में और भी अफरातफरी पैदा कर दी है, ख़ासकर तब जबकि हम मानकर चलें कि चौथी कांग्रेस ने पार्टी के दोनों धड़ों के बीच सिर्फ संघीय आधार पर ही एकता का निर्णय किया था। तब ओदेस्सा का संगठन, एकता करने वाले संगठन के तौर पर, किसी भी पार्टी से बाहर होगा।
”संक्षेप में मैं कहूँगी कि जिन लोगों के नेतृत्व में मैंने कई महीने काम किया है, अब तक जिन्हें मैं गम्भीर राजनीतिक सिद्धान्तों वाले भरोसेमन्द नेता मानती थी, वे हालात का सामना करने में अक्षम साबित हुए हैं। ऐसे महत्तवपूर्ण क्षण में जब बाहरी ज़िलों के अपेक्षाकृत कम विश्वसनीय हिस्से एकता का रुझान दर्शा रहे थे, उन ढुलमुल कॉमरेडों को प्रभावित करने के नज़रिये से बातचीत करने के बजाय वे बहाव के साथ बह गये और अपनी असंगति से उन सिद्धान्तों को नीचा दिखाया, पहले मैं उन्हें, जिनका पैरोकार मानती थी।
”वही दिग्गज जो हफ्ते भर पहले तक एकता की बात भी नहीं सुनना चाहते थे, किसी जादू के ज़ोर से उन्होंने एकता का पक्ष लेना शुरू कर दिया, और यह कहते हुए उसका औचित्य सिद्ध करने लगे कि जब बाहरी ज़िले एकता चाहते हैं तो संघ का आग्रह करना अटपटा जान पड़ता है। यह सच है कि उनमें से कुछ ने दावा किया कि सिद्धान्तत: वे संघ के पक्ष में हैं, लेकिन बाहरी ज़िलों की बैठकों में उन्होंने एकता के सवाल का कोई विरोध नहीं किया, और हमारे नेताओं ने पार्टी में हुए पिछले विभाजन के बारे में लोकरंजक शब्दावली, जैसेकि उसे ‘सिर्फ नेताओं ने उकसाया था’, कि वह एकता में बाधा डालने की इच्छा रखने वाले ‘मुट्ठीभर’ बुद्धिजीवियों का काम था, का जवाब सिर्फ शर्मनाक और आपराधिक चुप्पी से दिया।
”इस तरह की सैद्धान्तिक अस्थिरता ने स्थानीय नेतृत्व में मेरा सारा विश्वास हिलाकर रख दिया और उपर्युक्त कारणों के साथ मिलकर इसने मुझे ओदेस्सा का संगठन छोड़ने पर विवश कर दिया।”
लेकिन “प्रचारक नताशा” की यह आपत्ति अपना लक्ष्य पूरा न कर सकी। वह डाकपेटी में पत्र डाल ही रही थीं कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें रोस्तोव जेल में डाल दिया गया और उनका पत्र ज़ारशाही के एजेण्टों के हाथ लग गया (1917 की क्रान्ति ने ओखराना ”राजनीतिक पुलिस” के धूल भरे अभिलेखागार से निकालकर इसे सार्वजनिक किया)।
एक बार फिर उन्हें महीनों तक जेल में रहना पड़ा और फिर उन्हें निर्वासित कर दिया गया – इस बार बिना कोई विकल्प दिये, पुलिस की निगरानी में उन्हें उत्‍तरी रूस के वोलोग्दा में भेज दिया गया।
लेकिन क्रान्ति अभी ख़त्म नहीं हुई थी। नताशा फिर से काम करने के लिए बेचैन थीं और जल्दी ही वह वोलोग्दा की पुलिस की निगरानी से निकल भागने में कामयाब रहीं।
वह ग़ैरकानूनी ढंग से मास्को जाकर रहने लगीं। बेशक इसके साथ तमाम किस्म की भौतिक और कानूनी परेशानियाँ जुड़ी हुई थीं।
इस अवधि की नताशा की गतिविधियों का ब्यौरा कॉमरेड बोब्रोव्स्काया इस तरह देती हैं :
”क्षेत्रीय कमेटी की एक सदस्य कांकोर्दिया समोइलोवा थीं जिन्हें हम ‘नताशा’ के नाम से पुकारते थे। अभी कुछ ही समय पहले उनकी मृत्यु हुई है। उत्कट क्रान्तिकारी नताशा एक दिन मितिषी के जंगलों में जनसभा में जुझारू भाषण देतीं, दूसरे दिन गोलुत्विनो में सांगठनिक बैठक बुलातीं, उसके अगले दिन कोलोमैन वक्र्स के प्रतिनिधियों के साथ सम्मेलन में बैठतीं, वहाँ से वह श्चेल्कोवो, कुन्त्सेवो, पुश्किनो जातीं; हर जगह उनकी व्यग्रता से प्रतीक्षा की जाती थी, हर जगह वह सोये हुए विचारों को जगाती थीं, हर जगह वह बेचैन इच्छाओं को झकझोरती थीं, मास्को के उपनगरों की बिखरी हुई सर्वहारा जनता को जो 1905 की हार से धीरे-धीरे उबर रही थी, मज़बूत सांगठनिक डोर से बाँधती थीं। अपना दौरा पूरा करके भूखी और थकी-माँदी नताशा मास्को लौटती थीं और उनकी रिपोर्टें मेहनतकश जनता के जीवन और उसकी उफष्मा से ओतप्रोत होती थीं… सुरक्षा की दृष्टि से मैंने और नताशा ने एक-दूसरे से दूर ही रहने का समझौता किया, हालाँकि यह आसान नहीं था, क्योंकि हम बहुत गहरी दोस्त थीं, और उनकी मृत्यु तक हमारी गहरी दोस्ती कायम रही।
”एक रात बारह बजे वह मेरे आवास पर आयीं और बोलीं कि वह अपना समझौता तोड़ने पर विवश हैं, क्योंकि जिन तीन पार्टी हमदर्दों के यहाँ उन्होंने ठहरने का अनुरोध किया उन सभी ने विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया था और वे सड़क पर आ गयी थीं। उस रात हम दोनों बहुत कम सोयीं लेकिन हमने हमदर्दों और ख़ुद अपना ख़ूब मज़ाक बनाया। और कुछ किया भी नहीं जा सकता था, क्योंकि उस सँकरी और टूटी चारपाई पर हम दोनों का सो पाना मुमकिन नहीं था।”
यह 1906 की बात है जब नताशा मास्को के ज़िला पार्टी संगठन में काम कर रही थीं। लेकिन वह वहाँ ज्यादा देर तक काम नहीं कर सकीं क्योंकि पुलिस के जासूसों ने परछाईं की तरह उनका पीछा करना शुरू कर दिया था। उन्हें लग गया कि यह मास्को में उनके पार्टी कार्य का अन्त था, और गिरफ्तारी और जेल से बचने के लिए उन्हें कहीं और जाना होगा।
उन्होंने बेसिन में लुगान्स्क का कस्बा चुना।
1906 के आख़िरी महीनों में संयुक्त पार्टी में गहन गुटबाज़ी का समय था (आरएसडीएलपी की एकता कांग्रेस 1906 में स्टॉकहोम में हुई थी)।
लुगान्स्क दोनेत्स इलाके के ”मेंशेविक समुद्र” में एक छोटा बोल्शेविक द्वीप था। दूसरी दूमा के चुनाव करीब आ रहे थे और वहाँ बोल्शेविक कतारों को सुदृढ़ करना ज़रूरी था, न सिर्फ लुगान्स्क को बनाये रखने के लिए और वहाँ सही ढंग से चुनाव प्रचार अभियान चलाने के लिए, बल्कि अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए भी। प्रोफेसर पिंकेविच, जो उन दिनों लुगान्स्क में काम कर रहे थे, उस समय का इस प्रकार वर्णन करते हैं :
”हम दिसम्बर के मध्‍य में लुगान्स्क पहुँचे और निर्धारित जगह पर गये, कॉमरेड पैलोव्स्की (एक छोटे स्थानीय अख़बार ‘दोनेत्स्की कोलोकोल’ के ठिकाने पर, और कुछ घण्टों के बाद हम दो पेशेवर क्रान्तिकारियों, कामरेडों अन्तोन और नताशा के साथ बात कर रहे थे।
”मुझे दो कमरों का छोटा और साधारण-सा अपार्टमेण्ट याद आता है। मुझे नताशा का सजीव, गुलाबी और प्रफुल्लित चेहरा, और अन्तोन (ए.ए. समोइलोव – नताशा के पति) का बड़ा काला और घुँघराले बालों वाला सिर याद आता है। मुझे दोनों की याद है, ख़ुश और जीवन्त, पार्टी के रणकौशलों के बारे में हम पर सवालों की बौछार करते हुए और इस या उस पार्टी कॉमरेड के बारे में पूछते हुए। उनके बहुत-से सवाल थे – दूमा के लिए चुनाव प्रचार, चुनावी समझौतों के प्रश्न पर, लन्दन की पार्टी कांग्रेस, जारी होने वाले नारों, सेण्ट पीटर्सबर्ग में चलने वाली गुटबाज़ी, इत्यादि मसलों पर।
”बोल्शेविक कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी सहित असाधारण प्रसन्नता और जीवन्तता के साथ जमकर काम किया गया। दुर्भाग्य से मुझे उन सबके नाम याद नहीं हैं। कमेटियों ने काफी सक्रियता दिखायी। कई बार हार्टमैन फैक्टरी में ही या उसके गेट पर, रेलवे की कार्यशालाओं में, कारतूस कारख़ाने पर साभाएँ आयोजित हुईं। लेकिन मुख्य ठिकाना बेशक हार्टमैन फैक्टरी ही थी, जहाँ सभी कॉमरेडों के मज़बूत सम्पर्क थे और वे बेहद लोकप्रिय थे, ख़ासकर वोरोशिलोव और प्रिफ़डकिन।
”इस काम में भी नताशा लाजवाब थीं। उस समय वह बड़ी सभाओं में नहीं बोलती थीं – यह यूरिन का और मेरा दायित्व था, लेकिन वह कमेटी की जान और उसकी आत्मा थीं। बेहतरीन संगठनकर्ता, क्रान्ति के मकसद के प्रति पूरी तरह निष्ठावान, मुखर और स्पष्टवादी, एक असाधारण, उच्च विचारों वाली और नेक इंसान थीं। जो भी उनसे मिलता था उन्हें प्यार करने लगता था। वह अन्तोन की देखभाल करती थीं जो हम लोगों को हमेशा एक ऐसे बड़े बच्चे की तरह प्रतीत होता था जो मानो इस दुनिया के लिए न बना हो। वह हमारी देखभाल करती थीं, एक अध्‍ययन मण्डल चलाती थीं, और तकनीकी कार्यों का निर्देशन करती थीं, पूरे दिन सांगठनिक गतिविधियों में दौड़-भाग करती थीं और कभी शिकायत नहीं करती थीं। सर्वहारा की अन्तिम जीत में गहन आस्था की ज्वाला उनमें सदा जलती रहती थी। उनमें काम करने की ज़बरदस्त क्षमता थी और वह हमेशा ऊर्जा से लबरेज़ रहती थीं और इसी के साथ असाधारण शालीनता उनकी अनूठी पहचान थी।
”जब पार्टी कांग्रेस के लिए चुनाव का सवाल उठा (फरवरी 1907 में) और जब उम्मीदवार के रूप में पहली बार उनका नाम सामने आया, तो उन्होंने यह कहते हुए एकदम इंकार कर दिया कि ‘मैक्सिम या यूरिन या मज़दूरों में से किसी को जैसेकि वोलोद्या को, जाना चाहिए।’ ज़ारशाही की सशस्त्र पुलिस ने यूरिन और मुझे गिरफ्तार करके इस समस्या का समाधान कर दिया और लुगान्स्क समूह ने नताशा को वोलोद्या (वोरोशिलोव) के साथ कांग्रेस में भेजा।”
लन्दन की कांग्रेस में उन्होंने, 1902-1903 में जब वह पेरिस में रहती थीं उसके बाद, पहली बार लेनिन को फिर से देखा। अब वह बोल्शेविकों के नेता थे। उन्होंने लेनिन के विस्मयकारी भाषणों को सुना जिनमें उन्होंने मेंशेविक केन्द्रीय कमेटी की राजनीतिक लाइन की ध्‍वस्त कर देने वाली आलोचना की। ये मेंशेविक अब इस कदर नीचे गिर गये थे कि यह नारा देने लगे थे कि मज़दूरों को कैडेट (संवैधानिक-जनवादी-उदार बुर्जुआओं की पार्टी) सरकार का समर्थन करना चाहिए, और यहाँ तक कि मुआवज़ा दिये बिना ज़मींदारों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की माँग अस्वीकार करने लगे थे। नताशा ने लेनिन का वह भाषण सुना जिसमें उन्होंने यह सिद्धान्त दिया कि रूस में क्रान्ति की विजय सर्वहारा और किसानों के जनवादी अधिनायकत्व के रूप में होगी और यह कि सर्वहारा वर्ग क्रान्ति का नेता है। जैसाकि हम जानते हैं, नताशा हमारी पार्टी की बड़ी सिद्धान्तकार या रणनीतिकार नहीं थीं। वह व्यवहार के प्रति समर्पित थीं, और इसमें दो राय नहीं कि पाँचवीं कांग्रेस ने उन पर ज़बरदस्त प्रभाव डाला, बोल्शेविज्म की उनकी समझ को और गहरा किया और बाकी की पूरी ज़िन्दगी के लिए उन्हें एक अटल लेनिनवादी योद्धा बना दिया।
कांग्रेस में बोल्शेविकों की जीत हुई और नताशा जिस उत्साह से भरकर रूस वापस लौटीं उसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। वह हार्टमैन फैक्टरी के मज़दूरों के पास लुगान्स्क वापस लौटने को उत्सुक थीं। वह प्रतिनिधि की हैसियत से उन्हें अपनी रिपोर्ट देने और क्रान्ति के उस काम को और भी उत्साह से आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक थीं जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर रखा था। इस बीच पुलिस विभाग सावधानी के साथ कांग्रेस की निगरानी कर रहा था। उसके विदेशी एजेंट साये की तरह प्रतिनिधियों के पीछे लगे थे और उनके असली नाम जानने और रूस लौटते समय सीमा पर उन्हें गिरफ्तार करने का वे हरसम्भव प्रयास कर रहे थे। बहरहाल, नताशा सुरक्षित रूप से सीमा पार कर गयीं और अपनी निशानदेही छिपाने के लिए कुछ दिन खार्कोव में रुकी रहीं।
(अगले अंक में जारी)

 

बिगुल, फरवरी 2009

 


 

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