चाहे हरियाणा हो या बंगाल सब जगह मज़दूरों के हालात एक जैसे हैं
रोहताश, हरियाणा
मैं कलायत जिले में रहता हूँ जो कि हरियाणा राज्य के कैथल जिला के अन्तर्गत आता है। इस शहर की आबादी 22 हज़ार है। यहाँ पर कोई बड़ा औद्योगिक कारख़ाना मौज़ूद नहीं है। लेकिन यहाँ पर तक़रीबन 100 लघु उद्योग हैं और 200 के क़रीब दुकानें हैं जिनमे तक़रीबन 800 से 1000 मज़दूर काम करते हैं। इन मज़दूरों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। इन मज़दूरों से 12 घण्टों से लेकर 15 घण्टों तक काम कराया जाता है। और पूरे महीने किसी भी प्रकार की छुट्टी नहीं मिलती है। किसी भी कारणवश अगर मज़दूर महीने में किसी दिन काम पर न जाए तो उसकी तनख़्वाह काट ली जाती है। हरियाणा सरकार द्वारा तय न्यूनतम मज़दूरी सिर्फ़ किताबों की शोभा बढाती है जबकि असल में मज़दूर मात्र 3000 से 3500 प्रति महीना मिलती है। कहने को तो हमारे संविधान में 250 से ऊपर श्रम क़ानून हैं लेकिन मज़दूरों के लिए इनका कोई मतलब नहीं है। इन मज़दूरों के शारीरिक हालत तो और भी दयनीय है, 35-40 की आयु में ही 55-60 वर्ष के दिखाई देते हैं। पूँजीवादी मुनाफे की अन्धी हवस ने इनके शरीर से एक एक बूँद ख़ून निचोड़कर सिक्कों में ढाल दिया है। मज़दूर वर्ग को अब समझना होगा कि इस व्यवस्था में इनका कोई भविष्य नहीं है। उसे संगठित होकर इस आदमखोर पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना होगा और एक शोषण विहीन समाज की स्थापना करनी होगी तब जाकर सही मायनों में मज़दूर वर्ग मनुष्य होने पर गर्व महसूस कर सकता है।
मज़दूर बिगुल, जून 2013