छात्र-युवा आन्दोलन में नया उभार और भविष्य के संकेत

अखिल कुमार

जादवपुर विश्‍वविद्यालय के छात्रों का प्रदर्शन

जादवपुर विश्‍वविद्यालय के छात्रों का प्रदर्शन

आर्थिक संकटों के दुष्चक्र में फंसी पूँजीवादी व्यवस्था की हालत पतली हुई पड़ी है, एक संकट से निजात मिलता नहीं कि दूसरा उसके समक्ष प्रकट हो उठता है। ऐसे में दुनिया के तमाम देशों की पूँजीवादी सरकारें अपने मालिकों के मुनाफ़े को सुरक्षित रखने के लिए इन संकटों का सारा बोझ मेहनतकश आबादी पर डालने में लगी हुई हैं। जहाँ एक तरफ़ श्रम क़ानूनों को अधिक से अधिक लचीला बनाकर पूँजीपतियों द्वारा बेहद सस्ती दरों पर मज़दूर आबादी के शोषण का रास्ता साफ़ किया जा रहा है वहीं जनता की गाढ़ी कमायी से खड़े किये गये सार्वजनिक क्षेत्रों को एक-एक करके पूँजी के हवाले किया जा रहा है। निजीकरण-उदारीकरण की इन जन-विरोधी नीतियों से शिक्षा भी अछूती नहीं है। मुक्त बाज़ारीकरण के ज़रिये शिक्षा को पंसारी की दुकान में रखे साबुन, तेल की तरह ही एक माल बना दिया गया है। सरकारी शिक्षा संस्थानों में बेतहाशा फीस बढ़ोतरी और सार्वजनिक शिक्षा के मद में सरकारी खर्च में कटौती की वजह से शिक्षा आम घरों के बेटे-बेटियों से दूर होती जा रही है और अमीरों का विशेषाधिकार बनकर रह गयी है। ऊपर से कॉलेजों और विश्वविद्यालय कैंपसों में छात्रों के जनवादी अधिकारों को भी छीना जा रहा है और उनपर प्रशासन की तानाशाही लागू की जा रही है ताकि वह इन फैसलों के खिलाफ़ आवाज़ भी न उठा सकें।

हिमाचल प्रदेश में फीस वृद्धि के विरूद्ध छात्रों का आन्‍दोलन

हिमाचल प्रदेश में फीस वृद्धि के विरूद्ध छात्रों का आन्‍दोलन

शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण और उदारीकरण की इस अंधेरगर्दी के खिलाफ़ दुनिया भर में जुझारू छात्र आन्दोलन देखने में आ रहे हैं। निरंकुश पूँजीवादी सत्तायें इन आन्दोलनों को कुचलने में अपना पूरा ज़ोर लगा रही हैं, लेकिन फिर भी ये थमने का नाम नहीं ले रहे। लातिन अमेरिका के देश मेक्सिको का छात्र आन्दोलन इसी जुझारूपन से लबरेज़ है। वहाँ सरकार द्वारा प्रस्तावित शिक्षा के निजीकरण संबंधी क़ानूनी संशोधनों के विरोध में लाखों छात्र सड़कों पर हैं और पुलिस के दमन का मुकाबला कर रहे हैं। पिछले महीने के अन्त में शिक्षा के निजीकरण का विरोध कर रहे और त्लातेलोलको नरसंहार (ओलम्पिक खेलों से दस दिन पूर्व 2 अक्तूबर, 1968 को त्लातेलोलको में प्रदर्शन कर रहे निहत्थे छात्रों पर पुलिस और सेना द्वारा गोलियाँ चलायी गयीं और सैकड़ों छात्रों को मौत के घाट उतार दिया गया। अभी तक इस नरसंहार के दोषियों को सज़ा नहीं दी गयी।) को श्रद्धांजलि देने जाने के लिए संसाधन जुटा रहे छात्रों में से तीन को तो पुलिस ने मौके पर ही मार दिया और 43 छात्रों को पुलिस अपने साथ ले गयी। इन 43 छात्रों का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। गेरेरो राज्य के इगुआला शहर में पुलिस को सामूहिक कब्रें मिलीं हैं, जिनमें जली हुई लाशें मिली हैं। ऐसा माना जा रहा है कि ये लाशें उन्हीं 43 छात्रों की हैं जिन्हें पुलिस ने अगवा किया था और बाद में वहाँ के गुण्डा गिरोह के साथ मिलकर इन्हें मौत के घाट उतार दिया। इन हत्याओं के विरोध में हज़ारों छात्र और नौजवान सड़कों पर हैं जिन्हें व्यापक नागरिक आबादी का भी समर्थन मिल रहा है। मेक्सिको में ही शिक्षा के निजीकरण के विरोध में और सरकारी शिक्षा संस्थानों में सुविधाओं की माँग को लेकर इंजीनीयरिंग के छात्र भी हज़ारों की संख्या में सरकार के खि़लाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं।

मेक्सिको में छात्र आन्‍दोलन

मेक्सिको में छात्र आन्‍दोलन

लातिन अमेरिका के एक अन्य देश चिले में लगभग तीन लाख छात्र निशुल्क शिक्षा और सरकारी विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाने की माँग को लेकर आन्दोलन कर रहे हैं। शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे इन छात्रों को बर्बर पुलिसिया दमन का सामना करना पड़ रहा है लेकिन इसके बावजूद वे अपनी माँगों को लेकर डटे हुए हैं। ऐसे ही छात्र आन्दोलन लातिन अमेरिका के एक अन्य देश कोस्टा रिका में भी देखने को मिल रहे हैं।

यूरोप में भी इटली, जर्मनी, अलबानिया, स्पेन, ग्रीस, आयरलैण्ड और नीदरलैण्ड में छात्र और अध्यापक शिक्षा के बाज़ारीकरण का विरोध कर रहे हैं। इटली के कई प्रमुख शहरों में सरकार द्वारा प्रस्तावित जनविरोधी नीतियों जिनमें शिक्षा के बाज़ारीकरण, जन-सुविधाओं में कटौती और श्रम क़ानूनों को लचीला बनाने जैसे कदम शामिल हैं, के विरोध में 80,000 छात्र और नौजवान सरकार से लोहा ले रहे हैं। आने वाले दिनों में इन प्रदर्शनों में मज़दूर आबादी के शामिल होने की भी उम्मीद है।

एशिया भी छात्र आन्दोलनों के नये गढ़ के रूप में उभर रहा है। हाल ही में श्रीलंका के सबारागामूवा विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा शिक्षा मंत्री के आगमन पर उनकी शिक्षा के बाज़ारीकरण की नीतियों के विरोध में एक जुझारू प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के दौरान गुस्साए मंत्री की शह पर पुलिस ने छात्रों पर पानी की बौछारें कीं, उनपर लाठीचार्ज किया और कई छात्रों के खिलाफ़ झूठे केस भी दर्ज किये। हमारे देश में भी कई सालों के सन्नाटे के बाद छात्र-युवा आन्दोलन में नयी सुगबुगाहटें सुनायी दीं। हाल ही में कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में छात्रा से छेड़खानी करने वालों के खि़लाफ़ कार्रवाई करने को लेकर उदासीनता दिखा रहे कुलपति और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के खि़लाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस एवं गुण्डों द्वारा भोर में दो बजे हमला किया गया। हमले के दौरान पुरुष सिपाहियों द्वारा छात्राओं के साथ छेड़खानी की गयी, उन्हें बालों से घसीटा गया, छात्रों को बुरी तरह पीटा गया और कइयों को गिरफ्तार किया गया। इस हमले के खि़लाफ़ हज़ारों की संख्या में छात्र और नौजवान सड़कों पर हैं जो इस हमले के दोषियों को सज़ा देने और विश्वविद्यालय के कुलपति के इस्तीफ़े की माँग कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में बेतहाशा फीस बढ़ोतरी के खि़लाफ़ छात्र जुझारू आन्दोलन लड़ रहे हैं। ग़ौरतलब है कि हाल ही में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में 1000 से लेकर 2000 फीसदी तक फीस बढ़ोतरी की गयी है जिसे लेकर आम घरों के छात्रों में काफ़ी असन्तोष है। जब छात्रों ने विश्वविद्यालय के कुलपति से इस फैसले के बारे में उनका स्पष्टीकरण जानना चाहा तो कुलपति का साफ़ कहना था कि अगर फीस नहीं भर सकते तो विश्वविद्यालय छोड़ दो। इसके खि़लाफ़ जब छात्रों ने आन्दोलन का रास्ता अख़्ति‍यार किया तो पुलिस ने उनका बर्बरतापूर्वक दमन किया, करीब 2500 छात्रों पर झूठे केस दर्ज कर दिये, विश्वविद्यालय परिसर में धारा 144 लगा दी। लेकिन पुलिस के इन हथकण्डों से छात्र झुके नहीं बल्कि धारा 144 के बावजूद धरना स्थल पर जमकर पुलिस के दमन का मुकाबला कर रहे हैं। इसी प्रकार हाल ही में गुड़गांव के गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज में परीक्षाओं की उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन में घपलेबाज़ी के खिलाफ़ छात्राओं ने जुझारू प्रदर्शन किया। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक से सम्बद्ध इस कॉलेज में बाकी कॉलेजों की ही तरह उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन का काम ठेका पर कुछ कम्पनियों को दे रखा था। कॉलेज के अध्यापकों और कम्पनी ने छात्राओं को जानबूझकर फेल करके धन उगाही का ये रैकेट लम्बे समय से चला रखा था। ये प्रदर्शन तब शुरू हुआ जब सेमेस्टर परीक्षा में 356 में से 324 छात्राओं को जानबूझकर फेल कर दिया गया। इस प्रदर्शन की अगुआयी पिंकी चौहान नामक छात्रा कर रही थी, जिसे कॉलेज के प्राध्यापकों ने आत्मदाह करने पर मज़बूर कर दिया जिसके बाद उसका शरीर बुरी तरह जल गया। 14 दिनों तक ज़िन्दगी और मौत से जूझने के बाद पिंकी ने दम तौड़ दिया। इस घटना में इन्साफ़ के लिए कुछ छात्र अभी भी आन्दोलन कर रहे हैं। शिक्षा का बाज़ारीकरण जहाँ एक तरफ़ आम घरों के बेटे-बेटियों को शिक्षा से महरूम कर रहा है वहीं यह उनकी जान का दुश्मन भी बनता जा रहा है।

ऐसे कितने ही छात्र-युवा आन्दोलन आज दुनिया भर में देखने को मिल रहे हैं। ये सब अपने-अपने देश के शासकों को यही चेतावनी दे रहे हैं कि हम अपने अधिकारों पर हो रहे हमलों को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेंगे। जैसे-जैसे शिक्षा के क्षेत्र में बाज़ारीकरण और निजीकरण को लागू किया जायेगा, वैसे-वैसे आम घरों के बेटे-बेटियों के लिए अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाना मुश्किल होता जायेगा जिसका नतीजा छात्रों में बढ़ते असन्तोष के रूप में सामने आयेगा और ज़्यादा से ज़्यादा छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतरेंगे। इसके साथ ही इस विरोध को कुचलने के लिए सत्ता के दमन का पहिया भी तेज़ होता जायेगा। शिक्षा के बाज़ारीकरण के विरोध की इस लड़ाई को छात्र सिर्फ़ अपने दम पर नहीं जीत सकते। इसके लिए उन्हें अपनी लड़ाई को मज़दूर वर्ग की पूँजीवाद विरोधी लड़ाई के साथ जोड़ना होगा।

 

 

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर 2014

 


 

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